चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

菜单

घर

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV परमेश्वर की पवित्रता I" भाग एक


अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV परमेश्वर की पवित्रता I" भाग एक

आज हमारे पास परमेश्वर के अधिकार की अतिरिक्त संगति है, और हम फिलहाल अभी परमेश्वर की धार्मिकता के बारे में बात नहीं करेंगे। आज हम बिल्कुल ही एक नए विषय के बारे में बात करेंगे—परमेश्वर की पवित्रता। परमेश्वर की पवित्रता परमेश्वर के अद्वितीय सार का एक और पहलू है, अतः यहाँ इस विषय पर संगति करने की अत्यधिक आवश्यकता है।परमेश्वर के सार का यह पहलू जिस पर मैं संगति करूंगा, साथ ही वे दो पहलू जिन पर हम ने परमेश्वर के धर्मी स्वभाव एवं परमेश्वर के अधिकार से पहले संगति की थी—क्या वे सब अद्वितीय हैं? (हाँ।) परमेश्वर की पवित्रता भी अद्वितीय है, अतः इस अद्वितीयता का आधार, एवं इस अद्वितीयता का मूल आज की हमारी बातचीत का मुख्य विषय होगा। समझ गए? मेरे पीछे पीछे दोहराओ: परमेश्वर का अद्वितीय सार—परमेश्वर की पवित्रता। (परमेश्वर का अद्वितीय सार—परमेश्वर की पवित्रता।) इस वाक्यांश को दोहराने के बाद तुम सब अपने हृदय में कैसा महसूस करते हो? कदाचित् तुम सब में से कुछ लोगों को ग़लतफहमियां हैं, और पूछ रहे हो, "परमेश्वर की पवित्रता की बातचीत क्यों करें?" चिंता मत करो, मैं इसके माध्यम से तुम सब से धीरे-धीरे बात करूंगा। जैसे ही तुम सब इसे सुनते हो तुम सब जान जाओगे कि इस विषय पर संगति करना मेरे लिए इतना आवश्यक क्यों है।

आओ सबसे पहले हम "पवित्र" शब्द को परिभाषित करें। अपनी अनुभूति का उपयोग करते हुए और उस समस्त ज्ञान से जिसे तुम सबने सीखा है, तुम सब क्या समझते हो, "पवित्र" की परिभाषा क्या होनी चाहिए? ("पवित्र" का अर्थ है कोई दाग नहीं है, जिसमें मनुष्य की कोई भ्रष्टता या त्रुटि न हो। हर एक चीज़ जिसे वह प्रतिबिम्बित करता है—चाहे विचार में, बोली में या कार्य में, हर एक चीज़ जिसे वह करता है—वह पूरी तरह से सकारात्मक है।) बहुत अच्छा। ("पवित्र" ईश्वरीय है, विशुद्ध है, मनुष्यों के द्वारा अनुल्लंघनीय है। यह अद्वितीय है, यह परमेश्वर का चारित्रिक प्रतीक है।) ("पवित्र" बेदाग है और यह ईश्वरीयता का एक पहलू है, एवं अनुल्लंघनीय स्वभाव है।) यह तुम्हारी परिभाषा है, है ना। हर एक व्यक्ति के हृदय में, इस "पवित्र" शब्द का एक दायरा है, और एक परिभाषा एवं एक अनुवाद है। कम से कम, जब तुम सब "पवित्र" शब्द को देखते हो तो तुम सब का दिमाग खाली तो नहीं होता है। तुम सबके पास इस शब्द के लिए एक निश्चित परिभाषित दायरा है, और इस परिभाषा के विषय में कुछ लोगों का अनुवाद परमेश्वर के स्वभाव के सार को परिभाषित करने के लिए इस शब्द के उपयोग के करीब आ जाता है। यह बहुत अच्छा है। अधिकांश लोग विश्वास करते हैं कि "पवित्र" शब्द एक सकारात्मक शब्द है, और इसकी पुष्टि की जा सकती है। परन्तु