परमेश्वर के वचन को पढ़ने और परमेश्वर के वचन को समझने के माध्यम से ही परमेश्वर को अवश्य जानना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं: “मैंने देहधारी परमेश्वर को नहीं देखा है, तो मैं परमेश्वर को कैसे जान सकता हूँ?” परमेश्वर का वचन वास्तव में परमेश्वर के स्वभाव का एक प्रकटन है। आप परमेश्वर के वचन से मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम, उनके द्वारा मानवजाति का उद्धार, और जिस तरह से वे उन्हें बचाते हैं उसे देख सकते हैं.....क्योंकि परमेश्वर का वचन, परमेश्वर के द्वारा उसे लिखने हेतु मनुष्य के उपयोग के विपरीत, परमेश्वर के द्वारा ही प्रकट होता है। यह व्यक्तिगत रूप में परमेश्वर के द्वारा प्रकट किया जाता है।
यह स्वयं परमेश्वर है जो अपने स्वयं के वचनों और अपने भीतर की आवाज़ को प्रकट कर रहा है। हम उन्हें हार्दिक वचन क्यों कहते हैं? क्योंकि वे बहुत गहराई से निकलते हैं, और परमेश्वर के स्वभाव, उनकी इच्छा, उनके विचारों, मानवजाति के लिए उनके प्रेम, उनके द्वारा मानवजाति उद्धार, तथा मानवजाति से उनकी अपेक्षाओं को प्रकट कर रहे हैं। परमेश्वर के वचनों के बीच कठोर वचन, शांत एवं कोमल वचन, कुछ विचारशील वचन हैं, और कुछ प्रकाशित करने से सम्बन्धी वचन हैं जो अमानवीय हैं। यदि आप केवल प्रकाशित करने से सम्बन्धी वचनों को देखेंगे, तो आप महसूस करेंगे कि परमेश्वर काफी कठोर हैl यदि आप केवल शांत एवं कोमल पहलु को देखेंगे, तो ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर के पास ज़्यादा अधिकार नहीं है l इसलिए इस विषय में आपको सन्दर्भ से बाहर होकर नहीं समझना चाहिए l आपको इसे हर एक कोण से अवश्य देखना चाहिए। कभी-कभी परमेश्वर शांत एवं करुणामयी दृष्टिकोण से बोलता है, और लोग मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम को देखते हैं; कभी-कभी वह कठोर दृष्टिकोण से बोलता है, और लोग परमेश्वर के अपमान न किए जा सकने योग्य स्वभाव को देखते हैं। मनुष्य विलापनीय ढंग से गंदा है और परमेश्वर के मुख को देखने के योग्य नहीं है, और परमेश्वर के सामने आने के योग्य नहीं है। लोगों का परमेश्वर के सामने आना अब पूरी तरह परमेश्वर के अनुग्रह से ही है। जिस तरह परमेश्वर कार्य करता है और उसके कार्य के अर्थ से परमेश्वर की बुद्धि को देखा जा सकता है। भले ही लोग परमेश्वर के सम्पर्क में न आएँ, तब भी वे परमेश्वर के वचनों में इन चीज़ों को देखने में सक्षम होंगे। जब सच्ची समझ वाला कोई व्यक्ति मसीह के सम्पर्क में आता है, तो उसकी समझ उनके साथ मेल खा सकती है, किन्तु जब केवल सैद्धान्तिक समझ वाले कोई व्यक्ति परमेश्वर के सम्पर्क में आता है, तो यह उससे मेल नहीं खा सकता है। सत्य का यह पहलू सबसे गहरा एवं गम्भीर रहस्य है, जिसकी गहराई को नापना कठिन है। उन वचनों का सार निकालिए जिन्हें परमेश्वर देहधारण के भेद के विषय में कहते हैं, विभिन्न कोणों से उन्हें देखिए, फिर अपने बीच इन चीज़ों की चर्चा कीजिए। आप प्रार्थना कर सकते हैं, और इन चीज़ों पर बहुत अधिक विचार और चर्चा कर सकते हैं। कदाचित् पवित्र आत्मा आपको प्रकाशित करे और उन्हें समझने की आपको अनुमति दे। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके पास परमेश्वर के सम्पर्क में आने का कोई अवसर नहीं है, और आपको एक बार में अपने मार्ग का थोड़ा सा एहसास करने, तथा परमेश्वर की सच्ची समझ हासिल करने के लिए इस तरीके से अनुभव पर भरोसा अवश्य रखना चाहिए।
