चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

बुधवार, 11 मार्च 2020

कष्ट ने परमेश्वर के प्रति मेरे प्रेम को प्रेरित किया


मेंग योंग, शांक्सी प्रान्त
मैं स्वभाव से ही एक ईमानदार आदमी हूँ और यही कारण है कि मैं हमेशा दूसरे लोगों द्वारा सताया गया हूँ। इस वजह से मैंने लोगों की इस दुनिया मेँ उदासीनता का अनुभव किया और मुझे लगा कि यह जीवन निस्सार और निरर्थक है। लेकिन जब से मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेँ विश्वास करना शुरू किया, उनके वचनों के अध्ययन और कलीसिया मेँ जीवन जीने के बाद, मेरे दिल ने एक ऐसी गंभीरता और सुख-चैन का अनुभव किया, जैसा मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था। यह देखकर कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई बहन, परिवार के सदस्यों की तरह, एक दूसरे को परस्पर स्नेह कर रहे हैं, मुझे यह आभास हुआ कि सिर्फ परमेश्वर ही धर्मी हैं और सिर्फ परमेश्वर की कलीसिया ही वह स्थान है जहां आलोक है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्यों को अनेक वर्षों तक अनुभव करने के बाद मुझे इस रहस्य का पता चल गया था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों मेँ वह शक्ति है जो मनुष्य को वाकई बदल सकती है और उसकी रक्षा कर सकती है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्यार हैं और वही उद्धार हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग परमेश्वर के प्यार का आनंद ले सकें और उद्धार प्राप्त कर सकें, मेरे भाई, बहन और मैं, सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के लिए पूरे मनोयोग से काम कर रहे थे, लेकिन हमें यह किंचित पता नहीं था कि हमें कम्युनिस्ट पार्टी बंदी बनाएगी और यातनाएँ देगी।

12 जनवरी 2011 को, मैं और कई भाई और बहनें सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के किए एक स्थान पर गए। कुछ दुष्टों ने इस बारे मेँ सूचना दे दी। थोड़ी ही देर मेँ, देश की सरकार ने, वाइस स्क्वाड, राष्ट्रीय सुरक्षा बल, ड्रग निरोधक दस्ता, सशस्त्र पुलिस बल और स्थानीय पुलिस जैसे विभिन्न कानून प्रवर्तन विभागों को हमें गिरफ्तार करने के लिए 10 से अधिक पुलिस वाहनों मेँ आने का निर्देश दिया। जिस समय मैं और एक भाई वहाँ से निकलने की तैयारी कर रहे थे हमने देखा कि सात या आठ पुलिस वाले हमारे एक भाई को निर्दयता पूर्वक डंडों से पीट रहे थे। इसी क्षण, चार पुलिस वाले तेजी से दौड़ते हुए आए और हमारी कार का रास्ता रोक दिया। एक दुष्ट पुलिस वाले ने, बिना कुछ बताए, हमारे कार की चाभी निकाल ली और हमें कार मेँ बिना हिले डुले बैठे रहने का आदेश दिया। उस समय मैंने देखा कि मेरे भाई को इतना पीट दिया गया था कि वह जमीन पर बैठ गया था और शरीर हिलाने मेँ भी असमर्थ था। मेरा हृदय धार्मिक भाव के कारण घृणा से भर गया था और उनकी हिंसा को रोकने के लिए मैं कार से तेजी से निकला। लेकिन दुष्ट पुलिस वाले ने मेरी बांह ऐंठ कर मुझे किनारे धकेल दिया। मैंने उन्हे समझाने का प्रयास करते हुए कहा: "मामला चाहे जो भी हो, हम बात-चीत कर सकते हैं। आप लोग यूँ ही सीधे लोगों को कैसे मारना शुरू कर सकते हैं?" उन्होने क्रूर अंदाज़ मेँ चिल्लाते हुए कहा: "जल्दी करो और जाकर अपनी कार मेँ बैठो, जल्दी ही तुम्हारी बारी आने वाली है!" बाद मेँ, वे हमे थाने ले गए और हमारी कार को भी जबर्दस्ती जब्त कर लिया गया।

उस रात नौ बजे के बाद, दो पुलिस वाले मुझसे पूछ-ताछ करने आए। जब उन्हें यह भान हो गया कि उन्हें मुझसे कोई उपयोगी सूचना नहीं मिलने वाली है, तो वे बेचैन और उत्तेजित हो उठे, और गुस्से से अपने दांतों को पिसते हुए धमकी दिया: "कोई बात नहीं, हम तुम्हारी खबर बाद में लेंगे!" इसके बाद उन्होने मुझे पूछताछ प्रतीक्षालय मेँ बंद कर दिया। रात को 11.30 बजे, दो अधिकारी मुझे एक ऐसे कमरे में ले गए जिसमें निगरानी के लिए कैमरे नहीं लगे थे। मुझे आशंका थी कि वे मुझ पर हिंसा का प्रयोग करेंगे इसलिए मैंने हृदय में परमेश्वर की अविराम स्तुति करते हुए उनसे कहा कि हे परमेश्वर! मेरी रक्षा करो। इसी समय जिआ उपनाम वाला एक अधिकारी हमसे पूछताछ करने आया: "क्या तुम पिछले दिनों के दौरान फ़ोक्सवेगन जेट्टा से यात्रा कर रहे थे?" जब मैंने इस बात का खंडन किया, तो उसने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा: "कई लोग तुम्हें ऐसा करते हुए पहले ही देख चुके हैं, और फिर भी तुम अस्वीकार कर रहे हो?" ऐसा कह कर उसने मेरे चेहरे पर जोरदार तमाचा मारा। मुझे अपने गालों मे जलन के साथ दर्द होने लगा। इसके बाद उसने गुर्राते हुए कहा: "देखता हूँ कि कब तक तुम अपना मुंह नहीं खोलते हो!" यह कहते हुए उसने एक चौड़ी पेटी उठाई और मेरे चेहरे पर मारने लगा। पता नहीं उसने कितनी बार