परमेश्वर की पवित्रता जिस पर आज मैं संगति करना चाहता हूँ उसे केवल परिभाषित ही नहीं किया जाएगा और उसे केवल समझाया ही नहीं जाएगा। इसके स्थान पर, सत्यापन के लिए मैं कुछ तथ्यों का उपयोग करूंगा ताकि तूझे यह देखने की अनुमति मिले कि मैं क्यों कहता हूँ कि परमेश्वर पवित्र है, और मैं परमेश्वर के सार को दर्शाने के लिए "पवित्र" शब्द का उपयोग क्यों करता हूँ। उस समय तक जब हमारी संगति पूरी हो जाती है, तू महसूस करेगा कि परमेश्वर के सार को व्यक्त करने के लिए "पवित्र" शब्द का उपयोग और परमेश्वर को सूचित करने के लिए इस शब्द का उपयोग बिलकुल उचित एवं बिलकुल उपयुक्त दोनों है। कम से कम, जहाँ तक मानवजाति की वर्तमान भाषाओं की बात है, परमेश्वर को सूचित करने के लिए इस शब्द का उपयोग करना विशेष रूप से बिलकुल उचित है—परमेश्वर को सूचित करने के लिए यह मानवीय भाषा में एकमात्र शब्द है जो बहुत ही उपयुक्त है। परमेश्वर को सूचित करने के लिए इसका उपयोग करते समय यह एक खोखला शब्द नहीं है, न ही यह बिना किसी कारण के की गई प्रशंसा या एक खोखला अभिवादन है। हमारी संगति का उद्देश्य प्रत्येक को अनुमति देना है कि वह परमेश्वर के सार के इस पहलू के अस्तित्व के सत्य को पहचाने। परमेश्वर लोगों की समझ से नहीं डरता है, केवल उनकी ग़लतफहमी से डरता है। परमेश्वर चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति उसके सार और जो उसके पास है एवं जो वह है उसे जानें। अतः हम हर बार परमेश्वर के सार के एक पहलू का जिक्र करते हैं, तो हम कई तथ्यों की दुहाई दे सकते हैं ताकि लोगों को यह देखने की अनुमति मिले कि परमेश्वर के सार का यह पहलू वास्तव में अस्तित्व में है और यह बिलकुल सच्चा एवं बिलकुल वास्तविक दोनों है।

अब जबकि हमारे पास "पवित्र" शब्द की एक परिभाषा है, तो आओ हम कुछ उदाहरणों को लें। लोगों के विचारों में, उनके लिए अनेक "पवित्र" चीज़ों एवं लोगों की कल्पना करना आसान है। उदाहरण के लिए, क्या मानवजाति के शब्दकोशों में कुंवारे लड़कों एवं लड़कियों को पवित्र रूप में परिभाषित किया जा सकता है? क्या वे वास्तव में पवित्र हैं? (नहीं।) क्या यह तथाकथित "पवित्र" शब्द और वह "पवित्र" शब्द जिस पर हम आज संगति करना चाहते हैं वे एक एवं समान हैं? (नहीं।) लोगों के मध्य ऐसे लोगों को देखने पर जिनके पास ऊँची नैतिकता है, जिनके पास परिष्कृत एवं सुसंस्कृत बोली है, जो कभी किसी को चोट नहीं पहुंचाते हैं, जब वे बोलते हैं, तो वे दूसरों को सुकून पहुचाते हैं और सहमत कर लेते हैं—क्या वे पवित्र हैं? कन्फ्यूशी विद्वान या सज्जन पुरुष जिनके पास ऊँची नैतिकता है, जो शब्द एवं कार्य दोनों में परिष्कृत हैं—क्या वे पवित्र हैं? ऐसे लोग जो अकसर अच्छा कार्य करते हैं, वे दानशील हैं और दूसरों को बड़ी सहायता प्रदान करते हैं, ऐसे लोग जो लोगों की ज़िन्दगियों में बहुत सारा मनोरंजन लेकर आते हैं—क्या वे पवित्र हैं? (नहीं।) ऐसे लोग जो दूसरों के प्रति