यह स्वयं परमेश्वर है जो अपने स्वयं के वचनों और अपने भीतर की आवाज़ को प्रकट कर रहा है। हम उन्हें हार्दिक वचन क्यों कहते हैं? क्योंकि वे बहुत गहराई से निकलते हैं, और परमेश्वर के स्वभाव, उनकी इच्छा, उनके विचारों, मानवजाति के लिए उनके प्रेम, उनके द्वारा मानवजाति उद्धार, तथा मानवजाति से उनकी अपेक्षाओं को प्रकट कर रहे हैं। परमेश्वर के वचनों के बीच कठोर वचन, शांत एवं कोमल वचन, कुछ विचारशील वचन हैं, और कुछ प्रकाशित करने से सम्बन्धी वचन हैं जो अमानवीय हैं। यदि आप केवल प्रकाशित करने से सम्बन्धी वचनों को देखेंगे, तो आप महसूस करेंगे कि परमेश्वर काफी कठोर हैl यदि आप केवल शांत एवं कोमल पहलु को देखेंगे, तो ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर के पास ज़्यादा अधिकार नहीं है l इसलिए इस विषय में आपको सन्दर्भ से बाहर होकर नहीं समझना चाहिए l आपको इसे हर एक कोण से अवश्य देखना चाहिए। कभी-कभी परमेश्वर शांत एवं करुणामयी दृष्टिकोण से बोलता है, और लोग मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम को देखते हैं; कभी-कभी वह कठोर दृष्टिकोण से बोलता है, और लोग परमेश्वर के अपमान न किए जा सकने योग्य स्वभाव को देखते हैं। मनुष्य विलापनीय ढंग से गंदा है और परमेश्वर के मुख को देखने के योग्य नहीं है, और परमेश्वर के सामने आने के योग्य नहीं है। लोगों का परमेश्वर के सामने आना अब पूरी तरह परमेश्वर के अनुग्रह से ही है। जिस तरह परमेश्वर कार्य करता है और उसके कार्य के अर्थ से परमेश्वर की बुद्धि को देखा जा सकता है। भले ही लोग परमेश्वर के सम्पर्क में न आएँ, तब भी वे परमेश्वर के वचनों में इन चीज़ों को देखने में सक्षम होंगे। जब सच्ची समझ वाला कोई व्यक्ति मसीह के सम्पर्क में आता है, तो उसकी समझ उनके साथ मेल खा सकती है, किन्तु जब केवल सैद्धान्तिक समझ वाले कोई व्यक्ति परमेश्वर के सम्पर्क में आता है, तो यह उससे मेल नहीं खा सकता है। सत्य का यह पहलू सबसे गहरा एवं गम्भीर रहस्य है, जिसकी गहराई को नापना कठिन है। उन वचनों का सार निकालिए जिन्हें परमेश्वर देहधारण के भेद के विषय में कहते हैं, विभिन्न कोणों से उन्हें देखिए, फिर अपने बीच इन चीज़ों की चर्चा कीजिए। आप प्रार्थना कर सकते हैं, और इन चीज़ों पर बहुत अधिक विचार और चर्चा कर सकते हैं। कदाचित् पवित्र आत्मा आपको प्रकाशित करे और उन्हें समझने की आपको अनुमति दे। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके पास परमेश्वर के सम्पर्क में आने का कोई अवसर नहीं है, और आपको एक बार में अपने मार्ग का थोड़ा सा एहसास करने, तथा परमेश्वर की सच्ची समझ हासिल करने के लिए इस तरीके से अनुभव पर भरोसा अवश्य रखना चाहिए।
