चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

4. क्या धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग सभी वास्तव में परमेश्वर द्वारा प्रतिष्ठित हैं? क्या धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों के प्रति स्वीकृति और आज्ञाकारिता परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और उसके अनुसरण को दर्शा सकती हैं?

 
परमेश्वर को जानना, पवित्र आत्मा, प्रभु यीशु, परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य

4. क्या धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग सभी वास्तव में परमेश्वर द्वारा प्रतिष्ठित हैं? क्या धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों के प्रति स्वीकृति और आज्ञाकारिता परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और उसके अनुसरण को दर्शा सकती हैं?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"इसलिये अब सुन, इस्राएलियों की चिल्‍लाहट मुझे सुनाई पड़ी है, और मिस्रियों का उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है। इसलिये आ, मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजता हूँ कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए" (निर्गमन 3:9-10)।
"भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, 'हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है?' ... उसने उससे कहा, 'मेरे मेमनों को चरा।' उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, 'हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?' ... उसने उससे कहा, 'मेरी भेड़ों की रखवाली कर' (युहन्ना 21:15-16)।
"मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा" (मत्‍ती 16:19)।
"मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है" (प्रेरितों 5:29)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले व्यक्ति के द्वारा किए जाने वाले कार्य का इस्तेमाल परमेश्वर, मसीह और पवित्र आत्मा के कार्य के साथ सहयोग करने के लिए करता है। यह मनुष्य परमेश्वर के द्वारा मनुष्य के बीच में खड़ा किया गया है, वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों का नेतृत्व करने के लिए है, और परमेश्वर ने उसे मानवीय सहयोग का कार्य करने के लिए भी खड़ा किया है। इस तरह का व्यक्ति, जो मानवीय सहयोग का कार्य करने में सक्षम है, मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाओं और जो कार्य पवित्र आत्मा के द्वारा किया जाना चाहिए, वह उसके माध्यम से पूरा किया जाता है। इसे दूसरे शब्दों में कहने का तरीका यह है: इस मनुष्य को इस्तेमाल करने में परमेश्वर का उद्देश्य यह है कि वे सब जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं परमेश्वर की इच्छा को और अच्छी तरह समझ सकें, और परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर सकें। क्योंकि लोग परमेश्वर के वचन को या परमेश्वर की इच्छा को स्वयं समझने में असमर्थ हैं, इसलिए परमेश्वर ने किसी एक को खड़ा किया है जो इस तरह का कार्य करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह व्यक्ति जो परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किया गया है, इसकी व्याख्या एक माध्यम के रूप में की जा सकती है जिसके द्वारा परमेश्वर लोगों का मार्गदर्शन करता है, जैसे "अनुवादक" जो परमेश्वर और लोगों के बीच में संप्रेषण बनाए रखता है। इस प्रकार, यह व्यक्ति उनकी तरह नहीं है जो परमेश्वर के घराने में काम करते हैं या जो उसके प्रेरित हैं। यह कहा जा सकता है कि वह उनकी तरह परमेश्वर की सेवा करता है, फिर भी परमेश्वर के द्वारा उसकी पृष्ठभूमि के उपयोग में और उसके कार्य के विषय में वह दूसरे कार्यकर्ताओं और प्रेरितों से बिलकुल अलग है। जो व्यक्ति उसके कार्य और उसकी पृष्ठभूमि के उपयोग के विषय में परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, वह उसी के द्वारा खड़ा किया जाता है, वह परमेश्वर के कार्य के लिए परमेश्वर के द्वारा तैयार किया जाता है, और वह परमेश्वर के कार्य में सहयोग करता है। कोई भी व्यक्ति उसके कार्य के लिए कभी खड़ा नहीं हो सकता, यह मनुष्य का सहयोग है जो दैवीय कार्य का अभिन्न अंग है। ... दूसरी ओर, जो परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है वह परमेश्वर के द्वारा तैयार किया जाता है, और जिसके भीतर कुछ योग्यता और मानवता होती है। उसेपहले से पवित्र आत्मा द्वारा तैयार औरसिद्ध कर दिया जाता हैऔर पूर्णरूप से पवित्र आत्मा द्वारा चलाया जाता है, और विशेषकर तब जब उसके कार्य की बारी आती है, उसे पवित्र आत्मा द्वारा निर्देश और आदेश दिए जाते हैं - परिणामस्वरुप परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई के मार्ग में कोई परिवर्तन नही आता, क्योंकि परमेश्वर निश्चित रूप से अपने कार्य का उत्तरदायित्व लेता है, और परमेश्वर हर समय अपना कार्य करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर की इच्छा की समरसता में सेवा कैसे करें" से
बहुत से धार्मिक अधिकारी हैं जो सोचते हैं कि सेमेनरी में अध्ययन करने के बाद प्रार्थनालय में उपदेश देना, बाइबल के अध्यायों को पढ़ कर लोगों को शिक्षा देना परमेश्वर की सेवा करना है….
