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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

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बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

अंतिम दिनों के मसीह के कथन "परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें" (भाग दो)


अंतिम दिनों के मसीह के कथन "परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें" (भाग दो)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "एक कहावत है जिस पर तुम सब को ध्यान देना चाहिए। मेरा मानना है कि यह कहावत अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मेरे मन में हर दिन अनगिनत बार आती है। ऐसा क्यों है? क्योंकि जब भी मैं किसी के सामने होता हूँ, जब भी मैं किसी की कहानी सुनता हूँ, जब भी मैं परमेश्वर पर विश्वास करने के विषय में किसी व्यक्ति का अनुभव या उनकी गवाही को सुनता हूँ, तब मैं हमेशा यह तौलने के लिए इस कहावत का उपयोग करता हूँ कि वह व्यक्ति उस प्रकार का इंसान है या नहीं जिसे परमेश्वर चाहता है, और उस प्रकार का इंसान है या नहीं जिसे परमेश्वर पसन्द करता है। अतः फिर वह कहावत क्या है? अब तुम सब पूरी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हो। जब मैं उस कहावत को प्रकट करता हूँ, कदाचित् तुम लोगों को निराशा महसूस हो क्योंकि ऐसे लोग हैं जो इसके प्रति अनेक वर्षों से दिखावटी प्रेम दिखा रहे हैं। परन्तु जहाँ तक मेरी बात है, मैंने इसके प्रति कभी भी दिखावटी प्रेम नहीं दिखाया है। यह कहावत मेरे हृदय में बसी हुई है। अतः यह कहावत क्या है? यह "परमेश्वर के मार्ग में चलना: परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना है।" क्या यह बहुत ही सरल वाक्यांश नहीं है? फिर भी हालाँकि यह कहावत सरल हो सकती है, कोई व्यक्ति जिसके पास असल में इसकी गहरी समझ है वह महसूस करेगा कि इसका बड़ा वज़न है; कि अभ्यास करने के लिए इसका बड़ा मूल्य है; कि सत्य की वास्तविकता के साथ यह जीवन की भाषा है; कि यह उनके लिए जीवनपर्यन्त उद्देश्य है जो परमेश्वर को संतुष्ट करने की खोज करते हैं; कि यह किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा अनुसरण करने हेतु जीवनपर्यन्त मार्ग है जो परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हैं। अतः तुम लोग क्या सोचते हो: क्या यह कहावत सत्य है? क्या इसका इस प्रकार का महत्व है? कदाचित् कुछ लोग हैं जो इस कहावत के बारे में ऐसा कहते हुए सोच रहे हैं, इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं, और अभी भी ऐसे लोग हैं जो इसके विषय में सन्देहास्पद हैं: क्या यह कहावत अत्यंत महत्वपूर्ण है? क्या यह अत्यंत महत्वपूर्ण है? क्या यह इतना ज़रूरी है और और जोर देने लायक है? कदाचित् कुछ ऐसे लोग हैं जो इस कहावत को उतना पसन्द नहीं करते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि परमेश्वर के मार्ग को लेना और उसे एक कहावत में सारभूत करना इसे बहुत ही सरल बनाना है। जो कुछ परमेश्वर ने कहा था वह सब लेना और एक कहावत में उसका संक्षेपण करना—क्या यह परमेश्वर को थोड़ा महत्वहीन नहीं बना रहा है? क्या यह ऐसा ही है? ऐसा हो सकता है कि तुम लोगों में से अधिकांश जन इन वचनों के पीछे के गंभीर अर्थ को पूरी तरह से नहीं समझते हो। यद्यपि तुम लोगों ने इसे लिख लिया है, फिर भी तुम सब इस कहावत को