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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

परमेश्‍वर की जीवन शक्ति की उत्कृष्टता और महानता

लिन लिंग, शेंडांग प्रान्‍त
मेरा जन्‍म एक ग़रीब, ग्रामीण परिवार में हुआ था, और चूँकि मेरे परिवार की कोई शक्ति या हैसियत नहीं थी, इसलिए बचपन से ही मुझे दूसरे लोग नीचा दिखाते रहते थे और अक्‍सर धौंस जमाते थे। जब भी यह होता था, हर बार मैं अपमानित और दयनीय महसूस करती थी, और उस दिन के लिए लालायित रहती थी जब कोई मुक्तिदाता आकर मेरी नियति को बदल देता।शादी के बाद, चूँकि जीवन मुश्किलों से भरा था, और मेरा बेटा अक्‍सर बीमार रहता था, मेरे पड़ोसियों ने मुझे यीशु में विश्‍वास करने की सलाह दी, और जब मुझे पता चला कि प्रभु यीशु सन्‍तप्‍त लोगों को उनके दुखों और तकलीफ़ों से बचा सकते हैं, तो मैं बहुत द्रवित हुई। मुझे लगा कि आखिरकार मुझे मेरा मुक्तिदाता मिल गया है, और इसलिए तब के बाद से मैं यीशु में विश्‍वास करने लगी और जहाँ कहीं भी मुमकिन होता वहाँ जाकर गहरे भावनात्‍मक लगाव के साथ बैठकों में भाग लेने लगी और उपदेश सुनने लगी। लेकिन बाद में, मैंने पाया कि कलीसियाएँ बहुत उजाड़ रहने लगी थीं, और आस्‍थावानों के बीच ईर्ष्‍या, विवाद, और षड्यंत्र उत्‍तरोत्‍तर गम्‍भीर रूप लेते जा रहे थे। यह व्‍यापक समाज से भिन्‍न स्थिति नहीं थी। मैं बेहद निराश हुए बिना नहीं रह सकी। जो आस्‍था मैंने शुरू में महसूस की थी वह धीरे-धीरे फीकी पड़ती गयी, और मैंने बैठकों में जाना बन्‍द कर दिया।

सन 2000 में एक बहन ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के अन्त के दिनों के सुसमाचार का उपदेश दिया। जब मुझे पता चला कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ही लौट कर आया प्रभु यीशु है, तब मैंने अपने हृदय में जो आनन्‍द महसूस किया उसका बयान शब्‍दों में नहीं किया जा सकता। हर दिन, जब भी मेरे पास वक्‍़त होता, मैं परमेश्‍वर के वचन को हाथ में थाम लेती और उसे इस तरह पढ़ने लगती जैसे कोई भूखा इन्‍सान भोजन पर टूट पड़ता है। परमेश्‍वर के वचनों में निहित ईमानदारी ने मुझे स्नेह से भर दिया और मुझे सान्‍त्‍वना प्रदान की। मैंने अपने प्रति सृजनकर्ता के ममत्‍व, दया और मुक्ति को अनुभव किया, और मेरी प्‍यासी आत्‍मा को पानी और भोजन प्राप्‍त हुआ। इसके बाद, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया के विशाल परिवार के बीच रहने लगी, जहाँ मैं बैठकों में शामिल होती थी और अपने भाइयों और बहनों के साथ अपने कर्तव्‍यों का पालन किया करती थी। हम सब सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन की सिंचाई और भोज्य वस्तुओं में सत्‍य की खोज करने का प्रयत्‍न करते थे। मेरे भाई और बहन आपस में प्रेम से रहते थे और एक दूसरे की सहायता किया करते थे। किसी तरह का कोई षड्यंत्र, धोखेबाज़ी नहीं थी या ग़रीबी से नफ़रत और अमीरी से प्रेम नहीं था, और दुर्व्‍यवहार या अत्‍याचार तो निश्‍चय ही नहीं था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में मैंने सचमुच इतना आनन्द और सुख अनुभव किया जितना उसके पहले कभी नहीं किया था। लेकिन, क्‍योंकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास करती थी, इसलिए मुझे सीसीपी सरकार द्वारा गिरफ़्तार किया गया और क्रूर यातना दी गयी, और फिर एक साल तक क़ैद में रखा गया। उस अँधेरी राक्षसी माँद में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन ने ही मुझे आस्‍था और शक्ति प्रदान की थी, और उसी ने कदम-दर-कदम शैतान पर विजय हासिल करने में और मृत्‍यु के बंधनों से ऊपर उठने मेरा मार्गदर्शन किया था।

24 अगस्‍त 2009 की रात को मैं अभी सोने ही गयी थी कि ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीटे जाने की आवाज़ से मैं जाग गयी। इसके पहले कि मैं कोई प्रतिक्रिया कर पाती, 7-8 पुलिसवाले दरवाज़ा तोड़ कर अन्‍दर घुस पड़े। वे अन्‍दर घुसते साथ ही चिल्‍लाये, "हिलना मत! बिस्‍तर से निकलो और हमारे साथ आओ!" मैं अभी कपड़े भी नहीं पहन पायी थी कि मुझे कैमरे के शटर की क्लिक सुनायी पड़ी क्‍योंकि मेरी फ़ोटो खींची गयी थी। इसके बाद पुलिस ने मेरे मकान की, काग़ज़ के एक-एक टुकड़े तक की, तलाशी लेते हुए उसको तहस-नहस कर दिया। जल्‍दी ही मकान कबाड़ में बदल गया, जैसे डकैतों ने उथल-पुथल मचाई हो। सब कुछ फ़र्श पर बिखरा था, और चलने-फिरने की जगह नहीं बची थी। बाद में, तीन पुलिसवाले मुझे ठेलते हुए बाहर इन्‍तज़ार करती एक गाड़ी में ले गये।