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर द्वारा मनुष्य को इस्तेमाल करने के विषय में" से
वह कार्य जो मनुष्य के दिमाग में होता है उसे बहुत ही आसानी से मनुष्य के द्वारा प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, इस धार्मिक संसार में पास्टर एवं अगुवे अपने कार्य को करने के लिए अपने वरदानों एवं पदों पर भरोसा रखते हैं। ऐसे लोग जो लोग लम्बे समय से उनका अनुसरण करते हैं वे उनके वरदानों के द्वारा संक्रमित हो जाएंगे और जो वे हैं उनमें से कुछ के द्वारा उन्हें प्रभावित किया जाएगा। वे लोगों के वरदानों, योग्यताओं एवं ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, और वे कुछ अलौकिक कार्यों और अनेक गम्भीर अवास्तविक सिद्धान्तों पर ध्यान देते हैं (हाँ वास्तव में, इन गम्भीर सिद्धान्तों को हासिल नहीं किया जा सकता है)। वे लोगों के स्वभाव के परिवर्तनों पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं, किन्तु इसके बजाए वे लोगों के प्रचार एवं कार्य करने की योग्यताओं को प्रशिक्षित करने, और लोगों के ज्ञान एवं समृद्ध धार्मिक सिद्धान्तों को बेहतर बनाने के ऊपर ध्यान केन्द्रित करते हैं। वे इस पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं कि लोगों के स्वभाव में कितना परिवर्तन हुआ है या इस पर कि लोग सत्य को कितना समझते हैं। वे लोगों के मूल-तत्व के साथ अपने आपको नहीं जोड़ते हैं, और वे लोगों की सामान्य एवं असमान्य दशाओं को जानने की कोशिश तो बिलकुल भी नहीं करते हैं। वे लोगों की धारणाओं का विरोध नहीं करते हैं या उनकी धारणाओं को प्रगट नहीं करते हैं, और वे अपनी कमियों या भ्रष्टता में सुधार तो बिलकुल भी नहीं करते हैं। अधिकांश लोग जो उनका अनुसरण करते हैं वे अपने स्वाभाविक वरदानों के द्वारा सेवा करते हैं, और जो कुछ वे अभिव्यक्त करते हैं वह ज्ञान एवं अस्पष्ट धार्मिक सत्य है, जिनका वास्तविकता के साथ कोई नाता नहीं है और वे लोगों को जीवन प्रदान में पूरी तरह से असमर्थ हैं। वास्तव में, उनके कार्य का मूल-तत्व प्रतिभाओं का पोषण करना है, शून्य के साथ किसी व्यक्ति का पोषण करना है कि वह एक योग्य सेमेनरी स्नातक बन जाए जो बाद में काम एवं अगुवाई करने के लिए जाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
परमेश्वर का अनुसरण करने में प्रमुख महत्व इस बात का है कि हर चीज परमेश्वर के वास्तविक वचनों के अनुसार होनी चाहिए: चाहे तुम जीवन में प्रवेश कर रहे हो या परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति, सब कुछ परमेश्वर के वास्तविक वचनों के आस-पास ही केंद्रित होना चाहिए। यदि तुम्हारा समागम और अनुसरण परमेश्वर के वास्तविक शब्दों के आसपास केंद्रित नहीं होते हैं, तो तुम परमेश्वर के शब्दों के लिए एक अजनबी हो, और पवित्र आत्मा के कार्य से पूरी तरह से वंचित हो। परमेश्वर ऐसे लोग चाहता है जो उसके पदचिन्हों का अनुसरण करें। भले ही जो तुमने पहले समझा था वह कितना ही अद्भुत और शुद्ध क्यों न हो, परमेश्वर उसे नहीं चाहता है, और यदि तुम ऐसी चीजों को अलग नहीं कर सकते, तो वे भविष्य में तुम्हारे प्रवेश के लिए एक बड़ी बाधा होंगी। वे सभी धन्य हैं जो पवित्र आत्मा के वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करने में सक्षम हैं। पिछले युगों के लोग भी परमेश्वर के नक़्शेकदम पर चलते थे, फिर भी वे आज तक इसका अनुसरण नहीं कर सके; यह आखिरी दिनों के लोगों के लिए आशीर्वाद है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण कर सकते हैं, और जो परमेश्वर के नक्शेकदम पर चलने में सक्षम हैं, इस तरह कि