उत्तर:आप लोग कहते हैं कि प्रभु का देहधारी हो कर लौटना असंभव है, सही है न? बाइबल में यह स्पष्ट तौर पर लिखा है कि प्रभु देहधारी हो कर लौटेंगे। क्या आप लोग यह कहना चाहते हैं कि आप लोग यह नहीं ढूंढ़ पाये? प्रभु के लौटने को ले कर बाइबल में अनेक भविष्यवाणियाँ लिखी हुई हैं, जिनमें से प्रभु के देहधारी हो कर लौटने की भविष्यवाणियाँ विशेष रूप से स्पष्ट हैं।उदाहरण के लिए, जब प्रभु यीशु ने कहा, "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:24-25)। प्रभु यीशु ने बार-बार यह भविष्यवाणी की कि मनुष्य के पुत्र के रूप में, वे दोबारा आयेंगे। मनुष्य के पुत्र का संदर्भ देहधारी परमेश्वर से है, जैसे कि देहधारी प्रभु यीशु, जो बाहर से एक साधारण, सामान्य व्यक्ति जैसे दिखाई देते हैं, जो एक सामान्य मनुष्य की तरह खाते-पीते हैं, सोते हैं, और चलते हैं। लेकिन प्रभु यीशु का आध्यात्मिक शरीर उनके जी उठने के बाद भिन्न था, जो दीवारों को भेद सकता था, प्रकट हो सकता था और गायब हो सकता था। वह विशेष रूप से अलौकिक था। इसलिए उनको मनुष्य का पुत्र नहीं कहा जा सकता था। मनुष्य के पुत्र के लौटने के बारे में भविष्यवाणी करते समय, प्रभु यीशु ने कहा था, "परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:25)। परंतु आप लोगों के कहे अनुसार, प्रभु एक आध्यात्मिक शरीर के रूप में बादल पर नीचे आयेंगे और सार्वजनिक तौर पर अत्यंत भव्य रूप में प्रकट होंगे, जब सभी लोगों को साष्टांग दंडवत हो कर उनकी आराधना करनी होगी, तो फिर कौन उनका विरोध कर उनकी निंदा करेगा? प्रभु यीशु ने कहा था, "परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:25)। इन वचनों को कैसे साकार किया जाएगा? सिर्फ तभी जब देहधारी परमेश्वर मनुष्य पुत्र के रूप में कार्य करने के लिए प्रकट होंगे, जब लोग यह नहीं पहचान पायेंगे कि वे देहधारी मसीह हैं। तभी वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार मसीह की निंदा करने और उनको ठुकराने का साहस करेंगे। क्या आप लोगों को ऐसा नहीं लगता? इसके अलावा, प्रभु यीशु ने यह भविष्यवाणी भी की, "उस दिन या उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र; परन्तु केवल पिता" (मत्ती 24:36)। "यदि तू जागृत न रहेगा तो मैं चोर के समान आ जाऊँगा, और तू कदापि न जान सकेगा कि मैं किस घड़ी तुझ पर आ पड़ूँगा" (प्रकाशितवाक्य 3:3)। अगर प्रभु एक आध्यात्मिक शरीर में एक बादल पर उतर कर आते, तो इस बारे में सबको पता चल जाता और सब उनको देख पाते। फिर भी प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वे कब लौटेंगे, यह है "कोई नहीं जानता," "और न पुत्र" और "चोर के समान" ये वचन कैसे साकार हो पायेंगे? अगर प्रभु यीशु आध्यात्मिक शरीर में प्रकट होने वाले होते, तो इस बारे में वे खुद कैसे अनजान होते? सिर्फ तभी जब परमेश्वर अंत के दिनों में मनुष्य पुत्र के रूप में देहधारी हों, एक साधारण, सामान्य व्यक्ति बनें, तभी ये वचन साकार होंगे कि पुत्र को पता नहीं चल पायेगा। उसी तरह जैसे प्रभु यीशु, अपना सेवाकार्य करने से पहले, स्वयं भी मसीह के रूप में अपनी पहचान के बारे में नहीं जानते थे जो पापमुक्ति का कार्य पूरा करने आये थे। इसलिए, प्रभु यीशु अक्सर परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते। जब प्रभु यीशु ने अपना सेवाकार्य करना शुरू किया, तभी वे स्वयं को पहचान पाये। क्या आप लोग मानते हैं कि इसको इस प्रकार से ग्रहण करना अधिक व्यावहारिक है? क्या आप लोग अब भी यह कहने का साहस करेंगे कि बाइबल में कोई भविष्यवाणी नहीं है कि प्रभु देह में लौटेंगे? यह थी प्रभु यीशु द्वारा की गयी भविष्यवाणी। क्या "मनुष्य का पुत्र" देहधारी परमेश्वर के लिए नहीं कहा गया है? कुछ लोगों को लगता है कि, अगर प्रभु को देह में लौटना था, तो उन्होंने यह बात सीधे क्यों नहीं कही? उनको "मनुष्य के पुत्र" का प्रकटन क्यों कहना पड़ा? यह भविष्यवाणियों की प्रकृति है। भविष्यवाणियाँ अप्रत्यक्ष होती हैं। अगर देह में प्रकटन कहा जाता, तो यह भविष्यवाणी की बजाय सपाट भाषा होती। जब ग्रहण करने में सक्षम लोग मनुष्य के पुत्र के अर्थ की गहराई में उतरेंगे, तो उनमें प्रबुद्धता आयेगी, और वे समझ पायेंगे कि "मनुष्य के पुत्र" का मतलब देहधारी है। इसे