पुलिस थाने में लाने के बाद, उन्‍होंने मुझे जबरन एक दीवार की ओर मुँह करके खड़ा कर दिया गया। एक पुलिसवाले ने मुझसे सख्‍़त आवाज़ में पूछताछ करते हुए कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के अपने विश्‍वास के बारे में हमें सच-सच बता! कलीसिया में तेरी क्‍या भूमिका है? तेरा नेता कौन है? वह कहाँ है? हमें सब कुछ बता!" मैंने बिना डरे कहा, "मैं कुछ नहीं जानती!" उनकी हताशा तुरन्‍त क्रोध में बदल गयी। उन्‍होंने मुझे लातें मारते हुए गालियाँ दीं और क्रूरतापूर्वक धमकाया, "अगर तू हमें बता देगी, तो हम तुझे जाने देंगे, लेकिन अगर नहीं बताएगी, तो हम तुझे पीट-पीट कर मार डालेंगे!" यह बोलने के साथ वे मुझे धक्का देते हुए लोहे की एक कुर्सी पर ले गये जिसमें एक लम्‍बी अवरोधक छड़ लगी हुई थी जिसको उन्‍होंने उसकी जगह फँसा कर तालाबन्‍द कर दिया। इन दुराचारी पुलिसवालों ने जिस तरह का बलप्रयोग करते हुए मुझे गिरफ़्तार किया था, साथ ही जिस तरह की कठोर हाव-भाव और ग़ुस्‍सैल निगाहों से वे मुझे देख रहे थे, और जिस तरह उन्‍होंने मुझ निस्‍सहाय स्‍त्री के साथ ऐसा व्यवहार किया था, जैसे मैंने कोई गुनाह किया हो, उस सब को देखते हुए मैं दहशत महसूस किये बिना नहीं रह सकी। मैंने सोचा, "ये मुझे किस तरह सताने की योजना बना रहे हैं? अगर इन्‍होंने मुझे सचमुच यातना दी और पीटा, तो मैं क्‍या करूँगी?" मैं बरबस अपने हृदय में व्‍यग्रतापूर्वक परमेश्‍वर से प्रार्थना करने लगी, "सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! मेरा आध्यात्मिक क़द सचमुच बहुत छोटा है, और, शैतान की पापपूर्ण शक्तियों से घिर कर मैं डरी हुई हूँ। मैं तुझसे आस्‍था और शक्ति की याचना करती हूँ। मेरी रक्षा कर ताकि मुझे शैतान और इन दैत्‍यों के सामने अपना सिर न झुकाना पड़े, और मैं दृढ़तापूर्वक खड़ी रह कर तेरी गवाही दे सकूँ!" प्रार्थना करते समय ही मुझे परमेश्‍वर के ये वचन याद आये, "तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे परिवेश में सभी चीज़ें मेरी अनुमति से हैं, मैं इन सभी की व्यवस्था करता हूँ। स्पष्ट रूप से देखो और तुम्हें दिए गए वातावरण में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो नहीं, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे है और तुम्हारा रक्षक है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 26")। हाँ, उस दिन जो कुछ भी मेरे साथ हो रहा था उसके लिए परमेश्‍वर के सिंहासन से इजाज़त मिली हुई थी, इसलिए हालाँकि मैं राक्षसों की माँद में फँसी हुई थी और क्रूर, राक्षसी नरक-दूतों के झुण्‍ड का सामना कर रही थी, तब भी मैं अकेले नहीं लड़ रही थी; सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर मेरे साथ था। मैं उस पर भरोसा कर सकती थी, और वह मेरा मजबूत सम्‍बल था, इसलिए मुझे किस चीज़ से डरने की ज़रूरत थी? इन बातों पर विचार करते हुए मैं अब कातर या भयभीत महसूस नहीं कर रही थी, मुझमें आखिरी पल तक शैतान से लड़ने की सामर्थ्‍य थी, और मैंने शपथ ली कि मैं दृढ़ बनी रहूँगी और परमेश्‍वर की गवाही दूँगी भले ही इसके लिए मुझे अपने जीवन की बलि ही क्‍यों न देनी पड़े!