अपने हृदय में स्थान देने का इरादा नहीं करते हो; तुम सब बस इसे लिख लेते हो, और अपने खाली समय में इसे फिर से पढ़ते हो और इस पर गहराई से विचार करते हो। कुछ अन्य लोग भी हैं जो इस कहावत को स्मरण करने की भी परवाह नहीं करते हैं, अच्छे उपयोग के लिए इसका अभ्यास करने की तो बात ही छोड़ ही दो। परन्तु मैं इस कहावत पर चर्चा क्यों करता हूँ? तुम लोगों के दृष्टिकोण, या जो कुछ तुम सब सोचोगे उनकी परवाह किए बगैर, मुझे इस कहावत पर चर्चा करनी है क्योंकि यह इस बात से अत्यंत प्रासंगिक है कि किस प्रकार परमेश्वर मनुष्य के परिणामों को निर्धारित करता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि इस कहावत के विषय में तुम लोगों की वर्तमान समझ क्या है, या तुम सब इससे कैसा व्यवहार करते हो, मैं अभी भी तुम लोगों को बताने जा रहा हूँ: यदि कोई व्यक्ति इस कहावत का उचित रीति से अभ्यास कर सकता है और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मानक को हासिल कर सकता है, तो उन्हें जीवित बचे हुए इंसान के रूप में आश्वस्त किया जाता है, तो उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में आश्वस्त किया जाता है जिसके पास एक अच्छा परिणाम होता है। यदि तुम उस मानक को प्राप्त नहीं कर सकते हो जिसे इस कहावत के द्वारा रखा गया है, तो ऐसा कहा जा सकता है कि तेरा परिणाम अज्ञात है। इस प्रकार मैं तुम लोगों की मानसिक तैयारी के लिए इस कहावत के बारे में तुम सब से कहता हूँ, और जिससे तुम लोग जान लो कि तुम सब को मापने के लिए परमेश्वर किस प्रकार के मानक का उपयोग करता है। जैसा मैं ने अभी अभी विचार विमर्श किया है, यह कहावत मनुष्य के विषय में परमेश्वर के उद्धार से, और वह किस प्रकार मनुष्य के परिणाम को निर्धारित करता है उससे पूरी तरह से प्रासंगिक (विषय से जुड़ा हुआ) है। यह प्रासंगिकता कहाँ होती है? तुम सब वास्तव में जानना चाहोगे, अतः आज हम इस बारे में बात करेंगे।

परमेश्वर यह परखने के लिए विभिन्न परीक्षाओं का उपयोग करता है कि लोग परमेश्वर का भय मानते और बुराई से दूर रहते हैं या नहीं

प्रत्येक युग में, जब परमेश्वर इस संसार में कार्य करता है तब वह मनुष्य को कुछ वचन प्रदान करता है, मनुष्य को कुछ सच्चाईयां बताता है। ये सच्चाईयां ऐसे मार्ग के रूप में कार्य करती हैं जिसके मुताबिक मनुष्य को चलना है, ऐसा मार्ग जिसमें मनुष्य को चलना है, ऐसा मार्ग जो मनुष्य को परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के लिए सक्षम करता है, और ऐसा मार्ग जिसका मनुष्य को अभ्यास करना चाहिए और अपने जीवन में और अपने जीवन की यात्राओं के दौरान उसके मुताबिक चलना चाहिए। यह इन कारणों के लिए है कि परमेश्वर ने इन शब्दों को मनुष्य पर प्रदान किया है। ये वचन जो परमेश्वर से आते हैं उनके मुताबिक ही मनुष्य को चलना चाहिए, और उनके मुताबिक चलना ही जीवन पाना है। यदि कोई व्यक्ति उनके मुताबिक नहीं चलता है, उन्हें अभ्यास में नहीं लाता है, और अपने जीवन में परमेश्वर के वचनों को नहीं जीता है, तो वह व्यक्ति सत्य को अमल में नहीं ला रहा है। और यदि वे सत्य को अमल में नहीं ला रहे हैं, तो वे परमेश्वर का भय नहीं मान रहे हैं और बुराई से दूर नहीं रह रहे हैं, और न ही वे परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं। यदि कोई परमेश्वर को संतुष्ट नहीं कर सकता है, तो वे परमेश्वर की प्रशंसा को प्राप्त नहीं कर सकते हैं; इस