कोई स्वयंसेवी विचारों को आश्रय नहीं देते हैं, जो दूसरों से कठिन मांग नहीं करते हैं, जो किसी को भी सह लेते हैं—क्या वे पवित्र हैं? ऐसे लोग जिनका किसी के साथ कभी कोई विवाद नहीं हुआ है न ही कभी किसी का लाभ उठाया है—क्या वे पवित्र हैं? वास्तव में ऐसे लोग जो दूसरों की भलाई के लिए काम करते हैं, जो दूसरों को लाभ पहुंचाते हैं और हर प्रकार से दूसरों के लिए उन्नति लेकर आते हैं—क्या वे पवित्र हैं? ऐसे लोग जो दूसरों को अपने जीवन की सारी जमा पूंजी दे देते हैं और साधारण जीवन जीते हैं, जो स्वयं के साथ तो सख्त हैं परन्तु दूसरों से उदारता से व्यवहार करते हैं—क्या वे पवित्र हैं? (नहीं।) तुम सब को याद है कि तुम लोगों की माताएं तुम सब की परवाह करती थीं और हर एक विश्वसनीय तरीके से तुम सबकी देखभाल करती थीं—क्या वे पवित्र हैं? ऐसी मूर्तियां जिन्हें तुम लोग प्रिय मानते थे, चाहे वे प्रसिद्ध लोग हों, सितारे हों या महान लोग हों—क्या वे पवित्र हैं? (नहीं।) ये सब नियत है। आओ अब हम बाईबिल में उन भविष्यवक्ताओं को देखें जो भविष्य बताने के योग्य थे जिससे बहुत से अन्य लोग अनजान थे—क्या इस प्रकार का व्यक्ति पवित्र था? ऐसे लोग जो बाइबिल में परमेश्वर के वचनों और उसके कार्य के तथ्यों को लिखने के योग्य थे—क्या वे पवित्र थे? (नहीं।) क्या मूसा पवित्र था? क्या इब्राहिम पवित्र था? क्या अय्यूब पवित्र था? (नहीं।) तुम सब ऐसा क्यों कह रहे हो? ("पवित्र" शब्द का उपयोग केवल परमेश्वर को सूचित करने के लिए उपयोग किया जाता है।) परमेश्वर के द्वारा अय्यूब को धर्मी व्यक्ति कहकर पुकारा गया था, अतः उसने भी यह क्यों कहा था कि वह पवित्र नहीं है? तुम सब यहाँ कुछ शंका महसूस करते हो, क्या तुम लोग नहीं करते हो? ऐसे लोग जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं क्या वे वास्तव में पवित्र नहीं हैं? क्या वे पवित्र नहीं हैं? (नहीं।) तुम लोगों का उत्तर नकारात्मक है, क्या ऐसा है? वास्तव में तुम सब का नकारात्मक उत्तर किस पर आधारित है? (परमेश्वर अद्वितीय है।) यह अच्छी तरह से स्थापित आधार है; वास्तव में एक उत्कृष्ट आधार है! मैं पता लगा रहा हूँ कि तुम सब में चीज़ों को जल्दी से पकड़ने और जो तुम लोगों ने सीखा है उसका उपयोग करने की बड़ी योग्यता है, और यह कि तुम सभी के पास यह विशेष कुशलता है। तुम सब थोड़ा शंकालु हो, बहुत अधिक निश्चित नहीं हो, और तुम लोग "नहीं" कहने की हिम्मत नहीं करते हो, परन्तु न ही तुम लोग "हाँ" कहने की हिम्मत करते हो, अतः तुम लोगों को "नहीं" कहने के लिए बाध्य किया गया है। मुझे एक और प्रश्न पूछने दो। परमेश्वर के संदेशवाहक—वे संदेशवाहक जिन्हें परमेश्वर ने नीचे पृथ्वी पर भेजा—क्या वे पवित्र हैं? (नहीं।) इसे सावधानी से सोचो। जब एक बार तुम सभी इस पर सोच लो तब अपना उत्तर दो। क्या स्वर्गदूत पवित्र हैं? (नहीं।) मानवजाति जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट नहीं किया