उसके बाद, पुलिस यातना के माध्‍यम से मुझसे बलपूर्वक अपराध स्वीकारने का बयान हड़पने की कोशिश करने लगी। पहले दिन की सुबह उन्‍होंने मुझे हथक‍ड़ियाँ पहना दीं, और जब पुलिसवाले मुझे ख़ून की जाँच के लिए लाये, तो वे मुझे जबरन खींचते हुए ले गये जिससे हथक‍ड़ियों की पैनी धारें मेरे मांस में चुभ रही थीं। जल्‍दी ही मेरी कलाइयों की चमड़ी छिल गयी, और मुझे बहुत तीखा दर्द होने लगा। उसके बाद, उन्‍होंने मेरी हथक‍ड़ियाँ एक रेडियेटर से बाँध दीं, और मेरे भाग खड़े होने के डर से उन्‍होंने हथक‍ड़ियों को इस क़दर कस दिया कि मेरी कलाइयाँ खून से लथपथ हो गयीं। ये दुष्‍ट पुलिसवाले मुझसे बारबार पूछताछ करते हुए बलपूर्वक कलीसिया की जानकारी उगलवाने की नाकामयाब कोशिश करते रहे, लेकिन क्‍योंकि हर बार मैं उनसे कह देती थी कि मैं कुछ नहीं जानती, इसलिए वे क्रोध के मारे अपना आपा खो बैठे। उनमें से एक तमतमाया हुआ मेरी ओर आया और उसने मेरे चेहरे पर ज़ोरदार थप्‍पड़ जड़ दिया। मुझे उसी क्षण तारे नज़र आ गये, मैं लगभग बेहोश हो गयी, मेरे दाँत कटकटाने लगे, और अनायास ही मेरे आँसू बह निकले। जब पुलिस अधिकारी ने मुझे रोने के बावजूद बोलने से इन्‍कार करते हुए देखा, तो ग़ुस्‍से से उसका मुँह ऐंठ गया, उसने बेरहमी से मेरे माथे के कई बालों को पकड़ा, उनको अपनी हथेली में लपेटा, और मेरे सिर का पिछला हिस्‍सा पूरी ताक़त से दीवार से दे मारा। इस क्रूरतापूर्ण आघात से मुझे चक्‍कर आ गया और मेरे कान बजने लगे। इस पर भी जब उसका ग़ुस्‍साशान्‍त नहीं हुआ, तो उसने मुझे एक-के-बाद-एक कई झापड़ मारे और ग़ुस्‍से से चिल्‍लाया, "मैं तुझे रुला कर रहूँगा! न बोलने के बदले तुझे यही हासिल होगा!" ऐसा बोलते हुए उसने वहशियाना ढंग से अपने जूतों से मेरे पैरों को कुचला। इन दुराचारियों की क्रूर मारपीट और यातना से गुज़रने के बाद मैं ऊपर से नीचे तक दर्द और से भर उठी और लड़खड़ाने लगी। मैं फ़र्श पर निश्‍चेष्‍ट होकर पड़ गयी, मानो मैं मरने वाली थी। मेरी यह दशा देख कर पुलिसवाले ग़ुस्‍से से अनापशनाप बकते हुए धड़ाम से दरवाज़ा बन्‍द कर बाहर निकल गये। दोपहर में उन्होंने मुझसे कलीसिया सम्‍बन्‍धी जानकारी उगलवाने की कोशिश में मेरे साथ फिर से उसी तरह की मारपीट की। जब यह सिलसिला कई बार दोहराया गया, तो मुझे अपना सिर चकराता महसूस हुआ और मितली आने आने लगी, और मेरा शरीर इस क़दर दर्द से भर उठा कि लगा वह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। मुझे लग रहा था कि मैं किसी भी पल मर सकती हूँ। लेकिन उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने अपनी पूछताछ में रत्‍ती भर कमी नहीं की। उन्‍होंने बिल्कुल अमानवीय ढंग से एक लाइटर से मेरे पैर जला दिये, जिससे वहाँ तुरन्‍त ही दो बड़े-बड़े फफोले उभर आये। उनसे इतना तीखा दर्द हुआ कि मैं रोने पर मजबूर हो गयी। दर्द की हालत में मैं फ़र्श पर बैठ गयी और इन दुष्‍ट पुलिसवालों की ओर देखने लगी, जिनमें से हरेक मुझे घूरे जा रहा था जैसे वो पाशविक क्रोध वाला नारकीय दैत्‍य हो जो बस मुझे चीर कर टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहता था, और मैं लाचार हो कर कमज़ोर महसूस करने लगी। मैंने मन ही मन परमेश्‍वर से फरियाद की, "सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर, ये दुराचारी पुलिसवाले मुझे कब सताना बन्‍द करेंगे? अब मैं सचमुच और ज्‍़यादा बरदाश्‍त नहीं कर सकती...।" मैं इस क़दर कमज़ोर महसूस कर रही थी कि गिरने-गिरने को थी, और मैं लाचार होकर सोचने लगी, "क्‍यों न मैं इनको सिर्फ़ एक चीज़ बता दूँ? तब मुझे तकलीफ़ नहीं भोगनी पड़ेगी...।" लेकिन फिर मैंने तुरन्‍त ही सोचा, "अगर मैं एक चीज़ भी बता देती हूँ, तो मैं एक यहूदा हूँ, जिसका मतलब है कि मैं परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात कर रही हूँ।" मेरे हृदय में एक कठोर संघर्ष भड़क उठा, और तभी मुझे परमेश्‍वर के ये वचन याद आये, "तुम लोगों को वह करना चाहिए जो सबके लिए सुखद हो, जो सभी मनुष्यों को लाभ पहुँचाता हो, और जो तुम लोगों की अपनी मंज़िल के लिए लाभदायक हो, अन्यथा, ऐसा व्यक्ति जो आपदा के बीच दुःख उठाएगा वह तुम्हारे अतिरिक्त अन्य कोई नहीं होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "अपनी मंज़िल के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे कर्मों की तैयारी करो")। "मैं उन लोगों पर और अधिक दया नहीं करूँगा जिन्होंने गहरी पीड़ा के दिनों में मुझ पर रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई है, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी ही दूर तक है। साथ ही साथ, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं है जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, ऐसे लोगों के साथ संबद्ध होना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। यही मेरा स्वभाव है, इस बात की परवाह किए बिना कि व्यक्ति कौन हो सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "अपनी मंज़िल के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे कर्मों की तैयारी करो")। परमेश्‍वर के ये वचन जागरूकता की एक आकस्मिक कौंध थे। मैं अपने पिछले विचारों पर चौंके बिना नहीं रह सकी। मैंने विचार किया, "आज मुझ पर शैतान का कहर टूटा है, और यह सोचने की बजाय कि इन दुराचारियों पर विजय कैसे पायी जाए और कैसे दृढ़ बने रहकर परमेश्‍वर की गवाही दी जाए, मैं उल्टे अपने शरीर पर ध्‍यान दे रही थी। क्‍या यह बात मुझे स्‍वार्थी और घृणित नहीं बनाती? परमेश्‍वर धर्मसम्‍मत और पवित्र है, और अगर मैं अपने भाइयों और बहनों के साथ विश्‍वासघात कर देती और इस तरह एक निन्‍दनीय यहूदा बन जाती, तो क्‍या मैं परमेश्‍वर के स्‍वभाव को अपमानित नहीं करूंगी, और इस तरह क्‍या मैं खुद को विनाश की ओर नहीं ले जा रही होऊँगी? आज इन दुरात्‍मा पुलिसवालों को मुझे यातना देने की छूट देने की परमेश्‍वर की इच्‍छा के पीछे मुझे इस बात की गुंजाइश देना है कि मैं साफ़ तौर पर परमेश्‍वर का वहशी प्रतिरोध करने का और परमेश्‍वर के साथ शत्रुता बरतने का सीसीपी सरकार का शैतानियत भरा सत्‍व देख सकूँ, ताकि मैं परमेश्‍वर की ओर अपना ध्‍यान लगाने में, परमेश्‍वर के प्रति अपनी वफ़ादारी बनाये रखने में, और दृढ़ बनी रह कर परमेश्‍वर की गवाही देने में और अधिक सक्षम हो सकूँ।" इन नतीजों पर पहुँचकर मैंने अपनी नाफरमानी के लिए पछतावा और अपराध महसूस किया। मैं परमेश्‍वर के समक्ष प्रायश्चित करना चाहती थी। पुलिस मुझे कितना ही नुकसान क्‍यों न पहुँचाये या कितनी ही यातना क्‍यों न दे, मैं अपने शरीर को खुश रखने से इन्‍कार करूँगी। मैं सिर्फ़ परमेश्‍वर की योजनाओं और विधानों का पालन करना चाहती थी, सारी पीड़ाओं को सहना चाहती थी, और अपने कृत्‍यों के माध्‍यम से परमेश्‍वर के प्रति अपनी वफ़ादारी साबित करने के लिए दृढ़ बनी रह कर परमेश्‍वर की गवाही देना चाहती थी। अगर मेरी जान भी चली जाये, तब भी मैं यहूदा नहीं बनूँगी और परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात नहीं करूँगी! जब तक मुझमें एक भी साँस बची है, तब तक मैं शैतान के सामने नहीं झुकूँगी या समर्पण नहीं करूँगी! उस शाम उन दुराचारी पुलिसवालों ने मुझे फ़र्श पर पैर फैला कर बैठने का आदेश दिया, और फिर बलपूर्वक मेरे हाथ उठाकर, उन पर पीछे से हथक‍ड़ियाँ डाल दीं, और मैंने तुरन्‍त ही अपनी बाँहों और पहले से घायल अपनी कलाइयों में तीखा दर्द महसूस किया। ग़ुस्‍से से पगलायी हुई पुलिस ने पंखे की गति तेज़ कर उसका रुख मेरी तरफ़ कर दिया और वह पंखा मेरे शरीर पर बर्फीली हवा फेंकने लगा। मुझे इस क़दर ठण्‍ड लग रही थी कि मैं लगातार काँप रही थी, और मेरे दाँत कटकटा रहे थे। मैं उस समय रजस्‍वला थी, और इन दुराचारी पुलिसवालों ने मुझे अपने पैड बदलने की इजाज़त देने की बजाय मुझे अपने पैंट से ही "काम चलाने" को कहा। लेकिन ये दुराचारी पुलिसवाले इतने पर भी नहीं रुके। वे पेड़ की पतली डाल से एक छड़ी तोड़कर लाये और उस से मुझ पर चोट करने लगे, उसका हर आघात एक लाल निशान छोड़ता जाता था। यह इतना दर्दनाक था कि मैं छटपटा कर उससे बचने की कोशिश करने लगती थी, लेकिन जब पुलिस ने मुझे उन चोटों से बचने की कोशिश करते देखा, तो वे मुझे और भी क्रूरतापूर्वक पीटने लगे, और ऐसा करते हुए वे कहते जाते थे, "देखते हैं कि तू अब बोलती है या नहीं! हम आज रात तुझको अपाहिज बना कर ही छोड़ेंगे!" इन दुराचारी पुलिस अधिकारियों की नीचता और क्रूरता घृणायोग्य थी, लेकिन परमेश्‍वर की रहनुमाई और सरपरस्‍ती की वजह से मैंने उनके सामने समर्पण नहीं किया, और पूछताछ के उस दौर से उनको कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

