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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

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गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

अड़तीसवां कथन

मानव जाति के समूचे अनुभव के दौरान मेरी उपस्थिति नहीं रही है, न ही मेरे वचनों का नेतृत्व रहा है, और इसलिए मैं हमेशा मनुष्यों से दूरी रखकर उनसे बचता रहा हूँ और फिर मैं उन्हें छोड़ कर चला गया। मैं मानव जाति की अवज्ञा से घृणा करता हूँ। मुझे नहीं पता क्यों। ऐसा लगता है कि प्रारंभ से ही मैं मनुष्यों से घृणा करता रहा हूँ, और फिर भी मैं उनके लिए गहरी सहानुभूति महसूस करता हूँ। और इस तरह मनुष्य मुझे दो दिलों से देखता है, क्योंकि मैं मनुष्य से प्रेम करता हूँ, और मैं मनुष्य से घृणा भी करता हूँ। उनमें से कौन मेरे प्रेम की सही समझ दिखाता है? और मेरी घृणा को कौन समझ सकता है? मेरी दृष्टि में, मनुष्य एक मृत वस्तु है, जीवन से रहित, जैसे कि सभी चीजों के बीच खड़ी मिट्टी की प्रतिमाएँ हों। कभी-कभी, मनुष्य की अवज्ञा उनके प्रति मेरे क्रोध को उकसाती है। जब मैं मनुष्यों के बीच रहता था, वे एक रूखी-सी मुस्कराहट देते थे जब मैं अचानक पहुँच जाता था, क्योंकि वे हमेशा मुझे होशोहवास में खोजते रहे थे, जैसे कि मैं उनके साथ पृथ्वी पर खेल रहा था। उन्होंने कभी मुझे गंभीरता से नहीं लिया, और इसलिए मेरे प्रति उनके रवैये के कारण मेरे लिए मानव जाति के "प्रतिनिधित्व" से "सेवा-निवृत्त" हो जाने का कोई विकल्प नहीं था। फिर भी, मैं यह घोषणा करना चाहता हूँ कि हालाँकि मैं "सेवानिवृत्त" हूँ, मेरी "पेंशन" एक पैसा भी कम नहीं हो सकती है। मानवता के "प्रतिनिधित्व" में मेरी "वरिष्ठता" की वजह से, मैं उनसे भुगतान की माँग करना जारी रखता हूँ, वह भुगतान जो मेरे हक़ में बकाया है। यद्यपि मनुष्यों ने मुझे छोड़ दिया है, वे मेरी पकड़ से कैसे बच सकते हैं? मैंने कुछ हद तक उन पर मेरी पकड़ ढीली कर दी, उनको अपनी शारीरिक वासनाओं में लिप्त होने की इजाज़त देते हुए, और इसलिए उन्होंने संयम और हिचकिचाहट के बिना रहने की हिम्मत की और यह देखा जा सकता है कि वे वास्तव में मुझे प्यार नहीं करते थे, क्योंकि वे देह में जीते थे। क्या यह संभव है कि सच्चा प्रेम देह से प्राप्त किया जाए? क्या यह हो सकता है कि मैं मानव से केवल देह का प्रेम चाहूँ? यदि वास्तव में मामला यही होता, तो मनुष्य का मोल क्या रह जाएगा? वे सभी बेकार कचरा हैं! यदि यह मेरी स्थायी "अलौकिक शक्ति" की वज़ह से न होता, तो मैं मनुष्य को बहुत पहले छोड़ चुका होता—आखिर क्यों उन लोगों के साथ रहने की परेशानी और मनुष्य की "दादागिरी" को स्वीकार किया जाए? लेकिन मैंने धैर्य रखा। मैं मनुष्य के मामले की तह तक जाना चाहता था। एक बार जब मैं