मेरे चेहरे पर मारा। दर्द के मारे बार-बार कराहने-विलखने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। यह सब देखकर उन लोगों ने पेटी को लगाम की तरह मेरे मुंह मेँ ठूंस दिया। कुछ दुष्ट पुलिस वालों ने मेरे शरीर पर कंबल डाल दिया और उसके बाद मुझे डंडों से पीटने लगे। वे मुझे तब तक पीटते रहे जब तक वे खुद थक नहीं गए और उनकी साँसे नहीं फूलने लगी। मुझे इतनी बुरी तरह से उन लोगों ने पीटा था कि मेरा सिर चक्कर खा रहा था और मेरा शरीर इस तरह से दर्द कर रहा था जैसे मेरे शरीर की एक एक हड्डी चकनाचूर हो गई हो। उस समय तो मुझे यह नहीं पता चला कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं, लेकिन बाद मेँ मुझे पता चला कि कंबल ओढ़ाकर उन्होने मुझे इसलिए पीटा ताकि हमारे शरीर के मांस पर इस पिटाई का कोई निशान न पड़े। बिना कैमरे वाले कमरे मेँ मुझे ले जाना, मेरा गला घोटना और कंबल से ढककर मुझे पीटना—यह सब सिर्फ इसलिए किया गया था क्योंकि उन्हे भय था कि कहीं उनका कुकृत्य प्रकट न हो जाए। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि "जनता की पुलिस" इतनी अधर्मी और पापी हो सकती है। जब वे मुझे पीटते पीटते थक गए, तो उन्होने मुझे यातना देने की दूसरी तरकीब निकाली: दो दुष्ट पुलिस वालों ने मेरी एक बांह को ऐंठकर पीछे ले गए और उसे ऊपर खींच दिया, जबकि दो अन्य पुलिस वालों ने मेरी दूसरी बांह को कंधे पर पीछे की ओर ले जाकर ज़ोर से नीचे खींचा। लेकिन चाहे जो भी हो, मेरे दोनों हाथों को एक साथ नहीं खींचा जा सका, इसलिए उन्होंने घुटने से मेरे हाथ में प्रहार किया। मुझे सिर्फ एक हल्की सी आवाज़ सुनाई दी और मुझे लगा मेरे दोनों हाथ शरीर से उखड़ गए हैं। मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं लगभग मर गया। यातना के इस तरीके को उन्होंने "पीठ पर तलवार ढोना" नाम दिया था; जिसे सहन करना सामान्य लोगों की सहन-क्षमता के परे है। थोड़ी ही देर बाद मेरे दोनों हाथ निर्जीव हो गए। लेकिन इतने के बावजूद भी उन्होंने मुझे नहीं बख्शा, उन्होंने मुझे और तकलीफ देने के लिए घुटनो के बल बैठने का आदेश दिया। मुझे इतना दर्द हो रहा था कि मेरे पूरे शरीर से ठंडा पसीना छूटने लगा, मेरा सर चक्कर खा रहा था और मेरी चेतना धीरे-धीरे धुंधली होती जा रही थी। मैंने सोचा: मैं इतने वर्षों से जीवित हूँ, भले ही मैं लगातार बीमार रहा हूँ, लेकिन ऐसा कभी मेरे साथ नहीं हुआ कि मैं अपनी चेतना को नियंत्रित न कर सकूँ। क्या मैं मरने वाला हूँ? चूंकि मैं अब और सहने की स्थिति मेँ नहीं था, इसलिए सोचा कि मृत्यु के मार्ग से इस कष्ट से मुक्ति प्राप्त करूँ। उस क्षण, परमेश्वर के वचनों ने मुझे अंदर से प्रबुद्धता प्रदान किया: "आज अधिकाँश लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि दुःख उठाने का कोई महत्व नहीं है…। कुछ लोगों के कष्ट एक विशेष बिंदु तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें बिलकुल धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं!" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो")। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अचानक जाग्रत किया और मुझे समझाया कि मेरे सोचने का ढंग परमेश्वर की भावनाओं के अनुरूप नहीं था और यह परमेश्वर को केवल दुखी और मायूस कर सकता है। क्योंकि दर्द और यातना के इस माहौल मेँ परमेश्वर यह नहीं चाहते हैं कि मैं मृत्यु के लिए कोशिश करूँ, बल्कि वे यह चाहते हैं कि मैं अपमान को आत्मसात करूँ और इस असहनीय बोझ को सहूँ तथा शैतान से लड़ने, परमेश्वर की गवाही देने, और शैतान को शर्मसार करने और पराजित करने के लिए परमेश्वर के मार्गदर्शन पर भरोसा रख सकूँ। मृत्यु को वरण करने की इच्छा, शैतान की जाल मेँ फंसना है। इसका आशय यह होगा कि मैं परमेश्वर के लिए साक्षी नहीं बन सकूँगा और बेशर्मी का प्रतीक बन जाऊंगा। परमेश्वर के इरादों को समझने के बाद, मैंने परमेश्वर की मौन प्रार्थना की: हे परमेश्वर! अब जाके मुझे सच्चाई पता चली है कि मैं अंदर से कितना कमजोर हूँ। मेरे अंदर आपके लिए कष्ट सहने की न तो इच्छा शक्ति है और न ही साहस है। थोड़े से शारीरिक कष्ट के कारण मैं मरना चाहता था। अब मुझे पता चल गया है कि मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा जिससे आपको शर्मिंदा होना पड़े। मैं आप के लिए साक्षी बनूँगा और चाहे मुझे जितनी भी यातना झेलनी पड़े मैं आपको संतुष्ट करूंगा। लेकिन इस समय मेरा शरीर दर्द से तड़प रहा है और कमजोर हो गया है। इन दुष्टों की मार को अब और बर्दाश्त करना मेरे बूते के बाहर है। हे परमेश्वर मुझे और अधिक आत्म विश्वास एवं शक्ति दो ताकि मैं शैतान को पराजित कर सकूँ। मैं अपने प्राणों की सौगंध खाता हूँ कि मैं आपको धोखा नहीं दूंगा और न ही अपने भाइयों और बहनों