बहुत दिनों तक चली इस निर्दय पूछताछ के दौरान नेशनल सिक्‍योरिटी ब्रिगेड का एक अधिकारी एक "भले पुलिसकर्मी" होने का ढोंग करता हुआ, मीठी बातों के सहारे मुझे कलीसिया के प्रति गद्दार बनाने की विफल चेष्‍टा करता रहा था। एक दिन, अपने चेहरे पर मधुर, शालीन भाव लिये, उसने मेरे लिए गिलास में पानी डाला, वह मेरे लिए सेब भी लाया था। फिर झूठी दयालुता दिखाते हुए बोला, "ऐसी जवानी में इस तरह दुख भोगना शर्मनाक है। तुम हमें बस वह बता दो जो हम जानना चाहते हैं, तो यह सब रुक सकता है। तुम घर जा सकती हो। तुम्‍हारा पति और बेटा तुमसे मिलने की राह देख रहे हैं!" पहले मुझे वह भला लगता था, लेकिन वह बाक़ी तमाम लोगों से ज़्यादा क्रूर और कुटिल था। जब उसने पाया कि मैं उसको कुछ भी बताने को तैयार नहीं हूँ, तो उसके भाव उग्र चिड़चिड़ाहट में बदल गये और उसकी असल पाशविक प्रकृति पूरी तरह उजागर हो गयी, वह मुझे और भी ज्‍़यादा क्रूरता और निर्दयता के साथ यातना देने लगा। वह मुझे पुलिस थाने के मुख्‍य कक्ष में ले आया, जहाँ उसने मुझे बर्फीली हवा में दो घण्‍टे तक अकेले एक कोने में बैठने को बाध्‍य किया, फिर जब वापस आकर उसने मुझे चिल्‍लाकर पुकारा, तो उसे लगा मैंने जोर-से जवाब नहीं दिया, इसलिए उसने मुझे अपने पैर फैलाने पर बाध्‍य किया, और फिर अपने पैरों से मेरे घुटनों को क्रूरतापूर्वक कुचल दिया, इसके बाद उसने मेरे हथकड़ी पड़े हाथों को, जो मेरे पीठ के पीछे थे, बेरहमी से ऊपर उठा दिया। मुझे अपनी कमर के चटकने की आवाज़ सुनायी दी, जिसके बाद मैंने हृदय विदारक पीड़ा महसूस की और मैं चीख उठी। फिर मेरी कमर में कोई अहसास बाक़ी नहीं रह गया। मैंने कल्‍पना भी नहीं की थी कि मेरी चीख उस दैत्‍य को ग़ुस्‍से से भर देगी। वह उग्र स्‍वर में अपने एक नौकर पर गरजा, "एक लत्‍ता लेकर आओ और इसके मुँह में ठूँस दो ताकि यह दोबारा न चीख सके!" वे एक बदबूदार, गन्‍दा कपड़ा लाये और उसे मेरे मुँह में ठूँस दिया, जिससे मुझे उलटी आने लगी। गंदे कपड़े को मेरे मुँह में ठूँसना जारी रखते हुए वह मुझ पर चिल्‍लाया, "इसको अपने दाँतों से दबा कर रख! कपड़े को गिराने की हिमाकत मत करना!" इन घृणित जानवरों का सामना करते समय मेरे हृदय में तीखी नफ़रत के सिवा और कुछ नहीं था। मैं उनके प्रति इतनी गहरी नफ़रत से भरी हुई थी कि मेरी आँखों में आँसू नहीं बचे थे। इसके बाद इस दुराचारी अधिकारी ने मुझसे पूछताछ जारी रखी, और जब उसने देखा कि मैं अब भी उसको कुछ नहीं बता रही हूँ, तो उसने एक बार फिर मेरे हथकड़ी-बँधे हाथों को ऊपर उठाते हुए मेरे पैरों को कुचल दिया। यह इतना दर्दनाक था कि मुझे ठण्‍डा पसीना छूट गया, और मैं अनायास ही फिर से चीख उठी। जब उसने देखा कि मैं इस पर भी नहीं बोलने वाली, तो उसने अपने पिच्छलग्गुओं से कहा, "इसे यहाँ से ले जाओ!" दो दुराचारी पुलिसवालों ने मुझे ज़मीन से उठाया, लेकिन तब तक मेरी कमर की हालत ऐसी हो चुकी थी कि वह सीधी नहीं हो पा रही थी। मुझे धीरे-धीरे, पीछे की ओर झुक कर, एक बार में एक कदम रखते हुए चलना पड़ रहा था। उस चरम पीड़ा की अवस्‍था में, मेरा दिमाग़ एक बार फिर कमज़ोरी, नाउम्‍मीदी, और निस्‍सहायता से भर उठा। मैं नहीं जानती थी कि मैं कितनी देर तक और टिकी रह पाऊँगी, इसलिए मैं अपने हृदय में बार-बार परमेश्‍वर से प्रार्थना करने लगी, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के आश्रय की गुहार लगा रही थी, ताकि अगर मुझे मरना भी पड़े तो भी मैं उसके साथ विश्‍वासघात न करूँ।

