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मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन: इकतीसवाँ कथन

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन, मसीह के कथन, वचन

इकतीसवाँ कथन

मेरे लिए लोगों के हृदय में कभी भी जगह नहीं रही है। जब मैं वास्तव में लोगों की खोज करता हूँ, तो वे अपनी आँखों को भींच कर बंद कर लेते हैं और मेरे कार्यकलापों की अनदेखी करते हैं, मानो कि मैं जो कुछ भी करता हूँ वह उन्हें खुश करने का एक प्रयास है, जिसके परिणामस्वरूप वे सदैव मेरे कार्यकलापों से घृणा करते हैं। ऐसा लगता है मानो कि मुझमें किसी आत्म-जागरूकता का अभाव हो: मैं सदैव मनुष्य के सामने अपना दिखावा करता हूँ और इस कारण उन्हें क्रोध आता है, जो "ईमानदार और धार्मिक" है। फिर भी इस तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करते हुए मैं अपना कार्य जारी रखता हूँ। इसलिए, मैं कहता हूँ कि मैंने मनुष्य के अनुभव के खट्टे-मीठे, कड़वे और तीखे स्वादों को चखा है, हवा और बारिश के बीच, मैंने परिवार के उत्पीड़न का अनुभव किया है, जीवन के उतार-चढ़ाव का अनुभव किया है और शरीर से अलग होने की पीड़ा का अनुभव किया है। हालाँकि, जब मैं पृथ्वी पर आया, तो मैंने उनके लिए जिन कठिनाइयों का सामना किया उसकी वजह से मेरा स्वागत करने के बजाय, लोगों ने "नम्रतापूर्वक" मेरे अच्छे इरादों को अस्वीकार कर दिया। मुझे इससे पीड़ा कैसे न होती? मैं कैसे व्यथित न होता? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस सब को इस तरह से समाप्त करने के लिए मैं देह बन गया? मनुष्य मुझे प्यार क्यों नहीं करता? लोगों ने मेरे प्रेम के बदले घृणा क्यों दी? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुझे इसी तरह से तो पीड़ित होना है? लोगों ने पृथ्वी पर मेरी कठिनाई की वजह से सहानुभूति के आँसू बहाए हैं, और मेरे दुर्भाग्य के अन्याय की निंदा की है। फिर भी मेरे हृदय को सचमुच में कौन जान पाया है? मेरी भावनाओं को कभी कौन समझ सकता है? किसी समय मनुष्य का मेरे प्रति गहरा स्नेह था, और किसी समय अपने सपनों में प्रायः मेरे लिए तरसता था—किन्तु पृथ्वी पर रहने वाले लोग स्वर्ग में मेरी इच्छा कैसे समझ सकते थे? यद्यपि किसी समय लोगों ने मेरी दुःख की भावनाओं को महसूस किया था, किन्तु एक पीड़ित साथी के रूप में किसे सदैव मेरे मनस्तापों के लिए सहानुभूति रही है? क्या ऐसा हो सकता है कि पृथ्वी पर लोगों की अंतरात्मा मेरे दुःखी हृदय को द्रवित कर सके और बदल सके? क्या पृथ्वी पर रहने वाले लोग मुझे अपने हृदयों की अकथनीय कठिनाई को बताने में असमर्थ हैं? आत्माएँ और पवित्रात्मा किसी समय एक दूसरे पर निर्भर हुआ करती थीं, किन्तु देह के अवरोधों के कारण, लोगों के मस्तिष्क ने "नियंत्रण खो दिय़ा"। मैंने एक बार लोगों को अपने सामने आने की याद दिलायी थी—किन्तु मेरी पुकारें लोगों से वह न करा सकी जो मैं चाहता था; वे आँसुओं से भरी आँखों से, केवल आसमान में देखते थे, मानो