चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

30.बदली किये जाने पर भावना

पश्‍चाताप करना, आध्‍यात्मिक श्रद्धा करना, मसीह के न्याय के अनुभव की गवाहियाँ

30.बदली किये जाने पर भावना

यी रेन लेईव्यू शहर, शानडोंग प्रांत
कुछ समय पहले, जब कलीसिया ने एक नेता को बदल दिया, एक अवधारणा मेरे भीतर उठ खड़ी हुई, कलीसिया का कर्मियों के संशोधन का सिद्धांत मेरी समझ में नहीं आयाI मैं जो देख सकती थी, जो बहन बदली गई थी वह सच्चाई प्राप्त करने और सहभागिता करने में बहुत अच्छी थी, और भ्रष्टाचार के बारे में खुलकर अपने खुद के विचार रख सकती थीI इसलिए मैं कभी नहीं जान पाई कि जिसने सच्चाई के लिए इतना प्रयास किया उसे कैसे बदला जा सकता हैI क्या ऐसा इसलिए था कि उसने भ्रष्टाचार के बारे में अपने स्वयं के भाव प्रकट करते हुए बहुत कुछ कहा, और उसके नेता ने गलती से उसे वो माना जो सच्चाई के लिए प्रयास नहीं करते, और उसे बदल दिया? यदि यह वास्तव में हुआ था, तो जो सच्चाई को तलाश कर रहा था क्या उसके लिए प्रशिक्षण का अवसर बर्बाद नहीं हो जाएगा?
जैसे कि मैं इस बारे में बहुत उलझी हुई महसूस कर रही थी, मैंने कलीसिया द्वारा कार्य व्यवस्था में जारी किया गया यह अवतरण पढ़ा: “परमेश्वर का परिवार लोगों को उनके सार के अनुरूप प्रशिक्षित करने और उनका उपयोग करने का फैसला करता हैI अगर किसी का सार ऐसा है जो सच्चाई को तलाशता है, तब परमेश्वर का परिवार निश्चित रूप से उनके लिए हार नहीं मानेगा; अगर कोई सच्चाई की तलाश का इच्छुक है, तो वे निःसंदेह बदलाव का अनुभव करेंगेI यदि किसी का सार ऐसा है जो सच्चाई की तलाश नहीं करता है, अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह है और जो सही मार्ग पर नहीं चलता है, तो वे प्रशिक्षण के लायक नहीं हैं और न ही परमेश्वर इस तरह के व्यक्ति को सही कर सकते हैंI अगर किसी को परमेश्वर सिद्ध करने के लिए तैयार नहीं हैं, परमेश्वर का परिवार भी उन्हें प्रशिक्षित नहीं कर सकताI ... इसलिए लोगों से निपटने के लिए परमेश्वर के कार्य की आवश्यकताओं के अनुरूप और लोगों के सार के अनुसार संपर्क किया जाना चाहिएI परमेश्वर के साथ सामंजस्य स्थापित करने और वास्तव में परमेश्वर की सेवा करने का केवल यही एक प्रभावी तरीका हैI यदि परमेश्वर के साथ सामंजस्य स्थापित करके कार्य करने का यह प्रभावी तरीका प्रयुक्त नहीं है, तो परमेश्वर का कार्य बाधित होता है और परमेश्वर की इच्छा का पूरी तरह से उल्लंघन किया गया है” (“कुछ प्रश्नों की सहभागिता”)I इन वचनों को समझने के लिए मैंने अधिक से अधिक प्रयास किया, मुझे समझ में आया कि यह कार्य का एक सिद्धांत था कि कलीसिया को किसको पदोन्नत करना है या किसको बदलना हैI मैं समझ गई कि यह परमेश्वर के कार्य की आवश्यकताओं के अनुरूप था और लोगों के सार के अनुसार प्रस्तावित किया जा रहा था, और बस इच्छा से उन्हें बिना देखे उपयोग या बदला नहीं जा रहा थाI इसके अलावा कलीसिया लोगों को भ्रष्टाचार के बारे में व्यक्त किये गये कुछ विचारों के आधार पर नहीं बदलता है, बल्कि इसके बजाय उनके सार के आधार पर चीजों को निर्धारित करता हैI अगर किसी व्यक्ति का सार ऐसा है जो सच्चाई को तलाशता है, तो कलीसिया निश्चित रूप से उनके लिए हार नहीं मानेगा, जो सच्चाई की तलाश कर रहा है उसे अनदेखा या बर्बाद नहीं करेगाI इसलिए मैं प्रार्थना करने और