चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

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शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II" (अंश 4)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अब्राहम से की गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा में तुम लोग क्या देखते हो? परमेश्वर ने अब्राहम को महान आशीषें प्रदान की थीं सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने परमेश्वर के वचन को सुना था। हालाँकि, सतही तौर पर, यह सामान्य दिखाई देता है, और एक सहज मामला प्रतीत होता है, इस में हम परमेश्वर के हृदय को देखते हैं: परमेश्वर विशेष तौर पर मनुष्य की आज्ञाकारिता को सहेजकर रखता है, और अपने विषय में मनुष्य की समझ और अपने प्रति मनुष्य की ईमानदारी उसे अच्छी लगती है। परमेश्वर को यह ईमानदारी कितनी अच्छी लगती है? तुम लोग नहीं समझ सकते हो कि उसे कितना अच्छा लगता है, और शायद ऐसा कोई भी नहीं है जो इसे समझ सके। परमेश्वर ने अब्राहम को एक पुत्र दिया, और जब वह पुत्र बड़ा हो गया, परमेश्वर ने अब्राहम से अपने पुत्र को बलिदान करने के लिए कहा। अब्राहम ने अक्षरशः परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया, उसने परमेश्वर के वचन का पालन किया, और उसकी ईमानदारी ने परमेश्वर को द्रवित किया और उसकी ईमानदारी को परमेश्वर के द्वारा संजोकर रखा गया था। परमेश्वर ने इसे कितना संजोकर रखा? और उसने क्यों इसे संजोकर रखा था? एक समय पर जब किसी ने भी परमेश्वर के वचनों को नहीं बूझा था या उसके हृदय को नहीं समझा था, तब अब्राहम ने कुछ ऐसा किया जिस ने स्वर्ग को हिला दिया और पृथ्वी को कंपा दिया, तथा इस से परमेश्वर को अभूतपूर्व संतुष्टि का एहसास हुआ, और परमेश्वर के लिए ऐसे व्यक्ति को हासिल करने के आनन्द को लेकर आया जो उसकी आज्ञाओं का पालन करने के योग्य था। यह संतुष्टि एवं आनन्द उस प्राणी से आया जिसे परमेश्वर के हाथ से रचा गया था, और जब से मनुष्य की सृष्टि की गई थी, यह पहला "बलिदान" था जिसे मनुष्य ने परमेश्वर को अर्पित किया था और जिसको परमेश्वर के द्वारा अत्यंत सहेजकर रखा गया था। इस बलिदान का इंतज़ार करते हुए परमेश्वर ने बहुत ही कठिन समय गुज़ारा था, और उसने इसे मनुष्य की ओर से दिए गए प्रथम महत्वपूर्ण भेंट के रूप में लिया, जिसे उसने सृजा था। इसने परमेश्वर को उसके प्रयासों और उस कीमत के प्रथम फल को दिखाया जिसे उसने चुकाया था, और इससे वह मानवजाति में आशा देख सका। इसके बाद, परमेश्वर के पास ऐसे लोगों के समूह के लिए और भी अधिक लालसा थी जो उसका साथ दें, उसके साथ ईमानदारी से व्यवहार करें, ईमानदारी के साथ उसकी परवाह करें। परमेश्वर ने यहाँ तक आशा की थी कि अब्राहम निरन्तर जीवित रहता, क्योंकि वह चाहता था कि ऐसा हृदय उसके साथ संगति करे उसके साथ रहे जैसे वह उसके प्रबंधन में निरन्तर बना रहा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि परमेश्वर क्या चाहता था, यह सिर्फ एक इच्छा थी, सिर्फ एक विचार था—क्योंकि अब्राहम मात्र एक मनुष्य था जो उसकी आज्ञाओं का पालन करने के योग्य था, और उसके पास परमेश्वर की थोड़ी सी भी समझ या ज्ञान नहीं था। वह ऐसा व्यक्ति था जो मनुष्य के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं के मानकों से पूरी तरह रहित थाः परमेश्वर को जानना, परमेश्वर को संतुष्ट करने के योग्य होना, और परमेश्वर के साथ एक मन होना। और इस लिए, वह परमेश्वर के साथ नहीं चल सका। अब्राहम के द्वारा इसहाक के बलिदान में, परमेश्वर ने उस में ईमानदारी एवं आज्ञाकारिता को देखा था, और यह देखा था कि उसने परमेश्वर के द्वारा अपनी परीक्षा का स्थिरता से सामना किया था। भले ही परमेश्वर ने उसकी आज्ञाकारिता एवं ईमानदारी को स्वीकार किया था, किन्तु वह अब भी परमेश्वर का विश्वासपात्र बनने में अयोग्य था, ऐसा व्यक्ति बनने में अयोग्य था जो परमेश्वर को जानता था, और परमेश्वर को समझता था, और उसे परमेश्वर के स्वभाव के विषय में सूचित किया गया था; वह परमेश्वर के साथ एक मन होने और परमेश्वर की इच्छा को सम्पन्न करने से बहुत दूर था। और इस प्रकार, परमेश्वर अपने हृदय में अभी भी अकेला एवं चिंतित था। परमेश्वर जितना अधिक अकेला एवं चिंतित होता गया, उतना ही अधिक उसे आवश्यकता थी कि वह जितना जल्दी हो सके अपने प्रबंधन के साथ निरन्तर आगे बढ़े, और अपनी प्रबंधकीय योजना को पूरा करने के लिए और जितना जल्दी हो सके उसकी इच्छा को प्राप्त करने के लिए लोगों के ऐसे समूह को हासिल करने और चुनने के योग्य हो जाए। यह परमेश्वर की हार्दिक अभिलाषा थी, और यह शुरुआत से लेकर आज तक अपरिवर्तनीय बनी हुई है। जब से उसने आदि में मनुष्य की सृष्टि की थी, तब से परमेश्वर ने विजयी लोगों के समूह की लालसा की है, ऐसा समूह जो उसके साथ चलेगा और जो उसके स्वभाव को समझने, बूझने और जानने के योग्य है। परमेश्वर की इच्छा कभी नहीं बदली है। इसके बावजूद कि उसे अब भी कितना लम्बा इंतज़ार करना है, इसके बावजूद कि आगे का मार्ग कितना कठिन है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे उद्देश्य कितने दूर हैं जिनकी वह लालसा करता है, परमेश्वर ने मनुष्य के लिए अपनी अपेक्षाओं को कभी पलटा नहीं है या हिम्मत नहीं हारा है। अब मैंने यह कह दिया है, तो क्या तुम लोग परमेश्वर की इच्छा की कुछ बातों का एहसास कर सकते हो? शायद जो कुछ तुम लोगों ने एहसास किया है वह बहुत गहरा नहीं है—परन्तु वह धीरे-धीरे आएगा!"

— "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II" से उद्धृत
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