गया है—क्या वे पवित्र हैं? (नहीं।) तुम सब ने प्रत्येक प्रश्न के लिए "नहीं" कहा है। किस आधार पर? क्या वह वाक्यांश जिसे मैंने अभी कहा था वह तुम लोगों के "नहीं" कहने का कारण है? तुम लोग भ्रमित हो गए हो, क्या तुम लोग भ्रमित नहीं हो? अतः स्वर्गदूतों को भी पवित्र क्यों नहीं कहा गया है? तुम सब यहाँ आशंकित महसूस करते हो, क्या तुम आशंकित महसूस नहीं करते हो? तब क्या तुम लोग पता लगा सकते हो कि किस आधार पर लोग, चीज़ें या नहीं सृजे गए प्राणी जिसका हमने पहले जिक्र किया था क्या वे पवित्र नहीं हैं? मैं सुनिश्चित हूँ कि तुम लोग इसका पता लगाने में असमर्थ हो, सही है? अतः क्या तुम लोगों का "नहीं" कहना तब थोड़ा सा गैरज़िम्मेदाराना है? क्या तुम रूखेपन से उत्तर नहीं दे रहे हो? कुछ लोग विचार कर रहे हैं: "तुम इस प्रकार पूछते हो, अतः ऐसा तो निश्चित तौर पर नहीं होगा।" बस रूखेपन से उत्तर न दो। सावधानी से सोचो कि उत्तर हाँ है या नहीं। तुम लोग जानोगे जब हम इस निम्नलिखित शीर्षक पर बातचीत करेंगे कि यह "नहीं" क्यों है। मैं तुम सब को बहुत जल्द ही उत्तर दूंगा। आओ हम पहले पवित्र शास्त्र के कुछ अंश को पढ़ें।

1. मनुष्य के लिए यहोवा परमेश्वर की आज्ञा

(उत्पत्ति 2:15-17) तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रक्षा करे। और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, “तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।”

2. सर्प के द्वारा स्त्री को बहकाया जाना

(3:1-5) यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था; उसने स्त्री से कहा, "क्या सच है कि परमेश्वर ने कहा, 'तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना'?" स्त्री ने सर्प से कहा, "इस वाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं; पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।" तब सर्प ने स्त्री से कहा, "तुम निश्चय न मरोगे! वरन् परमेश्वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।"

ये दोनों अंश बाइबिल की किस किताब के लघु अंश हैं? (उत्पत्ति।) क्या तुम सभी इन दोनों अंशों से परिचित हो? यह कुछ ऐसा था जो आरम्भ में हुआ था जब पहली बार मानवजाति को सृजा गया था; यह एक वास्तविक घटना है। सबसे पहले आओ हम यह देखें कि यहोवा परमेश्वर ने आदम और हव्वा को किस प्रकार की आज्ञा दी थी, जैसे कि इस आज्ञा की विषयवस्तु आज हमारे शीर्षक के लिए अत्यंत आवश्यक है। "और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी...." निम्नलिखित अंश को निरन्तर पढ़ते रहो। ("तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।") इस अंश में मनुष्य को दी गई परमेश्वर की आज्ञा में क्या शामिल है? पहला, परमेश्वर मनुष्य को बताता है कि वह क्या खा सकता है, वहाँ सभी किस्म के पेड़ों के फल मौजूद थे। इसमें कोई खतरा या ज़हर नहीं है, सब कुछ खाया जा सकता है और बिना किसी सन्देह के अपनी इच्छा