प्रकार के व्यक्ति के पास कोई परिणाम नहीं होता है। अतः तब परमेश्वर के कार्य के पथक्रम में वह किस प्रकार किसी व्यक्ति के परिणाम को निर्धारित करता है? मनुष्य के परिणाम को निर्धारित करने के लिए परमेश्वर किस पद्धति का उपयोग करता है? कदाचित् इस वक्त इस पर तुम लोग बहुत अधिक स्पष्ट नहीं हो, परन्तु जब मैं तुम सब को वह प्रक्रिया बताऊंगा तो यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाएगा। यह इसलिए है क्योंकि बहुत सारे लोगों ने पहले से ही स्वयं इसका अनुभव कर लिया है।

परमेश्वर के कार्य के दौरान, आरम्भ से लेकर अब तक, परमेश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति के लिए परीक्षाएं निर्धारित कर रखी हैं—या तुम लोग कह सकते हो, प्रत्येक व्यक्ति जो उसका अनुसरण करता है – और ये परीक्षाएं भिन्न भिन्न आकार में आती हैं। ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने परिवार के द्वारा तिरस्कृत होने की परीक्षा का अनुभव किया है; ऐसे लोग जिन्होंने विपरीत वातावरण की परीक्षा का अनुभव किया है; ऐसे लोग जिन्होंने गिरफ्तार होने एवं यातनाएं दिए जाने की परीक्षा का अनुभव किया है; ऐसे लोग जिन्होंने किसी एक विकल्प को चुनने की परीक्षा का सामना करने का अनुभव किया है; और ऐसे लोग जिन्होंने धन एवं रुतबे की परीक्षाओं का सामना करने का अनुभव किया है। सामान्य रूप से कहें, तो तुम लोगों में से प्रत्येक ने सभी प्रकार की परीक्षाओं का सामना किया है। परमेश्वर इस प्रकार से कार्य क्यों करता है? परमेश्वर हर किसी के साथ ऐसा व्यवहार क्यों करता है? वह किस प्रकार के परिणाम को देखना चाहता है? जो कुछ मैं तुम सब से कहना चाहता हूँ यह उसका महत्वपूर्ण बिन्दु है: परमेश्वर देखना चाहता है कि यह व्यक्ति उस प्रकार का है या नहीं जो परमेश्वर का भय मानता है और बुराई से दूर रहता है। इसका अर्थ यह है कि जब परमेश्वर तुझे कोई परीक्षा दे रहा है, तुझ से किसी परिस्थिति का सामना करवा रहा है, तो वह परीक्षा लेना चाहता है कि तू ऐसा व्यक्ति है या नहीं जो परमेश्वर का भय मानता है, और ऐसा व्यक्ति है या नहीं जो बुराई से दूर रहता है। यदि कोई व्यक्ति किसी भेंट (दान राशी) को सुरक्षित रखने के कर्तव्य से मुखातिब होता है, और वे परमेश्वर की भेंट के सम्पर्क में आते हैं, तो क्या तू सोचता है कि यह ऐसी चीज़ है जिसका प्रबंध परमेश्वर ने किया है? कोई प्रश्न ही नहीं है! जिस किसी चीज़ का तू सामना करता है वह ऐसी चीज़ है जिसका प्रबंध परमेश्वर ने किया है। जब तेरा सामना ऐसे किसी मामले से होता है, तो परमेश्वर गुप्त रीति से तेरा अवलोकन करेगा, तुझे देखेगा कि तू कैसा चुनाव करता है, तू कैसा अभ्यास करता है, और तू किसके विषय में सोच रहा है। अंतिम परिणाम यही है जिसमें परमेश्वर सबसे अधिक रूचि लेता है, चूँकि यह ऐसा परिणाम है जो उसे यह मापने देगा कि इस परीक्षा में तूने परमेश्वर के मानक को हासिल किया है या नहीं। फिर भी, जब लोगों का सामना किसी मसले से होता है, तो वे अकसर इसके विषय में नहीं सोचते है कि उनका सामना इस से, या परमेश्वर के द्वारा मांगी गई मानक (स्तर) से क्यों हो रहा है। वे इसके विषय में नहीं सोचते हैं कि परमेश्वर उनमें क्या देखना चाहता है, वह उनसे क्या प्राप्त करना चाहता है। ऐसे मामले से सामना होने पर, इस प्रकार का व्यक्ति केवल यह सोच रहा है, "यह कुछ ऐसा है जिसका मैं सामना करता हूँ; मुझे सावधान रहना