चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

2. परमेश्वर केवल उस कलीसिया को आशीष क्यों देता है जो उसके कार्य को स्वीकार कर उसका अनुपालन करती है? वह धार्मिक संगठनों को क्यों शाप देता है?

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, परमेश्वर को जानना, मसीह के कथन, Christian

2. परमेश्वर केवल उस कलीसिया को आशीष क्यों देता है जो उसके कार्य को स्वीकार कर उसका अनुपालन करती है वह धार्मिक संगठनों को क्यों शाप देता है

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
क्योंकि ऐसे लोग जो किसी धर्म में हैं वे परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, और वे केवल भूतकाल के पुराने कार्य को ही थामे रहते हैं, इस प्रकार परमेश्वर ने इन लोगों को छोड़ दिया है, और उन लोगों पर अपना कार्य करता है जो उसके नए कार्य को स्वीकार करते हैं। ये ऐसे लोग हैं जो उसके नए कार्य में उसका सहयोग करते हैं, और केवल इसी रीति से ही उसके प्रबंधन को पूरा किया जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" से

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

1. परमेश्वर की कलीसिया क्या है? एक धार्मिक संगठन क्या होता है?

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1. परमेश्वर की कलीसिया क्या है? एक धार्मिक संगठन क्या होता है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"यीशु ने परमेश्‍वर के मन्दिर में जाकर उन सब को, जो मन्दिर में लेन-देन कर रहे थे, निकाल दिया, और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं; और उनसे कहा, "लिखा है, 'मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा'; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो" (मत्ती 21:12-13)।
"उसने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, गिर गया, बड़ा बेबीलोन गिर गया है! वह दुष्‍टात्माओं का निवास, और हर एक अशुद्ध आत्मा का अड्डा, और हर एक अशुद्ध और घृणित पक्षी का अड्डा हो गया। क्योंकि उसके व्यभिचार की भयानक मदिरा के कारण सब जातियाँ गिर गई हैं, और पृथ्वी के राजाओं ने उसके साथ व्यभिचार किया है, और पृथ्वी के व्यापारी उसके सुख-विलास की बहुतायत के कारण धनवान हुए हैं" (प्रकाशितवाक्य 18:2-3)।

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

2. अंतिम दिनों में चीन में कार्य करने के लिए परमेश्वर के देह-धारण का उद्देश्य और महत्व क्या है?

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2. अंतिम दिनों में चीन में कार्य करने के लिए परमेश्वर के देह-धारण का उद्देश्य और महत्व क्या है

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण सारी मानवजाति के वास्ते है, और समूची मानवजाति की ओर निर्देशित है। यद्यपि यह देह में उसका कार्य है, फिर भी इसे अब भी सारी मानवजाति की ओर निर्देशित किया गया है; वह सारी मानवजाति का परमेश्वर है, वह सभी सृजे गए और न सृजे गए प्राणियों का परमेश्वर है। यद्यपि देह में उसका कार्य एक सीमित दायरे के भीतर होता है, और इस कार्य का विषय भी सीमित होता है, फिर भी हर बार जब वह अपना कार्य करने के लिए देह धारण करता है तो वह अपने कार्य का एक विषय चुनता है जो अत्यंत प्रतिनिधिक है; वह सामान्य एवं मामूली लोगों के एक समूह को नहीं चुनता है कि उन पर कार्य करे, किन्तु इसके बजाए अपने कार्य के विषय के रूप में लोगों के ऐसे समूह को चुनता है जो देह में उसके कार्य के प्रतिनिधि होने में सक्षम हैं।

सोमवार, 28 जनवरी 2019

1. अंतिम दिनों में परमेश्वर ने चीन में देह-धारण किया है; बाइबल की भविष्यवाणियों में और परमेश्वर के वचनों में इसके लिए क्या आधार मिलता है?

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1. अंतिम दिनों में परमेश्वर ने चीन में देह-धारण किया है; बाइबल की भविष्यवाणियों में और परमेश्वर के वचनों में इसके लिए क्या आधार मिलता है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट चढ़ाई जाती है" (मलाकी 1:11)।
"क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)।

रविवार, 27 जनवरी 2019

3. व्यवस्था के युग में नबियों के द्वारा दिए गए परमेश्वर के वचनों और देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्त परमेश्वर के वचनों में क्या अंतर है?