के बदले कोई सौदेबाजी करूंगा। परमेश्वर की बार बार प्रार्थना करने से मेरा हृदय धीरे धीरे शांत हो गया। दुष्ट पुलिस वाला देख रहा था कि मैं बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रहा था और वे डरे हुए थे कि कहीं अगर मैं मर गया तो उन्हें इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी। इसलिए उन्होंने आकर मेरे हाथों को खोल दिया। लेकिन मेरी बाहें पहले से ही जकड़ खा चुकी थीं और बांधी हुई गाँठे इतनी कसी हुई थीं कि उन्हे खोलना मुश्किल हो गया था। अगर वे थोड़े से भी और बल का प्रयोग करते तो मेरे हाथ टूट जाते। मेरे हाथों को खोलने मेँ उन दुष्ट पुलिस वालों को कई मिनट लगे और उसके बाद वे मुझे घसीट कर पूछताछ प्रतीक्षालय मेँ ले गए।

अगले दिन दोपहर मेँ पुलिस ने मुझपर मनमाने ढंग से "आपराधिक जुर्म" का आरोप लगाकर, मेरे घर पर छापेमारी करने, मुझे अपने साथ लेकर मेरे घर गई। और उसके बाद उन्होंने मुझे एक सुधार गृह मेँ भेज दिया। मैं जैसे ही सुधार गृह पहुंचा चार सुधारक अधिकारियों ने मेरी सूती जैकेट, ट्राउजर, जूतों और घड़ी के साथ साथ 1300 नकदी युआन जब्त कर लिए। उन्होंने मुझे जेल की वर्दी पहनाई और उन्होंने उनसे कंबल खरीदने के लिए 200 युआन खर्च करने के लिए विवश किया। इसके बाद सुधारक अधिकारियों ने मुझे सशस्त्र डकैतों, हत्यारों, बलात्कारियों और नशीले पदार्थों के तस्करों के साथ बंद कर दिया। जब मैं अपने सेल मेँ घुसा, मैंने देखा कि एक दर्जन गंजे कैदी मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूर रहे थे। कमरे का माहौल गंभीर और भयावह था और मुझे लगा कि मेरा कलेजा मेरे गले मेँ आ गया है। कमरे के दो लोग उठकर मेरे पास आए और उन्होंने मुझसे पूछा: "तुम यहाँ क्यों आए हो?" मैंने कहा: "सुसमाचार का प्रचार"। बिना दूसरा शब्द कहे, उनमें से एक ने मेरे चेहरे पर दो तमाचे जड़ते हुए कहा: "तुम बिशप हो? हो कि नहीं?" बाकी कैदी दैत्यों की तरह अट्टहास करने लगे और मेरा मज़ाक उड़ाते हुए मुझसे पूछने लगे: "यहाँ से खुद को बचाने के लिए अपने परमेश्वर को क्यों नहीं बुला रहे हो?" इस उपहास और ताने के माहौल मेँ, सेल के मुखिया ने मेरे चेहरे पर कई और तमाचे मारे। उसके बाद इन लोगों ने मेरा नाम "बिशप" रख दिया और प्रायः मुझे अपमानित करने लगे और मेरा मज़ाक उड़ाने लगे। उस सेल के दुसरे मुखिया ने उन चप्पलों को देखा जो मैं पहने हुए था। उसने गुर्राते हुए कहा: "क्या तुम्हे अपनी औकात बिलकुल नहीं पता है? क्या तुम इन चप्पलों को पहनने के लायक हो? इन्हें निकालो!" ऐसा कहते हुए उसने जबरदस्ती उन्हें मुझसे छीन लिया और उसके बदले एक पुरानी और घिसी पिटी चप्पल दे दी। उन्होंने मेरा कम्बल भी दूसरे कैदियों को साझा करने के लिए दे दिया। ये कैदी मेरे कम्बल के साथ छिना झपटी करने लगे और अंत में उन्होंने मुझे एक पुराना, फटा, गन्दा और बदबूदार कम्बल दे दिया। सुधारक अधिकारियों के बहकावे में आकर ये कैदी मुझे हर प्रकार की कठिनाई और यातना देते थे। रात के समय सेल में बिजली हमेशा जलती रहती थी, लेकिन सेल के एक मुखिया ने मुझसे कपटी मुस्कान के साथ कहा: "मेरे लिए उस लाइट को बंद कर दो" चूँकि मैं ऐसा करने में असमर्थ था (क्योंकि बुझाने के लिए स्विच भी नहीं था) वे फिर मेरा उपहास करने लगे और मुझे ताने देने लगे। अगले दिन कुछ नाबालिग कैदियों ने मुझे एक कोने में खड़े होने के लिए मजबूर किया और यह धमकी देते हुए मुझसे जेल के नियम कायदों को याद करने के लिए कहा: "अगर दो दिनों में इन्हें नहीं याद कर लेते हो तो तुम समझना।" मैं भयभीत हो गया और पिछले कुछ दिनों में जो कुछ मेरे साथ हुआ था उसे याद करके मैं और भी अधिक भयभीत हो गया। मैं सिर्फ एक ही चीज कर सकता था कि परमेश्वर का आह्वान करता रहूँ और उनसे याचना करूँ कि वे मेरी रक्षा करें ताकि मैं मुक्ति पा सकूं। ऐसे क्षण में मुझे परमेश्वर के वचनों के इस भजनने मुझे प्रबुद्ध किया: "… चाहे आपको जेल हो जाए, आप बीमार हो जाएँ, आपका उपहास या अपमान किया जाए, या लगे कि अब बचने का कोई मार्ग नहीं है, तो भी आप परमेश्‍वर से प्रेम कर सकते हैं। इसका अर्थ है कि आपका हृदय परमेश्‍वर की ओर मुड़ गया है" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "क्‍या आपका हृदय परमेश्‍वर की ओर मुड़ गया है?")। परमेश्वर के वचनों ने मुझे शक्ति दी और अभ्यास के लिए एक मार्ग की ओर इंगित किया—प्रिय परमेश्वर का अनुसरण करूँ और अपना ह्रदय परमेश्वर की ओर उन्मुख कर दूँ! उस क्षण, मेरे ह्रदय में अचानक यह स्पष्ट हो गया कि: परमेश्वर यह यातना मुझे कष्ट देने के लिए नहीं दे रहे हैं या उनका उद्देश्य जान बूझकर मुझे कष्ट देना नहीं है, बल्कि यह प्रक्रिया, ऐसे माहौल में मेरे दिल को परमेश्वर की ओर मोड़ने का अभ्यास है ताकि मैं शैतान के काले प्रभावों के नियंत्रण का सामना कर सकूँ एवं अपने ह्रदय को परमेश्वर के समीप रख सकूँ और मैं उनको प्यार कर सकूं, और परमेश्वर के आयोजन और उनकी व्यवस्था का बिना किसी शिकायत के पालन कर सकूँ। इस विचार के मन मेँ आने के बाद, अब मुझे कोई डर नहीं था। शैतान मेरे साथ कैसा व्यवहार करता है मुझे इसकी कोई चिंता नहीं थी, अब मैं सिर्फ खुद को परमेश्वर को समर्पित करने का ध्यान रखूँगा और वह कार्य करूंगा जिससे कि स्नेही परमेश्वर को पा सकूँ और उन्हे संतुष्ट कर सकूँ, और अपना सर शैतान के सामने कभी भी न झुकाऊँगा।