होगा, असावधान नहीं! चाहे कुछ भी हो, यह परमेश्वर की भेंट है और मैं इसे छू नहीं सकता हूँ।" ऐसा व्यक्ति विश्वास करता है कि वे ऐसे अत्यंत सरल सोच को धारण करके अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा कर सकते हैं। क्या परमेश्वर इस परीक्षा के परिणाम के द्वारा संतुष्ट होगा? या वह संतुष्ट नहीं होगा? तुम लोग इस पर चर्चा कर सकते हो। (यदि कोई अपने हृदय में परमेश्वर का भय मानता है, तो जब उस कर्तव्य से सामना होता है जो उन्हें परमेश्वर को चढ़ाई भेंट से सम्पर्क करने की अनुमति देता है, तो वे विचार करेंगे कि परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुंचाना कितना आसान होगा, अतः वे सावधानी से आगे बढ़ने के लिए निश्चित होंगे।) तेरा प्रत्युत्तर सही पटरी पर है, परन्तु अभी तक वहाँ बिलकुल भी नहीं पहुंचा है। परमेश्वर के मार्ग पर चलना सतह पर नियमों का अवलोकन करने के विषय में नहीं है। इसके बजाय, इसका अर्थ यह है कि जब तेरा सामना किसी मामले से होता है, तो सबसे पहले, तू इसे ऐसी परिस्थिति के रूप में देख जिसका प्रबंध परमेश्वर के द्वारा किया गया है, ऐसी ज़िम्मेदारी के रूप में देख जिसे उसके द्वारा तुझे प्रदान किया गया है, या किसी ऐसी चीज़ के रूप में देख जिसे उसने तुझे सौंपा है, और यह कि जब तू इसका सामना कर रहा है, तो तुझे इसे परमेश्वर से आई किसी परीक्षा के रूप में भी देखना चाहिए। इस मामले का सामना करते समय, तेरे पास एक मानक अवश्य होना चाहिए, तुझे सोचना होगा कि यह परमेश्वर की ओर से आया है, तुझे इसके विषय में सोचना होगा कि किस प्रकार इस मामले से कुछ इस तरह निपटें कि तू अपनी ज़िम्मेदारी को निभा सके, और परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य रहे; इसे कैसे करे और परमेश्वर को क्रोधित न करे, या उसके स्वभाव को ठेस न पहुंचाए। हमने अभी अभी भेंटों (दान राशि) की सुरक्षा के विषय में बात की थी। इस मामले में भेंट शामिल हैं, और साथ ही इसमें तेरे कर्तव्य, एवं तेरी ज़िम्मेदारी भी शामिल है। तू इस ज़िम्मेदारी के प्रति कर्तव्य से बंधा हुआ है। फिर भी जब तेरा सामना इस मामले से होता है, तो क्या कोई प्रलोभन है? हाँ है! यह प्रलोभन कहाँ से आया है? यह प्रलोभन शैतान की ओर से आता है, और साथ ही यह मनुष्य की बुराई, एवं भ्रष्ट स्वभाव से भी आता है। चूँकि प्रलोभन है, इसमें स्थिर गवाही शामिल है; स्थिर गवाही भी तेरी ज़िम्मेदारी एवं कर्तव्य है। कुछ लोग कहते हैं: "यह तो इतना छोटा मसला है; क्या वास्तव में इससे बात का बतंगड़ बनाना ज़रूरी है?" हाँ यह ज़रूरी है! क्योंकि परमेश्वर के मार्ग पर चलने के लिए, हम किसी ऐसी चीज़ को जाने नहीं दे सकते हैं जिसका हमसे लेना देना है, या कोई ऐसी चीज़ जो हमारे आस पास घटित होती है, यहाँ तक कि छोटी छोटी चीज़ें भी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम सोचें कि हमें इस पर ध्यान देना चाहिए या नहीं, जब तक कोई मसला हमारा सामना कर रहा है तब तक हमें उसे जाने नहीं देना चाहिए। इन सभी चीज़ों को हमारे लिए परमेश्वर की परीक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए। इस प्रकार की मनोवृत्ति कैसी है? यदि तेरे पास इस प्रकार की मनोवृत्ति है, तो यह एक तथ्य को प्रमाणित करती है: तेरा हृदय परमेश्वर का भय मानता है, और तेरा हृदय बुराई से दूर रहने के लिए तैयार है। यदि तेरे पास परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए ऐसी इच्छा है, तो जिसे तू अभ्यास में लाता है वह परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मानक से दूर नहीं है।