उसके बाद, मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर हर तरह से मेरी कमज़ोरी को समझता था, और मेरे प्रति कृपालु बना हुआ तथा इस पूरे समय गुपचुप ढंग से मुझे संरक्षण दे रहा था। जब ये दुराचारी पुलिसवाले फिर से मुझसे पूछताछ करने आये, तो उन्‍होंने मुझे धमकाया, "अगर तू नहीं बोली, तो हम तुझे दूसरी जगह ले जाकर बिजली की कुर्सी पर बिठा देंगे। जैसे ही हम बिजली चालू करेंगे, तू बेहोश हो जाएगी, और अगर तू मरी नहीं भी, तो अपाहिज तो हो ही जाएगी!" उस दुराचारी अधिकारी के शब्‍दों को सुनकर मैं बरबस ही डर गयी। मैंने सोचा कि मैं वाकई ऐसे अमानवीय सुलूक का सामना नहीं कर पाऊँगी, इसलिए मैंने तत्‍काल परमेश्‍वर से प्रार्थना की, और तब मुझे परमेश्‍वर के ये वचन याद आये,"जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो सब कुछ तुच्छ हो जाता है, और कोई भी उनका लाभ नहीं उठा सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या के "अध्याय 36")। हाँ, मेरा जीवन परमेश्‍वर के हाथों में है। परमेश्‍वर ही उसको नियन्त्रित करता है और उस पर शासन करता है, और मेरा जीना या मरना पुलिस पर निर्भर नहीं है। अगर मैं सचमुच अपने जीवन कोदांव पर लगाती हूँ, तो मैं शैतान पर विजय पा सकती हूँ। उस पल मैं आस्‍था से भर उठी, और अपना जीवन दांव पर लगाने, उसको परमेश्‍वर के हाथों में सौंप देने, और परमेश्‍वर के आयोजनों और विधानों का पालन करने को तैयार थी। मैंने कभी कल्‍पना नहीं की थी कि ठीक उसी वक्‍़त एक दुराचारी पुलिसवाला यह बोलेगा कि विद्युत कुर्सी दरअसल टूटी हुई थी, और उसकी बिजली चालू नहीं की जा सकती थी। उस पल, मैंने बहुत गहराई से यह महसूस किया कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर हर पल मेरे साथ था। बावजूद इसके कि मैं दैत्‍यों की माँद में थी, परमेश्‍वर मेरे साथ बना हुआ था। उसने मुझे दुख को अनुभव तो करनेदिया, लेकिन उसने इन शैतानी दैत्‍यों को मेरी जान लेने नहीं दी। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर को उसके चमत्‍कारपूर्ण संरक्षण के लिए, और मुझे बच निकलने देने के लिए धन्‍यवाद दिया! मेरी आस्‍था और भी दृढ़ हो गयी, और मैं दृढ़ बनी रहने तथा परमेश्‍वर की गवाही देने के लिए किसी भी तरह की पीड़ा भोगने को तैयार थी। ये उन्‍मत्‍त दुराचारी पुलिसवाले छह दिनों और पाँच रातों से मुझे यातना दे रहे थे और पूछताछ कर रहे थे, वे मुझे खाने, पीने, या सोने की छूट नहीं दे रहे थे। इससे मुझे यह समझने की साफ़ गुंजाइश मिली कि सीसीपी सरकार ठगों और गुण्‍डों के गिरोह से ज्‍़यादा कुछ भी नहीं थी। उनकी पकड़ में होने का मतलब क्रूर, हिंसक दैत्‍यों की पकड़ में होना, और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के देखरेख और संरक्षण के बिना उन्‍होंने मुझे यातना दे-देकर मार डाला होता। इसके बावजूद कि इन दुराचारी पुलिसवालों ने मुझे कई दिनों से खाने, पीने, या सोने की इजाज़त नहीं दी थी, और तमाम हथकण्‍डे अपनाते हुए मुझे यातना दी थी, तब भी मुझे जरा भी प्‍यास, भूख या थकान महसूस नहीं होती थी। नेशनल सिक्‍युरिटी ब्रिगेड के अधिकारियों का कहना था कि उन्‍होंने कभी ऐसे किसी युवा व्यक्ति को नहीं देखा था जो इतने दिनों तक टिका रह सका हो। मैं इस बात को गहराई से समझ गयी थी कि यह सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की अपरिमित जीवन-शक्ति थी जो मेरे शारीरिक आवरण को सहारा देते हुए, मुझे जीवन उपलब्‍ध करा रही थी, और मुझे अन्‍त तक डटे रहने की शक्ति प्रदान कर रही थी। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, "मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा" (मत्ती4:4)। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन कहते हैं, "परमेश्वर अपने जीवन का उपयोग सभी जीवित और निर्जीव दोनों चीजों के भरण-पोषण के लिए करता है, अपनी शक्ति और अधिकार के कारण सभी को सुव्यवस्थित करता है। यह एक ऐसा सत्य है जिसकी किसी के द्वारा कल्पना नहीं की जा सकती है जिसे किसी के द्वारा समझा नहीं जा सकता है, और ये अबूझ सत्य परमेश्वर की जीवन शक्ति की मूल अभिव्यक्ति और प्रमाण हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है")।