मार्गदर्शन तलाशने के लिए परमेश्वर के समक्ष गई: “हे परमेश्वर! मुझे पता है कि मुझे शैतान द्वारा बहुत गहराई तक भ्रष्ट किया गया है, मुझे आपके कार्य की कोई समझ नहीं है, मेरे अन्दर कई अवधारणायें और कई दृष्टिकोण हैं जो कभी भी आपके अनुरूप नहीं हो सकतेI आज, आपके मार्गदर्शन के अंतर्गत, अब मुझे पता है कि चाहें लोगों को चुनना हो, प्रशिक्षित करना हो या उन्हें बदलना हो, कलीसिया आपके कार्य की आवश्यकताओं और लोगों के सार के अनुसार यह सब करती हैI लेकिन मैं अभी भी उस बहन का सार बिल्कुल नहीं समझ पा रही थी, जिसे बदला गया था, इसके परिणामस्वरूप मैंने कलीसिया की व्यवस्था के बारे में एक राय कायम कर लीI मैं आपको मेरा मार्गदर्शन और नेतृत्व करने के लिए कहती हूँ; मुझे अब मेरे कार्य को स्पष्टता से देखने की अनुमति दें, ताकि मेरे विचलन और गलतियों की वजह से मैं आपके कार्य को बाधित न कर सकूँI” प्रार्थना करने के बाद, मैंने कार्य की व्यवस्था के और, परमेश्वर के मार्गदर्शन में, ये वचन पढ़े: “परमेश्वर के वचनों को पढ़ने से, जो सच्चाई को तलाशते हैं वे परमेश्वर के वचनों के विरुद्ध अपनी खुद की भ्रष्ट स्थिति को माप सकते हैंI परमेश्वर के वचनों के बारे में उनकी सहभागिता सिर्फ परमेश्वर के वचनों के बारे में बात करने से पूरी नहीं होती, बल्कि खुद को समझने के बारे में बात करने से होती हैI कोई फर्क नहीं पड़ता भ्रष्टाचार कैसे व्यक्त किया जाता है, वे इसे खुले तौर पर प्राप्त कर सकते हैं ताकि भाई और बहनें कुछ वास्तविकता हासिल कर सकें, बल्कि उसी समय में अपने खुद के भ्रष्टाचार का समाधान कर सकेंI यह परमेश्वर के वचनों में लोगों के नेतृत्व का सबसे अच्छा तरीका हैI ... वे सभी जो केवल शाब्दिक अर्थ के बारे में बात करते हैं और जो वास्तविकता रहित हैं, परमेश्वर के परिवार में नेता होने लायक नहीं हैंI इस तरह के नेता और कर्मियों को बदल देना चाहिए”
इन वचनों से मुझे एहसास हो गया कि परमेश्वर के वचनों को पढ़ने से, जो सही मायने में सच्चाई को तलाशते हैं वे परमेश्वर के वचनों के विरुद्ध अपनी भ्रष्ट स्थिति माप सकते हैं, परमेश्वर के वचनों के सार की सही समझ प्राप्त कर सकते हैं, और अपने खुद के भ्रष्टाचार की प्रकृति और सार को वास्तव में समझ सकते हैंI उनकी सहभागिता लोगों के लिए असली मार्ग व्यक्त कर सकती है और लोगों को परमेश्वर के सम्मुख ला सकती हैI इसके अलावा, वे दूसरों की समस्याओं को हल करने के साथ-साथ, अपनी खुद की समस्याओं का समाधान भी कर सकते हैं, और जीवन में स्वयं की प्रविष्टि और अपने स्वभाव में परिवर्तन पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैंI
इस समय, मैंने उस बहन, जिसे बदल दिया गया था, के हठी आचरण और प्रदर्शन को विस्तार से याद करना शुरू कियाI हालाँकि अन्य लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए उसने अच्छी तरह और तर्कसंगत शब्दों का प्रयोग करते हुए वाकपटुता से और लम्बी बातें की, उसने जीवन में खुद की प्रविष्टि की कठिनाई को हल नहीं किया था और हमेशा स्व-धार्मिकता की स्थिति में रहती थी, बेहद गर्व महसूस करते हुए, विश्वास करते हुए कि उसने हर काम अच्छी तरह से किया थाI वास्तव में, उसका काम गडबड थाI उसने जो प्राप्त किया और सहभागिता की थी अगर वास्तव में उसमें सच्चाई के सार की समझ थी, वह खुद अपनी मदद करने के लिए अपनी समझ का उपयोग