के अनुसार खाया जा सकता है। यह एक भाग है। दूसरा भाग एक चेतावनी है। यह चेतावनी मनुष्य को बताता है कि वह किस वृक्ष के फल को नहीं खा सकता है? (भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष।) उसे भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से फल नहीं खाना चाहिए। यदि वह ऐसा करता है तब क्या होगा? (वह निश्चय ही मर जाएगा।) परमेश्वर ने मनुष्य से कहाः यदि तुम इसे खाओगे तो निश्चय ही मर जाओगे। क्या ये वाक्य स्पष्ट नहीं हैं? (हाँ)। यदि परमेश्वर ने तुम सब से यह कहा है किन्तु तुम लोग इसे नहीं समझ पाते हो कि ऐसा क्यों कहा, तो क्या तुम सब इसके साथ एक नियम या एक आज्ञा के रूप में व्यवहार करते जिसका पालन किया जाना चाहिए? इसका पालन किया जाना चाहिए, पालन नहीं किया जाना चाहिए? परन्तु मनुष्य इसका पालन करने के योग्य है या नहीं, परमेश्वर के वचन पूरी तरह से स्पष्ट हैं। परमेश्वर ने मनुष्य को बिलकुल साफ-साफ कहा कि वह क्या खा सकता है और क्या नहीं खा सकता है, और क्या होगा यदि वह उसे खाता है जिसे उसे नहीं खाना चाहिए। क्या तुम सब ने इन संक्षिप्त शब्दों में परमेश्वर के स्वभाव को देखा है जिसे परमेश्वर ने कहा था? क्या परमेश्वर के ये वचन सत्य हैं? (हाँ।) क्या इसमें कोई छलावा है? (नहीं।) क्या इसमें कोई झूठ है? (नहीं।) क्या इसमें कुछ भी डरावना है? (नहीं।) परमेश्वर ने ईमानदारी से, सच्चाई से और सत्यनिष्ठा से मनुष्य को बताया था कि वह क्या खा सकता है और क्या नहीं खा सकता है, जो स्पष्ट और सरल है। क्या इन वचनों में कोई छिपा हुआ अर्थ है? क्या ये वचन सरल हैं? एक झलक में उनका अर्थ स्पष्ट है, जैसे ही तुम सब इसे देखते हो तुम सब इसे समझ जाते हो। क्या अनुमान लगाने की कोई आवश्यकता है? (नहीं।) अंदाज़ा लगाना जरुरी नहीं है, ठीक है? यह पहले से ही बिल्कुल स्पष्ट है। परमेश्वर के मस्तिष्क में, जो कुछ वह कहना चाहता है, जो कुछ वह अभिव्यक्त करना चाहता है, वह उसके हृदय से आता है। ऐसी चीज़ें जिन्हें परमेश्वर व्यक्त करता है वे स्पष्ट, सरल एवं साफ हैं। यहाँ गुप्त इरादे या कोई छिपा हुआ अर्थ नहीं हैं। वह मनुष्य से सीधे बातचीत करता है, यह कहते हुए कि वह क्या खा सकता है और क्या नहीं खा सकता है। कहने का तात्पर्य है, परमेश्वर के इन वचनों के माध्यम से मनुष्य देख सकता है कि परमेश्वर का हृदय पारदर्शी है, और यह कि उसका हृदय सच्चा है। यहाँ पर बिल्कुल भी झूठ नहीं है, तुम लोगों को यह कहते हुए कि जो खाने के लायक है उसे तुम सब नहीं खा सकते हो या यह कहते हुए कि "इसे करो और देखो कि क्या होता है" उन चीज़ों के साथ जिन्हें तुम सब नहीं खा सकते हो। क्या इसका अर्थ यह है? (नहीं।) जो कुछ भी परमेश्वर अपने हृदय में सोचता है वही कहता है। यदि मैं कहूँ कि परमेश्वर पवित्र है क्योंकि वह इस प्रकार से इन वचनों में अपने आपको दिखाता और प्रगट करता है, तो हो सकता है कि तुम सब थोड़ा बहुत ऐसा महसूस करो कि मैंने बिना किसी बात पर बहुत बड़ा सौदा कर लिया है या मैंने अपनी व्याख्या को थोड़ी दूर तक खींच दिया है। यदि ऐसा है, तो चिंता मत करो, हमने अभी तक समाप्त नहीं किया है।