उसके बाद, जब पुलिसवालों ने देखा कि कठोर युक्तियाँ काम नहीं आ रही हैं, तो उन्‍होंने नर्म युक्तियाँ अपनाने का फ़ैसला किया। नेशनल सिक्‍युरिटी ब्रिगेड का प्रमुख खुद ही मुझसे पूछताछ करने आया। उसने खुशामदी करते हुए शिष्‍ट ढंग से मेरी हथकड़ियाँ उतारीं, और "विनम्र" स्‍वर में बोला, "तुम बहुत बेवकूफ़ हो। तुम कलीसिया की कोई अधिकारी या प्रभुत्‍वशाली शख्सियत नहीं हो। उन्‍होंने अपने स्‍वार्थ के लिए तुम्‍हारे साथ धोखा किया है, और तुम हो कि उनकी ओर से हमारा प्रतिरोध कर रही हो। क्‍या यह वाजिब है? इसके अलावा अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास करती रही, तो भविष्‍य में तुम्‍हारे बेटे पर विश्‍वविद्यालय की प्रवेश-परीक्षा में बैठने पर, फौज में भर्ती होने पर, या लोक सेवक बनने पर प्रतिबन्‍ध लगा दिया जाएगा। तुम्‍हारे पति को तुम्‍हारी कोई परवाह नहीं है। मुमकिन है उसको कोई और मिल गयी हो और उसने तुम्‍हें छोड़ दिया हो…। सच्चाई यह है कि हमें तुम्‍हारी स्थिति के बारे में पहले से ही सारी जानकारी है। अगर तुम हमें कुछ भी नहीं बताती, इसके बावजूद भी हम तुम पर अपराधिक आरोप लगा सकते हैं, क्‍योंकि यह सीसीपी का देश है। जो भी होता है उसका फ़ैसला हम करते हैं। यह फ़ैसला भी हमारे हाथ है कि तुम्हें कितने दिन हिरासत में रखा जाए। अगर तुम यहाँ मर भी जाती हो, तो हमें कुछ नहीं होगा, इसलिए बेहतर यही है कि तुम कबूल कर लो! चीन दूसरे मुल्‍कों से अलग है। अगर तुम हमें कुछ भी न बताओ, तब भी हम तुम पर कोई अपराधिक आरोप मढ़ सकते हैं और तुम्‍हें सज़ा दे सकते हैं।" मुझको दयालुतापूर्वक लुभाने के लिए उसके द्वारा अपनाये गये तमाम अलग-अलग तरीक़ों को सुनने के बाद, मेरा हृदय बारी बारी से खुशी से उछल पड़ता था और फिर बुझ जाता था, और मेरी हालत बहुत दयनीय हो गयी थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्‍या करूँ, इसलिए मैंने अपने हृदय में पुकार लगायी, "सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! तू जानता है कि मेरी हैसियत बहुत छोटी है और मुझमें बहुत-सी कमियाँ हैं। मैं नहीं जानती कि इस तरह की परिस्थितियों को किस तरह झेला जाए या इनका सामना कैसे किया जाए। मैं तेरे मार्गदर्शन की याचना करती हूँ।" तभी मुझे परमेश्‍वर के इन वचनों से फिर से दिशा मिली: "हर समय, मेरे लोगों को शैतान की चालाक योजनाओं से सतर्क होना होगा..., जो तुम लोगों को शैतान के जाल में फंसने से रोकेगा, उस समय इस पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी" ("वचन देह में प्रकट होता है" में संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन के "अध्याय 3")। "मेरी वजह से तुम किसी भी अन्धकार की शक्ति के अधीन ना होओगे। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के षडयंत्रों को काबिज़ न होने दो" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 10")। परमेश्‍वर के वचनों ने मेरे हृदय को आलोकित कर दिया, और मुझे अभ्यास का एक पथ मिल गया। मैंने मन ही मन सोचा, "सचमुच! यह शैतान था जो मुझे गुमराह करने और छलने के लिए जज्‍़बाती जालों का इस्‍तेमाल कर रहा था। मुझे इसकी चालों को समझना चाहिए, उसको प्रज्ञा से पराजित करना चाहिए, और खुद को बेवकूफ़ नहीं बनने देना चाहिए। सारी चीज़ें और सारे मसले परमेश्‍वर के हाथों में हैं। अगर मुझे सलाखों के जंग लगने तक भी जेल में बैठे रहना पड़े, तब भी मुझे शैतान के सामने समर्पण नहीं करना चाहिए और परमेश्‍वर से विश्‍वासघात नहीं करना चाहिए।" अब आगे क्या करना है इसे लेकर मैं कहीं ज्‍़यादा स्‍पष्‍ट थी। उसके उकसावों और प्रलोभनों के बावजूद मैं ख़ामोश बैठी रही, प्रार्थना करती रही, और परमेश्‍वर की उपस्थिति में अपने हृदय को शान्‍त बनाये रही। इसके बाद मैंने ग़ुस्‍से से भर कर उससे कहा, "मैं तुम पर मुकदमा कर दूँगी! तुमने न सिर्फ़ मुझे यातना देकर मुझसे अपराध कबूल कराने की कोशिश की है, बल्कि तुमने मुझ पर अपराध का झूठा इल्‍ज़ाम भी लगाया है!" उसने कुटिल ढंग से हँसते हुए कहा, "खैर, मैंने तुम पर वार नहीं किया है। ठीक है, जाओ और मुझ पर मुकदमा कर दो। यह सीसीपी का देश है। तुम्‍हारे पक्ष में कोई नहीं बोलेगा।" उसके इन शब्‍दों ने मुझे सीसीपी सरकार के प्रति बहुत ही गहरी नफ़रत से भर दिया। इस पुरातन राक्षस के मन में क़ानून या नैतिकता का कोई लिहाज़ नहीं था। इसके बाद, वह मुझसे कलीसिया के मेरे भाइयों और बहनों की पहचान करने के लिए उनके ढेर सारे पहचान-पत्र ले कर आया, और इस व्‍यर्थ उम्‍मीद में कि मैं उनके साथ गद्दारी करूँगी, उसने मुझसे पूछा कि क्‍या मैं उनको जानती हूँ। मैंने कड़ुवाहट के साथ जवाब दिया, "मैं इनमें से एक भी व्‍यक्ति को नहीं जानती!" जब उसने यह सुना, तो ग़ुस्‍से से उसका चेहरा लाल हो गया। उसने पाया कि मैं उसको वाक़ई कुछ भी नहीं बताऊँगी, और वह तमतमाता हुआ वहाँ से चला गया। उस दोपहर, वे मुझे नज़रबन्‍दी गृह में ले आये, और उन्‍होंने मुझे यह कहते हुए क्रूरतापूर्वक धमका, या "नज़रबन्‍दी गृह में हम तुझे पानी के पास उकड़ू बिठा कर तुझसे लहसुन छिलवाएँगे, और उसके कुछ दिन बाद तेरे हाथ सड़ जाएँगे!" बोलते वक्‍़त वे अहंकार के साथ मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे और हँस रहे थे, और मुझे उनके पाशविक भावों में शैतान का क्रूर और पतित राक्षसी चेहरा दिखायी दे रहा था!

