चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

菜单

घर

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" (अंश 4)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, ""पर मैं तुम से कहता हूँ कि यहाँ वह है जो मन्दिर से भी बड़ा है। यदि तुम इसका अर्थ जानते, 'मैं दया से प्रसन्न होता हूँ, बलिदान से नहीं,' तो तुम निर्दोष को दोषी न ठहराते। मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है" (मत्ती 12: 6-8)।
यहाँ "मन्दिर" किस को दर्शाता है? सरल रीति से कहें, "मन्दिर" एक शोभायमान, ऊँची इमारत को दर्शाता है, और व्यवस्था के युग में, मन्दिर वह जगह थी जहाँ याजक परमेश्वर की आराधना करते थे। जब प्रभु यीशु ने कहा, "कि यहाँ वह है जो मन्दिर से भी बड़ा है," यहाँ "वह" किस की ओर संकेत करता है? स्पष्ट रूप से "वह" प्रभु यीशु है जो देह में है, क्योंकि केवल वह ही मन्दिर से बड़ा था। उन शब्दों ने लोगों से क्या कहा? उन्हों ने लोगों से मन्दिर से बाहर आने से कहा—परमेश्वर पहले ही बाहर आ चुका है और आगे से उस में काम नहीं कर रहा है, इस प्रकार लोगों को मन्दिर के बाहर परमेश्वर के कदमों के निशानों को ढूँढ़ना चाहिए और उसके नए कार्य में उसके कदमों का अनुसरण करना चाहिए। प्रभु यीशु मसीह के इस कथन की पृष्ठभूमि यह थी कि व्यवस्था के अधीन, लोग मन्दिर को देखने के लिए आए हैं, मानो वह कुछ ऐसा है जो स्वयं परमेश्वर से भी बड़ा है। अर्थात्, लोग परमेश्वर की आराधना करने के बजाए मन्दिर की आराधना कर रहे थे, इसलिए प्रभु यीशु मसीह ने उन्हें सावधान किया कि वे मूरतों की आराधना ना करें, परन्तु परमेश्वर की आराधना करें क्योंकि वह सर्वोच्च है। इस प्रकार उसने कहाः "मैं दया से प्रसन्न होता हूँ, बलिदान से नहीं।" यह प्रकट है कि प्रभु यीशु की नज़रों में, व्यवस्था के अधीन बहुत से लोग अब यहोवा की आराधना नही करते थे, और बस यों ही बलिदान की प्रक्रिया से होकर जाते थे, और प्रभु यीशु ने यह बताया कि यह "मूर्ति पूजा" की एक प्रक्रिया है। इन मूर्ति पूजकों ने मन्दिर को परमेश्वर से भी महान और बड़ी चीज़ के रूप में देखा था। उनके हृदय में केवल मन्दिर था, ना कि परमेश्वर, और यदि वे मन्दिर को खो देंगे, तो वे अपने निवास स्थान को भी खो देंगे। मन्दिर के बिना उनके पास आराधना के लिए कोई जगह नहीं थी और वे बलिदानों को नहीं चढ़ा सकते थे। उनका तथाकथित निवास स्थान वहाँ है जहाँ से वे यहोवा परमेश्वर की आराधना के झण्डे तले संचालन करते थे, जिस ने उन्हें मन्दिर के टिके रहने और अपने क्रियाकलापों को करने की अनुमति दी थी। उनके तथाकथित बलिदानों का चढ़ाया जाना मन्दिर के प्रति उनकी सेवा के आयोजन के बहाने उनके स्वयं के शर्मनाक कार्यों को पूरा करने के लिए था। यही वह कारण है कि उस समय लोग मन्दिर को परमेश्वर से भी बढ़कर देखते थे। क्योंकि वे मन्दिर को एक छत्रछाया के रूप में, और बलिदानों को लोगों को धोखा देने और परमेश्वर को धोखो देने के लिए एक बहाने के रूप में प्रयोग करते थे, प्रभु यीशु ने लोगों को चेतावनी देने के लिए ऐसा कहा था। यदि तुम लोग इन वचनों को वर्तमान में लागू करते हो, तब भी वे उतने ही प्रमाणिक और उतने ही उचित हैं। यद्यपि आज लोगों ने व्यवस्था के युग के लोगों के अनुभव से अलग परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है, फिर भी उनके स्वभाव का सार एक समान है। आज के कार्य के सन्दर्भ में, लोग फिर भी उसी प्रकार के कार्य करेंगे "मन्दिर परमेश्वर से बड़ा है।" उदाहरण के लिए, लोग अपने कर्तव्यों के निर्वहन को अपनी नौकरी के रूप मे देखते हैं; वे परमेश्वर के लिए गवाही देने और मानवाधिकार के बचाव में एक राजनैतिक आन्दोलन के रूप में लाल अजगर से युद्ध करने को जनतंत्र और स्वतन्त्रता के रूप में देखते हैं; उन्होंने अपने कर्तव्यों को अपनी कुशलताओं का उपयोग करके अपनी जीवंवृत्यों के निमार्ण की ओर मोड़ दिया है, परन्तु वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने को और कुछ नहीं बल्कि धार्मिक सिद्धांत के पालन के एक टुकड़े के रूप में लेते हैं; और इत्यादि। क्या मनुष्यों की ओर से ये प्रकटीकरण मुख्य रूप से इस के समान नहीं हैं "मन्दिर परमेश्वर से बढ़कर है?" इस बात को छोड़कर कि दो हज़ार साल पहले, लोग भौतिक मन्दिर में अपने व्यक्तिगत व्यवसाय को कर रहे थे, परन्तु आज, लोग अस्पृश्य मन्दिरों में अपने व्यक्तिगत व्यवसाय कर रहे हैं। वे लोग जो नियमों को सहेज कर रखते हैं इन नियमों को परमेश्वर से बढ़कर देखते हैं, वे लोग जो ऊँचे दर्जे से प्रेम करते हैं वे ऊँचे दर्जे को परमेश्वर से बढ़कर मानते हैं, वे लोग जो अपने जीवनवृत्ति से प्रेम करते हैं वे जीवनवृत्ति को परमेश्वर से बढ़कर मानते हैं, और इत्यादि—उन के सभी प्रकटीकरण मुझे यह कहने में अगुवाई देते हैं: "लोग अपने शब्दों से सब से बढ़कर परमेश्वर की स्तुति करते हैं, किन्तु उन की नज़रों में हर चीज़ परमेश्वर से बढ़कर है।" यह इसलिए है क्योंकि जैसे ही लोगों को परमेश्वर का अनुसरण करने के उनके मार्ग के साथ-साथ अपने वरदानों, या अपने व्यवसाय या अपनी स्वयं की जीवनवृत्ति के प्रदर्शन का अवसर मिलता है, तो वे अपने आप को परमेश्वर से दूर कर देते हैं और अपने आप को उस जीवनवृत्तियों में झोंक देते हैं जिन से वे प्रेम करते हैं। जो कुछ परमेश्वर ने उन्हें सौंपा है, और उसकी इच्छा के विषय में यह कहा जा सकता है कि,उन चीज़ों को बहुत पहले ही फेंक दिया गया है। इस दृश्यलेख में, इन लोगों के विषय में और जो मन्दिर में दो हज़ार साल पहले अपने स्वयं का व्यवसाय कर रहे थे क्या अन्तर है?"
— "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" से उद्धृत
आज का बाइबल पाठ आपको बताएगा कि बुद्धिमान कुवाँरियाँ कैसे मेमने के भोज में शामिल होती हैं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Popular Posts