हम तभी समझ पाये जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आ कर देहधारण के रहस्य को उजागर किया। तब पता चला कि बाइबल की इस भविष्यवाणी "मनुष्य पुत्र के आगमन" का अर्थ देहधारण है। चूंकि अब हम निश्चित हैं कि प्रभु देह में लौटे हैं, हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि वे ही देह में परमेश्वर का प्रकटन हैं? इसके लिए, हमें परमेश्वर की वाणी को पहचानना आना चाहिए। यदि वे सच में देह में मनुष्य पुत्र का प्रकटन हैं, तो वे बहुत से सत्य व्यक्त करेंगे और स्पष्ट रूप से समझा पायेंगे कि परमेश्वर के प्रकटन और कार्य का उद्भव और उद्देश्य क्या है, साथ-ही-साथ वे सत्य व्यक्त कर के अपने कार्य का एक चरण भी पूरा करेंगे। तो, देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अंत के दिनों में मानवजाति के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए समस्त सत्य व्यक्त किये हैं और परमेश्वर के निवास से शुरू कर के न्याय का कार्य किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन पवित्र आत्मा द्वारा कलीसियाओं से बोले गए वचन हैं। परमेश्वर उनके प्रकटन के लिए लालायित सभी लोगों के दरवाज़े खटखटाने के लिए देह के जरिये बोलते हैं। जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को सत्य और परमेश्वर की वाणी के रूप में समझ पाते हैं वे बुद्धिमान कुंवारियां हैं, जिन्हें मेमने के विवाह भोज में शामिल होने के लिए परमेश्वर के सामने लाया गया है। वे प्रतिदिन पवित्र आत्मा के नवीनतम वचन को खाते और पीते हैं, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अनुभव करते हैं, और पूरी तरह से इसको सत्यापित करते हैं कि यह अंत के दिनों में परमेश्वर का प्रकटन और कार्य है। इसलिए वे विभिन्न संप्रदायों और वर्गों को यह गवाही देना शुरू करते हैं कि प्रभु यीशु देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आये हैं और लोगों को परमेश्वर की वाणी यानी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की अभिव्यक्ति सुनने आने देते हैं - वचन देह में प्रकट हुआ। यह प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी का साकार होना है: "आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। जो परमेश्वर की वाणी को नहीं पहचान पाते, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की निंदा कर उस पर अपनी राय देते हैं, वे मूर्ख कुंवारियां हैं, जिनकी पोल खोल कर खत्म कर दिया जाता है। ये लोग विपत्ति आने पर दांत भींच कर रोयेंगे।
प्रभु का अभिनंदन करने के मामले में, प्रभु का बादल पर अवतरण देखने के लिये सिर्फ आकाश पर आँखें गड़ाये रखने पर ध्यान देते हुए अगर हम परमेश्वर की वाणी को पूरी तरह अनसुना कर दें और पवित्र आत्मा द्वारा कलीसियाओं को दिए गए व्याख्यान की खोज न करें, बल्कि पादरियों और एल्डर्स की बातों को आँख मूँद कर सुनते रहें, और प्रभु के देह में लौटने की सभी गवाहियों को झूठा करार दे दें, तो क्या हम बाइबल के विरुद्ध नहीं जा रहे? बाइबल में क्या कहा गया है? प्रेरित यूहन्ना ने स्पष्ट रूप से कहा था: "क्योंकि बहुत से ऐसे भरमानेवाले जगत में निकल आए हैं, जो यह नहीं मानते कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया; भरमानेवाला और मसीह-विरोधी यही है" (2 यूहन्ना 1:7)। "और जो आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं; और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है, जिसकी चर्चा तुम सुन चुके हो कि वह आनेवाला है, और अब भी जगत में है" (1 यूहन्ना 4:3)। धार्मिक पादरियों और एल्डर्स द्वारा परमेश्वर के देहधारण से इनकार और उसकी निंदा क्या बाइबल के अनुरूप हैं? वे दावा करते हैं कि प्रभु के देहधारी हो कर लौटने की सारी गवाहियां झूठी हैं। क्या ये बातें कपटपूर्ण नहीं हैं? अगर हम प्रेरित यूहन्ना के वचनों के अनुसार चलें, तो क्या देहधारण को नकारने वाले धार्मिक पादरी और एल्डर्स मसीह-विरोधी नहीं हैं? यदि आप सब पादरियों और एल्डर्स द्वारा फैलायी जा रही कपटपूर्ण बकवास को सुनेंगे, तो क्या आप प्रभु का अभिनंदन कर पायेंगे? क्या आप सब परमेश्वर का प्रकटन देख पायेंगे? क्या आप सब बुद्धिमान कुंवारियों की तरह परमेश्वर के सामने लाये जाएंगे?