चाहे परमेश्वर उन्हें जहाँ कहीं भी ले जाए वे उसका अनुसरण करते ही हैं-वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है, और चाहे वे कितना भी काम करें, या उनकी पीड़ा कितनी भी बड़ी हो, या वे कितनी ही भाग-दौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं है, और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज, जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों का पालन करते हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा में हैं; जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों से अनभिज्ञ हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हैं, और परमेश्वर की सराहना ऐसे लोगों के लिए नहीं है। वह सेवा जो पवित्र आत्मा की वास्तविक उक्तियों से विभाजित हो, वह देह की और धारणाओं की सेवा है, और यह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होने में असमर्थ है। यदि लोग धार्मिक अवधारणाओं में रहते हैं, तो वे ऐसा कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं जो परमेश्वर की इच्छा के लिए उपयुक्त हो, और भले ही वे परमेश्वर की सेवा करें, वे अपनी कल्पना और अवधारणाओं के घेरे में सेवा करते हैं, और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं, वे परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं, और जो परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं वे परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकते। परमेश्वर ऐसी सेवा चाहता है जो उसके दिल के मुताबिक हो; वह ऐसी सेवा नहीं चाहता है जो कि धारणाओं और देह की हो। यदि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के चरणों का पालन करने में असमर्थ हैं, तो वे अवधारणाओं के बीच रहते हैं, और ऐसे लोगों की सेवा दखल देती है और परेशान करती है। ऐसी सेवा परमेश्वर के विरूद्ध चलती है, और इस प्रकार जो लोग परमेश्वर के पदचिन्हों पर चलने में असमर्थ हैं, वे परमेश्वर की सेवा करने में असमर्थ हैं; जो लोग परमेश्वर के पदचिन्हों पर चलने में असमर्थ हैं, वे निश्चित रूप से परमेश्वर का विरोध करते हैं, और वे परमेश्वर के साथ सुसंगत होने में असमर्थ हैं। "पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण" करने का मतलब है आज परमेश्वर की इच्छा को समझना, परमेश्वर की वर्तमान अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम होना, आज के परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञापालन करने में सक्षम होना, और परमेश्वर के नवीनतम कथनों के अनुसार प्रवेश करना। केवल ऐसा व्यक्ति ही है जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है और पवित्र आत्मा की धारा में है। ऐसे लोग न केवल परमेश्वर की सराहना प्राप्त करने और परमेश्वर को देखने के लिए सक्षम हैं, बल्कि परमेश्वर के नवीनतम कार्य से परमेश्वर के स्वभाव को भी जान सकते हैं, और मनुष्य की अवधारणाओं और अवज्ञा को, मनुष्य के प्रकृति और सार को भी, परमेश्वर के नवीनतम कार्य से जान सकते हैं; इसके अलावा, वे अपनी सेवा के दौरान धीरे-धीरे अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही हैं जो परमेश्वर को प्राप्त करने में सक्षम हैं, और जो वास्तव में सही राह को हासिल कर चुके हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और परमेश्वर के चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" से
8. जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए। तुम्हें किसी व्यक्ति को ऊँचा नहीं ठहराना चाहिए या किसी व्यक्ति पर श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए; तुम्हें पहला स्थान परमेश्वर को, दूसरा स्थान उन लोगों को जिनकी तुम श्रद्धा करते हो, और तीसरा स्थान अपने आपको नहीं देना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को तुम्हारे हृदय में कोई स्थान नहीं लेना चाहिए, और तुम्हें लोगों को—विशेष रूप से उन्हें जिनका तुम सम्मान करते हो—परमेश्वर के समतुल्य, उसके बराबर नहीं मानना चाहिए। यह परमेश्वर के लिए असहनीय है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "दस प्रशासनिक आज्ञाएँ जिनका परमेश्वर के चयनित लोगों द्वारा राज्य के युग में पालन अवश्य किया जाना चाहिए" से
कुछ लोग सत्य में आनन्द नहीं मनाते हैं, न्याय की तो ही दूर है। बल्कि वे शक्ति और धन में आनन्द मनाते हैं; इस प्रकार के लोग मिथ्याभिमानी समझे जाते हैं। ये लोग अनन्य रूप से संसार के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनारियों से निकलने वाले पादरियों और शिक्षकों की खोज में लगे रहते हैं। सत्य के मार्ग को स्वीकार करने के बावजूद, वे उलझन में फंसे रहते हैं और अपने तुम को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हो। वे परमेश्वर के लिए बलिदान की बात करते हैं, परन्तु उनकी आखें महान पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं और मसीह को किनारे कर दिया जाता है। उनके हृदयों में प्रसिद्धि, वैभव और प्रतिष्ठा रहती है। उन्हें बिल्कुल विश्वास नहीं होता कि ऐसा छोटा-सा आदमी इतनोंपर विजय प्राप्त कर सकता है, यह कि वह इतना साधारण होकर भी लोगों को सिद्ध बनाने के योग्य है। वे बिल्कुल विश्वास नहीं करते कि ये धूल में पड़े मामूली लोग और घूरे पर रहने वाले ये साधारण मनुष्य परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हंसते। वे विश्वास करते हैं कि यदि परमेश्वर ऐसे सामान्य लोगों को सिद्ध बना सकता है, तो वे सभी महान लोग स्वयं में परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से भ्रष्ट हो गए हैं; दरअसल, अविश्वास से कोसों दूर वे बेहूदा जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और शक्ति का मूल्य जानते हैं; वे विशाल समूहों और सम्प्रदायों को ही ऊंचा सम्मान देते हैं। उनकी दृष्टि में उनका कोई सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह कर रहे हैं। वे सीधे तौर पर विश्वासघाती हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुंह मोड़ लिया है।
तुम मसीह की विनम्रता की तारीफ नहीं करते हो, बल्कि उन झूठे चरवाहों की करते हो जो विशेष हैसियत रखते हैं। तुम मसीह की सुन्दरता या ज्ञान से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि उन अधम लोगों से करते हो जो घृणित संसार से जुड़े हैं। तुम मसीह के दुख पर हंसते हो, जिसके पास अपना सिर रखने तक की जगह नहीं, परन्तु उन मुर्दों की तारीफ करते हो जो भेंट झपट लेते हैं और व्यभिचारी का जीवन जीते हैं। तुम मसीह के साथ-साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं, परन्तु उन धृष्ट मसीह विरोधियों की बाहों में प्रसन्नता से जाते हो, हालांकि वे तुम्हें सिर्फ देह, अक्षरज्ञान और अंकुश ही दे सकते हैं अभी भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा की ओर, सभी शैतानों के हृदय में उनकी हैसियत, उनके प्रभाव, उनके अधिकार की ओर लगा रहता है, फिर भी तुम विरोधी स्वभाव बनाए रखते हो और मसीह के कार्य को स्वीकार नहीं करते हो। इसलिए मैं कहता हूं कि तुम्हें मसीह को स्वीकार करने का विश्वास नहीं है। तुमने उसका अनुसरण आज तक सिर्फ़ इसलिए किया क्योंकि तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती की गई थी। तुम्हारे हृदय में हमेशा कई बुलंद छवियों का स्थान रहा है; तुम उनके प्रत्येक कार्य और शब्दों को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को; वे तुम लोगों के हृदय में हैं, हमेशा के लिए सर्वोच्च और योद्धा की तरह। परन्तु आज के समय में मसीह के लिए ऐसा नहीं है। वह हमेशा-हमेशा तुम्हारे हृदय में अयोग्य और आदर के योग्य नहीं रहा है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण रहा है, बहुत ही कम प्रभावशाली और उच्चता से बहुत दूर रहा है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" से
कुछ लोग हैं जिन्हें अकसर ऐसे लोगों के द्वारा धोखा दिया जाता है जो ऊपर से आत्मिक प्रतीत होते हैं, कुलीन प्रतीत होते हैं, ऐसे प्रतीत होते हैं कि उनके पास उत्कृष्ट स्वरूप है। जहाँ तक ऐसे लोगों की बात है जो पत्रियों एवं सिद्धान्तों के विषय में बोल सकते हैं, और जिनके सन्देश एवं कार्य सराहना के योग्य प्रतीत होते हैं, उनके प्रशंसकों ने उनके कार्यों के सार को, उनके कार्यों के पीछे के सिद्धान्तों को, और उनके लक्ष्य क्या हैं उनको कभी अच्छी तरह से नहीं देखा है। और उन्होंने कभी अच्छी तरह से नहीं देखा है कि ये लोग वास्तव में परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं या नहीं, और वे ऐसे लोग हैं या नहीं जो सचमुच में परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं। उन्होंने इन लोगों की मानवता के मूल-तत्व को कभी नहीं परखा है। इसके बजाय, परिचित होने के पहले कदम से ही, थोड़ा थोड़ा करके, वे इन लोगों की तारीफ करने, और इन लोगों का परम आदर करने लग जाते हैं, और अन्त में ये लोग उनके आदर्श बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ लोगों के मनों में, वे आदर्श जिनकी वे उपासना करते हैं, जिन पर वे विश्वास करते हैं वे अपने परिवारों एवं नौकरियों को छोड़ सकते हैं, और ऊपर से देखने पर वे कीमत चुका सकते हैं-ये आदर्श ऐसे लोग हैं जो वास्तव में परमेश्वर को संतुष्ट कर रहे हैं, और ऐसे लोग हैं जो वास्तव में एक अच्छा परिणाम एवं एक अच्छी मंज़िल को प्राप्त कर सकते हैं। उनके मनों में, ये आदर्श ऐसे लोग हैं जिनकी प्रशंसा परमेश्वर करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें" से
ऐसे लोगों के लिये, जो यह कहते हैं कि वे परमेश्वर को मानते हैं, यह बेहतर होगा कि वे अपनी आंखें खोलें और देखें कि दरअसल विश्वास किस में करते हैं: तुम दरअसल परमेश्वर में विश्वास करते हो या शैतान में? यदि तुम्हें यह पता चल जाये कि तुम परमेश्वर में नहीं अपनी प्रतिमाओं में विश्वास करते हो, तो फिर बेहतर यही होगा कि तुम न कहो कि तुम विश्वासी हो। यदि तुम्हें पता ही नहीं की तुम किस में विश्वास करते हो तो फिर से, बेहतर होगा कि तुम न कहो कि तुम विश्वासी हो। वैसा कहना ईश-निंदा होगी! तुमसे कोई ज़बर्दस्ती नहीं कह रहा कि तुम परमेश्वर में विश्वास करो। मत कहो कि तुम लोग मुझमें विश्वास करते हैं, क्योंकि मैं यह सब पहले बहुत सुन चुका हूं और कोई इच्छा नहीं है कि फिर से सुनूं, क्योंकि तुम जिसमें विश्वास करते हो वे तुम लोगों के मन की प्रतिमाएं और तुम सबके मध्य स्थानीय दुर्दांत सांप हैं। वे जो सच्चाई सुनकर अपनी गर्दन न में हिलाते हैं, जो मौत की बातें सुनकर अत्यधिक मुस्कराते हैं, वे शैतान की संतान हैं, और नष्ट कर दी जाने वाली वस्तुएं हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सत्य का पालन नहीं करते, उनके लिये चेतावनी" से

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