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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

(1)  सर्वशक्तिमान परमेश्वर की  कलीसिया  के सिद्धांत ईसाई धर्म के सिद्धांत बाइबल से उत्पन्न होते हैं, और  सर्वशक्तिमान परमेश्वर  की क...

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

कठिनाईयों के बीच परमेश्वर के प्रेम को अनुभव किया

परमेश्वर के प्रेम,
शेन लू ज़ेजियांग प्रदेश

मेरा जन्म 1980 के दशक में एक गांव में हुआ था—पीढ़ियों तक हमारा परिवार खेतिहर रहा है। मैंने खुद को अपनी पढ़ाई में झोंक दिया ताकि मैं महाविद्यालय में दाखिला लेकर गांव के गरीबी और पिछड़ेपन भरे जीवन से बच सकूं।जब मैंने हाई स्कूल शुरू किया, तो मैंने पश्चिमी कला के इतिहास से मेरा परिचय हुआ, और जब मैंने "उत्पत्ति", "अदन की वाटिका" और "अंतिम भोज" जैसी कई खूबसूरत पेंटिंग देखीं, तब ही मुझे एहसास हुआ कि ब्रह्मांड में एक परमेश्वर भी है, जिसने सभी चीजों का सृजन किया है। इससे परमेश्वर के प्रति मेरे दिल में अदम्‍य लालसा भर दी। महाविद्यालय से स्नातक होने के बाद, मुझे बहुत आसानी से एक अच्छी नौकरी मिल गई, और फिर मुझे एक बहुत अच्छा साथी भी मिला। अंतत:, मैंने अपनी और साथ ही अपने पूर्वजों की आशाओं को पूरा कर दिया। मैं जमीन की ओर अपना चेहरा और आसमान की ओर अपनी पीठ रखने की अपने पूर्वजों की परंपरा से बच निकली थी, और 2008 में, एक बच्चे के जन्म ने मेरे जीवन में और भी अधिक खुशियां भर दी थी। मेरे जीवन में मेरे पास जो कुछ भी था, उसे देखते हुए, मुझे विश्वास था कि मेरा जीवन सुखी, आरामदायक होना चाहिए। हालांकि, जब मैं उस वांछनीय, सुंदर ज़िंदगी का आनंद ले रही थी, तब भी मैं कभी भी अपने दिल की गहराई में मौजूद उस खालीपन की भावना को नहीं हिला सकी। इसने मुझे बहुत भ्रमित और असहाय महसूस कराया।
नवंबर 2008 में, मेरे परिवार ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के सुसमाचार के बारे में बताया। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से, मैं अंतत: यह समझ गई कि वे मानव जाति के जीवन का स्रोत हैं, और उनके वचन हमारे जीवन की प्रेरणा शक्ति और इसका आधार हैं। अगर हम अपने जीवन से परमेश्वर के जीवनाधार और पोषण का त्याग करते हैं, तो हमारी आत्माएं रिक्त और अकेली हो जाती हैं, और फिर हमारे पास चाहे जो भी भौतिक सुख हों, हम कभी भी अपनी आत्मा की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे। जैसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा था: "मनुष्य, आखिरकार, मनुष्य ही है। परमेश्वर का स्थान और जीवन किसी भी मनुष्य के द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है। मानवजाति को न केवल एक निष्पक्ष समाज की, जिसमें हर एक व्यक्ति परिपुष्ट हो, और सभी एक समान और स्वतंत्र हों, बल्कि परमेश्वर द्वारा उद्धार और उनके लिए जीवन की उपलब्धता की भी आवश्यकता है। केवल जब मनुष्य परमेश्वर द्वारा उद्धार और अपने जीवन के लिए पोषण प्राप्त कर लेता है तभी मनुष्य की आवश्यकताएँ, अन्वेषण की लालसा और आध्यात्मिक रिक्तता का समाधान हो सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है")। उनके वचनों ने रेगिस्तान में एक फव्‍वारे की तरह मेरी आत्मा को तरंगित कर दिया, और मेरे दिल को भ्रममुक्‍त कर दिया। तब से, मैंने प्रबल आकांक्षा और अभिप्‍सा के साथ परमेश्वर के वचनों को पढ़ा, और हमेशा मेरे दिल में सहजता का एक अकथनीय सा अहसास रहा जैसे कि मेरी आत्मा अंततः घर आ गई हो। शीघ्र ही, कलीसिया ने मुझसे मिलने के लिए कुछ भाई-बहनों की व्यवस्था की, और कितने ही प्रतिकूल मौसम में वे लगातार ऐसा करते रहे। उस समय के दौरान, ऐसी बहुत सी चीजें थी जो मैं समझ नहीं पाई थीं और सभी भाई-बहन हमेशा धैर्य से मेरे साथ संवाद करते थे। उनमें चिढ़ने या मेरा परिहास करने की थोड़ी सी भी भावना नहीं थी, और इस तरह से मैंने इन भाइयों और बहनों की सच्चाई और प्यार को गहराई से महसूस किया था। जैसे-जैसे मैं अधिक सत्य समझने लगी, मुझे मानवता को बचाने की परमेश्वर की त्वरित इच्छा की समझ आने लगी, और मैंने देखा कि वे सभी भाई-बहन बहुत उत्सुकतापूर्वक परमेश्वर के सुसमाचार का प्रसार करने में स्‍वयं को व्‍यय कर रहे थे। मैं भी अपना खुद का कर्तव्य निभाना चाहती थी, लेकिन मेरा बच्चा छोटा था और मेरे पास कोई और देखभाल करने वाला नहीं था, तो मैंने परमेश्वर से मुझे मार्ग दिखाने के लिए प्रार्थना की। बाद में, मुझे पता चला कि एक बहन थी जो प्रीस्कूल (शिशु विद्यालय) की प्रभारी थी, तो मैंने अपने बच्चे को उसके पास भेज दिया। उसने बिना किसी भी संकोच के मेरे बच्चे की देखभाल करने में मदद करने का वादा किया, और उसने कोई ट्यूशन (संरक्षण) या खाने का शुल्क भी स्वीकार करने से मना कर दिया। तब से, उस