प्रायः ऐसे लोग होते हैं जो मानते हैं कि ऐसे मामले जिन पर लोगों के द्वारा अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है, ऐसे मामले जिनका सामान्यतः उल्लेख नहीं किया जाता है – ये महज छोटी मोटी निरर्थक बातें होती हैं, और उनका सत्य के अभ्यास से को कोई लेना देना नहीं होता है। जब ऐसे लोगों का सामना ऐसे मामले से होता है, तो वे उस पर अधिक विचार नहीं करते हैं और उसे जाने देते हैं। परन्तु वास्तविक तथ्य में, यह मामला एक सबक है जिसके लिए तुझे अध्ययन करना चाहिए, और उसके विषय में एक सबक है कि किस प्रकार परमेश्वर का भय मानना है, एवं किस प्रकार बुराई से दूर रहना है। इसके अतिरिक्त, जिसके विषय में तुझे और भी अधिक चिंता करनी चाहिए वह यह जानना है कि जब यह मामला तेरा सामना करने के लिए उठ खड़ा होता है तब परमेश्वर क्या कर रहा है। परमेश्वर ठीक तेरे बगल में है, तेरे प्रत्येक शब्द एवं कार्य का अवलोकन कर रहा है, तेरे कार्यों, एवं तेरे मन में हुए परिवर्तनों का अवलोकन कर रहा है—यह परमेश्वर का कार्य है। कुछ लोग कहते हैं: "तो मुझे इसका एहसास क्यों नहीं होता है? तूने इसका एहसास नहीं किया किया है क्योंकि परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग तेरा अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग नहीं रहा है कि तू उसके मुताबिक चले। इसलिए, तू मनुष्य में परमेश्वर के सूक्ष्म कार्य को महसूस नहीं कर सकता है, जो लोगों के विभिन्न विचारों एवं विभिन्न कार्यों के अनुसार स्वयं को प्रदर्शित करते हैं। तू एक भुलक्कड़ है। इसमें कौन सी बड़ी बात है? छोटी बात क्या है? सभी मामलों को बड़े एवं छोटे मामलों में विभाजित नहीं किया गया है जिसमें परमेश्वर के मार्ग पर चलना शामिल है। क्या तुम लोग उसे स्वीकार कर सकते हो? (हम इसे स्वीकार कर सकते हैं।) प्रतिदिन के मामलों के सम्बन्ध में, कुछ मामले हैं जिन्हें लोग बहुत बड़े एवं महत्वपूर्ण मामले के रूप में देखते हैं, और अन्य मामलें हैं जिन्हें छोटी मोटी निरर्थक मामलों के रूप में देखा जाता है। लोग अकसर इन बड़े मामलों को अत्यंत महत्वपूर्ण मामलों के रूप में देखते हैं, और वे विचार करते हैं कि उन्हें परमेश्वर के द्वारा भेजा गया है? फिर भी, इन बड़े मामलों के जारी होने के पथक्रम के दौरान, मनुष्य के अपरिपक्व कदकाठी के कारण, और मनुष्य की कम क्षमता के कारण, मनुष्य प्रायः परमेश्वर के इरादों के मुताबिक नहीं होता है, वह कोई प्रकाशन प्राप्त नहीं कर सकता है, और कोई वास्तविक ज्ञान हासिल नहीं कर सकता है जो किसी मूल्य का हो। जहाँ तक छोटे छोटे मामलों की बात है, लोगों के द्वारा बस इनकी अनदेखी की जाती है, और थोड़ा थोड़ा करके हाथ से फिसलने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार, उन्होंने परमेश्वर के सामने जांचे जाने, एवं उसके द्वारा परखे जाने के अनेक अवसरों को खो दिया है। क्या तुझे हमेशा लोगों, चीज़ों, एवं मामलों, एवं परिस्थितियों को अनदेखा करना चाहिए जिनका इंतज़ाम परमेश्वर ने तेरे लिए किया है, इसका क्या अर्थ होगा? इसका अर्थ है कि प्रतिदिन, यहाँ तक कि प्रत्येक क्षण, तू हमेशा से अपने विषय में परमेश्वर की सिद्धता का एवं परमेश्वर की अगुवाई का परित्याग कर रहा है। जब कभी परमेश्वर तेरे