चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

रविवार, 5 मई 2019

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन से, मुझे अपनी जिंदगी की दिशा मिली

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया,जीवन की धारणा
नोवो फिलिपीन्स
मेरा नाम नोवो है, मैं फिलिपिनो हूं। जब मैं छोटा था तो मुझे अपनी मां से परमेश्वर पर विश्वास मिला। मैं अपने भाई-बहनों के साथ धर्मोपदेश सुनने कलीसिया जाया करता था। भले ही मैं सालों से परमेश्वर पर विश्वास करता आ रहा था, लेकिन मुझे लगा कि मैं एक नास्तिक की तरह था। अपने दिल से, मैं पूरे दिन यह सोचने लगा था कि कैसे ज्यादा धन कमाया जाए और बेहतर जिंदगी जी जाए।
इसके अलावा, मैं अक्सर अपने दोस्तों के साथ बाहर जाकर पीने लगा था। अतिरिक्त धन आ जाने पर, मैं बाहर जाकर जुआ भी खेलने लगा था। भले ही मैं यह जानता था कि मैं जो कर रहा था वह पाप था और मैं अक्सर ही परमेश्वर से प्रार्थना करके यह कहा करता था कि मैं अपनी ये बुरी आदतें बदल दूंगा, लेकिन मैंने कभी भी इस पर अमल नहीं किया। इस प्रकार से, मैं लगातार विकृत हो रहा था। मैं ध्यान से परमेश्वर की ठीक से पूजा नहीं करता था। हर हफ्ते, मैं एक बेपरवाह तरीके से कुछ आसान सी प्रार्थनाएं बस करता था। कभी—कभी, मैं बहुत हताशा महसूस करता था क्योंकि मैं जानता था कि जब परमेश्वर की वापसी होगी, वे हर किसी के कर्मों का फैसला करेंगे। फिर वे यह निर्णय करेंगे कि कौन स्वर्ग में जाएगा और कौन नरक में। मुझे महसूस होता था कि मैं विकृत हो गया था और परमेश्वर मुझे माफ नहीं करेगा। इसके बाद, मैंने शादी कर ली और बच्चे पैदा किए। मैं बस अपनी पत्नी और अपने बच्चों के बारे में सोचता था। अगर अपने धर्म की बात की जाए, तो मैंने इसे दिमाग के किसी कोने में दबा दिया था। अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए और अमीर बनने की अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए, मैंने अच्छा काम खोजने हेतु देश छोड़ने का फैसला लिया। परिणामस्वरूप, मैं ताइवान पहुंच गया। काम पाने के बाद भी, मैंने अपनी पिछली जीवनशैली को नहीं बदला था। अपने खाली समय में, मैं अपने साथियों के साथ पीने और गाने के लिए बाहर चले जाया करता था। मैं एक नास्तिक की जिंदगी जी रहा था।
2011 में, मैं ताइवान के एक कारखाने में वेल्डर के रूप में काम करता था। 2012 के एक दिन, ताइवान के एक सहकर्मी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं कैथॉलिक हूं। मैं उत्तर दिया कि हां मैं था। इसके बाद, उसने मुझे अपने कलीसिया में धार्मिक संगीत सभा के लिए आमंत्रित किया। फिर, रविवार की एक सुबह, प्रभात के समय, वह हमें लेने के लिए कारखाने आई और हमें अपने दोस्त के घर ले गई। वहां, मेरी मुलाकात भाई जोसेफ से हुई। उन्होंने मुझसे पूछा, "भाई, क्या आपको प्रभु यीशु की वापसी की उम्मीद है?" मैंने कहा कि मुझे थी। जोसेफ ने फिर से मुझसे पूछा, "क्या आप जानते हैं कि जब प्रभु यीशु वापस आएंगे तो वे क्या काम करेंगे।" मैंने उत्तर दिया, "वे एक सफेद सिंहासन पर बैठेंगे और मानवता का निर्णय करके लोगों को विभिन्न समूहों में विभाजित करेंगे। इसके बाद, हर इंसान के आचरण व कर्मों के आधार पर परमेश्वर निर्णय लेंगे कि वह स्वर्ग जाएगा या नर्क।" भाई जोसेफ ने फिर से मुझसे पूछा, "अगर हम आपसे कहें कि प्रभु यीशु वापस आ चुके हैं और निर्णय का