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3. व्यवस्था के युग में नबियों के द्वारा दिए गए परमेश्वर के वचनों और देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्त परमेश्वर के वचनों में क्या अंतर है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
अनुग्रह के युग में, यीशु ने भी काफ़ी बातचीत की और काफ़ी कार्य किया। वह यशायाह से किस प्रकार भिन्न था? वह दानिय्येल से किस प्रकार भिन्न था? क्या वह कोई भविष्यद्वक्ता था? ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह मसीह है? उनके मध्य क्या भिन्नताएँ हैं? वे सभी मनुष्य थे जिन्होंने वचन बोले थे, और मनुष्य को उनके वचन लगभग एक से प्रतीत होते थे। उन सभी ने बातें की और कार्य किए।

शनिवार, 26 जनवरी 2019

2. परमेश्वर द्वारा विभिन्न युगों के दौरान उपयोग में लाये गए लोगों के शब्दों, जो सत्य से मेल खाते हैं, और परमेश्वर के वचनों में क्या अंतर है?

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2. परमेश्वर द्वारा विभिन्न युगों के दौरान उपयोग में लाये गए लोगों के शब्दों, जो सत्य से मेल खाते हैं, और परमेश्वर के वचनों में क्या अंतर है

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
सत्य मानव संसार से आता है, फिर भी वह सत्य जो मनुष्य के मध्य है उसे मसीह के द्वारा पहुंचाया गया है। इसका उद्गम मसीह से होता है, अर्थात्, स्वयं परमेश्वर से, और इसे मनुष्य के द्वारा अर्जित नहीं किया जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" से

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

1. परमेश्वर की आवाज़ को वास्तव मरण कैसे पहचानना चाहिए? कोई कैसे इस बात की पुष्टि कर सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटा हुआ प्रभु यीशु है?

1. परमेश्वर की आवाज़ को वास्तव मरण कैसे पहचानना चाहिए? कोई कैसे इस बात की पुष्टि कर सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटा हुआ प्रभु यीशु है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (युहन्ना 10:27)।
"मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (युहन्ना 16:12-13)।

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

6. बाइबल के साथ वास्तव में कैसे पेश आना चाहिए और उसका उपयोग किस तरह से करना चाहिए कि वह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हो? बाइबल का मूलभूत मूल्य क्या है?

6. बाइबल के साथ वास्तव में कैसे पेश आना चाहिए और उसका उपयोग किस तरह से करना चाहिए कि वह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हो? बाइबल का मूलभूत मूल्य क्या है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आज, मैं इस रीति से बाइबल की चीरफाड़ कर रहा हूँ और इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं इस से नफरत करता हूँ, या सन्दर्भ के लिए इसके मूल्य को नकारता हूँ। अंधकार में रखे जाने से तुम्हें रोकने के लिए मैं तुम्हारे लिए बाइबल के अंतर्निहित मूल्यों और इसकी उत्पत्ति की व्याख्या कर रहा हूँ। क्योंकि बाइबल के बारे में लोगों के अनेक दृष्टिकोण हैं, और उनमें से अधिकांश ग़लत हैं; इस तरह से बाइबल पढ़ना न केवल उन्हें उन चीज़ों को प्राप्त करने से रोकता है जो उन्हें प्राप्त करनी चाहिए, बल्कि, अधिक महत्वपूर्ण यह है, कि यह उस कार्य में भी बाधा डालता है जिसे करने का मैं इरादा करता हूँ।

बुधवार, 23 जनवरी 2019

5. परमेश्वर में सच्चा विश्वास वास्तव में क्या है? किसी को परमेश्वर में कैसे विश्वास करना चाहिए कि वह परमेश्वर से प्रशंसा प्राप्त कर सके?

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5. परमेश्वर में सच्चा विश्वास वास्तव में क्या है किसी को परमेश्वर में कैसे विश्वास करना चाहिए कि वह परमेश्वर से प्रशंसा प्राप्त कर सके

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यद्यपि बहुत से लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, किंतु बहुत कम लोग समझते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने का अर्थ क्या है, और परमेश्वर के मन के अनुरूप बनने के लिये उन्हें क्या करना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि यद्यपि लोग "परमेश्वर" शब्द और "परमेश्वर का कार्य" जैसे वाक्यांश से परिचित हैं, किंतु वे परमेश्वर को नहीं जानते हैं, और उससे भी कम वे उसके कार्य को जानते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि तब वे सभी जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं, वे दुविधायुक्त विश्वास रखते हैं। लोग परमेश्वर पर विश्वास करने को गंभीरता से नहीं लेते हैं, क्योंकि परमेश्वर पर विश्वास करना उनके लिये अत्यधिक अनजाना और अजीब है।

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

4. बाइबल में अनन्त जीवन का कोई मार्ग नहीं है; यदि मनुष्य बाइबल को थामे रहता है और उसकी आराधना करता है, तो वह अनन्त जीवन को प्राप्त नहीं करेगा।