जेल का जीवन पृथ्वी पर नर्क जैसा होता है। जेल के संतरी, लोगों को यातना देने के नए नए तरीकों के साथ आया करते थे: रात मेँ सोने के लिए मुझे अनेक कैदियों के साथ ठूंस दिया जाता गया था। हालत यह थी कि करवट लेना भी मुश्किल था। चूंकि मैं यहाँ पहुँचने वाला आखिरी कैदी था इसलिए मुझे शौचालय के पास सोना पड़ा। पकड़े जाने के बाद चूंकि मैं कई दिनों तक नहीं सो सका था अत: मुझे इतनी नींद आती थी कि खुद को और नहीं रोक पाता था और झपकी लेने लगता था। जो कैदी संतरी की ड्यूटी पर होते थे वे मुझे परेशान करने आया करते थे और जान बूझकर मेरे सर पर तब तक ठोकते रहते थे जब तक मैं जग नहीं जाता था और वे मेरे जागने के पहले वहाँ से हट जाया करते थे। एक बार सुबह के 3 बजे एक कैदी ने मुझे इसलिए जगाया क्योंकि वह मेरी लंबी जाँघिया को खुद नाप कर यह देखना चाहता था कि वह उसे फिट होती है या नहीं। वह एक पुराना और घिसे हुए जाँघिया का एक जोड़ा मेरे से बदलने के लिए लाया था। वे साल के सबसे ठंडे दिन थे लेकिन ये लोग मेरी एक मात्र जाँघिया को मुझसे छिनना चाह रहे थे। वहाँ मौजूद लोग पशुओं की तरह बर्बर और हिंसक थे। उनके तरीके क्रूर थे और उनके दिल पाप से भरे हुए थे, जिसमें मानवता का लेश मात्र भी अंश नहीं था। वे नर्क के उन राक्षसों की तरह थे जो लोगों को अपनी मौज मस्ती के लिए यातना देते हैं। इतना ही नहीं, वहाँ मिलने वाला भोजन, उस भोजन से भी खराब होता था जो कुत्तों और सूअरों को दिया जाता है। जब पहली बार मुझे आधी कटोरी कोंगी दी गई तो मैंने देखा कि उसमें कई काले काले निशान थे। मुझे नहीं पता था कि वे क्या हैं, इतना ही नहीं कोंगी का रंग भी कुछ कुछ कालापन लिए हुए था। उसे घोंट पाना बहुत मुश्किल था। मैं चाह रहा था कि उपवास करूँ। लेकिन तभी परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया: "इन अंतिम दिनों में, तुम्हें परमेश्वर के प्रति गवाही देनी है। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारे कष्ट कितने बड़े हैं, तुम्हें अपने अंत की ओर बढ़ना है, अपनी अंतिम सांस तक भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य बने रहना आवश्यक है, और परमेश्वर की कृपा पर रहना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है और केवल यही मजबूत और सामर्थी गवाही है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो")। परमेश्वर के वचन, माता द्वारा दी जाने वाली सांत्वना की तरह, प्रेम और वात्सल्य से भरे हुए थे, जिनके कारण मुझमें यातना को सहने का साहस उदित हुआ। परमेश्वर की इच्छा है कि मैं जीवित रहूँ, लेकिन मैं इतना कमजोर था कि इस यातना से मुक्ति पाने के लिए लगातार मृत्यु का मार्ग देख रहा था। मैं खुद तक को प्यार नहीं करता हूँ; अभी भी परमेश्वर ही हैं जो मुझसे सबसे अधिक प्रेम करते हैं। अचानक मेरे दिल मेँ गर्मजोशी आ गई जिसके कारण मैं इतना भावुक हो गया कि मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े और कोंगी में गिरने लगे। परमेश्वर के प्रेम से अभिभूत होने के कारण मुझमें फिर से ऊर्जा का संचार हुआ। यह भोजन चाहे जैसा लगे, मुझे इसे खाना ही चाहिए। मैंने एक सांस मेँ कोंगी को खत्म किया। नाश्ते के बाद सेल के मुखिया ने मुझसे फर्श को रगड़कर साफ कराया। ये वर्ष के सबसे ठंडे दिन थे और गरम पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी अतः कपड़ों को साफ करने के लिए मैं सिर्फ ठंडे पानी का ही प्रयोग कर सकता था। सेल के मुखिया ने मुझे यह भी आदेश दिया कि यह काम मैं रोज करूँ। इसके बाद, कई सशस्त्र डाकुओं ने दबाव देकर मुझे जेल के नियमों को याद कराया। जब मैं नहीं याद कर पता था तो वे मुझे लात-घूसे से मारते थे। चेहरे पर झापड़ खाना आम बात थी। इस तरह के माहौल मेँ, मैं प्रायः सोचा करता था कि परमेश्वर की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए मुझे क्या क्या करना होगा। रात मेँ मैंने कंबल से अपना मुँह ढककर मौन प्रार्थना किया: हे परमेश्वर, आपने इस माहौल मेँ मुझे गिरने दिया, अतः आपकी शुभ आकांक्षा इसी मेँ निहित होगी। हे परमेश्वर अपनी आकांक्षाओं को प्रकट कीजिए। उस क्षण, परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया: "मैं