पृथ्वी पर अपना कार्य समाप्त कर लेता हूँ तो मैं सभी चीजों के "सरदार" का न्याय करने के लिए आकाश में ऊपर उठ जाऊंगा; यह मेरा प्राथमिक कार्य है, क्योंकि मैं पहले से ही मनुष्य से बहुत घृणा करता हूँ। कौन अपने दुश्मन से नफरत नहीं करता? कौन अपने दुश्मन का विनाश नहीं करेगा? स्वर्ग में, शैतान मेरा वैरी है, पृथ्वी पर, मनुष्य मेरा शत्रु है। स्वर्ग और पृथ्वी के बीच संयोजन की वजह से, उनकी नौ पीढ़ियों को संगत के कारण दोषी माना जाना चाहिए, और किसी को क्षमा नहीं किया जाएगा। किसने उन्हें मेरा विरोध करने के लिए कहा था? किसने उन्हें मेरी अवज्ञा करने के लिए कहा था? ऐसा क्यों है कि मनुष्य को उसके पुराने स्वभाव से मुक्त नहीं किया जा सकता? ऐसा क्यों है कि उनकी दैहिकता हमेशा उनके भीतर बढ़ रही है? ये सब मनुष्य के बारे में मेरे न्याय के सबूत हैं। तथ्यों के सामने न झुकने की हिम्मत कौन करता है? कौन कह सकता है कि मेरा न्याय भावनाओं के रंग से दूषित है? मैं मनुष्य से भिन्न हूँ, इसलिए मैं उनसे दूर चला गया हूँ, क्योंकि मैं तो मनुष्य हूँ ही नहीं।
मैं जो कुछ भी करता हूँ, वह किसी कारण से होता है; जब मनुष्य मेरे सामने "सच्चाई" का "खुलासा" करता है, तो मैं उन्हें "फाँसी के मैदान" में ले जाता हूँ, क्योंकि मानव जाति का अपराध मेरी ताड़ना पाने के लिए पर्याप्त है। और इसलिए मैं आँखें मूँद कर लोगों को ताड़ना नहीं देता; बल्कि, उन को दी गई मेरी ताड़ना हमेशा उनके पापों की सच्चाई से मेल खाती है। अन्यथा मानव जाति कभी नहीं झुकेगी और विद्रोही होने के कारण मुझसे अपने अपराध को स्वीकार नहीं करेगी। वर्तमान परिस्थिति के कारण सभी लोग अनिच्छा से अपने सिर तो झुकाते हैं, परन्तु उनके दिल अभी भी यकीन नहीं करते हैं। मैं लोगों को "बेरियम" पिलाता हूँ, और इसलिए उनके भीतरी अंग एक "लेंस" के सामने स्पष्ट हो जाते हैं; मनुष्य के पेट के अन्दर की गंदगी और अशुद्धता बनी रहती है। उनकी नसों में विभिन्न प्रकार की गंदगी प्रवाहित होते रहती है, और इसलिए उनके भीतर का विष बढ़ता रहता है। चूँकि मनुष्य इतने लंबे समय से इसी तरह रहते आए हैं, वे इसके आदी हो गए हैं और उन्हें यह अजीब नहीं लगता। परिणामस्वरूप, उनके भीतर कीटाणु परिपक्व हो जाते हैं, वे उनका स्वभाव बन जाते हैं, और हर कोई उनके वर्चस्व में रहता है। यही कारण है कि लोग जंगली घोड़ों की तरह हैं, सभी जगह पर भागते-फिरते हैं। हालाँकि वे इसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं करते हैं, वे अपने सिर को हिलाकर दिखाते हैं कि वे "आश्वस्त" हैं। सच तो यह है कि मनुष्य मेरे वचन से प्रभावित नहीं होते हैं। यदि वे मेरे वचन को उपचार के रूप में लेते, तो वे "चिकित्सक के आदेशों का पालन करते" और उस उपचार को अपने अंदर की बीमारी को ठीक करने की अनुमति देते। बहरहाल, मेरे