बहन ने न केवल दिन के समय मेरे बच्चे का ध्यान रखने में मेरी मदद की, बल्कि कई बार वह शाम के समय भी मदद कर देती थी। उस बहन के काम ने वाकई मेरे दिल को गहराई से छू लिया, और मैं जान गई कि यह सब परमेश्वर के प्रेम से ही आया है। उनके प्रेम को सार्थक करने के लिए, मैं उस दल से जुड़ गई जो बिना किसी संकोच के सुसमाचार का प्रचार कर रहे थे। सुसमाचार का प्रचार करते हुए, मैंने व्यक्ति-दर-व्यक्ति कई गमगीन स्थितियों को देखा, जो परमेश्वर की दीप्ति से रोशन नहीं हुए थे। मैंने उनके जीवन की कड़वी दिशा के विलाप को सुना, और उन्हें अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार मिलने के उपरांत उनके आनंद व खुशी से भरे हुए उनके चेहरों को भी देखा। इससे सुसमाचार का प्रचार करने के लिए मेरा जोश और अधिक बढ़ गया, और मैंने संकल्प किया कि प्रकाश को लालायित, अंधकार में जी रहे और अधिक लोगों तक परमेश्वर का सुसमाचार ले जाउंगी! लेकिन तभी, सीसीपी सरकार ने कठोरतापूर्वक भाइयों व बहनों को सताना और खदेड़ना शुरू कर दिया था, और मुझे भी इस आपदा को सहना पड़ा था।
वह 21 दिसंबर 2012 की सुबह थी। एक दर्जन से अधिक भाई-बहन एक मेजबान के घर में सभा कर रहे थे, तभी अचानक दरवाज़ा भड़भड़ाने और "दरवाज़ा खोलो! दरवाजा खोलो! घर की तलाशी!" चिल्लाने की आवाज़ आई। जैसे ही एक बहन ने दरवाज़ा खोला, लाठी घुमाते लिए हुए छह या सात पुलिसकर्मी जबरदस्ती अंदर घुस आएं। उन्होंने अशिष्टता से हमें अलग कर दिया और फिर दराज़ो में उथल पुथल करते हुए खोजबीन करने लगे। एक युवा बहन आगे आई और उनसे पूछा: "हम अपने मित्र के घर में बस यूं ही मिलने-जुलने आए हैं और हमने कोई कानून नहीं तोड़ा है। आप लोग घर की तलाशी क्यों ले रहे हैं?" पुलिस ने उग्रतापूर्वक जवाब दिया: "तमीज़ से रहो! अगर हम तुम्हें वहां खड़ा रहने के लिए कहें, तो बस वहां खड़े रहो। अगर हम तुमसे बोलने को न कहें, तो अपना मुंह बंद रखो!" फिर उन्होंने बेरहमी से उसे जमीन पर फेंक दिया और आक्रामक रूप से चिल्लाए: "यदि तुम विरोध करना चाहती हो तो हम तुम्‍हें पीटेंगे!" उसका नाखून टूट गया और उसकी उंगली से खून बह रहा था। पुलिस के दुष्‍ट चेहरों को देखकर, मुझे घृणा और डर दोनों महसूस हो रही थी, इसलिए मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की कि वे मुझे ताकत और आत्मविश्वास दें, गवाही देने हेतु मेरी रक्षा करे। प्रार्थना करने के बाद, मेरा दिल काफी हद तक शांत हो गया था। पुलिस ने कई प्रचार सामग्रियों और परमेश्वर के वचनों के संग्रहों जब्त कर लिया, फिर उन्होंने हमें पुलिस वाहनों में भर दिया।
जैसे ही हम पुलिस स्टेशन पहुंचे, तो हमारे पास जो कुछ भी था, उन्होंने उसे जब्त कर लिया और हमसे हमारे नाम, पते और हमारे कलीसिया के अग्रणियों के विषय में हमसे पूछताछ करने लगे। मुझे इस बात का डर था कि कहीं मेरा परिवार न फंस जाए, इसलिए मैंने कुछ भी नहीं कहा; एक और बहन ने भी कुछ नहीं कहा, इसलिए पुलिस ने हमें मुखिया समझा और हमसे अलग से पूछताछ करने की तैयारी करने लगी। उस समय मैं बहुत डर गई थी—मैंने सुना था कि पुलिस उन लोगों के साथ ख़ास तौर पर क्रूर थी जो स्थानीय नहीं थे, और पूछताछ करने के लिए मुझे एक लक्ष्य के रूप में चुना गया था। इसका निश्चित रूप से अर्थ ज्यादा निर्दयता और दुर्भाग्‍य होता। जिस समय मैं भयंकर स्थिति और डर में जी रही थी, तभी मैंने अपने बेहद निकट मौजूद अपनी बहन को प्रार्थना करते हुए सुना: "हे परमेश्वर, तुम हमारी चट्टान हो, हमारा आश्रय हो। शैतान तुम्हारे पैरों के नीचे है, और मैं तुम्हारें वचनों के अनुसार जीने और तुम्हें संतुष्ट करने हेतु गवाह बनकर खड़ी रहने के लिए तैयार हूं!" यह सुनने के बाद, मेरा दिल उज्ज्वल हो गया। मैंने सोचा: यह सच है—परमेश्वर हमारी चट्टान है, शैतान उनके पैरों के नीचे है, तो मुझे किस बात का डर है? जब तक मैं परमेश्वर के भरोसे हूं और उसके साथ सहयोग करती हूं, तब तक शैतान को परास्त किया जा सकता है! अचानक ही, मेरा डर खत्म हो गया, लेकिन मुझे शर्म भी महसूस हुई। मैंने इस तथ्य के बारे में सोचा कि जब उस बहन ने इसका सामना किया, तो वह परमेश्वर के वचनों पर आधारित होकर जी सकी और उसने परमेश्वर पर विश्वास नहीं खोया, जबकि मैं डरपोक और कायर थी। परमेश्वर में विश्वास करने वाले व्‍यक्ति के समान मुझमें बिल्‍कुल भी आत्‍मबल न था। परमेश्वर के प्रेम और उसके माध्यम से आने वाली उस बहन की प्रार्थना का आभार जिससे मुझे प्रोत्साहन और मदद मिली और जिसने पुलिस की अत्‍याचारी शक्ति के प्रति मेरा डर फ़ौरन दूर कर दिया। मैंने चुपचाप संकल्प लिया: भले ही आज मुझे गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए गवाह बनकर खड़ी रहने हेतु दृढ़प्रतिज्ञ हूँ। मैं वह कायर बिल्कुल भी नहीं बनूंगी, जो परमेश्वर को नीचा दिखाए!