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, परमेश्वर को जानना, बाइबल, मसीह के कथन

4. बाइबल में अनन्त जीवन का कोई मार्ग नहीं है; यदि मनुष्य बाइबल को थामे रहता है और उसकी आराधना करता है, तो वह अनन्त जीवन को प्राप्त नहीं करेगा।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, या ढूँढ़ो क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (युहन्ना 5:39-40)।
"मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (युहन्ना 14:6)।

सोमवार, 21 जनवरी 2019

3. बाइबल मनुष्य द्वारा संकलित की गई थी, परमेश्वर द्वारा नहीं; बाइबल परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती।

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, परमेश्वर को जानना, बाइबल, मसीह के कथन

3. बाइबल मनुष्य द्वारा संकलित की गई थी, परमेश्वर द्वारा नहीं; बाइबल परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (युहन्ना 5:39-40)।
"मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (युहन्ना 14:6)।

रविवार, 20 जनवरी 2019

2. धार्मिक दुनिया का मानना है कि सभी शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से दिए गए हैं और ये सब परमेश्वर के ही वचन हैं; इस कथन के प्रति हर किसी को क्या विवेक रखना चाहिए?

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, परमेश्वर को जानना, बाइबल, मसीह के कथन

2. धार्मिक दुनिया का मानना है कि सभी शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से दिए गए हैं और ये सब परमेश्वर के ही वचन हैं; इस कथन के प्रति हर किसी को क्या विवेक रखना चाहिए

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
बाइबल की हर चीज़ परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों का लिखित दस्तावेज़ नहीं है। बाइबल सामान्यतः परमेश्वर के कार्य की पिछली दो अवस्थाओं का आलेख करती है, उसमें से एक भाग है जो पैग़म्बरों की भविष्यवाणियों का लिखित दस्तावेज़ है, और एक भाग वह अनुभव और ज्ञान है जिन्हें युगों के दौरान उन लोगों के द्वारा लिखा गया था जिन्हें परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किया गया था। मानवीय अनुभवों को मानवीय अनुमानों और ज्ञान के साथ दूषित किया गया है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

शनिवार, 19 जनवरी 2019

1. बाइबल केवल व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य के दो चरणों का एक आलेख (रिकॉर्ड) है; यह परमेश्वर के कार्य की संपूर्णता का आलेख नहीं है।

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, परमेश्वर को जानना, बाइबल, मसीह के कथन

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (युहन्ना 16:12-13)।
"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:17)।
"देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है" (प्रकाशितवाक्य 5:5)।

रविवार, 6 जनवरी 2019

2. परमेश्वर के स्वभाव और सार को कोई कैसे जान सकता है?

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, परमेश्वर को जानना, मसीह के कथन

2. परमेश्वर के स्वभाव और सार को कोई कैसे जान सकता है

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
लोग अकसर कहते हैं कि परमेश्वर को जानना सरल बात नहीं है। फिर भी, मैं कहता हूं कि परमेश्वर को जानना बिलकुल भी कठिन विषय नहीं है, क्योंकि वह बार बार मनुष्य को अपने कामों का गवाह बनने देता है। परमेश्वर ने कभी भी मनुष्य के साथ संवाद करना बंद नहीं किया है; उसने कभी भी मनुष्य से अपने आपको गुप्त नहीं रखा है, न ही उसने स्वयं को छिपाया है। उसके विचारों, उसके उपायों, उसके वचनों और उसके कार्यों को मानवजाति के लिए पूरी तरह से प्रकाशित किया गया है।

शनिवार, 5 जनवरी 2019

1. परमेश्वर को जानना वास्तव में क्या है? क्या बाइबल की जानकारी और धार्मिक सिद्धांत को समझना, परमेश्वर को जानना माना जा सकता है?

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, परमेश्वर को जानना, बाइबल, मसीह के कथन

1. परमेश्वर को जानना वास्तव में क्या है? क्या बाइबल की जानकारी और धार्मिक सिद्धांत को समझना, परमेश्वर को जानना माना जा सकता है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर को जानने का क्या अभिप्राय है? इसका अभिप्राय है कि मनुष्य परमेश्वर की भावनाओं के विस्तार को जानता है, परमेश्वर को जानना यही है। आप कहते हैं कि आपने परमेश्वर को देखा है, फिर भी आप परमेश्वर की भावनाओं के विस्तार को नहीं जानते हैं, उनके स्वभाव को नहीं जानते हैं, और उनकी धार्मिकता को भी नहीं जानते हैं। आपको उनकी दयालुता की कोई समझ नहीं है, और आप नहीं जानते हैं कि वे किससे घृणा करते हैं। इसे परमेश्वर को जानना नहीं कहा जा सकता है। इसलिए, कुछ लोग परमेश्वर का अनुसरण करने में सक्षम हैं, किन्तु वे आवश्यक रूप से परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं।