पहाड़ियों में खिलती कुमुदिनी की प्रशंसा करता हूँ। फूलों और घास का तो ढलानों पर फैलाव होता है, लेकिन वसंत ऋतु के आने से पहले कुमुदिनी मेरी महिमा को चार चाँद लगा देती है—क्या मनुष्य इतना कुछ हासिल कर सकता है? क्या वह पृथ्वी पर मेरी वापसी से पहले मेरी गवाही दे सकता है? क्या वह बड़े लाल अजगर के देश में मेरे नाम की खातिर खुद को समर्पित कर सकता है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन के "अध्याय 34")। हाँ, फूल और घास, मैं और सब कुछ परमेश्वर की रचना हैं। परमेश्वर ने हमें इसलिए सृजित किया है ताकि हम उनका प्रकटन करें, उनका गुणगान करें। येकुमुदिनियाँ, बसंत के आगमन के पहले, परमेश्वर की प्रभुता मेँ कांति का समावेश करने मेँ समर्थ है, अर्थात परमेश्वर की रचना के रूप मेँ इन्होंने अपने कर्तव्य को पूरा किया है। मेरा आज का कर्तव्य है परमेश्वर के आयोजन का पालन करना और शैतान के समक्ष परमेश्वर की गवाही देना, ताकि सब लोगों को दिखाया जा सके कि शैतान एक जीवित राक्षस है जो लोगों को नुकसान पहुँचाता है और उनका भक्षण करता है; जबकि परमेश्वर ही वह असली परमेश्वर हैं जो आदमी को प्रेम करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। मैं जो यातना या अपमान झेल रहा हूँ उसका कारण यह नहीं है कि मैंने कोई अपराध किया है, बल्कि यह परमेश्वर के नाम के लिए है। इस यातना को सहना गौरवपूर्ण है। शैतान मुझे जितना अधिक अपमानित करेगा, उतना ही अधिक मैं परमेश्वर के पक्ष मेँ खड़ा होऊंगा और उन्हे प्रेम करूंगा। इस प्रकार परमेश्वर का गौरव बढ़ेगा और मैं अपने उस कर्तव्य को पूरा कर सकूँगा जो मुझे पूरा करना चाहिए था। जब तक परमेश्वर प्रसन्न और खुश हैं, मेरा दिल भी संतुष्टि प्राप्त करेगा। मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए और परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से आयोजित होने के लिए अंतिम यातना भी सहने के लिए तैयार हूँ। जब मैंने इस प्रकार सोचना शुरू किया, मेरा दिल संवेदित हो उठा और एक बार फिर मैं अपने आंसुओं को रोकने मेँ विफल हो गया: "हे परमेश्वर, आप असीम पूजनीय हैं! मैं आपका अनुगमन वर्षों से कर रहा हूँ लेकिन जिस तरह आपके कोमल स्नेह को आज महसूस कर रहा हूँ वैसा पहले कभी नही किया था और आपसे जो निकटस्थता आज अनुभव कर रहा हूँ वैसा कभी नहीं किया था।" मैं अपने कष्टों को पूरी तरह भूल गया और भावनाओं के इस प्रवाह मेँ बहुत देर तक, पूरी तरह समाहित रहा …

कारावास के तीसरे दिन एक सुधारक अधिकारी मुझे उनके कार्यालय ले गया। जब मैं वहाँ पहुंचा तो मैंने देखा कि लगभग एक दर्जन लोग मुझे विचित्र नज़रों से घूर रहे थे। उनमें से एक आदमी मेरे सामने बाईं ओर एक वीडियो कैमरा लिए हुए था, जबकि एक दूसरा आदमी हाथ मेँ माइक्रोफोन लेकर मेरे पास आया और पूछा: "तुम क्यों सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेँ विश्वास करते हो?" उसके ऐसा कहते ही मैं समझ गया कि यह साक्षात्कार मीडिया के लिए है। इसलिए मैंने सगर्व विनम्रता के साथ उत्तर दिया: "बचपन से ही मैं लोगों की दादागिरी और खराब व्यवहार को झेलता रहा हूँ, और मैंने देखा है कि लोग परस्पर एक दूसरे को धोखा देते हैं और दूसरों से सिर्फ अपना मतलब निकालते हैं। मुझे लगा कि यह समाज अत्यंत अंधकारमय, बेहद खतरनाक है; लोग खोखला और असहाय जीवन यापन कर रहे हैं। उनका भावी जीवन खोखला और लक्ष्यहीन है। बाद मेँ जब किसी ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सुविचारों का प्रवचन दिया तो मैं उनमें विश्वास करने लगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेँ विश्वास करने के बाद, मैंने यह अनुभव किया है कि अन्य विश्वास करने वाले मेरे साथ परिवार के सदस्य के रूप में व्यवहार करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया मेँ कोई भी मेरे विरुद्ध साजिश नहीं करता है। हर सदस्य परस्पर दूसरे को समझता है और एक दूसरे का खयाल रखता है। वे सब एक दूसरे की देख-भाल करते हैं और उनके मन मेँ जो होता है उसे बोलने मेँ संकोच नहीं करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों मेँ मैंने जीवन का प्रयोजन और मूल्य पाया है। मुझे लगता है कि परमेश्वर मेँ विश्वास करना अत्यंत शुभ है।" इसके वाद रिपोर्टर ने मुझसे पूछा: "क्या तुम्हें पता है कि तुम यहाँ क्यों हो?" मैंने उत्तर दिया कि: "सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेँ विश्वास करने के बाद, मैंने सांसारिक नाम और लाभ की चिंता कम की है और मैंने महसूस किया है कि ये बातें खोखली और निरर्थक हैं। मैं धर्मी ढंग से तभी जी सकता हूँ जब मैं एक अच्छा इन्सान बनूं और सही रास्ता अपनाऊं। मेरा हृदय उत्तरोत्तर दया के भाव का अनुसरण कर रहा है और एक अच्छा व्यक्ति बनने के लिए