क्यों नहीं कर सकी? जब नेताओं ने उसकी गलत स्थिति की तरफ इशारा किया, उसके काम में मौजूद गंभीर समस्याओं का अवलोकन किया और इसे गंभीरता से लिया, और इस बारे में उसके साथ सहभागिता की, हालांकि बाहरी तौर पर उसने बार-बार अपने सिर को हिलाया, इसे नियमानुसार करने की अपनी स्वीकृति और इच्छा व्यक्त की, फिर भी वह गुप्त रूप से नियम के उल्लंघन के अपने पुराने तरीकों पर ही टिकी थीI ऐसी बातों को करते हुए कि कैसे वह फिर से काम का नुकसान करना चाहती थीI जब वह खुद से निपट रही थी, हालांकि उसने बाहरी तौर पर दिखाया कि उसे बहुत पछतावा था, उसके बाद उसने कुछ भी नहीं बदलाI हालाँकि उसने अपनी खुद की समझ के बारे में बात की और अपने खुद के भ्रष्टाचार का खुलासा किया, परिणाम यह था कि दूसरों को अपनी तरफ देखने, अपने बारे में ऊँचा सोचने, लोगों को अपने सम्मुख लाने वाला बना दियाI उसका शुद्ध रूप से चीजों का खुलासा करने का तरीका किसी को कोई भी लाभ नहीं पहुँचा सकता थाI यह केवल लोगों को नुकसान और उन्हें धोखा दे सकता थाI ... मैं उसके लगातार प्रदर्शन से देख सकती हूँ कि, हालाँकि उसने कई वर्षों तक कार्य किया था और खुद को बहुत शाब्दिक समझ से सुसज्जित किया था, उसके जीवन के स्वभाव में फिर भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ थाI इसके विपरीत, वह और अधिक अभिमानी और घमंडी बन गई थीI अब जाकर मुझे एहसास हो रहा है कि वह वो व्यक्ति नहीं थी जो सच्चाई को खोजता है, न ही कोई ऐसी थी जो शुद्ध सच्चाई प्राप्त करता है या सख्ती से सहभागिता करता हैI वह निश्चित रूप से प्रशिक्षण के लायक नहीं थी और, अगर उसे अपने पद पर कायम रहने दिया जाता, वह केवल कलीसिया के कार्य को रोके रख सकती थी और अपने भाई-बहनों को नुकसान पहुँचा सकती थीI उसकी जगह बदलना वास्तव में परमेश्वर की धार्मिकता थी और परमेश्वर का उसको बचाने का एक बेहतर तरीका थाI अन्यथा, वह अभी भी अपने खुद के बाहरी रूप से धोखा खा जाती और अपने तरीकों की गलतियों को नहीं देख पा रही होती, अंत में परमेश्वर के दंड की पात्र बनतीI
इस मामले के जरिए मैंने देखा कि मैंने सच्चाई को कितना कम जाना है, अपना ध्यान केवल कार्य व्यवस्था के शाब्दिक अर्थ और सच्चाई तक केन्द्रित रखा है, मेरे पास केवल सैद्धांतिक ज्ञान हैI मैं निश्चित रूप से कार्य व्यवस्थाओं में परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर रही थी, और न ही मुझे सच्चाई की कोई मौलिक समझ थीI इसलिए मैं न केवल लोगों के मूलसार को समझने में असमर्थ रही थी, बल्कि इसके विपरीत मैं घमंड से चिंतित थी कि किसी ने सच्चाई की माँग की और उसे गलत तरीके से बदल दिया गयाI
हे परमेश्वर! मैं आपके प्रकाश और प्रबुद्धता के लिए आपको धन्यवाद देती हूँ जिसने मुझे मेरी निराशा, दृष्टिहीनता को देखने लायक बनाया और बताया कि मैं कितनी दयनीय थी, मुझे एहसास करवाया कि बिना सच्चाई के, कोई भी मामले के सार को बिल्कुल भी नहीं समझ सकता, इसके बजाय वह केवल बाहरी दिखावे से धोखा खा जाता हैI केवल सच्चाई को समझकर ही, कोई मौलिक कार्य को अच्छे से कर सकता हैI हे परमेश्वर! आज से ही, मैं सच्चाई की तलाश में बहुत अधिक प्रयास करना चाहती हूँ, सभी चीजों में आपकी इच्छा तलाशना, आपकी जरूरत के अनुसार काम करना और जल्द ही आपके लिए उपयोग होना चाहती हूँI

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