मसीह को जानने और स्वयं परमेश्वर को जानने के बारे में सच्चाईयाँ गहनतम हैं। यदि लोग सत्य के इस पहलू की खोज करने पर जोर देते हैं, तो हालाँकि, वे भीतर से उजले एवं स्थिर हो जाएँगे, और उनके पास चलने के लिए एक मार्ग होगा। सत्य का यह पहलु मनुष्य के हृदय के बहुत समान है। यदि किसी व्यक्ति के पास इस पहलू में कोई सत्य नहीं है, तो उसमें सामर्थ्य का अभाव होगा। व्यक्ति के पास सत्य के इस पहलू का जितना अधिक ज्ञान होता है, उतनी ही अधिक सामर्थ्य उसके पास होती है। अब कुछ ऐसे लोग हैं जो कहते हैं: अंतिम विश्लेषण में, देहधारण क्या है? क्या ये कथन साबित कर सकते हैं कि वे देहधारी परमेश्वर हैं? क्या ये वचन साबित कर सकते हैं कि वे स्वयं परमेश्वर है? अगर उन्होंने इन वचनों को न कहा होता तो क्या वह तब भी स्वयं परमेश्वर होते? या यदि उसने केवल कुछ ही वचनों को कहा होता, तो क्या वे तब भी परमेश्वर होते? क्या निर्धारित करता है कि वे परमेश्वर हैं? क्या इसे केवल इन वचनों के द्वारा निर्धारित किया जाता है? यह एक मुख्य प्रश्न है। कुछ लोग ग़लत तरीके से इन वचनों को पवित्र आत्मा के निर्देश के रूप में पहचानते हैं, यह कि उऩ्होंने निर्देशों को देना समाप्त कर दिया है और चले गए, यह कि पवित्र आत्मा ने काम करना बन्द कर दिया, यह कि यह देह एक साधारण एवं सामान्य देह से बढ़कर कुछ नहीं है, यह कि इस देह को परमेश्वर नहीं कहा जा सकता है, इसके बजाए उन्हें मनुष्य का पुत्र कहा जा सकता है, और परमेश्वर नहीं कहा जा सकता है। कुछ लोग इस तरीके से इसे ग़लत समझते हैं। तो फिर इस मिथ्याबोध का उद्गम कहाँ है? यह वे लोग हैं जिन्होंने देहधारण को भली भाँति नहीं समझा है, और गहराई से खोजा से नहीं खोजा है। लोग देहधारण को अत्यंत सतही तौर पर समझते हैं, और उनके पास ज्ञान की केवल अल्प मात्रा है। यदि बहुत से वचनों को कहना उनका परमेश्वर के बराबर होना है, तो क्या बहुत से वचन कहने के बजाए, सिर्फ थोड़े वचनों को कहने का भी यह अर्थ है कि वे परमेश्वर हैं? वास्तव में उनके द्वारा थोड़े से वचनों को कहना भी ईश्वरीयता को प्रकट करना है। क्या वे परमेश्वर हैं? परमेश्वर जो कार्य करते हैं उसका बड़ा महत्व है। इसने मानवीय हृदयों को जीत लिया है और लोगों के समूह को जीत लिया है। अगर उस कार्य को पूरा नहीं किया गया होता, तो क्या उन्हें स्वयं परमेश्वर के रूप में जानना सम्भव हो पाता? पहले ऐसे लोग थे जो इस प्रकार सोचते थे जब कार्य अधूरा होता था: जैसा मैं इसे देखता हूँ, इस कार्य को बदलना चाहिए। कौन कह सकता है कि देहधारण वास्तव में क्या है! क्या यह परमेश्वर के देहधारण के प्रति सन्देह की प्रवृत्ति रखना है? यह कि आप परमेश्वर के देहधारी शरीर के प्रति सन्देहास्पद हो सकते हैं जो दिखाता है कि आप देहधारण पर विश्वास नहीं करते हैं, यह विश्वास नहीं करते हैं कि वह परमेश्वर है, यह विश्वास नहीं करते हैं कि उसके पास परमेश्वर का सार है, और यह विश्वास नहीं करते हैं कि जो वचन उन्होंने कहे थे वे परमेश्वर से निकले हैं। उससे भी अधिक क्या आप विश्वास नहीं करते हैं कि जो वचन उन्होंने कहे थे वे उनके स्वयं के स्वभाव का प्रकाशित होना, और सार का व्यक्त होना है। कुछ लोगों ने इस तरह कहा: जैसा मैं देखता हूँ, परमेश्वर के काम करने के तरीके को बदलना चाहिए। यह अनिश्चित है कि देहधारण वास्तव में क्या है, और