3. ओहदा खोने के बाद ...
हुईमीन जियाओजूओ शहर, हेनान प्रदेश
हर बार जब मैं किसी को बदले जाने और इस कारण उनके दुखी, कमजोर या रुष्ट होने और उनके अनुसरण न करने की घटना को देखती थी या इस बारे मेँ सुनती थी तो ऐसे लोगों के प्रति मेरे मन मेँ निरादर का भाव आ जाता था। मैं सोचती थी कि यह सब इससे अधिक कुछ नहीं है कि कलीसिया के अंतर्गत अलग-अलग लोगों के अलग-अलग कार्य कलाप हैं, यहाँ उच्च और निम्न मेँ कोई भेद नहीं है और हम सब परमेश्वर की संतति हैं तथा ऐसा कुछ भी नहीं है जिसको हम तुच्छ समझें। अत: मैं सोचती थी कि चाहें हम नए विश्वासियों की देख-रेख कर रहे हैं या किसी जनपद का नेतृत्व हमारे हाथ मेँ है; मैने कभी भी नहीं सोचा था कि मेरा पूरा ध्यान ओहदे पर ही केंर्दित था, क्या मै इस तरह की सोच वाली व्यक्ति थी। मैं असंख्य वर्षों तक यह मानने के लिए सहमत नहीं होती कि अपनी बदली होने पर मैं ऐसा कोई शर्मनाक व्यवहार करूंगी...।