करीब दस बजे, दो पुलिसकर्मियों ने मुझे हथकड़ी पहना दी और मुझसे अकेले में पूछताछ करने के लिए एक कमरे में ले गए। उनमें से एक पुलिसवाले ने मुझसे स्थानीय बोली में बात की। मुझे समझ नहीं आया, और जब मैंने उससे पूछा कि उसने क्या कहा था, तो वे लोग अप्रत्याशित रूप से इस प्रश्न से नाराज़ हो गए। चिल्लाकर खड़े हुए उनमें से एक पुलिसवाले ने कहा: "तुम हमारा सम्मान नहीं करती!" वह ऐसा बोलते हुए मेरे पास आया और मेरे बाल पकड़ कर आगे पीछे पटक दिया। मुझे चक्‍कर आने लगे और मुझे चारों ओर पटका जा रहा था, और मेरे सर में ऐसा महसूस हो रहा था मानो उसे छीला जा रहा हो और मेरे बाल नोचे जा रहे हों। इसके ठीक बाद, एक अन्य पुलिसवाला मेरे पास तेजी से आया और चिल्लाया: "तो हमें कड़ाई बरतनी होगी? बोलो! तुम्‍हें सुसमाचार का प्रचार किसने करने को उकसाया?" मैं क्रोध से भरी हुई थी और मैंने जवाब दिया: "सुसमाचार का प्रचार करना मेरा कर्तव्य है।" जिस पल मैंने ऐसा कहा, तो पहले वाले पुलिसवाले ने फिर से बालों से मुझे पकड़ कर मेरे चेहरे पर थप्पड़ जड़ दिया और मुझे मारते हुए चिल्लाया: "मैं तुमसे और प्रचार करवाऊंगा! मैं तुमसे और प्रचार करवाऊंगा!" वह मेरे चेहरे पर तब तक मारता रहा, जब तब कि वह लाल नहीं हो गया और उसमें दर्द होने लगा, एवं उसमें सूजन आने लगी। जब वह मुझे मारते हुए थक गया, तो उसने मुझे जाने दिया, फिर उसने वह मोबाइल फोन और एमपी-4 प्लेअर ले लिया जो उन्हें मेरे पास मिला था और मुझसे कलीसिया के बारे में जानकारी मांगने लगे। मैंने उनसे निपटने के लिए बुद्धिमत्‍ता पर भरोसा किया। अचानक कहीं से, एक पुलिस वाले ने पूछा: "तुम यहाँ से नहीं हो। तुम इतनी अच्छी तरह से मैंडरिन बोलती हो—तुम ज़रूर कोई आम व्यक्ति नहीं हो। सच बताओ! तुम यहां क्यों आई हो? तुम्हें किसने भेजा है? तुम लोगो का मुखिया कौन है? तुम यहां की कलीसिया के संपर्क में कैसे आईं? तुम कहां रहती हो?" यह सुनकर कि ये पुलिस वाले मुझे एक महत्वपूर्ण व्यक्ति समझ रहे थे और वे मुझसे कलीसिया के बारे में जानकारी इकट्ठा करने पर जोर देने लगे थे, मेरा दिल मेरे गले में आ गया था और मुझे आत्मविश्वास और ताकत देने के लिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना के माध्यम से, मेरा दिल धीरे-धीरे शांत हो गया, और मैंने जवाब दिया: "मैं कुछ भी नहीं जानती हूं।" जब उन्होंने मुझे यह कहते हुए सुना तो वे क्रोधावेश में टेबल को ठोंकते हुए चिल्लाए: "तुम रुको बस, हम देखेंगे कि थोड़ी देर में तुम कैसा महसूस करती हो!" फिर उन्होंने मेरा एमपी4 प्लेअर पर प्ले का बटन दबा दिया। मैं बहुत डरी हुई थी। मैं नहीं जानती थी कि वे मुझसे निपटने के लिए कौन से तरीके का इस्तेमाल करेंगे, इसलिए मैंने तुरंत ही परमेश्वर से याचना करी। मैंने यह कल्पना भी नहीं की थी कि जो बजाया गया, वह जीवन में प्रवेश करने के विषय में की गई सहभागिता की रिकॉर्डिंग थी: "क्या तुम लोग यह सोचते हो कि ऐसे व्यक्ति को बचाया जा सकता है? मसीह के प्रति उसकी श्रद्धा नहीं है; वह मसीह के साथ एकमना नहीं है। जब वह कठिनाईयों का सामना करता है तो वह मसीह से अपना मार्ग अलग कर लेता है और अपने खुद के मार्ग पर चला जाता है। वह परमेश्वर से विमुख होकर इस प्रकार शैतान का अनुसरण करने लगता है। ...बड़े लाल अजगर के राज्य के दौरान, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए, अगर तुम बड़े लाल अजगर से विमुख होने और परमेश्वर के पक्ष में खड़े होने में सक्षम हो, फिर चाहे वह तुम्‍हारा कितना ही पीछा क्‍यों न करे या तुम पर कितने ही अत्‍याचार या दमन क्‍यों न करे, तो तुम पूर्ण रूप से परमेश्वर की आज्ञा मान सकते हो और मृत्युपर्यंत परमेश्वर के प्रति समर्पित रह सकते हो। केवल इसी प्रकार का व्यक्ति ही विजेता कहलाए जाने के योग्य है, ऐसा व्यक्ति कहलाए जाने के योग्य हैं जो परमेश्वर के साथ एकमना हो" (जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति)। जब मैंने "मार्ग अलग कर लेता" शब्दों को सुना, मुझे अपने दिल में दर्द की हूक उठी। मैं यह सोचने के अलावा कुछ नहीं कर पाई कि जब प्रभु यीशु कार्य कर रहे थे, तो उनका अनुसरण करने वालों और उनके अनुग्रह का आनंद लेने वालों की संख्या बहुत थी, लेकिन जब उन्‍हें सलीब पर लटकाया गया, और रोमन सैनिक हर तरफ ईसाईयों को गिरफ्तार कर रहे थे, तो कई लोग डर से भाग गए थे। इस वजह से परमेश्वर को बहुत दु:ख हुआ! लेकिन फिर मुझमें और उन अकृतज्ञ लोगों में क्या अंतर था? जब मैं परमेश्वर के