कार्य कर रहे हैं, तो क्या आप विश्वास करेंगे।" जब मैंने उसे ऐसा कहते हुए सुना तो मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने सोचा: क्या वाकई प्रभु यीशु वापस आ गए हैं? यह कैसे संभव है? अगर वे वापस आ गए होते तो क्या उन्होंने हमारा निर्णय न कर लिया होगा? मैंने महान सफेद सिंहासन सामने कोई निर्णय नहीं देखा है! हालांकि, मैंने सीधे उससे यह प्रश्न नहीं किया क्योंकि मुझे लगता था कि परमेश्वर का निर्णय एक रहस्य है और परमेश्वर की बुद्धि इंसान के लिए अ​परिमेय है। हो सकता है कि मेरा दृष्टिकोण सही न हो। मुझे लगता कि सबसे पहले उनके दृष्टिकोण को सुनना सही होगा। परिणामस्वरूप, मैंने उत्तर दिया, "यह ऐसा कुछ है जिसे सुनिश्चित करने की हिम्मत मैंने अभी तक नहीं की। कृपया और बताएं।" इसके बाद, भाई जोसेफ और अन्य लोगों ने बाइबल के कई अवतरण दिखाए जिनमें उन निर्णयों के कार्य के बारे में बताया गया था जो वह वापस लौटने के बाद करगा। इस चयन से दो पद्य निम्न प्रकार से हैं: "जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा (यूहन्ना 12:48)।" "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए (1पतरस 4:17)।" जब मैंने इन पूर्वानुमानों को देखा, तो मैंने उन बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर दिया जो इन भाईयों और बहनों को कहनी थी। मुझे लग रहा था कि उन्होंने जो भी बातें मुझसे साझा की हैं वह सच थी क्योंकि मैं जानता था कि बाइबल में परमेश्वर के कार्य को दर्ज किया गया था।
इसके बाद, भाई जोसेफ ने हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के दो और अवतरण पढ़ाए: "न्याय का कार्य परमेश्वर का स्वयं का कार्य है, इसलिए स्वभाविक तौर पर इसे परमेश्वर के द्वारा ही अवश्य किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि सत्य के माध्यम से मनुष्य को जीतना न्याय है, इसलिए यह निर्विवाद है कि तब भी परमेश्वर मनुष्यों के मध्य अपना कार्य करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होता है। अर्थात्, अंत के दिनों में, मसीह पृथ्वी के चारों ओर मनुष्यों को सिखाने के लिए और सभी सत्यों को उन्हें ज्ञात करवाने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यही परमेश्वर के न्याय का कार्य है।" "अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को प्रकट करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्य शामिल हैं, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर केन्द्रित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह प्रगट करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का अवतार और परमेश्वर के विरूद्ध दुश्मन की शक्ति है। जब परमेश्वर न्याय का कार्य करता है, तो वह केवल कुछ वचनों से ही मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है, बल्कि लम्बे समय तक प्रकाशन, व्यवहार, और काँट-छाँट कार्यान्वित करता है। इस प्रकार का प्रकाशन, व्यवहार और काँट-छाँट साधारण वचनों से नहीं बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके का कार्य ही न्याय समझा जाता है, केवल इसी प्रकार के न्याय के द्वारा ही मनुष्य को समझाया जा सकता है, परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य परमेश्वर के असली चेहरे और उसके विद्रोहीशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ उत्पन्न करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और मनुष्य की समझ में न आ सकने वाले रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसके भ्रष्टाचार के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा निष्पादित होते हैं, क्योंकि इस तरह के कार्य का सार ही उन सभी के लिए वास्तव में परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया न्याय का कार्य है।" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" से)।
जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को पूरा पढ़ लिया, तो उन्होंने मुझसे फिर से बात करना शुरू कर दी। उन्होंने यह समझने में मेरी मदद की कि परमेश्वर का कार्य बिल्कुल असली था और यह आलौकिक नहीं था। अंत के दिनों में परमेश्वर के निर्णय का कार्य वैसा नहीं था जैसी मैंने कल्पना की थी — परमेश्वर आकाश में एक बड़ी सी मेज बनाएंगे और बड़े सफेद सिंहासन में बैठेंगे। हर कोई परमेश्वर के आगे खड़ा होगा और वह हमारे पापों को ब्यौरा देते हुए यह निर्धारित करेंगे कि हम अच्छे थे या बुरे। इसके बाद, वह यह निर्णय लेंगे कि हम स्वर्ग जाएंगे या नर्क जाएंगे। इसके स्थान पर, परमेश्वर ने अपने वचनों को व्यक्त करने और इंसान के भ्रष्टाचार व अवज्ञा को प्रकट करने के लिए असलियत में अवतार लिया था। वह इंसान के पापों का निर्णय करता हैं और अपनी खुद की भ्रष्ट प्रवृत्ति को पहचानने में इंसान की मदद करते हैं। इसके बाद, वह हमारे अंदर की पापी प्रवृत्ति को दूर कर देते हैं और सुबह पाप करने व शाम को स्वीकार करने के हमारी जिंदगी के दर्द को खत्म कर देते हैं। वह हमें सच्चे मायनों में उन्हें समझने में मदद करते हैं ताकि हम शुद्धिकरण व उद्धार पा सकें। इस तरह से, इंसान स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य हो जाएगा। वे जो अंत के दिन के निर्णय कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं और अपनी जिंदगी के स्वभाव को नहीं बदलते हैं, उन्हें अंत के दिन में अग्निकुंड में फेंक दिया जाएगा। इस प्रकार से अपने निर्णय का कार्य करके, परमेश्वर सचमुच इंसान की यथार्थ जरूरत को सुनिश्चित करते हैं। मैंने अपने बारे में सोचा भले ही मैंने कई सालों तक परमेश्वर पर विश्वास किया हो और अकसर परमेश्वर की प्रार्थना की हो और अपने पापों को स्वीकारा हो, लेकिन अब भी मैं एक पापभरी जिंदगी जी रहा हूं। मैंने जुआ खेला, शराब पी, झूठ बोले और धोखा दिया। मैंने लगातार पाप किए, उन्हें स्वीकार और फिर पाप किया। मेरी जिंदगी दुखों से भरी थी। स्पष्ट रूप से, हमें सचमुच जरूरत है कि परमेश्वर आकर निर्णय व उद्धार करने के अपने कार्य को पूरा करें। बाइबल कहती है: और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा।(इब्रानियों 12:14)। प्रभु पवित्र है। अगर इंसान अपने पापों से खुद ही प्रायश्चित नहीं करता है, तो वह परमेश्वर का चेहरा देखने योग्य नहीं है। मानिए कि यह वैसा मार्ग है जैसा हम इसके होने की कल्पना करते हैं। परमेश्वर अंत के दिनों में आएंगे और इंसान का निर्णय लेने के लिए हवा में सफेद सिंहासन स्थापित करेंगे। वह सीधे इंसान के अंत को निर्धारित करेंगे। अगर यही बात है, तो कैसे इंसान अपने पापों का प्रायश्चित करे? क्या इंसान को निन्दित या दंडित नहीं किया गया है? ऐसा लगता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही संभवतः लौट आया प्रभु यीशु है। मुझे गंभीरता के साथ इस खोजना व जांचना चाहिए। मुझे परमेश्वर का स्वागत करने के मौके को नहीं गंवाना चाहिए।