आओ हम "सर्प के द्वारा स्त्री को प्रलोभन" देने के विषय में बातचीत करें। यह सांप कौन है? (शैतान।) शैतान ने परमेश्वर के छः हज़ार वर्षों की प्रबंधकीय योजना में एक महीन परत की भूमिका निभाई है, और यह वह भूमिका है जिसका जिक्र करने से हम नहीं चूकते हैं जब हम परमेश्वर की पवित्रता की संगति करते हैं। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? (क्योंकि शैतान उन सब का प्रतिनिधि एवं रचनाकार है जो घिनौना एवं भ्रष्ट है।) यदि तू शैतान और शैतान के स्वभाव की बुराई एवं भ्रष्टता को नहीं जानता है, तो तेरे पास इसे पहचानने का कोई तरीका नहीं है, न ही तू यह जान सकता है कि पवित्रता वास्तव में क्या है। भ्रम की स्थिति में, लोग यह विश्वास करते हैं कि शैतान जो कुछ करता है वह सही है, क्योंकि वे इस प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव के अंतर्गत जीते हैं। बिना किसी महीन परत के, जहाँ तुलना करने के लिए कुछ भी नहीं है, तो तू नहीं जान सकता है कि पवित्रता क्या है, अतः यहाँ पर इस विषय का उल्लेख करना होगा। हमने शून्य से इस विषय को इकट्ठानहीं किया है, परन्तु इसके बजाय हम इसके शब्दों एवं कार्यों से देखेंगे कि शैतान कैसे काम करता है, वह मानवजाति को कैसे भ्रष्ट करता है, उसके पास किस प्रकार का स्वभाव है और उसका चेहरा किसके समान है। अतः इस स्त्री ने सर्प से क्या कहा था? जो कुछ यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा था उसने उसे सांप के सामने दोहराया। जो कुछ उसने कहा था उसके द्वारा न्याय करते हुए, जो कुछ परमेश्वर ने उससे कहा था क्या उसने उन सबकी पुष्टि की? वह इसकी पुष्टि नहीं कर सकती थी, क्या वह कर सकती थी? एक ऐसे प्राणी के रूप में जिसे नए रूप में सृजा गया था, उसके पास भले एवं बुरे को परखने की कोई योग्यता नहीं थी, न ही उसमें उसके आस पास की किसी भी चीज़ को जानने की योग्यता थी। ऐसे शब्द जो उसने सर्प से कहा था वे हमें बताते हैं कि उसने अपने हृदय में सही रीति से परमेश्वर के वचनों की पुष्टि नहीं की थी; उसके पास संशयवादी मनोवृत्ति थी। अतः जब सर्प ने देखा कि स्त्री के पास परमेश्वर के वचनों के प्रति कोई निश्चित मनोवृत्ति नहीं है, तो उसने कहा, "तुम निश्चय ही न मरोगे: वरन् परमेश्वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।" क्या इन शब्दों में कुछ ग़लत है? (हाँ।) क्या ग़लत है? इस वाक्य को पढ़ें। (और सर्प ने स्त्री से कहा, "तुम निश्चय ही न मरोगे: वरन् परमेश्वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।") इसे पढ़ने के बाद, क्या तुम लोग कुछ महसूस करते हो? जब तुम सब इस वाक्य को पढ़ना समाप्त कर लेते हो, तो क्या तुम लोगों को सर्प के इरादों का कोई आभास होता है? (हाँ।) सर्प के