लिए किसी परिस्थिति का प्रबंध करता है, तो वह गुप्त रीति से देख रहा है, तेरे हृदय को देख रहा है, तेरी सोच एवं विचारों को देख रहा है, तू किस प्रकार सोचता है उसे देख रहा है, तू किस प्रकार कार्य करेगा उसे देख रहा है। यदि तू एक लापरवाह व्यक्ति है—ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर के मार्ग, परमेश्वर के वचन, या उस सत्य के विषय में कभी भी गंभीर नहीं रहा है—तो तू सचेत नहीं होगा, तू उस पर ध्यान नहीं देगा जिसे परमेश्वर पूरा करना चाहता है, और उस पर ध्यान नहीं देगा जिसकी मांग परमेश्वर तुझसे उस समय करता है जब वह तेरे लिए परिस्थितियों का प्रबंध करता है। साथ ही तू यह भी नहीं जानेगा कि लोग, चीज़ें, एवं मामले जिनका तुम लोग सामना करते हो वे किस प्रकार उस सच्चाई से या परमेश्वर के इरादों से सम्बन्ध रखते हैं। जब तू इस प्रकार बार-बार परिस्थितियों एवं बार-बार परीक्षाओं का सामना करता है उसके पश्चात्, और जब परमेश्वर तेरे नाम में किसी उपलब्धि को नहीं देखता है, तो परमेश्वर कैसे आगे बढ़ेगा? बार-बार परीक्षाओं का सामना करने के बाद, तू अपने हृदय में परमेश्वर की महिमा का बखान नहीं करता है, और तू उन परिस्थितियों से जिन्हें परमेश्वर ने तेरे लिए व्यवस्थित किया है वैसा व्यवहार नहीं करता है जैसे उनसे किया जाना चाहिए—परमेश्वर की परीक्षाओं के रूप में या परमेश्वर की परख के रूप में। इसके बजाय तू उन अवसरों को अस्वीकार करता है जिन्हें परमेश्वर ने तुझे एक के बाद एक प्रदान किया है, और बार-बार उन्हें हाथ से जाने देता है। क्या यह मनुष्य के द्वारा बड़ी अनाज्ञाकारिता नहीं है? (यह है।) क्या इसके कारण परमेश्वर शोकित होगा? (वह शोकित होगा।) परमेश्वर शोकित नहीं होगा! मुझे इस प्रकार कहते हुए सुनकर तुम लोग एक बार फिर से अचम्भित हो गए हो। आखिरकार, क्या ऐसा पहले नहीं कहा गया था कि परमेश्वर हमेशा शोकित होता है? परमेश्वर शोकित नहीं होगा? तो परमेश्वर कब शोकित होगा? खैर, परमेश्वर इस स्थिति के द्वारा शोकित नहीं होगा। तो उस प्रकार के व्यवहार के प्रति परमेश्वर की मनोवृत्ति क्या है जिसकी रूपरेखा ऊपर दी गई है? जब लोग प्रलोभनों एवं परीक्षाओं को अस्वीकार करते हैं जिन्हें परमेश्वर उन पर भेजता है, जब वे वहाँ से भाग जाते हैं, तो केवल एक ही मनोवृत्ति है जो इन लोगों के प्रति परमेश्वर के पास होती है। यह मनोवृत्ति क्या है? परमेश्वर अपने हृदय की गहराई से इस प्रकार के व्यक्ति को ठुकराता है। यहाँ "ठुकराने" शब्द के लिए अर्थ की दो परतें हैं। मैं उन्हें किस प्रकार समझाऊं? भीतर गहराई में, वह शब्द घृणा एवं नफरत के संकेत अर्थों को लिए हुए है। और जहाँ तक अर्थ की दूसरी परत की बात है? यह वह भाग है जो किसी चीज़ को छोड़ देने को सूचित करता है। तुम सभी जानते हो कि "छोड़ देने" का क्या अर्थ है, सही है? संक्षेप में, ठुकराने का अर्थ है ऐसे लोगों के प्रति परमेश्वर की अंतिम प्रतिक्रिया एवं मनोवृत्ति जो इस रीति से व्यवहार कर रहे हैं। यह उनके प्रति चरम नफरत है, एवं चिढ़ है, और इस प्रकार उन्हें त्याग देने का निर्णय लिया गया। यह ऐसे व्यक्ति के प्रति परमेश्वर का अंतिम निर्णय है जो परमेश्वर के मार्ग पर कभी नहीं चला है, जिसने कभी परमेश्वर का भय नहीं माना है और बुराई से दूर नहीं रहा है। क्या अब तुम सभी लोग इस कहावत के महत्व को देख सकते हो जिसे मैं ने कहा है?"
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