इसके बाद, उन्होंने मुझे वचन देह में प्रकट होता है पुस्तक दी। मैं बहुत खुश था। अपने घर वापस लौट आने के बाद, मैं पूरी रात परमेश्वर के वचनों को पढ़ता रहा। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ें: "तुम लोगों के मुँह में छल और गंदगी, विश्वासघात और अभिमान की बातें भरी पड़ी है। तुम लोगों ने मुझ से कभी भी ईमानदारी या पवित्रता की बातें नहीं कही, न ही मेरे वचनों का अनुभव करने और मेरी आज्ञा का पालन करने के बारे में वचन कहे हैं। यह कैसा विश्वास है? तुम लोगों के हृदयों में अभिलाषाएँ और धन भरा हुआ है; तुम्हारे दिमागों में संसारिक चीजें भरी हुई है। हर दिन, तुम लोग हिसाब लगाते हो कि मुझसे कैसे प्राप्त करें, आँकलन करते रहते हो कि तुम लोगों मुझ से कितना धन और कितनी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त कर ली हैं। हर दिन, तुम लोग और भी अधिक आशीषें अपने ऊपर बरसने का इंतज़ार करते हो ताकि तुम लोग और भी अधिक सुखदायक चीज़ों का आनन्द ले सकें। प्रत्येक क्षण तुम्हारे विचारों में जो रहता है वह मैं या वह मुझसे आने वाला सत्य नहीं है, बल्कि तुम लोगों के पति (पत्नी), पुत्र, पुत्रियाँ, या तुम क्या खाते या पहनते हो, और कैसे तुम लोग और भी अधिक बेहतर और बड़ी खुशी उठा सकते हो, आता है। भले ही तुम लोग अपने पेट को ऊपर तक भर लो, तब भी क्या तुम लोग एक लाश से जरा सा ही अधिक नहीं हो? भले ही तुम लोग अपने स्वरूप को भव्यता के साथ सजा लो, तब भी क्या तुम लोग एक चलती-फिरती लाश नहीं हो जिसमें कोई जीवन नहीं है? तुम लोग तब तक अपने पेट के लिए कठिन परिश्रम करते हो जब तक कि तुम लोगों के सिर के बाल सफेद नहीं हो जाते हैं, फिर भी कोई भी मेरे कार्य के लिए एक बाल तक बलिदान करने का इच्छुक नहीं होता है। तुम लोग अपने शरीर के लिए, और अपने पुत्रों और पुत्रियों के लिए प्रवास करते हो, परिश्रम करते हो, और अपने दिमाग को कष्ट देते हो, फिर भी कोई भी इस बात की चिंता या इसका विचार नहीं करता है कि मेरे हृदय और मन में क्या है। तुम लोग मुझ से क्या प्राप्त करने की आशा रखते हो?" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "कई बुलाए जाते हैं, किन्तु कुछ ही चुने जाते हैं" से)। मुझे लगा कि परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को एक तेज तलवार की तरह चीर दिया। इन वचनों ने मेरी जिंदगी की स्थिति को बिल्कुल यथार्थ प्रकट किया था। उन्होंने मेरे अंदरुनी दिल की असली स्थिति का वर्णन किया था। मैं जानता था कि केवल परमेश्वर ही इंसान के दिल को जांच सकते हैं और परमेश्वर ही इंसान के भ्रष्टाचार को प्रकट कर सकते हैं। मुझे लगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन वाकई परमेश्वर के वचन हैं। परमेश्वर के वचनों से, मैं समझ गया कि मेरी खुद की निष्ठा झूठ और लालच से भरी हुई थी। मैं परमेश्वर का नाम बस लेता था लेकिन मेरे दिल में परमेश्वर नहीं थे। मुझे बस अपना परिवार, अपने काम और अपनी खुद की अपेक्षाओं से ही मतलब था। हर दिन, मैं बस यही सोचता था कि कैसे मैं ज्यादा धन कमा सकता हूं और कैसे अपने परिवार को एक ज्यादा बेहतर जिंदगी जीने में मदद कर सकता हूं। भले ही मैंने कई बार परमेश्वर से यह कहा था कि मैं उन्हें प्यार करूंगा, लेकिन