दिल में, जिस तरह से वे व्यवहार करते हैं, वे यह इच्छा पूरी नहीं कर सकते हैं, और इसलिए मैं केवल "मजबूरी में स्वीकार" कर सकता हूँ और उनसे बात करना जारी रखता हूँ। चाहे वे सुनें या न सुनें, मैं केवल मेरा कर्तव्य कर रहा हूँ। मनुष्य मेरे आशीर्वादों का आनंद लेने के लिए तैयार नहीं है और उसे नरक की यातना से गुजरना होगा, इसलिए मैं उनके अनुरोध को स्वीकार करने से अधिक और कुछ नहीं कर सकता। फिर भी, जिससे कि मेरा नाम और मेरा आत्मा नरक में शर्मिंदा न हों, मैं पहले उनको अनुशासित करूँगा और फिर उनकी इच्छाओं को "स्वीकार" कर लूँगा, ताकि वे "पूरे दिल से खुशी महसूस कर सकें।" मैं मनुष्य को कभी भी या कहीं भी, मेरे ही ध्वज के तले, मुझे ही शर्मिंदा करने की अनुमति नहीं दे सकता, यही कारण है कि मैं उन्हें बार-बार अनुशासित करता हूँ। उन कठोर वचनों की बाध्यता के बिना जिन्हें मैं कहता हूँ, आज भी मनुष्य मेरे सामने कैसे खड़े हो सकता है? क्या लोग पाप से सिर्फ इसीलिए नहीं बचते कि उन्हें डर है कि मैं छोड़कर चले जाऊंगा? क्या यह सच नहीं है कि वे केवल इसीलिए शिकायत नहीं करते कि उन्हें ताड़ना का डर लगता है? किसकी इच्छा केवल मेरी योजना की खातिर है? लोगों को लगता है कि मैं ऐसा देवत्व हूँ जिसमें कि "बुद्धि की गुणवत्ता" का अभाव है, लेकिन कौन समझ सकता है कि मैं मानवता के आर-पार सब-कुछ देख पा रहा हूँ? यह ठीक उसी तरह है जैसा कि लोग कहते हैं, "एक कील को एक घन-हथौड़े से क्यों ठोका जाए?" मनुष्य मुझे "प्यार करता है", इसलिए नहीं कि मेरे लिए उसका प्यार जन्मजात है, बल्कि इसलिए कि उसे ताड़ना से डर लगता है। मनुष्यों में ऐसा कौन है जो मुझे जन्म से प्रेम करता है? कौन मुझे अपने दिल की तरह अपना मानता है? और इसलिए मैं मानव जगत के लिए इस बात को एक कहावत के साथ पूरा करता हूँ: मनुष्यों में, कोई भी ऐसा नहीं जो मुझे प्रेम करता है।
चूँकि मैं पृथ्वी पर अपना कार्य समाप्त करना चाहता हूँ, मैंने अपने कार्य की गति को इस तरह से तेज किया है कि कहीं मानव मुझसे छितरकर दूर न जा गिरें, इतनी दूर कि वे अथाह महासागर में गिर पड़ें। वे कुछ हद तक चौकन्ने इसलिए हैं कि मैंने उन्हें चीजों की वास्तविकता पहले से ही बता दी है। यदि ऐसा न हो, तो कौन निष्ठुर हवाओं और लहरों का सामना करने के ठीक पहले पाल को उठा लेगा? सभी लोग सतर्कता का काम कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि मैं उनकी आँखों में एक "डाकू" बन गया हूँ। उन्हें डर है कि मैं उनके घरों में से उन की सारी चीजें ले जाऊंगा, और इसलिए वे सभी अपने "दरवाजों" के पीछे अपनी पूरी ताकत के साथ अड़ जाते हैं, यूँ डरते हुए कि मैं अचानक अन्दर न घुस आऊँ। जब मैं उन्हें डरपोक चूहों की तरह व्यवहार करते हुए देखता हूँ, तो मैं चुपचाप चल देता हूँ। मनुष्य की कल्पना