पास क्या इरादे हैं? (मनुष्य को पाप करने के लिए लुभाने हेतु।) वह उस स्त्री को लुभाना चाहता है ताकि वह परमेश्वर के वचनों को ध्यान से सुनने से उसे रोके, परन्तु क्या उसने इसे सीधे तौर पर कहा था? (नहीं।) उसने सीधे तौर पर नहीं कहा था, अतः हम कह सकते हैं कि वह बहुत ही चालाक है। वह अपने इच्छित उद्देश्य तक पहुंचने के लिए धूर्त एवं कपटपूर्ण तरीके से इसके अर्थ को व्यक्त करता है जिससे यह मनुष्य के भीतर ही छिपा रहे—यह सर्प की धूर्तता है। शैतान ने सदा इस प्रकार से ही बातचीत और कार्य किया है। एक अर्थ या दूसरे अर्थ की पुष्टि किए बिना ही, वह कहता है "निश्चय नहीं।" परन्तु इसे सुनने के बाद, क्या इस अबोध स्त्री का हृदय द्रवित हुआ था? (हाँ।) शैतान प्रसन्न हो गया चूँकि उसके शब्दों ने इच्छित प्रभाव को प्राप्त कर लिया था—यह सर्प का धूर्त इरादा था। इसके अतिरिक्त, एक परिणाम का वादा करके जिसे मनुष्य एक अच्छा परिणाम मानता था, उसने उसे बहका दिया था, यह कहते हुए कि, "जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आखें खुल जाएंगी।" इसलिए वह विचार करती है, "मेरी आखों का खुलना तो एक अच्छी बात है!" तब सर्प और भी अच्छे शब्दों को बोलता है, ऐसे शब्द जो मनुष्य के लिए अनजान हैं, ऐसे शब्द जो उन लोगों के ऊपर प्रलोभन का एक बड़ा सामर्थ्य रखते हैं जो उन्हें सुनते हैं: "और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे। ” क्या ये शब्द उसके लिए बहुत ही अधिक प्रलोभन देनेवाले हैं? (हाँ।) यह किसी ऐसे के समान है जो तूझे कहता है: "तुम्हारे चेहरे को बहुत ही अच्छी तरह आकार दिया गया है। बस नाक के पास थोड़ा सा छोटा रह गया है, परन्तु यदि तू इसे सुधार ले, तो तेरी सुन्दरता विश्वस्तरीय होगी!" क्योंकि कोई ऐसा व्यक्ति जिसने कभी सौन्दर्य शल्यचिकित्सा नहीं कराना चाहा है, क्या इन शब्दों को सुनकर उनका हृदय द्रवित नहीं हो जाएगा? (हाँ।) अतः क्या ये शब्द प्रलोभन देने वाले हैं? क्या यह प्रलोभन तेरी परीक्षा ले रहा है? क्या यह एक परीक्षण है? (हाँ।) क्या परमेश्वर ऐसी बातें कहता है जो इसके समान है? (नहीं।) क्या इसके विषय में परमेश्वर के वचनों में कोई संकेत था जिसे हमने बस अभी अभी देखा था? (नहीं।) क्यों? क्या परमेश्वर उसे कहता है जिसे वह अपने दिल में सोचता है? क्या मनुष्य परमेश्वर के वचनों के माध्यम से उसके हृदय को देख सकता है? (हाँ।) परन्तु जब सर्प ने स्त्री से उन शब्दों को कहा था, तब क्या तू उसके हृदय को देख सकता था? (नहीं।) और मनुष्य की अज्ञानता के कारण, सर्प के शब्दों के द्वारा उन्हें आसानी से बहकाया गया था, उन्हें आसानी से कांटे में फंसाया गया था, और आसानी से ले जाया गया था। अतः क्या तू शैतान के इरादों को देख सकता था? जो कुछ उसने कहा था क्या तू उसके पीछे के उद्देश्य को देख सकता था? क्या तू उसकी साजिश एवं उसकी धूर्त युक्तियों को देख सकता था? (नहीं।) शैतान की बातचीत के तरीके के द्वारा किस