अनुग्रह और आशीर्वाद का आनंद उठाती थी, तो मैं परमेश्वर का अनुसरण करने में आत्मविश्वास से परिपूर्ण थी, लेकिन जब मैंने ऐसी कठिनाईयों का सामना किया, जिसमें मुझे कष्‍ट झेलने और मूल्‍य चुकाने की आवश्‍यकता थी, तो मैं कायर और डरपोक बन गई। यह कैसे परमेश्वर के दिल को सांत्‍वना दे सकता है? मैंने इस तथ्य के बारे में सोचा कि परमेश्वर स्पष्ट रूप से जानते थे कि नास्तिकों द्वारा शासित इस देश चीन में देहधारण करने में बहुत खतरा है, लेकिन हम भ्रष्ट मनुष्यों को बचाने के लिए, वे बिना किसी हिचकिचाहट के दुष्‍टों के इस स्थान पर आए, उनके उत्पीड़न और निंदा को सहा, और वे व्यक्तिगत रूप से हमें सत्य की खोज के मार्ग की ओर लेकर गए। हमें बचाने के लिए सब कुछ बलिदान करने, सब कुछ त्याग देने की परमेश्वर की इच्छा को देखते हुए, क्‍या मैं, जिसने उनके उद्धार के अनुग्रह का आनंद लिया था, उनके लिए एक छोटी सी कीमत का भुगतान भी नहीं कर सकती थी? अपने अंत:करण में, मैंने निंदित महसूस किया और मुझे इस बात से नफरत होने लगी थी कि मैं इतनी स्वार्थी और इतनी बेकार थी। मैंने वाकई गहराई से यह महसूस किया था कि परमेश्वर वाकई मेरे लिए आशा और चिंता से भरे थे। मुझे लगा कि वे अच्छी तरह से जानते थे कि मैं अपरिपक्व और शैतान के निरंकुश चेहरे के समक्ष भयभीत थी; उन्‍होंने मुझे पुलिस द्वारा बजाई गई रिकॉर्डिंग के माध्‍यम से उनकी इच्‍छा को समझने की गुंजाइश दी, ताकि कठिनाईयों व दमन के बीच भी, मैं परमेश्वर की गवाह बनकर खड़ी हो सकूं और उन्‍हें संतुष्ट कर सकूं। एक पल के लिए, मैं परमेश्वर के प्रेम से इतनी द्रवित हो गई थी कि मेरे चेहरे पर आंसू बहने रहे थे, और मैंने चुपचाप परमेश्वर से कहा: "हे परमेश्वर! मैं ऐसी व्यक्ति नहीं बनना चाहती जो तुमसे अलग हो जाए और तुम्हें चोट पहुंचाए; मैं सभी सुखों और दुखों में तुम्हारे साथ खड़ी रहना चाहती हूं। शैतान मुझे चाहे जितनी भी यातनाएं दे, लेकिन तुम्हारे लिए गवाह बनने और तुम्हारे दिल को सांत्वना देने के लिए मैं दृढ़ संकल्पित हूं।"
फिर पुलिस के प्लेअर बंद करने की ज़ोर की आवाज़ आई, वे फिर मेरी तरफ तेजी से आए और घृणापूर्वक कहा: "यह सही है, मैं हूं वह बड़ा लाल अजगर, और आज मैं तुम्हें यातना देने के लिए आया हूं!" फिर उन्होंने मुझे नंगे पैर जमीन पर खड़े होने का आदेश दिया और कंक्रीट ब्‍लॉक (रोड़ी सीमेंट की ईंट) के मध्य में लगे लोहे के कड़े से मेरे दांए हाथ को बांध दिया। मुझे झुककर खड़ा होना पड़ा था क्योंकि वह ब्‍लॉक बहुत छोटा था। उन्होंने मुझे झुककर बैठने की अनुमति नहीं दी, न ही उन्होंने मुझे अपने पैरों का सहारा देने के लिए अपने बाएं हाथ का इस्तेमाल करने दिया। मैं कुछ देर के बाद खड़ी नहीं रह पा रही थी और झुककर बैठना चाहती थी, लेकिन पुलिस वाला मेरे पास आया और चिल्लाने लगा: "झुकना नहीं! अगर तुम कम यातना सहना चाहती हो, तो जल्दी से स्वीकार करो!" मैं बस अपने दांत पीसते हुए यह सब सह सकती थी। मुझे पता नहीं था कि कितना समय बीत गया था। मेरे पैर बर्फ जैसे हो गए थे, मेरी टांगे दर्द कर रही थी और सुन्न हो गई थी, और जब मैं सच में और खड़े रहने में असक्षम हो गई, तो मैं बैठ गई। पुलिस ने मुझे ऊपर उठाया, एक कप ठंडा पानी लाये और मेरी गर्दन के ऊपर से उड़ेल दिया। वह इतना ठंडा था कि मैं कांपने लगी। फिर उन्होंने मेरी हथकड़ियां हटा दी, मुझे धक्का देकर एक लकड़ी की कुर्सी पर बिठा दिया, मेरे हाथ को कुर्सी के विपरीत सिरों पर बांध दिए, और खिड़की खोल दी एवं एयरकंडीशनर चालू कर दिया। अचानक ही ठंडी हवा का झोंका आने लगा और मैं ठंड से बिल्कुल थरथरा रही थी। मैं दिल में कमज़ोर महसूस करने से खुद को नहीं रोक पा रही थी, लेकिन इस यातना के बीच में, मैं लगातार प्रार्थना कर रही थी, परमेश्वर से भीख मांग रही थी कि वे मुझे इस दर्द को सहने की इच्छाशक्ति और ताकत दे, इस देह की कमज़ोरी पर विजय पाने की अनुमति दे। तभी, परमेश्वर के वचन अंदर से मेरा मार्गदर्शन करने लगे: "जब कभी तुम्हारा शरीर पीड़ा सहता है तब शैतान का विचार नहीं लायें। ...