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

4. जो भी परमेश्वर में विश्वास करता है, उन्हें झूठे चरवाहों और मसीह-शत्रुओं को पहचानने में सक्षम होना चाहिए ताकि वह धर्म को त्याग कर परमेश्वर की ओर लौट सके।

4. जो भी परमेश्वर में विश्वास करता है, उन्हें झूठे चरवाहों और मसीह-शत्रुओं को पहचानने में सक्षम होना चाहिए ताकि वह धर्म को त्याग कर परमेश्वर की ओर लौट सके।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"परमेश्‍वर यहोवा यों कहता है: हाय इस्राएल के चरवाहों पर जो अपने अपने पेट भरते हैं! क्या चरवाहों को भेड़-बकरियों का पेट न भरना चाहिए? तुम लोग चर्बी खाते, ऊन पहिनते और मोटे मोटे पशुओं को काटते हो; परन्तु भेड़-बकरियों को तुम नहीं चराते। तुम ने बीमारों को बलवान न किया, न रोगियों को चंगा किया, न घायलों के घावों को बाँधा, न निकाली हुई को लौटा लाए, न खोई हुई को खोजा, परन्तु तुम ने बल और जबरदस्ती से अधिकार चलाया है" (यहेजकेल 34:2-4)।

रविवार, 30 दिसंबर 2018

2. परमेश्वर के द्वारा उपयोग में लाये गए लोगों के कार्य और धार्मिक नेताओं के काम के बीच क्या अंतर है?

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, मसीह के कथन

2. परमेश्वर के द्वारा उपयोग में लाये गए लोगों के कार्य और धार्मिक नेताओं के काम के बीच क्या अंतर है

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"तब यहोवा ने कहा, '… परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानों में विश्‍वासयोग्य है'" (गिनती 12:6-7)।
"हाय इस्राएल के चरवाहों पर जो अपने अपने पेट भरते हैं! क्या चरवाहों को भेड़-बकरियों का पेट न भरना चाहिए? तुम लोग चर्बी खाते, ऊन पहिनते और मोटे मोटे पशुओं को काटते हो; परन्तु भेड़-बकरियों को तुम नहीं चराते। तुम ने बीमारों को बलवान न किया, न रोगियों को चंगा किया, न घायलों के घावों को बाँधा, न निकाली हुई को लौटा लाए, न खोई हुई को खोजा, परन्तु तुम ने बल और जबरदस्ती से अधिकार चलाया है। वे चरवाहे के न होने के कारण तितर-बितर हुईं; और सब वनपशुओं का आहार हो गईं। मेरी भेड़-बकरियाँ तितर-बितर हुई हैं; वे सारे पहाड़ों और ऊँचे ऊँचे टीलों पर भटकती थीं; मेरी भेड़-बकरियाँ सारी पृथ्वी के ऊपर तितर-बितर हुईं; और न तो कोई उनकी सुधि लेता था, न कोई उनको ढूँढ़ता था" (यहेजकेल 34:2-6)।

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

1. परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम के बीच सारभूत अंतर क्या है?

1. परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम के बीच सारभूत अंतर क्या है

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
स्वयं परमेश्वर के कार्य में सम्पूर्ण मानवजाति का कार्य सम्मिलित है, और यह सम्पूर्ण युग के कार्य का भी प्रतिनिधित्व करता है। कहने का तात्पर्य है, परमेश्वर का स्वयं का कार्य पवित्र आत्मा के सभी कार्य की गति एवं प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि प्रेरितों का कार्य परमेश्वर के स्वयं के कार्य का अनुसरण करता है और युग की अगुवाई नहीं करता है, न ही यह सम्पूर्ण युग में पवित्र आत्मा के कार्य करने की प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है।वे केवल वही कार्य करते हैं जिसे मनुष्य को अवश्य करना चाहिए, जो प्रबंधकीय कार्य को बिलकुल भी शामिल नहीं करता है। परमेश्वर का स्वयं का कार्य प्रबंधकीय कार्य के भीतर एक परियोजना है। मनुष्य का कार्य केवल उन मनुष्यों का कर्तव्य है जिन्हें उपयोग किया जाता है और इसका प्रबंधकीय कार्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। कार्य के विभिन्न पहचान एवं विभिन्न प्रतिनिधित्व के कारण, तथा इस तथ्य के बावजूद कि वे दोनों ही पवित्र आत्मा के कार्य हैं, परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम के मध्य स्पष्ट एवं ठोस अन्तर हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से

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