प्रकार के स्वभाव को दर्शाया जाता है? इन शब्दों के माध्यम से तूने शैतान में किस प्रकार का सार देखा है? (बुरा।) बुरा। क्या यह भयानक है? कदाचित् ऊपर से वह तुझ पर मुस्कुराता है या किसी भी प्रकार की भाव भंगिमा को प्रकट नहीं करता है। परन्तु अपने हृदय में वह गणना कर रहा है कि किस प्रकार अपने उद्देश्य तक पहुंचा जाए, और यही वह उद्देश्य है जिसे देखने में तू असमर्थ है। तब तू उन सभी प्रतिज्ञाओं के द्वारा बहकाया जाता है जो वह तुझसे करता है, उन सभी फायदों के द्वारा बहकाया जाता है जिनके विषय में वह बात करता है। तुझे वे अच्छे दिखाई देते हैं, और तुझे महसूस होता है कि जो कुछ वह कहता है वह और भी अधिक उपयोगी है, और जो कुछ परमेश्वर कहता है उससे भी अधिक बड़ा है। जब यह होता है, तब क्या मनुष्य एक अधीन कैदी नहीं बन जाता है? (हाँ।) अतः क्या इसका अर्थ यह है कि शैतान के द्वारा उपयोग किया जाना पैशाचिक नहीं है? तू स्वयं को नीचे डूबाने देता है। बिना कुछ किए, इन दो वाक्यों द्वारा तुझसे खुशी-खुशी इसका अनुसरण करवाया जाता है, तुझसे इसका पालन करवाया जाता है। इसके उद्देश्य को प्राप्त कर लिया गया है। क्या ऐसा ही नहीं है? (हाँ।) क्या यह इरादा भयंकर नहीं है? क्या यह शैतान का असली चेहरा नहीं है? (हाँ।) शैतान के शब्दों से, मनुष्य उसके भयंकर इरादों को देख सकता है, उसके भयंकर चेहरे और उसके सार को देख सकता है। क्या यह सही नहीं है? (हाँ।) बिना समीक्षा किए, इन वाक्यों की तुलना करके, शायद तू सोच सकता है कि यहोवा के वचन सुस्त, साधारण एवं सामान्य हैं, यह कि वे परमेश्वर की ईमानदारी की स्तुति करने के विषय में बहुत अधिक ध्यान दिए जाने के लायक नहीं हैं। जब हम शैतान के शब्दों और उसके भयंकर चेहरे को लेते हैं और उन्हें एक महीन परत के रूप में उपयोग करते हैं, फिर भी, क्या आज के लोगों के लिए परमेश्वर के ये वचन बड़ा प्रभाव रखते हैं? (हाँ।) इस महीन परत के माध्यम से, मनुष्य परमेश्वर की पवित्र त्रुटिहीनता का आभास कर सकता है। क्या ऐसा कहने में मैं सही हूँ? (हाँ।) हर एक शब्द जिसे शैतान कहता है साथ ही साथ उसके प्रयोजन, इसके इरादे और जिस रीति से वह बोलता है—वे सब मिलावटी हैं। उसके बोलने के तरीके की मुख्य विशेषता क्या है? तुझे बिना दिखाए ही वह तुझे मोहित करने के लिए वाक्छल का उपयोग करता है, न ही वह तुझे यह परखने देता है कि उसका उद्देश्य क्या है; वह तुझे चारे को लेने देता है, और तुझसे अपनी स्तुति करवाता है और अपनी विशेष योग्यताओं के गीत गवाता है। क्या यह मामला है? (हाँ।) क्या यह शैतान की सतत चाल नहीं है? (हाँ।)
आपके लिए अनुशंसित:
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में वह सभी सत्य समाहित है जिसे मनुष्य को समझने की आवशकता है, और जो उसे नए युग में ले जाता है 
हिंदी बाइबल स्टडी—जीवन की सर्वोत्तम रोटी—आप तक नयी जानकारी लाना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Popular Posts