परमेश्वर का प्रकटन और कार्य आखिर कैसे ढूंढ़ा जा सकेगा? सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर का सार धारण करेगा, और जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर की अभिव्यक्ति धारण करेगा। चूँकि परमेश्वर देहधारी हुआ, वह उस कार्य को प्रकट करेगा जो उसे अवश्य करना चाहिए, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया, तो वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है, और मनुष्यों के लिए सत्य को लाने के समर्थ होगा, मनुष्यों को जीवन प्रदान करने, और मनुष्य को मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस शरीर में परमेश्वर का सार नहीं है, निश्चित रूप से वह देहधारी परमेश्वर नहीं है; इस बारे में कोई संदेह नहीं है। यह पता लगाने के लिए कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, मनुष्य को इसका निर्धारण उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव से और उसके द्वारा बोले वचनों से अवश्य करना चाहिए। कहने का अभिप्राय है, कि वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है या नहीं, और यह सही मार्ग है या नहीं, इसे परमेश्वर के सार से तय करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने[क] में कि यह देहधआरी परमेश्वर का शरीर है या नहीं, बाहरी रूप-रंग के बजाय, उसके सार (उसका कार्य, उसके वचन, उसका स्वभाव और बहुत सी अन्य बातें) पर ध्यान देना ही कुंजी है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी रूप-रंग को ही देखता है, उसके तत्व की अनदेखी करता है, तो यह मनुष्य की अज्ञानता और उसके अनाड़ीपन को दर्शाता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" के लिए प्रस्तावना)।
"चूँकि हम परमेश्वर के पदचिन्हों को खोज रहे हैं, हमें अवश्य ही परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के वचन, परमेश्वर के कथन की खोज करनी चाहिए; क्योंकि जहां परमेश्वर के नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहां परमेश्वर के पदचिन्ह हैं, वहाँ परमेश्वर के कार्य हैं। जहां परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर का प्रकट होना है, और जहां परमेश्वर का प्रकट होना है,वहाँ मार्ग, सत्य और जीवन का अस्तित्व है। परमेश्वर के पदचिन्हों को ढूँढते हुए, तुम लोगों ने उन शब्दों की अवहेलना कर दी कि 'परमेश्वर ही मार्ग, सत्य और जीवन है।' इसलिए कई लोग जब सत्य प्राप्त करते हैं, वे विश्वास नहीं करते कि वे परमेश्वर के पदचिन्हों को पा चुके हैं और बहुत कम परमेश्वर के प्रकट होने को स्वीकार करते हैं। कितनी गंभीर त्रुटि है यह! परमेश्वर के प्रकट होने का मनुष्य की धारणाओं के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है, परमेश्वर का मनुष्य के आदेश पर दिखाई देना उस से भी कम संभव है। जब परमेश्वर अपना कार्य करता है तो वह अपने स्वयं के चुनाव करता है और अपनी स्वयं की योजनाएं बनाता है; इसके अलावा, उसके पास अपने ही उद्देश्य हैं, और अपने ही तरीके हैं। जो कार्य वह करता है उसे उस पर मनुष्य के साथ चर्चा करने की या मनुष्य की सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और ना ही उसे अपने कार्य की हर एक व्यक्ति को सूचना देने की आवश्यकता है। यह परमेश्वर का स्वभाव है और, इससे बढ़कर, हर किसी को यह पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकट होने को देखने की चाहत रखते हो, यदि तुम लोग परमेश्वर के पदचिन्हों का अनुसरण करने के इच्छुक हो, तो फिर तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं से ऊँचा उठना आवश्यक है। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर यह कार्य करे या वह करे, उससे भी कम तुझे उसे अपनी स्वयं की सीमा में रखना चाहिए और उसे अपनी स्वयं की धारणाओं में सीमित करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को उससे यह पूछना चाहिए कि कैसे तुम लोग परमेश्वर के पदचिन्हों को खोज सकते हो, तुम लोगों को परमेश्वर के प्रकट होने को कैसे स्वीकार करना चाहिए, और कैसे तुम लोगो को परमेश्वर के नए कार्य के लिए समर्पण करना चाहिए; मनुष्य को यही कार्य करना चाहिए। चूँकिमनुष्य सत्य नहीं है, और न ही सत्य के अधीन है, इसलिए मनुष्य को खोज करनी, स्वीकार करना, और पालन करना चाहिए" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का प्रकटीकरण एक नया युग लाया है")।
"जोखिम भरा है मार्ग स्वर्ग के राज्य का" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश
फुटनोट:
क. मूल पाठ में "के लिए" पढा जाता है।
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