नज़रबन्‍दी गृह में एक महीने रखने के बाद पुलिस ने कहा की कि अगर मैं 20,000 युआन का भुगतान कर दूँ, तो मैं घर जा सकती हूँ। मैंने कहा कि मेरे पास इतना पैसा नहीं है, और मानो मुझसे मोलभाव करने के लिए उन्‍होंने कहा 10,000 भी चलेंगे। जब मैंने कहा कि मेरे पास एक धेला भी नहीं है, तो तो उनकी खीज ग़ुस्‍से में बदल गयी, और उसने व्‍यंगपूर्वक मुस्‍कराते हुए कहा, "अगर तेरे पास बिल्‍कुल भी पैसा नहीं है, तो तुझे कठोर श्रम की मार्फत सुधारा जाएगा! जब तू यहाँ से बाहर निकलेगी, तो तेरे पति को तेरी चाह भी नहीं रह जाएगी।" मैंने दृढ़तापूर्वक कहा, "यही सही, मुझे कोई परवाह नहीं!" इस तरह, बिना फिर से विचार किय उन्‍होंने मुझ पर "सामाजिक व्‍यवस्‍था को भंग करने" और "क़ानून के प्रवर्तन में बाधा डालने" के अपराध का आरोप मढ़ दिया, और मुझे कठोर श्रम के माध्‍यम से सुधार की एक वर्ष की सज़ा सुना दी। इसने मेरे सामने इस बात को और सफ़ाई से ज़ाहिर कर दिया कि सीसीपी सरकार एक शैतानी राक्षस है जिसके मन में इन्‍सानी जिन्‍दगियों की कोई कीमत नहीं है और यह चीज़ इसे परमेश्‍वर की शत्रु बनाती है! दैत्‍यों द्वारा शासित पृथ्‍वी के इस नर्क में, जहाँ परमेश्‍वर को एक घातक शत्रु के रूप में देखा जाता है, सत्‍ताधारी दल ही क़ानून की सर्वेसर्वा है, और इसकी सत्‍ता के अधीन रहने वालों के पास, क़तई कोई मानवाधिकार या स्‍वतन्‍त्रता नहीं है, धार्मिक स्‍वतन्‍त्रता की तो बात ही क्‍या की जाए! उस क्षण, मुझे बरबस ही सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के ये वचन याद आ गये, "यह बिना किसी रोकटोक के उस घृणा को अपने सीने से निकाल देना है, उन फफुंद से ढके रोगाणुओं को हटा देना है, तुम लोगों के लिए इस जीवन को छोड़ पाना संभव करना है जो एक बैल या घोड़े के जीवन से कुछ अलग नहीं, एक दास बनकर रहना छोड़ देना है, बड़े लाल अजगर से स्वतंत्रता से कुचले जाने या उसकी आज्ञा मानने को त्याग देना है; अब तुम लोग इस असफल राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहोगे, अब घृणित बड़े लाल अजगर से नहीं जुड़े रहोगे, अब तुम लोग उसके दास नहीं रहोगे। राक्षसों का घोंसला निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाएगा, और तुम लोग परमेश्वर के साथ खड़े रहोगे—तुम लोग परमेश्वर के होगे, और दासों के इस साम्राज्य के नहीं रहोगे। परमेश्वर इस अंधियारे समाज से लंबे समय से घृणा करता आया है। इस दुष्ट, घिनौने बूढ़े सर्प पर अपने पैरों को रखने के लिए वह अपने दांतों को पीसता है, ताकि वह फिर से कभी न उठ पाए, और फिर कभी मनुष्य का दुरुपयोग न कर पाए; वह उसके अतीत के कर्मों को क्षमा नहीं करेगा, वह मनुष्य को दिए गए धोखे को बर्दाश्त नहीं करेगा, वह प्रत्येक युग में उसके सभी पापों के लिए उसका हिसाब करेगा; सभी बुराइयों के इस सरगना[1] के प्रति परमेश्वर थोड़ी भी उदारता नहीं दिखाएगा, वह पूरी तरह से इसे नष्ट कर देगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "कार्य और प्रवेश (8)")। उस क्षण मैं दुख और क्रोध, दोनों से भरी हुई थी, क्‍योंकि मैंने देख लिया था कि चीनी सरकार किस क़दर धूर्त, चालाक, और मक्‍कार है। यह "धार्मिक विश्‍वासों की स्‍वतन्‍त्रता, नागरिकों के वैधानिक अधिकारों और हितों की हिफ़ाज़त" के प्रति वचनबद्धता के दावे तो करती है, लेकिन अन्‍दर से यह परमेश्‍वर के काम को अनैतिक ढंग से बाधित करती है, हानि पहुंचाती है और जब जी में आता है त‍ब सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास रखने वालों को गिरफ़्तार करती है, पीटती है, उन पर जुर्माना ठोकती है, और उनकी हत्‍याएँ करती है, और परमेश्‍वर का तिरस्‍कार करने, परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात करने, और अपनी काली हुकूमत के समक्ष समर्पण करने के लिए लोगों को मजबूर करती है। मानव-जाति परमेश्‍वर द्वारा रची गयी थी, परमेश्‍वर में विश्‍वास करना, उसकी आराधना करना स्‍वाभाविक और उचित है, लेकिन प्रतिक्रियावादी सीसीपी सरकार स्‍वर्ग और कुदरत के खिलाफ़ जाकर सच्चे परमेश्‍वर के आगमन को टालने की कोशिश कर रही है। यह धमकियों, प्रलोभनों, झूठे आरोपों, बलपूर्वक उगलवायी गयी स्‍वीकारोक्तियों, और यातनाओं का सहारा लेकर परमेश्‍वर में विश्‍वास रखने वालों को अमानवीय ढंग से उत्‍पीड़ित करती है। इसके अपराध जघन्‍य, भयावह, और घिनौने हैं! इसकी नीचता, और दुराचार ने मुझे पूरी तरह घृणा से भर दिया, और इसका अनुसरण करने से पहले मर जाने का मेरा निश्‍चय, पहले से ज्‍़यादा पक्‍का हो गया, और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का अनुसरण करने तथा जीवन में सच्‍चे रास्‍ते पर चलने का मेरा संकल्‍प भी पहले से ज्‍़यादा मजबूत हो गया।