विश्वास लकड़ी के इकलौते लट्ठे के पुल की तरह है, जो लोग अशिष्टापूर्वक जीवन से लिपटे रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो खुद का त्याग करने को तैयार रहते हैं वे बिना किसी फ़िक्र के उसे पार कर सकते हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 6")। परमेश्वर के वचनों से मैं यह समझ गई कि शैतान मेरी देह को यातना देना चाहता है ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूं, और अगर मैंने इस देह की ओर थोड़ा भी ध्यान दिया तो मैं उसकी चालबाजी में फंस जाऊंगी। मैं अपने दिमाग में इन दो बातों को दोहराते हुए, खुद से यह कहने लगी कि मुझे शैतान की चालबाजी के विरुद्ध खड़े रहना है और उसके विचारों को अस्वीकृत करना है। कुछ देर बाद, पुलिस ठंडे पानी का पूरा घड़ा ले आई और मेरे गर्दन के ऊपर पूरा पानी उड़ेल दिया। मेरे सारे कपड़े पूरी तरह से गीले हो गए थे। उस पल, मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मुझे बर्फ के बक्से में बंद कर दिया गया हो। उन बेहद अधम, बेहद बुरे पुलिस वालों को देखकर, मैं रोष से भरी हुई थी। मैंने सोचा: दानवों की यह मंडली मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए किसी भी हद तक चली जाएगी—मैं इनकी योजनाओं को बिल्कुल भी सफल नहीं होने दूंगी! मुझे बुरी तरह से कांपता हुआ देखकर, पुलिस वाले ने अपनी मुट्ठी में मेरे बालों को जकड़ लिया और जबरदस्ती मेरा सिर उठाकर खिड़की से बाहर आकाश दिखाते हुए, उपहासपूर्वक कहा, "क्या तुम्हें ठंड नहीं लग रही? अपने परमेश्वर को तुम्हें बचाने आने दो!" उन्‍होंने देखा कि मैं प्रतिक्रिया नहीं कर रही थी, तो उन पुलिसवालों ने एक बार फिर ठंडे पानी का एक बड़ा घड़ा मेरे ऊपर उड़ेल दिया और एयर-कंडीशनर को सबसे ज्यादा ठंडे तापमान पर कर दिया, फिर उसकी हवा का रूख ठीक मेरी ओर कर दिया। ठंडी वायु के साथ हड्डी को कंपा देने वाली ठंडी हवा के झोंके बार—बार मुझसे टकरा रहे थे। मैं इतनी ठंडी हो गई थी कि ठिठुर कर एक गेंद के समान हो गई थी और वास्तव में जमकर ठोस हो गई थी। मुझे महसूस हुआ कि मेरा पूरा शरीर कठोर हो गया था। मेरा आत्मविश्वास धीरे—धीरे खत्म होने लगा था, और मैं अपने दिमाग में मूर्खतापूर्ण विचारों को सोचने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी: कितना ठंडा दिन है, लेकिन उन्होंने मुझे ठंडे पानी से भिगो दिया और एयर कंडीशनर भी शुरू कर दिया। क्या ये मुझे ज़िंदा की जमा देने की कोशिश कर रहे हैं? अगर मैं यहां मर जाती हूं, तो मेरे रिश्तेदारों को इसके बारे में पता भी नहीं चलेगा। लेकिन जिस पल मैं अंधकार में डूबती जा रही थी, तभी अचानक मैंने उस यातना के बारे में सोचा जिसे यीशु ने मानवता को छुटकारा दिलाने के लिए सलीब पर लटकते हुए सहा था। फिर मैंने इस गीत में परमेश्वर के वचनों को सोचा: "वह प्रेम जिसने शोधन का अनुभव किया हो, निर्बल नहीं बल्कि शक्तिशाली होता है। इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर कब और कैसे तुम्हें अपनी परीक्षाओं के अधीन लाता है, तुम इस बात की चिंता नहीं करोगे कि तुम जीओगे या मरोगे, तुम ख़ुशी-ख़ुशी परमेश्वर के लिए सब कुछ त्याग दोगे, और परमेश्वर के लिए किसी भी बात को ख़ुशी-ख़ुशी सहन कर लोगे—और इस प्रकार तुम्हारा प्रेम शुद्ध होगा, और तुम्हारा विश्वास वास्तविक होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल शोधन का अनुभव करने के द्वारा ही मनुष्य सच्चाई के साथ परमेश्वर से प्रेम कर सकता है")। परमेश्वर के इन वचनों ने वाकई मुझे प्रेरित कर दिया था—हां! उस दिन परमेश्वर के गवाह बनने में सक्षम होना उनका मुझे प्रेरणा देना था—मैं देह पर ध्यान भी कैसे दे सकती थी? भले ही अगर इसका अर्थ मेरी ज़िंदगी खोना हो, लेकिन मैं परमेश्वर के प्रति निष्ठावान रहने के लिए दृढ़संकल्पित थी। अचानक, मेरे दिल में लहर उठने लगी और मैं बेहद प्रेरित महसूस करने लगी। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! आपने मुझे यह सांस दी है, मैं ज़िंदगी से बंधे रह कर और आपके प्रति गद्दारी करने के स्थान पर मरना पसंद करूंगी।" धीरे—धीरे मुझे ठंड लगनी कम हो गई, जिससे मुझे परमेश्वर की संगति और सहजता को महसूस करने की अनुमति मिली। दोपकर से शाम को लगभग सात बजे तक, पुलिस लगातार मुझसे पूछताछ करती रही। जब उन्होंने देखा कि मैं अपना मुंह बिल्कुल भी नहीं खोलूंगी, तो उन्होंने पूछताछ कक्ष में मुझे बंद कर दिया और मुझ पर ठंडी हवा के झोंके मारना जारी रखा।