शायद इसकी कोई और व्याख्या होनी चाहिए। कुछ लोग हैं जो इंतज़ार करते हैं और देखते हैं, यह देखने के लिए कि देहधारी परमेश्वर जो वहाँ बैठे हैं उनके द्वारा बोले गए वचनों का कोई स्वर है या नहीं, वे सच बोलते हैं या नहीं, और क्या उन्होंने कुछ नया कहा है। यदि मेरा पास एक एक्स-रे मशीन होती तो मैं नज़र डालता और देखता कि क्या उनके पेट में कोई सच्चाई है। यदि वहाँ कोई सच्चाई नहीं है, और यदि वे एक व्यक्ति हैं, तो मैं फुर्ती से भाग जाऊँगा, और विश्वास नहीं करूँगा। मैं नज़र डालूँगा और देखूँगा कि क्या परमेश्वर की आत्मा उऩमें कार्य कर रही है, क्या परमेश्वर की आत्मा उनकी सहायता कर रही है, और उनके व्याख्यान में उनको निर्देश दे रही है। कुछ लोग इस तरह से शंकालु होते हैं, और हमेशा अपने हृदयों में इस समस्या के विषय में चिंता करते रहते हैं। किस कारण से यह स्थिति बनी हुई है? यह देहधारण में एक सतही अंतर्दृष्टि की के अलावा किसी और कारण से नहीं है। वे इसे पूरी तरह से नहीं जानते हैं, और वे अपनी समझ में एक ऊँचे स्तर पर नहीं पहुँचे हैं। क्योंकि अभी, वे सिर्फ इतना मानते हैं कि इस व्यक्ति में परमेश्वर की आत्मा है। हालाँकि, यह कहना कि उनके भीतर परमेश्वर का सार, परमेश्वर का स्वभाव है, और यह कहना कि उनके पास वह है जो कि परमेश्वर है तथा परमेश्वर के पास है, परमेश्वर का सब कुछ है, तथा यह कहना कि वे और कोई नहीं बल्कि परमेश्वर है, इसे पूरी तरह से समझना कुछ लोगों के लिए कठिन है। वचन असंख्य चीज़ों में उस व्यक्ति के साथ मेल खाते प्रतीत नहीं होते हैं। लोग जो देखते हैं और जो वे विश्वास करते हैं वह परमेश्वर का सार नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, लोगों को जो दिखाई देता है वह है केवल वे वचन और वास्तविक कार्य। लोग सिर्फ सोचते हैं कि परमेश्वर ने कार्य के एक भाग को ही किया, यह कि देहधारी परमेश्वर सिर्फ इतना सा ही काम कर सकते हैं। एक भी व्यक्ति यह विश्वास नहीं करता है कि यद्यपि देहधारण ने फिलहाल इतना सा ही काम प्रकट किया, फिर भी उनके पास ईश्वरत्व का सम्पूर्ण सार है। कोई भी इस तरीके से नहीं सोचता है। अब कुछ लोग कहते हैं: “देहधारी परमेश्वर को जानना बहुत कठिन है। यदि यह परमेश्वर की आत्मा होती जो सीधे तौर पर काम कर रही हो तो हम आसानी से समझ जाते। हम आत्मा के कार्य में सीधे तौर पर परमेश्वर के अधिकार और परमेश्वर की सामर्थ को देखने के योग्य होते। तब परमेश्वर को जानना आसान होता।” क्या यह कथन मानने योग्य है? अब मैं आप लोगों से इसी तरह का एक प्रश्न पूछता हूँ: “क्या देहधारी परमेश्वर को जानना आसान है या आत्मा को जानना आसान है? यदि देहधारी परमेश्वर ने उतना ही कार्य किया जितना यहोवा ने किया था, तो किसे समझना ज़्यादा आसान होगा?” आप कह सकते हैं कि उन दोनों को समझना कठिन है। यदि वहाँ कोई मार्ग होता, तो उन दोनों को समझना आसान होता। यदि वहाँ कोई आध्यात्मिक समझ नहीं होती, तो दोनों को समझना कठिन होता। क्या लोगों ने भी शुरुआत में देहधारण के कार्य और वचनों को नहीं समझा था। क्या उन सभी ने उसे ग़लत समझा था? लोग नहीं जानते थे कि परमेश्वर क्या कर रहे हैं; उसमें से कुछ भी