मैं अधिकाधिक प्रयास कर रहा हूँ। यह देख कर कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन किस तरह से लोगों को बदल सकते हैं और उन्हें सही रास्ते पर ले जा सकते हैं, मैंने सोचा कि कितना अच्छा होता यदि पूरी मानव जाति परमेश्वर मेँ विश्वास करती। फिर अपना देश भी अधिक व्यवस्थित होता और अपराध की दर मेँ भी गिरावट आती। इसलिए मैंने यह शुभ समाचार दूसरे लोगों को बताने का निर्णय लिया, लेकिन मैंने सपने मेँ भी नहीं सोचा था कि इस प्रकार का धार्मिक कार्य भी चीन जैसे देश में बैन होगा। और इसलिए मुझे गिरफ्तार किया गया और यहाँ लाया गया।" संवाददाता ने जब यह महसूस किया कि मेरे उत्तर उसके पक्ष के लिए लाभदायक नहीं हैं तो उसने साक्षात्कार को तत्काल बंद कर दिया और वहाँ से चला गया। उस समय राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड का उप प्रमुख इतना गुस्सा गया था कि अपने पाँव पटक रहा था। उसने क्रूरतापूर्वक मेरी ओर देखा और अपने दाँत पीसते हुए बुदबुदाया: "बस थोड़ा इंतज़ार करो और फिर देखो!" लेकिन मुझे उसकी धमकियों या डपट की कोई चिंता नहीं थी। बल्कि इसके उल्टे, इस अवसर पर परमेश्वर के लिए साक्षी के रूप मेँ प्रस्तुत होने के कारण, मैं अंत:करण से सम्मानित अनुभव कर रहा था; और इसके अलावा परमेश्वर के नाम को उच्च दर्जा देकर और शैतान को पराजित करके मैंने परमेश्वर का गौरव बढ़ाया।

17 जनवरी के दिन तापमान बहुत कम था। चूंकि दुष्ट पुलिस ने मेरा सूती कोट जब्त कर लिया था अतः मैं सिर्फ अपना लंबा वाला जाँघिया पहने हुए था जिसके कारण मुझे सर्दी हो गई। मैं बहुत अधिक बुखार से पीड़ित होने के साथ-साथ लगातार खाँस रहा था। रात मेँ मैंने, बीमारी की यातना को बर्दाश्त करने के लिए, खुद को एक कंबल मेँ लपेट लिया और कैदियों के अपने प्रति अनंत दुर्व्यवहार के बारे मेँ भी सोच रहा था। मैंने खुद को बेहद अकेला औए असहाय महसूस किया। जब मेरा कष्ट एक निश्चित सीमा पर पहुंचा, परमेश्वर के वचनों का एक भजन मेरे कानों मेँ प्रतिध्वनित हुआ: "यदि तू मुझे बीमारी देता है, और मेरी स्वतन्त्रता को ले लेता है, तो भी मैं जीवित रह सकता हूँ, परन्तु अगर तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ देते, मेरे पास जीने का कोई रास्ता नहीं होगा। यदि मेरे पास तेरी ताड़ना और तेरा न्याय नहीं होता, तो मैंने तेरे प्रेम को खो दिया होता, एक ऐसे प्रेम को जो इतना गहरा है कि मैं इसे शब्दों में नहीं कह सकता हूँ। तेरे प्रेम के बिना, मैं शैतान के शासन के अधीन जीता" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान")। परमेश्वर के समक्ष पतरस की यह सच्ची और हार्दिक प्रार्थना थी। पतरस कभी भी देह के वशीभूत नहीं हुआ था। वह परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को हृदय से प्यार करता था और उसका सम्मान करता था। जब तक परमेश्वर की ताड़ना और उनका न्याय उसका साथ नहीं छोड़ते थे तब तक उसका हृदय परम संतोष का अनुभव करता था। अब मुझे भी पतरस के अनुगमन और समझदारी का अनुसरण करना चाहिए। देह भ्रष्ट होती है और अनिवार्य रूप से नष्ट हो जाती है। यदि मुझे बीमारी होती है और मैं अपनी स्वतन्त्रता गँवाता हूँ, यह एक ऐसा कष्ट है जिसे मुझे सहना होगा। लेकिन यदि मैं परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को त्यागता हूँ तो यह परमेश्वर की उपस्थिति और प्रेम को खोना है और इसका आशय शुद्ध होने के अवसर को भी खो देना है। यही वह है जो सर्वाधिक कष्टदायक है। परमेश्वर की प्रबुद्धता के माध्यम से, मैंने एक बार फिर से परमेश्वर के प्रेम का अनुभव किया। मेरा मन अपनी कमजोरी और निरर्थकता से घृणा करने लगा, मैंने पाया कि मेरा स्वभाव अत्यंत स्वार्थी है जो परमेश्वर की दुखपूर्ण भावनाओं के प्रति उदासीन रहता है। अगले दिन उस सेल के अनेक कैदी बीमार हो गए, लेकिन चमत्कार की बात यह थी कि मेरा बुखार उतर गया था। मैंने अपने प्रति परमेश्वर की देख रेख और सुरक्षा का अनुभव किया और परमेश्वर के कार्यों के चमत्कार को देखा। मैं दिल में चुपचाप परमेश्वर की प्रशंसा की और उसे धन्यवाद दिया। एक रात एक वेंडर खिड़की के रास्ते आया और सेल के मुखिया ने उससे काफी मात्र मेँ सूअर, कुत्ते, मुर्गे की टाँगे तथा और भी बहुत कुछ खरीदा। इस सबके बाद उसने मुझे भुगतान करने के लिए आदेश दिया। मैंने कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं। इस पर उसने क्रूरतापूर्वक कहा: "यदि तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं तो मैं तिल तिल कर यातना दूंगा!" अगले दिन उसने मुझे धोने के लिए चादरें, कपड़े और मोज़े दिए। कारावास मेँ मौजूद सुधारक अधिकारी ने भी मुझे धोने के लिए अपने मोज़े दिए। कारावास मेँ मुझे लगभग रोज उनकी मारपीट झेलनी पड़ती थी। जब मुझसे और अधिक बर्दाश्त नहीं