कि उन्होंने अकथनीय मुसीबत बरदाश्त की हो, मानो किसी चीज़ ने उनका रास्ता रोक लिया हो। इसलिए, वे अपने हाथों को जोड़ कर मेरे लिए याचना में स्वर्ग के नीचे झुक गए। क्योंकि मैं दयालु हूँ, इसलिए मैं मनुष्यों के बीच अपने आशीष प्रदान करता हूँ, और पलक झपकते ही, मनुष्यों के बीच मेरे व्यक्तिगत आगमन का क्षण आ जाता है—फिर भी मनुष्य स्वर्ग के प्रति अपनी शपथ को बहुत समय पहले भूल चुका है। क्या यह मनुष्य की अत्यंत अवज्ञा नहीं है? मनुष्य सदैव "विस्मरण" से ग्रस्त क्यों रहता है? क्या मैंने उसे छुरा भोंक दिया है? क्या मैंने उसके शरीर को मार गिराया है? मैं मनुष्य को अपने हृदय के भीतर की भावनाएँ बताता हूँ, और वह सदैव मुझसे क्यों बचता है? लोगों की स्मृतियों में, ऐसा लगता है कि उन्होंने कोई चीज खो दी है और यह कहीं नहीं मिलनी है, बल्कि यह भी मानो कि उनकी स्मृतियाँ ग़लत हैं। इस प्रकार, लोग अपने जीवन में सदैव भुलक्कड़पन से पीड़ित रहते हैं, और समस्त मानवजाति के जीवन के दिन अव्यवस्था में रहते हैं। फिर भी कोई भी इसे प्रशासित नहीं करता है, लोग एक-दूसरे को रौंदने, और एक-दूसरे की हत्या करने के सिवाय और कुछ नहीं करते हैं, जो आज विनाशकारी पराजय की अवस्था में परिणत हुआ है, और ब्रह्मांड के नीचे सभी को, उद्धार के किसी अवसर के बिना, गंदे पानी और कीचड़ में गिराने का कारण बना है।
जब लोग मेरे प्रति वफादार हो गए उसी क्षण मैं सभी लोगों के बीच आ गया। इस समय, बड़े लाल अजगर ने भी लोगों पर अपने हत्यारे हाथ रखने शुरू कर दिये थे। मैंने "आमंत्रण" स्वीकार कर लिया और जब मैं मनुष्यों के बीच "भोज की मेज पर बैठने" के लिए आया तो मैं मनुष्य से "आमंत्रण पत्र" ले कर आया। जब उन्होंने मुझे देखा, तो लोगों ने मुझ पर कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मैंने अपने आप को भव्य वस्त्रों से नहीं सजाया था और मनुष्य के साथ मेज पर बैठने के लिए केवल अपना "पहचान पत्र" लाया था। मेरे चेहरे पर कोई महँगा श्रृंगार नहीं था, मेरे सिर पर कोई मुकुट नहीं था, और मैंने अपने पैरों में घर पर बने केवल साधारण जूतों की एक जोड़ी पहनी हुई थी। जिस बात ने लोगों को सबसे अधिक निराश किया वह थी मेरे मुँह पर लिपस्टिक का अभाव। इसके अलावा, मैं विनम्र वचन नहीं बोलता था, और मेरी जीभ किसी कुशल लेखक की कलम जैसी नहीं थी; इसके बजाय, मेरा प्रत्येक वचन मनुष्यों के अंतरतम हृदय को चीर देता था, जिससे लोगों पर मेरे मुँह का एक बहुत अधिक "अनुकूल" प्रभाव पड़ा। लोगों के लिए यह पूर्वगामी मुझे "विशेष व्यवहार" देने के लिए पर्याप्त था, और इसलिए उन्होंने मेरे साथ देहात से आए किसी ग्रामीण साथी के रूप में व्यवहार किया, जो परिज्ञान या बुद्धि से रहित था। फिर भी जब हर किसी ने "पैसों के उपहार" सौंपें, तब भी लोगों ने मुझे सम्माननीय नहीं माना, बल्कि, वे झुँझलाए बिना, अपनी एड़ियों को घसीटते हुए, बिना किसी सम्मान के, मेरे सामने आए। जब मेरा हाथ फैला, तो वे तुरंत हैरान हो गए, उन्होंने घुटने टेक दिए, और वे