लोगों की अवधारणाओं से मेल नहीं खा रहा था! क्या सभी लोग अवधारणाओं के साथ सामने आए थे? यह प्रदर्शित करता है कि लोग आसानी से देहधारी परमेश्वर को नहीं जानते थे। यह आत्मा को जानने के बराबर ही कठिन है, क्योंकि देहधारण का कार्य आत्मा का प्रकट होना है, केवल यह कि लोग देहधारण को देख और छू पाएँ। फिर भी, देहधारण का आंतरिक अर्थ क्या है, और उनके कार्य का उद्देश्य क्या है, यह क्या संकेत करता है, यह उनके स्वभाव के किस पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, और वे इस तरह से क्यों प्रगट होते हैं, कदाचित् लोग नहीं समझते हैं, सही है? यह कि आप नहीं समझते हैं साबित करता है कि आप नहीं जानते हैं। आत्मा काम करने, तथा वचनों के समुच्चय को कहने के लिए आयी, और फिर चली गयी। लोग बस उनकी आज्ञा पालन करते और उन्हें पूरा करते हैं, किन्तु क्या लोग जानते हैं कि यह वास्तव में क्या है? क्या लोग इन वचनों से यहोवा के स्वभाव को जान सकते हैं? कुछ लोग कहते हैं कि आत्मा को जानना आसान है, यह कि आत्मा परमेश्वर की सच्ची छवि को लिए हुए कार्य करने के लिए आयी। उन्हें समझना कठिन क्यों है? वास्तव में आप उनकी बाहरी छवि को जानते हैं, परन्तु क्या आप परमेश्वर के सार को जान सकते हैं? अब देहधारी परमेश्वर एक साधारण एवं सामान्य व्यक्ति है जिनके सम्पर्क में रहना आपको आसान महसूस होता है। हालाँकि, जब उनका सार एवं उनका स्वभाव प्रकट होता है, तो क्या लोग उन चीज़ों को आसानी से जान लेते हैं? क्या लोग आसानी से उन वचनों को स्वीकार करते हैं जिन्हें उन्होंने कहा था जो उनकी अवधारणाओं के अनुरूप नहीं हैं? अब सभी लोग कहते हैं कि देहधारी परमेश्वर को जानना कठिन है। यदि बाद में परमेश्वर रूपान्तरित हो जाता, तो परमेश्वर को जानना बहुत आसान होता। जो लोग ऐसा कहते हैं वे सभी ज़िम्मेदारियों को देहधारी परमेश्वर पर डाल देते हैं। क्या यह वास्तव में इसी तरह से है? यहाँ तक कि यदि आत्मा आ जाए तब भी उसी प्रकार आप उसे नहीं समझेंगे। आत्मा लोगों से बातचीत समाप्त करने के तुरन्त बाद चली गयी, और उन्हें बहुत कुछ नहीं समझाया, और एक सामान्य तरीके से उनके साथ संबद्ध नहीं हुई एवं उनके साथ नहीं रही। लोगों को एक अधिक व्यावहारिक तरीके से ईश्वर को जानने का अवसर नहीं मिला। लोगों के लिए देहधारी परमेश्वर के कार्य का लाभ अति विशाल है। वे सच्चाईयाँ जो वे लोगों के लिए लेकर आते हैं अधिक व्यावहारिक हैं। यह स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर को देखने में लोगों की सहायता करता है। हालाँकि, देहधारण के सार और आत्मा के सार को जानना समान रूप से कठिन है। उसी प्रकार इन्हें जानना कठिन है।
परमेश्वर को जानने का क्या अभिप्राय है? इसका अभिप्राय है कि मनुष्य परमेश्वर की भावनाओं के विस्तार को जानता है, परमेश्वर को जानना यही है। आप कहते हैं कि आपने परमेश्वर को देखा है, फिर भी आप परमेश्वर की भावनाओं के विस्तार को नहीं जानते हैं, उनके स्वभाव को नहीं जानते हैं, और उनकी धार्मिकता को भी नहीं जानते हैं। आपको उनकी दयालुता की कोई समझ नहीं है, और आप नहीं जानते हैं कि वे किससे घृणा करते हैं। इसे परमेश्वर को जानना नहीं