मैंने वह नहीं किया जो मैं करने के लिए कहा था। मैं लगातार परमेश्वर की अवमानना करता रहा। साथ ही, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा और उनसे कहता रहा कि वह मुझे और आशीर्वाद दें, क्योंकि मेरा​ विश्वास था कि परमेश्वर अनंतकाल तक प्यार के परमेश्वर थे और परमेश्वर ने हमेशा ही इंसान के लिए दया दिखाई थी, और भले ही मैंने पाप किया हो, परमेश्वर फिर भी मेरे पापों को माफ कर देंगा, मुझ पर दया दिखाएंगा और मुझे आशीर्वाद देंगे। हालांकि, जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पूरा पढ़ लिया, तो मुझे समझ आ गया था कि किसी को भी परमेश्वर के धर्मी स्वभाव का अपमान करने की अनुमति नहीं है। मेरे दिल ने परमेश्वर का आदर करना शुरू कर दिया था। न्याय व ताड़ना पर परमेश्वर के वचनों के कारण मुझे अपने अतीत पर अफसोस महसूस होने लगा था। मैं बहुत दुखी था और मैं अपने बिस्तर पर रो रहा था। पहली बार, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए फूट—फूट कर रो रहा था और पश्चाताप कर रहा था, "हे प्रमेश्वर, कृपा कर मेरे पापों के लिए मुझे माफ करें। मैंने हर बात में आपकी अवमानना की। मैंने आपको धोखा दिया है। मैं आपके साथ रहने के योग्य नहीं हूं। मुझे दंड मिलना चाहिए। परमेश्वर, मुझे पछतावा करने और बचने का मौका देने के लिए धन्यवाद। अब से, सत्य के मार्ग में चलने का पूरा प्रयास करूंगा। मैं अपने सच्च दिल से आपको प्यार करूंगा।…" प्रार्थना करने के बाद, मैंने खुद से कहा कि मुझे परमेश्वर का न्याय पाने की जरूरत है ताकि मैं अपनी जिंदगी बदल सकूं जो पाप करने और स्वीकारने के चक्र में फंसी हुई थी। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचनों को पढ़ना था और प्राय: ही उन पर विचार करना था ताकि मैं ज्यादा से ज्यादा सच को समझ पाऊं और अपनी देह को त्यागने की शक्ति एकत्रित कर पाऊं, सच को अभ्यास में लाऊं और परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करूं।
इसके बाद से, मैं अपने काम में अपने साथ वचन देह में प्रकट होता है की प्रति ले जाया करता था। काम में अपने खाली समय के दौरान, मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ता और उन पर विचार करता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से, मैंने जाना कि मेरा व्यवहार व विचार कितने भ्रष्ट व विद्रोही थे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "तुम्हें अपनी सच्ची दशा के अनुसार चरण दर चरण प्रार्थना करनी चाहिए, और यह पवित्र आत्मा के द्वारा होनी चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर की इच्छा और मनुष्य के लिए उसकी माँगों को पूरा करते हुए परमेश्वर के साथ वार्तालाप करनी चाहिए। जब तुम अपनी प्रार्थनाओं का अभ्यास करना आरंभ करते हो तो सबसे पहले अपना हृदय परमेश्वर को दो। परमेश्वर की इच्छा को समझने का प्रयास न करो; केवल परमेश्वर से अपने हृदय की बातों को कहने की कोशिश करो। जब तुम परमेश्वर के सामने आते हो तो इस प्रकार कहो: 'हे परमेश्वर! केवल आज ही मैंने यह महसूस किया है कि मैं तेरी आज्ञा का उल्लंघन किया करता था। मैं पूरी तरह से भ्रष्ट और घृणित हूँ। पहले मैं अपने समय को बर्बाद कर रहा था; आज से मैं तेरे लिए जीऊँगा। मैं अर्थपूर्ण जीवन जीऊँगा, और तेरी इच्छा को पूरी करूँगा। मैं जानता हूँ कि तेरा आत्मा सदैव मेरे भीतर कार्य करता है, और