में, ऐसा लगता है कि दुनिया में "सर्वनाश" आ रहा है, और इसलिए बुरी तरह डरकर वे इधर-उधर भागते हैं। और तब मैं भूतों को धरती पर भटकते हुए देखता हूँ। मैं अपनी हँसी को रोक नहीं पाता हूँ और मैं हँसने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता, लेकिन मेरी हँसी की आवाज से मानव हैरान और भयभीत हो जाता है। तब मुझे सच्चाई का एहसास होता है, और इसलिए मैं अपनी मुस्कुराहट को रोक लेता हूँ, और मैं अब फिर धरती पर नज़र नहीं रखता, इसके बजाय अपनी मूल योजना पर लौट जाता हूँ। अब मैं मनुष्य को ऐसे नमूने के रूप में नहीं मानता जो मेरी शोध में प्रयोग के काम आ सके, क्योंकि वे कचरे से ज्यादा कुछ नहीं हैं। एक बार मैं उन्हें त्याग दूँ, तो उनका कोई उपयोग नहीं रहता—वे कचरे के टुकड़े मात्र हैं। इस समय, मैं उन्हें मिटा दूँगा और उन्हें आग में डाल दूँगा। मनुष्य की निगाह में, मेरे न्याय, मेरे प्रताप और मेरे कोप में मेरी करुणा और प्रेमपूर्ण दया निहित होती है। लेकिन वे नहीं जानते हैं कि मैंने लम्बे समय से उनकी कमजोरियों को अनदेखा किया है, और बहुत पहले अपनी करुणा और प्रेमपूर्ण दया को वापस ले लिया है, और यही कारण है कि वे अभी इस वर्तमान स्थिति में हैं। कोई भी मुझे नहीं जान सकता, न ही मेरे वचनों को समझ सकता है या मेरा चेहरा देख सकता है, न ही मेरी इच्छा को भाँप सकता है। क्या यह मानव की वर्तमान स्थिति नहीं है? तो कोई कैसे कह सकता है कि मुझ में करुणा या प्रेमपूर्ण दया है? मैं उनकी कमजोरियों की परवाह नहीं करता, और न ही मैं उनकी अयोग्यता पर ध्यान देता हूँ। क्या यह फिर भी मेरी करुणा या प्रेमपूर्ण दया है? और क्या यह फिर भी, उनके लिए मेरा प्यार है? सभी लोगों का मानना ​​है कि मैं दस्तूर की खातिर अपने वचनों को छानता हूँ, और इसलिए वे मेरे कहे गए वचनों पर विश्वास नहीं करते हैं। लेकिन कौन समझता है "चूंकि यह एक अलग युग है, इसलिए मेरी करुणा या प्रेमपूर्ण दया अब मौजूद नहीं हैं; फिर भी मैं हमेशा ईश्वर हूँ जो वही करता है जैसा कि वह कहता है"? मैं मानव जाति के बीच में हूँ, और लोग अपने मन में मुझे सर्वोच्च रूप में देखते हैं, और मनुष्य यह मानता है कि मुझे अपने ज्ञान के माध्यम से बोलना अच्छा लगता है। इस प्रकार, हमेशा मनुष्य को मेरे वचन कुछ कड़वे लगते हैं। लेकिन मेरे भाषण के पीछे रहे नियमों को कौन समझ सकता है? मेरे वचनों के मूल को कौन समझ सकता है? मैं वास्तव में क्या पूरा करना चाहता हूँ, इसे कौन समझ सकता है? मेरी प्रबंधन योजना के समापन के विवरण के आर-पार कौन देख सकता है? कौन मेरे लिए विश्वसनीय हो सकता है? सभी चीजों में, मेरे अलावा अन्य कौन समझ सकता है कि मैं क्या कर रहा हूँ? और मेरे अंतिम ध्येय को कौन जान सकता है?
30 अप्रैल, 1992

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