अगस्‍त 2010 में अपनी सज़ा पूरी करने के बाद मैं रिहा कर दी गयी। जब मैं घर लौटी, तो मुझे पता चला कि जब मैं सज़ा काट रही थी, तब मेरे पति भी एक साल तक पुलिस की निगरानी में रहे थे। उस वर्ष के दौरान, अक्‍सर शाम के वक्‍़त हमारे घर के पीछे,पुलिसवाले सादे वेश में उनकी गतिविधियों पर निगरानी रखते थे, उनकी जासूसी करते थे, मकान की चौकसी करते थे, जिसकी वजह से मेरे पति के लिए घर लौटना या कोई ऐसी ठौर पा सकना नामुमकिन हो गया था जहाँ वे सुरक्षित महसूस कर पाते। दिन के समय उनको बाहर काम पर जाना होता था, और रात में उनको हमारे घर के पास जलाऊ लक‍ड़ियों के एक ढेर पर सोना पड़ता था, जिससे उनके लिए अच्छी नींद पाना नामुमकिन हो गया था। रिहा होने के बाद, मैंने पाया कि इन छुटभइया पुलिसवालों ने गाँव में मेरे बारे में अफवाहें भी फैला कर हर किसी को मुझसे रिश्‍ता तोड़ने के लिए भड़का दिया था, और ग्राम्‍य स्‍त्री निदेशक को मुझ पर निगाह रखने के लिए भेज दिया था। उन्‍होंने मुझसे एक वचन-पत्र लिखने को भी कहा था जिसमें मुझसे यह आश्‍वासन लिया गया था कि मैं शहर छोड़ कर नहीं जाऊँगी। उन्‍होंने मुझे सारी निजी स्‍वतन्‍त्रताओं से वंचित कर दिया था। एक महीने तक घर पर रहने के बाद, एक बार फिर मुझे 3-4 पुलिस अधिकारियों द्वारा पूछताछ के लिए ब्रिगेड ले जाया गया। उन्‍होंने मुझे एक बार फिर एक लोहे की कुर्सी से बाँधा और बलपूर्वक मुझसे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की। जब मेरे परिवार के सदस्‍य मुझे वहाँ से बाहर निकलवाने के लिए आये, तो इन लोगों ने अहंकारी ढंग से उनसे कह दिया "अगर तुम उसकी रिहाई चाहते हो, तो या तो तुम 20,000 युआन का जुर्माना भरो, या उससे कहो कि वह हमें सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया के बारे में जानकारी दे। अन्‍यथा उसको कठोर श्रम के माध्यम से सुधार की पाँच साल की सज़ा दे दी जाएगी!" मेरे परिवार के पास इतना पैसा नहीं था, इसलिए उनको असहाय हताशा के साथ घर लौट जाना पड़ा। मैं गहराई के साथ इस बात को समझ गयी कि ये दैत्‍य एक बार फिर इस गिरफ़्तारी का इस्‍तेमाल कर मुझ पर परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करने का दबाव डालना चाहते हैं, इसलिए मैंने तत्‍काल अपने हृदय में परमेश्‍वर को पुकारते हुए प्रार्थना की, "सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर, शैतान आज फिर मुझे तेरे साथ विश्‍वासघात करने को बाध्‍य करने की व्‍यर्थ उम्‍मीद में अपनी चालें चल रहा है, लेकिन मैं उनको मुझे बेवकूफ़ बनाने की छूट नहीं दूँगी। मुझे कितने ही वर्षों तक कठोर श्रम क्‍यों न करना पड़े, मैं तुझे सन्‍तुष्‍ट करने के लिए तेरी गवाही देती रहूँगी।" जैसे ही मैंने अपने हृदय में यह शपथ ली कि कि मुझे कितना ही दुख क्‍यों न झेलना पड़े मैं परमेश्‍वर की गवाही देती रहूँगी, वैसे ही मुझे परमेश्‍वर के चमत्‍कारी कामों के दर्शन हुए: जब इन दुराचारी पुलिसवालों ने देखा कि उनको पूछताछ से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है, तो उन्‍होंने उसी शाम मुझे रिहा कर दिया। मेरे लिए एक राह खोलने के लिए, एक बार फिर मुझे शैतान के चंगुल से मुक्‍त करने के लिए मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर को धन्‍यवाद दिया।

सीसीपी सरकार के क्रूर उत्‍पीड़न के दरम्‍यान, कभी मुझे ख़्याल भी नहीं आया था कि मैं जीवित बचूँगी। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन के बिना, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के देखरेख और संरक्षण के बिना, परमेश्‍वर द्वारा प्रदान की गयी अन्‍तहीन सामर्थ्‍य के बिना, मेरा निर्बल जीवन किसी भी समय इन अमानवीय दैत्‍यों द्वारा बुझा दिया गया होता, निगल लिया गया होता, और मैं शैतान के समक्ष दृढ़ बनी रह पाने में कभी कामयाब न हो पाती। इसने मुझे सर्वशक्मिान परमेश्‍वर के वचनों के अधिकार और सामर्थ्‍य को सच्‍चे अर्थों में समझने में सक्षम बनाया, और मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की जीवन शक्ति की उत्कृष्टता और महानता को महसूस करने की गुंजाइश दी, और मेरे प्रति परमेश्‍वर के वास्‍तविक प्रेम तथा जीवन के नि:स्‍वार्थ प्रावधान को अनुभव करने दिया! यह सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ही था जिसने शैतान के प्रलोभनों पर विजय पाने में, अपनी मृत्‍यु के भय से ऊपर उठने में, और पृथ्‍वी के उस नर्क से उबरने में बारम्‍बार मेरा मार्गदर्शन किया था। मैंने गहराई से अनुभव किया कि मानव-जाति के प्रति केवल सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का प्रेम ही सच्‍चाहै, एकमात्र सवर्शक्तिमान परमेश्‍वर पर ही मैं भरोसा कर सकती हूँ, और वही मेरा एकमात्र उद्धारक है। मैंने आजीवन शैतान को तजने और उसका तिरस्‍कार करने की, सत्‍य को खोजने की, और शाश्‍वत रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का अनुसरण करने की तथा जीवन में उज्‍जवल, सही राह पर चलने की शपथ ली है!

फुटनोट:

1. "सभी बुराइयों के इस सरगना" का अर्थ बूढ़े शैतान से है। यह वाक्यांश चरम नापसंदगी व्यक्त करता है।

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