रात्रिभोज के बाद, पुलिस वालों ने अपनी पूछताछ की प्रबलता को बढ़ा दिया। उन्होंने क्रूरतापूर्वक मुझे डराते हुए कहा: "हमें बताओ! तुम लोगों की कलीसिया का अगुवा कौन है? अगर तुमने हमें यह नहीं बताया, तो हमारे पास और भी तरीके हैं, हम तुम्हें तीखी मिर्चों का जूस, झाग वाला पानी पिला सकते हैं, तुम्हें मल खिला सकते हैं, तुम्हारे कपड़े फाड़कर तुम्हें नंगा कर सकते हैं, तुम्हें तहखाने में फेंक सकते हैं, और तुम्हें जमकर मार सकते हैं! अगर तुमने आज नहीं बताया, तो हम कल फिर तुमसे पूछताछ करेंगे। हमारे पास बहुत समय है!" जब उस पुलिस वाले ने यह कहा, तो मैंने सच में यह देखा कि वे इंसान तो बिल्कुल नहीं थे, वे मानव देह में दानवों की मंडली थी। वे इस तरीके से जितना ज्यादा मुझे डराते, मैं अपने दिल में उनसे उतनी ही ज्यादा घृणा करने लगती थी, और उनके समक्ष कभी न झुकने के लिए उतनी ही ज्यादा दृढ़ संकल्पित हो जाती थी। जब उन्होंने देखा कि मैं हार नहीं मानूंगी, तो वे कपड़े की एक थैली ले आए, उसे पानी से भिगो दिया, और उसे मेरे सिर पर डाल दिया। उन्‍होंने मेरे सिर को ढंक दिया और मुझे हिलने भी नहीं दिया, फिर इसे कस दिया। मैं हिल भी नहीं सकती थी क्योंकि मेरे हाथ कुर्सी से बंधे हुए थे। कुछ ही समय में, मैं घुट जाने की कगार पर पहुंच गई थी; मुझे महसूस हुआ कि मेरा पूरा शरीर कठोर हो गया था। लेकिन यह भी उनकी घृणा को दूर करने के लिए पर्याप्त न था। वे ठंडे पानी का एक घड़ा ले आए और इसे मेरी नाक से उड़ेल दिया, मुझे डराते हुए यह कहा कि अगर मैंने मुंह नहीं खोला, तो यूं ही मेरा दम घुटता रहेगा। उस गीले थैले में से वैसे ही हवा नहीं गुज़र रही थी, और ऊपर से मेरी नाक में पानी भरा जा रहा था। सांस लेना काफी कठिन था, और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि मृत्यु मेरे बहुत नज़दीक आ गई थी। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्वर, मेरी यह सांस मुझे आपने ही दी है, तो आज मुझे आपके लिए जीना चाहिए। चाहे पुलिस मुझे कितनी भी यातना क्यों न दे, मैं आपको धोखा नहीं दूंगी। अगर आपको मेरे जीवन बलिदान की ज़रूरत है, तो मैं किसी भी शिकायत के बिना आपकी युक्ति और व्यवस्था का पालन करने के लिए राज़ी हूं...।" उन्होंने मुझे यातना देना जारी रखा। जब मैं अपनी चेतना खोने वाली थी और मेरी सांस रुकने ही वाली थी, कि अचानक उन्होंने मेरे हाथ खोल दिए। मैं अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद देने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। मैंने स्पष्ट रूप से यह अनुभव किया था कि परमेश्वर ही सब चीजों के अधिपति हैं, कि वे हमेशा ही मेरा ध्यान रखते और मेरी रक्षा करते हैं और भले ही मैं पुलिस के हाथों में फंस गई थी, लेकिन परमेश्वर ने उन्‍हें केवल मेरी देह को यातना देने की ही अनुमति दी लेकिन उन्हें मेरा जीवन लेने की अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद, मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया था।
दूसरे दिन लगभग दोपहर के समय, कुछ पुलिस वालों ने मुझे और एक अन्य बहन को पुलिस के वाहन में डाला और हमें सुधार-गृह ले गए। उनमें से एक ने मुझे धमकाते हुए कहा: "तुम यहां से नहीं हो। हम तुम्हें छ: महीने के लिए बंद रखेंगे, फिर हम किसी भी मामले में तुम्हें 3—5 साल की सज़ा सुनवाएंगे और किसी को भी पता नहीं चलेगा।" "सज़ा?" जैसे ही मैंने यह सुना कि मुझे सज़ा दी जाएगी, तो मैं खुद को कमज़ोर पड़ने से न रोक पाई। मैंने महसूस किया कि अगर मुझे सज़ा हुई तो अन्य लोग मुझे नीचा समझेंगे। जिस पल मैं दर्द और निर्बलता में थी, उसी पल परमेश्वर ने एक बार फिर मुझ पर पर अपना अनुग्रह न्‍यौछावर किया। मुझे जिस कमरे में बंद किया गया था, उसमें मौजूद अन्य सभी भी बहनें ही थी, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती थीं। भले ही वे दानवों के उस अड्डे में थीं, लेकिन उनमें थोड़ा सा भी डर नहीं दिखता था। वे एक—दूसरे को प्रोत्साहित करतीं और सहारा देती थीं, और जब उन्होंने देखा कि मैं नकारात्मक और कमजोर थी, तो उन्होंने मुझे अपने निजी अनुभवों और गवाही से, परमेश्वर में आत्मविश्वास दिया। मुझे प्रोत्साहित करने के लिए अनुभव का भजन भी गाया: "देह धारण किया परमेश्वर ने, इंसान को बचाने, हर कदम पर उसकी रहनुमाई करने, कलीसियाओं के मध्य चलने, सत्य व्यक्त करने, कड़ी मेहनत से इंसान को सींचने, उसका शुद्धिकरण करने और उसे पूर्ण बनाने के लिये। अनुभव लिया है मैंने इम्तहानों की कड़वाहट का, गुज़रा हूँ मैं परमेश्वर के न्याय से। कड़वाहट के बाद आती है मिठास भी, दूर हो रही है भ्रष्टता मेरी। समर्पित करता हूँ मैं दिल और देह अपने, ताकि लौटा सकूँ मैं परमेश्वर के प्रेम को, लौटा सकूँ मैं परमेश्वर के प्रेम को। कितने ही बसंत, ग्रीष्म, पतझड़ और सर्द मौसम देखे हैं परमेश्वर ने, मिठास के साथ कड़वाहट भी झेली है उसने, झेली है उसने। त्यागता है वो सब-कुछ मगर