सदैव मुझे प्रज्ज्वलित और प्रकाशित करता है, ताकि मैं तेरे समक्ष प्रभावशाली और मजबूत गवाही दे सकूँ, जिससे मैं हमारे भीतर शैतान को तेरी महिमा, तेरी गवाही और तेरी विजय दिखाऊँ।' जब तुम इस तरह से प्रार्थना करते हो, तो तुम्हारा हृदय पूरी तरह से स्वतंत्र हो जाएगा, इस प्रकार से प्रार्थना कर लेने के बाद तुम्हारा हृदय परमेश्वर के निकट होगा …" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "प्रार्थना की क्रिया के विषय में" से)। परमेश्वर के वचनों में, मुझे एक मार्ग मिला जिससे मैं अपने भ्रष्ट आचरण को ठीक कर सकता था। मैं सच्चे नजरिए के साथ अपने दिल की गहराई से परमेश्वर से प्रार्थना करनी शुरू कर दी। इस तरह की प्रार्थना के साथ, मैं तुरंत ही यह महसूस कर सकता था कि परमेश्वर मेरा मार्गदर्शन कर रहे थे। मेरे अंदर, निष्ठा और ताकत थी। मैं जैसे जिया करता था अब मैंने वैसे जीना छोड़ दिया था और मेरे दिल में जो भ्रष्ट विचार व धारणाएं थी अब वे कर्म में परिवर्तित नहीं होती थी। अब मैं वह जिंदगी नहीं जीता था जिसमें मैं पहले पाप करता था और फिर उनका पछतावा किया करता था। बल्कि, मैं वाकई परमेश्वर की रोशनी में जीने लगा था। अब मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार खुद का मार्गदर्शन करने लगा था। मेरे कई दृष्टिकोण भी बदल गए थे। मैं पहले की तुलना में ज्यादा खुशी से जीने लगा था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरी जिंदगी के लिए मुझे एक उचित लक्ष्य दे दिया था। अब मैं अपने दिमाग को बहुत ज्यादा नहीं खपाता हूँ और विलासितापूर्ण जिंदगी जीने की कोशिश नहीं करता हूँ जैसा कि मैं पहले किया करता था। मुझे अन्य लोगों की तुलना में अब श्रेष्ठता नहीं चाहिए थी। बल्कि, अपने भ्रष्ट व्यवहार से मुक्त होने और शुद्धिकरण व उद्धार पाने के लिए सत्य के मार्ग पर चलने का प्रयास करता हूँ। मैं सभी मामलों में परमेश्वर के वचनों का पालन और परमेश्वर के प्रेम को अदा करने के लिए इंसान के रूप में अपने कर्तव्यों को पूरा करने का भी प्रयास करता हूँ।
जुलाई 2014 में, मैं फिलिपीन्स लौट आया। मैं यह जानकर काफी खुश था कि परमेश्वर ने फिलिपीन्स से कई भाईयों व बहनों को चुना था। आज, मैं कलीसिया की जिंदगी जीता हूं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया में अपने भाईयों व बहनों के साथ परमेश्वर के वचनों के बारे में बातचीत करता हूं। हम एक—दूसरे की मदद व सहयोग करते हैं और हम सभी सच के मार्ग पर चलने के, अपने जीवन स्वभाव में बदलाव लाने और उद्धार पाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। हम अपने देश में और अन्य देशों में लोगों के समक्ष अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हम उन्हें बताना चाहते हैं कि प्रभु यीशु वापस आ गए हैं और हम चाहते हैं कि वे भी अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार पाएं जैसे हमने पाया है। धन्यवाद सर्वशक्तिमान परमेश्वर! अब, मेरी जिंदगी हर रोज पूरी और खुशमय है। अब मैं उस विकृत व पतित जिंदगी से पूरी तरह से छुटकारा पा चुका हूं। स्वयं सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे अपने जीवन के लक्ष्य और दिशा को खोजने में मार्गदर्शन दिया है। मुझे लगता है कि इसी प्रकार से जीने से हम एक अर्थपूर्ण जीवन जी सकते हैं!

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