बड़ी जय-जयकार करने लगे। उन्होंने मेरे सारे "मौद्रिक उपहार" एकत्रित कर लिए। क्योंकि धनराशि बहुत बड़ी थी, उन्होंने तुरन्त मुझे एक करोड़पति समझा और मेरी सहमति के बिना मेरे शरीर के फटीचर कपड़ों को फाड़ डाला, उन्हें नए कपड़ों से बदल दिया—फिर भी इससे मुझे खुशी नहीं हुई। क्योंकि मैं इस तरह के आरामदेह जीवन का अभ्यस्त नहीं था, और इस "प्रथम श्रेणी" के व्यवहार को तुच्छ समझता था, क्योंकि मैं पवित्र घर में पैदा हुआ था, और, ऐसा कहा जा सकता है कि, क्योंकि मैं "गरीबी" में पैदा हुआ था, इसलिए मैं विलासिता के जीवन का आदी नहीं था जहाँ मैं अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करने के सभी काम दूसरों से करवाने की अपेक्षा करता। मेरी केवल इतनी ही इच्छा है कि लोग मेरे हृदय की भावनाओं को समझ सकें, कि वे मेरे मुँह से असहज सच्चाई को स्वीकार करने के लिए थोड़ी कठिनाई सहन कर सकें। क्योंकि मैं कभी भी सिद्धांत की बात करने में समर्थ नहीं रहा हूँ, या लोगों के साथ सम्बद्ध होने के लिए उनके सामाजिक होने के रहस्यों का उपयोग करने में सक्षम नहीं रहा हूँ, और क्योंकि मैं लोगों की मुखाकृति या उनके मनोविज्ञान के अनुसार अपने वचनों को अनुकूल करने में अक्षम हूँ, इसलिए लोगों ने सदैव मुझसे घृणा की है, मुझे पारस्परिक क्रिया के अयोग्य माना है, और कहा है कि मेरी भाषा तीखी है और सदैव लोगों को चोट पहुँचाती है। फिर भी मेरे पास कोई विकल्प नहीं है: मैंने एक बार मनुष्य के मनोविज्ञान का अध्ययन किया था, एक बार मनुष्य के जीवन दर्शन की नकल की, और मनुष्य की भाषा सीखने के लिए एक बार "भाषा महाविद्यालय" में गया था, ताकि मैं उस साधन में निपुण हो जाऊँ जिससे लोग बात करते हैं, और उनकी मुखाकृति के अनुकूल बोलूँ—किन्तु यद्यपि मैंने बहुत प्रयास किए, और कई "विशेषज्ञों" के पास गया, फिर भी यह सब कुछ काम नहीं आया। मुझ में कभी भी मानवीयता की कोई चीज नहीं रही है। इन सभी वर्षों में, मेरे प्रयासों ने कभी भी जरा से भी प्रभाव का परिणाम नहीं दिया है, मुझे मनुष्य की भाषा में थोड़ी सी भी योग्यता नहीं मिली है। इसलिए, मनुष्य के वचन कि "कठिन परिश्रम का फल मिलता है" मेरे द्वारा "प्रतिबिंबित" होते हैं, और परिणामस्वरूप, ये वचन पृथ्वी पर समाप्त होते हैं। लोगों के इसे महसूस किए बिना, पर्याप्त रूप से यह पुष्टि करते हुए कि ऐसे वचन असमर्थनीय हैं, इस सूक्ति को स्वर्ग से परमेश्वर द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है। इसलिए मैं मनुष्य से क्षमा माँगता हूँ, लेकिन इसमें करने के लिए कुछ नहीं है—किसने मुझे इतना "बेवकूफ" बनाया है? मैं मनुष्य की भाषा सीखने में, जीवन दर्शन में कुशल बनने में, लोगों के साथ सामाजिक होने में अक्षम हूँ। मैं लोगों को केवल धैर्यवान बनने, क्रोध को अपने हृदयों में दबाने, मेरी वजह से अपने आप को चोट नहीं पहुँचाने की सलाह देता हूँ। किसने हमसे पारस्परिक बातचीत करवाई? किसने हमें इस क्षण में मिलवाया? किसने हमसे आदर्शों को साझा करवाया है?