होता था तो मेरा अंतःकरण परमेश्वर के इन वचनों से संचालित होता था: "पृथ्वी पर अपने समय के दौरान, तुम्हें परमेश्वर के लिए अपना अंतिम कर्तव्य निभाना होगा। अतीत में, पतरस को परमेश्वर के लिए क्रूस पर उल्टा लटका दिया गया था; परंतु, तुम्हें अंतत: परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, और अपनी सारी ऊर्जा परमेश्वर के लिए खर्च करनी चाहिए। एक प्राणी परमेश्वर के लिए क्या कर सकता है? इसलिए तुम्हें जल्दी से जल्दी अपने आपको परमेश्वर की दया पर छोड़ देना चाहिए। जब तक परमेश्वर खुश और प्रसन्न है, तब तक वह जो चाहे उसे करने दो। मनुष्यों को शिकायत करने का क्या अधिकार है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या के "अध्याय 41")। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अनंत शक्ति दिया। यद्यपि समय समय पर मुझे अब भी हमले, अपमान, निंदा और कैदियों द्वारा पीटे जाने के प्रताणना सहनी पड़ती थी, मेरी आत्मा संतुष्टि और सुख का अनुभव करती थी। गर्मजोशी की तेज हवा की तरह परमेश्वर का प्यार मुझे आगे बढ्ने मेँ मदद कर रहा था, जिसके कारण मैं यह अनुभव कर सका कि परमेश्वर का प्रेम वास्तव मेँ अथाह है।

सुबह के समय एक सुधारक अधिकारी ने मुझे खास तौर से समाचार पत्र का एक पन्ना दिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की झूठी निंदा और ईश निंदा वाली खबरों को, कैदी व्यंगात्मक स्वर मेँ पढ़ रहे थे और छुप छुप कर हंस रहे थे। मैं अंदर से इतना अधिक क्रोधित था कि मैं अपने दांत पीसने लगा। कैदी यह पूछने के लिए मेरे पास आए कि यह सब किस बारे मेँ था, और मैंने तेज आवाज़ मेँ कहा: "यह कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा कीचड़ उछालने का हथकंडा है!" भीड़ का हिस्सा बनकर ये कैदी जो कुछ कह रहे थे, कीचड़ उछाल रहे और शैतानों की भाषा बोलते हुए जिस तरह से ईश निंदा कर रहे थे, मैं स्पष्ट रूप से देख रहा था कि अब इन सबका अंत समीप है। परमेश्वर की ईश निंदा करना एक ऐसा पाप है जो कभी माफ नहीं होगा, जो भी परमेश्वर के आयोजन को भंग करता है उसे कठोरतम दंड और प्रतिकार प्राप्त होगा! ऐसा करके कम्युनिस्ट पार्टी, चीन की समस्त जनता को अंतिम रसातल की ओर ले जा रही है और आत्मा को खाने वाले राक्षस के रूप मेँ अपने असली चेहरे को उजागर कर रही है! बाद मेँ मेरे मामले के प्रभारी पुलिस अधिकारी ने मुझसे फिर से पूछताछ की। इस बार उसने मेरी गवाही लेने के लिए, मुझ पर यातना का प्रयोग नहीं किया, बल्कि दयालु भेष बनाकर मुझसे सवाल किया: "तुम्हारा नेता कौन है? मैं तुम्हें एक और मौका दूंगा। अगर तुम बता देते हो तो तुम्हारे साथ सब ठीक हो जाएगा। मैं तुम्हारे प्रति अत्यधिक रियायत दिखाऊँगा। पहली बात कि तुम बेकसूर थे, लेकिन अन्य लोगों ने तुम्हें फंसा दिया। तो ऐसे लोगों के बारे मेँ क्या छुपाना? तुम्हारा व्यवहार कितना अच्छा है। उन लोगों के लिए अपना जीवन क्यों जोखिम मेँ डालते हो? अगर तुम बता दोगे तो तुम घर जा सकते हो। यहाँ रुककर यातना पाने से क्या फायदा?" इन दो मुंहे कपटियों को लगा कि यातना के रास्ते से जब बात नहीं बन रही है तो उन्होंने सौम्य मार्ग अपनाया। ये लोग धूर्त दांव-पेंच के भंडार हैं और कुचक्र और पैंतरेबाजी के पुराने उस्ताद हैं! उसके कपटी चेहरे को देखकर मेरा दिल घृणा से भर गया और मैंने कहा, "मैं जो भी जानता था आपको बता चुका हूँ। मेरे पास बताने के लिए और कुछ नहीं है।" मेरे दृढ़ दृष्टिकोण को देखकर वह समझ गया कि उसे मुझसे कुछ भी मिलने वाला नहीं है इसलिए वह वहाँ से निराश होकर चला गया।

कारावास मेँ आधा महीना रहने के बाद, मुझे तब छोड़ा गया जब मेरे परिवार ने 8000 युआन की जमानत राशि जमा की। लेकिन उन लोगों ने मुझे यह चेतावनी भी दी कि मैं कहीं भी बाहर न जाऊँ, अनिवार्य रूप से घर मेँ रहूँ और बुलाए जाने पर उपस्थित होना सुनिश्चित करूँ। जिस दिन मैं रिहा हुआ उस दिन सुधारक अधिकारी ने जानबूझकर मुझे कुछ भी खाने के लिए नहीं दिया, जबकि दूसरे कैदियों ने कहा: "तुम्हारे परमेश्वर विलक्षण हैं। हम बीमार लोग नहीं थे, लेकिन यहाँ हम सब बीमार हो गए। तुम यहाँ बीमारियों का बोझ लेकर आए थे, और अब जब जा रहे हो तो तुम्हें कोई बीमारी नहीं है। तुम्हारे लिए अच्छा है!" इस समय मेरा हृदय, परमेश्वर के प्रति और अधिक आभारी तथा प्रशंसा से भर गया था! मेरे चाचा जेल के संतरी हैं। उन्हें लगातार यह संदेह बना रहा कि मुझे इसलिए छोड़ा गया है क्योंकि मेरे पिता के संबंध कुछ शक्ति सम्पन्न लोगों से थे, अन्यथा इस उच्च सुरक्षा वाले जेल से आधे महीने मेँ मेरी रिहाई का कोई सवाल ही नहीं था। चाहे कुछ भी हो कम से कम तीन महीने जेल मेँ रहना ही पड़ता। मेरा पूरा परिवार जानता था कि यह परमेश्वर की सर्व-शक्ति के कारण संभव हुआ और परमेश्वर ने अपने अद्भुत कार्य को मेरे माध्यम से प्रकट किया है। मैंने स्पष्ट रूप से देखा कि यह परमेश्वर और शैतान के बीच की लड़ाई थी। शैतान, चाहे जितना भी खूंखार और शातिर क्यों न हो, वह परमेश्वर से सदैव पराजित होगा। उसके बाद, मैं इस बात का दृढ़ विश्वासी हो गया कि मुझे जिन जिन चीजों का सामना करना पड़ा है वे सब परमेश्वर की व्यवस्था थी। मई 2011 के बाद के दिनों मेँ "सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ने" के आरोप मेँ कम्युनिस्ट पुलिस ने मुझे, श्रम के माध्यम से मुझे पुन: शिक्षित करने का दंड दिलाया, जिसे जेल के बाहर निगरानी के अंतर्गत काटना था, और मुझे दो वर्षों के लिए निलंबित कर दिया गया।