कहा जा सकता है। इसलिए, कुछ लोग परमेश्वर का अनुसरण करने में सक्षम हैं, किन्तु वे आवश्यक रूप से परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं। यही अंतर है। यदि आप उन्हें जानते हैं, उन्हें समझते हैं, यदि जो उनकी इच्छा है उसमें से आप कुछ को समझने एवं ग्रहण करने में सक्षम हैं, और आप उनके ह्रदय को जानते हैं, तो आप सचमुच उन पर विश्वास कर सकते हैं, सचमुच में उनके प्रति समर्पित हो सकते हैं, सचमुच में उनसे प्रेम कर सकते हैं, और सचमुच में उनकी आराधना कर सकते हैं। यदि आप इन चीज़ों को नहीं समझते हैं, तो आप सिर्फ एक व्यक्ति का अनुसरण कर रहे हैं जो केवल भीड़ के साथ में दौड़ता और उसका अनुसरण करता है। इसे सच्चा समर्पण नहीं कहा जा सकता है, और इसे सच्ची आराधना नहीं कहा जा सकता है। सच्ची आराधना को कैसे उत्पन्न किया जा सकता है? ऐसा कोई भी नहीं है जो परमेश्वर को देखता और सचमुच में परमेश्वर को जानता हो जो उनकी आराधना नहीं करता हो, और जो उनका आदर न करता हो। जैसे ही वे परमेश्वर को देखते हैं वे भयभीत हो जाते हैं। वर्तमान में लोग देहधारी परमेश्वर के कार्य के युग में हैं। लोगों के पास देहधारी परमेश्वर के स्वभाव और जो उनके पास है तथा जो वे हैं इस बात की जितनी अधिक समझ होती है, उतना ही अधिक लोग उन्हें संजोकर रखते हैं, और उतना ही अधिक वे परमेश्वर का आदर करते हैं। प्राय:, कम समझ का अर्थ है अधिक दुस्साहस, इतना कि परमेश्वर से मनुष्य के समान बर्ताव किया जाता है। यदि लोग वास्तव में परमेश्वर को जानें और वास्तव में उसे देखें तो वेभयभीत हों जाएगे और काँपने लगेंगे। यूहन्ना ने ऐसा क्यों कहा, “वह जो मेरे बाद आ रहा है, जिसकी जूतियाँ उठाने के योग्य भी मैं नहीं हूँ?” यद्यपि उसके हृदय की उसकी समझ बहुत गहरी नहीं थी, फिर भी वह जानता था कि परमेश्वर अति विस्मयजनक है। कितने लोग अब परमेश्वर का आदर करने में सक्षम हैं? परमेश्वर के स्वभाव को जाने बिना, कोई व्यक्ति किस प्रकार उनका आदर कर सकता है? यदि लोग मसीह के सार को नहीं जानते हैं, और परमेश्वर के स्वभाव को नहीं समझते हैं, तो वे सचमुच में परमेश्वर की आराधना करने के योग्य तो बिलकुल भी नहीं हैं। यदि लोग सिर्फ मसीह के साधारण और सामान्य बाहरी रूप को देखते हैं और उसके सार को नहीं जानते हैं, तो मसीह के साथ एक सामान्य मनुष्य के रूप में बर्ताव करना लोगों के लिए आसान है। वे उनके प्रति एक अपमानजनक प्रवृत्ति अपना सकते हैं, उन्हें धोखा दे सकते हैं, उनका प्रतिरोध कर सकते हैं, उसकी अवज्ञा कर सकते हैं, उस पर दोष लगा सकते हैं, और दुराग्रही हो सकते हैं। वे उसके वचन को महत्वहीन मान सकते हैं, उसकी देह के साथ जैसा चाहे वैसा बर्ताव कर सकते हैं, अवधारणाओं को आश्रय दे सकते हैं, और ईशनिंदा कर सकते हैं। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए व्यक्ति को मसीह के सार, एवं मसीह की ईश्वरीयता को अवश्य जानना चाहिए। परमेश्वर को जानने का यही मुख्य पहलू है; यह वह है जिसमें व्यावहारिक परमेश्वर पर विश्वास करने वाले सभी लोगों को अवश्य प्रवेश करना और उसे प्राप्त करना चाहिए।
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