मेरा स्वभाव मेरे सभी वचनों में सर्वत्र चलता है, फिर भी लोग इसे मेरे वचनों में समझने में अक्षम हैं। जो मैं कहता हूँ वे केवल उसकी बाल की खाल निकालते हैं—और इसका क्या फायदा है? क्या मेरे बारे में उनकी धारणाएँ उन्हें सिद्ध बनाती हैं? क्या पृथ्वी की चीजें मेरी इच्छा को पूरा कर सकती हैं? मैं लोगों को सिखाने का प्रयास करता रहता था कि मेरे वचनों को कैसे बोला जाए, किन्तु ऐसा लगता था मानो कि मनुष्य अवाक् हो गया था, और वह इस बात को सीखने में कभी भी समर्थ नहीं था कि मेरे वचनों को उस प्रकार से कैसे बोला जाए जैसे मैं चाहता हूँ। मैंने उसे मुँह-से-मुँह लगा कर सिखाया, फिर भी वह कभी भी सीखने में समर्थ नहीं हुआ। केवल इसके बाद ही मैंने एक नई खोज की: पृथ्वी पर रहने वाले लोग स्वर्ग के वचनों को कैसे बोल सकते थे? क्या इससे प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं होता? किन्तु, मेरे प्रति लोगों के उत्साह और जिज्ञासा की वजह से, मैंने मनुष्य पर कार्य के दूसरे हिस्से को आरंभ किया। मैंने मनुष्य को उसकी कमियों की वजह से कभी भी शर्मिंदा नहीं किया है, बल्कि इसके बजाय मनुष्य को उसके पास जिस चीज की कमी है उसके अनुसार प्रदान करता हूँ। यह केवल इस वजह से है कि लोगों में मेरे बारे में कुछ-कुछ अनुकूल छाप है, और मैं लोगों को एक बार फिर से इकट्ठा करने के लिए इस अवसर का उपयोग करता हूँ, ताकि वे मेरी सम्पत्तियों के अन्य हिस्से का आनंद ले सकें। इस समय, लोग एक बार फिर से, ख़ुशी में डूबे हुए हैं, आसमान में गुलाबी बादलों के आसपास खुशी, हँसी मंद-मंद बह रही है। मैं मनुष्य का हृदय खोलता हूँ, और मनुष्य को तुरंत नयी जीवन-शक्ति मिल जाती है, और वह मुझसे अब और छुपने का अनिच्छुक है, क्योंकि उसने शहद के मीठे स्वाद को चख लिया है, और इसलिए वह अपने समस्त कबाड़ को बदलने के लिए ले आता है—मानो कि मैं कोई कचरा संग्रह स्थल, या एक अपशिष्ट प्रबंधन केन्द्र बन गया हूँ। इस प्रकार, डाले गए "विज्ञापनों" को देखने के बाद, लोग मेरे सामने आते हैं और उत्सुकता से भाग लेते हैं, क्योंकि वे ऐसा सोचते हुए प्रतीत होते हैं कि उन्हें कुछ "स्मृति-चिह्न" प्राप्त हो सकता हैं, इसलिए उनमें से प्रत्येक प्रत्येक उन कार्यक्रमों में हिस्सा लेने का विश्वास करने लगता है जिन्हें मैंने निर्धारित किया है। इस समय वे घाटे के बारे में भयभीत नहीं हैं, क्योंकि इन गतिविधियों की "पूँजी" बड़ी नहीं है, और इसलिए वे भागीदारी का जोखिम लेने का साहस करते हैं। यदि भाग लेने से कोई स्मृति-चिह्न प्राप्त नहीं होता, तो लोग कार्यक्षेत्र छोड़कर अपने पैसे वापस करने की माँग करते, और मुझ पर बकाया "ब्याज" की गणना भी करते। ऐसा इसलिए है क्योंकि आज के जीवन स्तर में वृद्धि हो गई है, यह "समृद्धि के शालीन स्तर" तक पहुँच गया है और इसने "आधुनिकीकरण" को प्राप्त कर लिया है, जिसमें कार्य की व्यवस्था करने के लिए "वरिष्ठ संवर्ग" व्यक्तिगत रूप से "देहात की और जा रहा है", इस कारण लोगों का विश्वास तुरंत कई गुना हो गया है—और क्योंकि उनका "गठन" बेहतर से बेहतर होता जा रहा है, इसलिए वे मुझे प्रशंसा से देखते हैं, और मेरा विश्वास प्राप्त करने के लिए मेरे साथ संलग्न होने के इच्छुक हैं।
11 अप्रैल, 1992

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