कभी मलाल नहीं करता, निस्वार्थ-भाव से दिया है प्रेम अपना उसने। छोड़ दिया मुझे मेरे अपनों ने, बदनाम किया मुझे दूसरों ने। मगर प्यार मेरा परमेश्वर के लिये अंत तक अविचल है। परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने की ख़ातिर पूर्णत: समर्पित हूँ मैं। सहता हूँ यातनाओं, पीड़ाओं को मैं, ले रहा हूँ अनुभव उतार-चढ़ाव का मैं। फ़र्क नहीं पड़ता कि सह रहा हूँ मुश्किलें इस जीवन में मैं, फ़र्क नहीं पड़ता कि कड़वाहट से भरी है ज़िंदगी मेरी। अनुसरण करना ही है परमेश्वर का, गवाही देनी है परमेश्वर की मुझे" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "परमेश्वर की गवाही देना और उसके प्रेम के प्रतिफल को चुकाना")। इस गीत के बारे में सोचकर, मैंने इन बहनों के जीवनबल को महसूस किया और मुझे बहुत ज्यादा प्रोत्साहन प्राप्‍त हुआ। यह सत्य था, परमेश्वर को शत्रु की तरह देखने वाले नास्तिक दल के शासन वाले देश में हम सच्चे परमेश्वर का अनुसरण कर रहे थे और जीवन के सच्चे मार्ग पर चल रहे थे। हमारा कई कठिनाईयों को सहना पहले से नियत था, लेकिन इन सबका अर्थ भी था, और जेल में बैठना भी आनंददायक बात थी क्योंकि सत्य का अनुसरण और परमेश्वर के मार्ग का पालन करने की वजह से हम पर अत्याचार किया जा रहा था। यह भयंकर अपराध करने के लिए कैद किए जाने वाले दुनिया के लोगों से पूरी तरह से अलग था। फिर मैंने पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन कई सारे संतों के बारे में सोचा, जिन्होंने सत्य के मार्ग पर चलने की वजह से यातना और अपमान सहा था। लेकिन अब, मुझे मुक्त रूप से परमेश्वर के इतने सारे वचन मिल गए थे, कि मैं उस सत्य को समझ गई थी जिसे पीढ़ियों से भी लोग समझने में सक्षम नहीं हो पाए थे, मैं उन रहस्यों को जान गई थी जिसे पीढ़ियां भी नहीं जान पाई थी, तो मैं परमेश्वर की गवाही देने के लिए थोड़ी सी भी यातना सहने में क्यों नहीं सक्षम हो पा रही थी? जब मैंने इस बारे में सोचा, मैं कमज़ोरी की अपनी स्थिति से फिर से एक बार बाहर आने लगी, मेरा दिल आत्मविश्वास व ताकत से भर गया, और मैं परमेश्वर पर भरोसा करने और अपराध स्वीकारोक्ति करने के लिए अगले दिन की यातनाओं और मांगों को पूरा करने के लिए सिर ऊंचा रख कर दृढ़ संकल्पित हो गई थी।
दस दिनों के बाद, पुलिस ने मुझे अकेले ही सुधार गृह भेज दिया। मैंने देखा कि वहां बाकी सभी लोगों को धोखाधड़ी, चोरी और गैरकानूनी व्यापारों के लिए बंद रखा गया था। जैसे ही मैं अंदर गई, उन्होंने मुझसे कहा: "यहां जो भी अंदर आता है वह आम तौर पर बाहर नहीं जाता है। हम सभी अपने फैसलों का इंतजार कर रहे हैं, हम में से कुछ तो महीनों से इंतजार कर रहे हैं।" इन लोगों की ओर देखते हुए, मैं इतनी ज्यादा व्‍याकुल हो गई थी कि मेरा दिल फटने ही वाला था। मैं डर गई थी कि वे मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव करेंगे, और फिर जब मैंने इस तथ्य के बारे में सोचा कि पुलिस मुझे उनके साथ बंद रखेगी, तो मैंने सोचा कि हो सकता है कि वे मुझे अपराधी की सज़ा दे। मैंने सुन रखा था कि कुछ भाई-बहनों को आठ साल तक की सज़ा सुनाई गई थी। मैं नहीं जानती थी कि मुझे और कितना इंतजार करना होगा, और मैं तो बस 29 साल की थी! क्‍या मेरी युवावस्था इस अंधेरी कोठरी में बंद होकर ही गुज़र जायेगी? और कैसे मैं ये दिन गुज़ारूंगी? उस पल, ऐसा लग रहा था कि मेरा गृहनगर, माता—पिता, पति और बच्चा सभी अचानक ही मुझसे बहुत दूर हो गए थे। ये ऐसा था कि मानो मेरे दिल में नश्‍तर बिंध गया हो, और मेरी आंखों में आंसू भर आए। मैं जानती थी कि मैं शैतान की जालसाजी में फंस गई थी, इसलिए मैंने उत्साहपूर्वक परमेश्वर को पुकारा, और यह उम्मीद की कि वे इस पीड़ा से बाहर निकलने में मेरा मार्गदर्शन करेंगे। मेरी प्रार्थना के मध्य में, मैंने साफ तौर पर मेरे अंदर मार्गदर्शन को महसूस किया: जब तुम इसका सामना करती हो, तो तुम्हारे पास परमेश्वर की आज्ञा है। जैसे कि अय्यूब ने परीक्षा देते हुए, शिकायत नहीं की थी। इसी पल, परमेश्वर के वचनों ने एक बार फिर मुझे प्रबुद्ध किया: "क्या तू उसके बजाए मेरे प्रत्येक आयोजनों के आधीन होगा (चाहे मृत्यु हो या विनाश) या मेरी ताड़ना से बचने के लिए दूर भाग जाएगा?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "तुम विश्वास के विषय में क्या जानते हो?")