इस उत्पीड़न और दारुण दुख को सहने के बाद, मेरे मन मेँ एक दृढ़ भाव उदित हुआ और मैं इस नास्तिक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का सार तत्व समझ गया और इसके प्रति मेरे मन मेँ अथाह घृणा पैदा हो गयी थी। यह अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए, सिर्फ और सिर्फ हिंसक तरीकों का प्रयोग करती है, सभी न्यायपूर्ण कामों का दमन करती है और उन्हे दबाती है तथा सत्य से इसे अत्यधिक घृणा है। यह परमेश्वर की सबसे बड़ी दुश्मन है। अतः यह अपना लक्ष्य लोगों को स्थायी रूप से नियंत्रित करके प्राप्त कर सकती है, धरती पर परमेश्वर के काम को रोकने और बाधित करने के लिए यह किसी भी हद तक जा सकती है, परमेश्वर के भक्तों को बर्बरता पूर्वक दबाती और दंडित करती है, यह दंड और प्रलोभन दोनों मार्गों को अपनाती है, दूसरो से अपनी बात कहवाती है, कहती कुछ है और करती कुछ और है तथा हर मोड़ पर अपने छद्म और योजनाओं को छिपाती रहती है। यह जिस तरह का विरोधाभास प्रकट करती है उससे मैं और स्पष्ट रूप से देख सकता हूँ कि सिर्फ परमेश्वर के वचन ही लोगों को इस दुख-दर्द मेँ जीवन दे सकते हैं। एक ऐसे समय मेँ जब लोग पूरी तरह निराश या मौत के मुहाने पर होते हैं, सिर्फ परमेश्वर के वचन ही इनके लिए जीवन-जल के समान होंगे जो इनके शुष्क हृदय को तृप्ति देंगे। यही वचन इनके लिए चमत्कारी अमृत की तरह होंगे जो इनकी आत्माओं पर लगे घाव को भरेंगे, खतरों से उनको रक्षा करेंगे, उनके जीवन मेँ आत्म विश्वास और साहस का संचार करेंगे, उन्हें असीमित शक्ति देंगे, दुख-दर्द के जीवन के बीच परमेश्वर के मृदु वचनों का आनंद लेने देंगे, जो उनकी आत्माओं को दिलासा दे सकते हैं और उन्हे यह महसूस करा सकते कि परमेश्वर के वचनों की ऊर्जा अक्षुण्य और अनंत है। कारावास के इस पूरे आधे महीने के दौरान, यदि परमेश्वर मेरे साथ नहीं होते, अपने वचनों के माध्यम से उन्होने मुझे दुबारा स्मरण, प्रबुद्ध और साहसी नहीं बनाया होता तो मेरे जैसे कमजोर व्यक्ति के लिए उस यातना को सह पाना असंभव था। यदि परमेश्वर मेरी देख-भाल नहीं करते, मेरी रक्षा नहीं करते तो दुष्ट पुलिस वालों द्वारा दी जा रही यातना और उनके दुर्व्यवहार को मेरा कमजोर शरीर कदापि नहीं सह पता, यातना से मेरी मृत्यु भले नहीं हुई होती लेकिन मुझे बीमार और घायल अवश्य कर दिया होता। परमेश्वर ने मुझे उन घोर अंधकार और सर्वाधिक कठिन दिनों से तो बचाया ही, मेरी मूल बीमारी को भी ठीक कर दिया। परमेश्वर सचमुच सर्वशक्तिमान है! मेरे लिए उसका प्रेम अत्यंत गहरा, अत्यंत महान है! मैं किस तरह परमेश्वर के प्रति अपना आभार व्यक्त करूँ? मैं नहीं जानता। मैं सिर्फ अपने अंतःकारण से यही कह सकता हूँ: हे परमेश्वर मैं और भी अधिक गहराई से आपको प्रेम करना चाहता हूँ! इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आगे का मार्ग कितना कठिन या दुरूह है या मुझे और कितनी अधिक यातना साहनी पड़ेगी! मैं आपके आयोजन का पालन करूंगा और अंत तक आपके अनुगमन के प्रति दृढ़ संकल्प रहूँगा।

यद्यपि कि मेरे भौतिक देह को इस अनुभव से कुछ पीड़ा अवश्य हुई, लेकिन इससे जो लाभ मुझे मिला है वह अपार है। परमेश्वर मेँ आस्था रखने के मेरे मार्ग का यह खज़ाना है और साथ ही साथ परमेश्वर मे विश्वास करने का यह हमारा प्रारंभिक बिंदु है। मुझे लगता है कि विगत 10 वर्षों के, परमेश्वर मेँ मेरे विश्वास के दौरान, मैं परमेश्वर के प्रेम को इतनी गहराई से कभी नहीं जान पाया था जिस गहराई से आज जान सका हूँ। आज मैं यह समझ सका हूँ कि परमेश्वर मेँ विश्वास का मूल्य और अर्थ क्या होता है, परमेश्वर का अनुगमन करना, उनकी पूजा करना विराट रूप से महान कार्य है; इसके अतिरिक्त मैं इसके पहले दयालु परमेश्वर को पाने और उनके प्रेम को चुकाने के लिए अपना शेष जीवन देने के लिए इस तरह कभी उद्यत नहीं हुआ हूँ। मैं इस अवसर का लाभ उठाकर मैं हार्दिक आभार और प्रशंसा व्यक्त करता हूँ। सब गुणगान सभी स्तुति सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए!

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