। परमेश्वर के वचनों में न्याय व ताड़ना ने मुझे शर्मिंदा महसूस कराया। मैंने यह देखा कि मैं परमेश्वर की ओर बिल्‍कुल भी निष्ठावान नहीं थी, बल्कि मैं बस कहती थी कि मैं उनके लिए अच्छी गवाह बनना चाहती हूं। हालांकि, जब मैंने जेल जाने के असली जोखिम का सामना किया, तो मैं बस भागना चाहती थी। सत्य के लिए पीड़ा सहने की कोई प्रायोगिक क्षमता मुझमें नहीं थी। उस पल के बारे में वापस सोचते हुए जब मुझे गिरफ्तार किया गया था, परमेश्वर पूरे समय मेरे साथ थे। उन्‍होंने इस मार्ग के एक भी कदम पर इस डर से मेरा साथ नहीं छोड़ा कि मैं अपना मार्ग खो दूंगी और मार्ग पर मुझे ठोकर लगेगी। मेरे प्रति परमेश्वर का प्रेम यथार्थ रूप से निष्ठावान था और बिल्कुल भी रिक्त नहीं था। लेकिन मैं स्वार्थी और लोभी थी, और पूरे समय खुद के दैहिक फायदों व हानियों के बारे में ही सोचा करती थी। मैं परमेश्वर के लिए कोई भी कीमत चुकाने की इच्छा नहीं रखती थी—मुझमें कोई भी मानवता कैसे हो सकती थी? कोई सच्चाई? जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मैं पछतावे और आभार से भरा हुआ महसूस करने लगी। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की और पछतावा किया: हे परमेश्वर! मैं गलत थी। मैं अब और आपको दिखावटी प्रेम नहीं कर सकती और धोखा नहीं दे सकती। मैं आपको संतुष्ट करने के लिए वास्तविकता में जीना चाहती हूं। चाहे मुझे कितनी भी सज़ा क्यों न दी जाए, मैं निश्चित रूप से आपकी गवाही दूंगी—मैं बस इतना मांगती हूं कि आप मेरे दिल की रक्षा करें। तभी, कैदियों की मुखिया अंदर आई और मुझसे कहा: "मैं नहीं जानती कि तुम यहां क्यों हो, लेकिन हमारे बीच एक कहावत है: 'एक भी अपराध स्‍वीकार करो और उम्रकैद की सज़ा पाओ; उग्रतापूर्वक प्रतिरोध करो और तुम आज़ाद ज़िंदगी जी सकती हो।' अगर तुम मुंह नहीं खोलना चाहती हो, तो मत खोलो।" मैंनें इस बेहतरीन व्यवस्था और कैदियों की मुखिया से मुझे दी गई बुद्धिमत्‍ता के लिए परमेश्वर का धन्यवाद दिया जिससे मुझे समझ आया कि होने वाली पूछ-ताछ से कैसे निपटना है। मैंने इसलिए भी आभार व्यक्त किया कि बाकी साथियों ने भी मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं किया, बल्कि मेरा ध्यान भी रखा, मुझे कपड़े दिए, खाने के समय मुझे अतिरिक्‍त भोजन दिया, और वे अपने लिए जो भी फल और स्नैक्स लेकर आई थीं उन्हें भी मेरे साथ साझा किया, उन्होंने मेरे दैनिक श्रम में भी मेरी मदद की थी। मैं जानती थी कि यह सब कुछ परमेश्वर की रूपरेखा और व्यवस्था थी; यह मेरी बच्चे जैसी प्रकृति के लिए परमेश्वर की दया थी। उनके प्रेम व सुरक्षा का सामना करके, मैंने अपना संकल्प निर्धारित किया: मुझे चाहे जितनी भी लंबी सज़ा दी जाए, लेकिन मैं परमेश्वर के लिए गवाह बनकर खड़ी रहूंगी!
सुधारगृह में, पुलिस हर कुछ दिनों के अंतराल में मुझसे पूछताछ करती रही। जब उन्हें यह आभास हुआ कि कठोरता दिखाना मुझ पर काम नहीं कर रहा था, तो वे लोग नरम पड़ गये। मुझसे पूछताछ कर रहे पुलिसकर्मी ने जान—बूझकर शांत तरीके का दिखावा करके मुझसे गपशप की, मुझे खाने के लिए अच्छा खाना दिया, और कहा कि वह एक अच्छी नौकरी खोजने में मेरी मदद कर सकता है। मैं जानती थी कि यह शैतान की जालसाजी थी, इसलिए हर बार जब वह मुझसे पूछताछ करता तो मैं बस परमेश्वर से रक्षा करने की और इन चालों में न फंसने देने की प्रार्थना करने लगती। एक बार जब वह मुझसे पूछताछ कर रहा था, तो उस पुलिसवाले ने अंतत: अपना बुरा प्रयोजन को उजागर किया: "हमें तुमसे कोई हिसाब नहीं चुकता करना है, हम तो बस सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर कड़ी कार्रवाई करना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि तुम हमारे साथ शामिल हो सकती हो।" जब मैंने ये बुरी बातें सुनी, तो मैं बहुत ज्यादा क्रोधित हो गई थी। मैंने सोचा: परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया और अब तक वे हमारा भरणपोषण और मार्गदर्शन करते आये हैं। और अब जिन्हें उन्‍होंने बनाया उन्हें बचाने एवं पीड़ाओं के हमारे नर्क से निकलने में हमारी मदद करने के लिए वे आये हैं। इसमें आखिर समस्या क्या है? क्यों इन इब्लिसों द्वारा उनसे इतनी नफ़रत की जाती है, उन्‍हें इतना कलंकित किया जाता है? हम परमेश्वर की रचना हैं। परमेश्वर का पालन करना और उनकी पूजा करना सही और उचित है, तो शैतान हमें इस तरह से क्यों रोकता है कि परमेश्वर का पालन करने की आज़ादी को भी छीन लेता है? अब वे परमेश्वर पर आक्रमण करने की अपनी तलाश में मुझे अपनी कठपुतली बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह सीसीपी सरकार वाकई में परमेश्वर का विरोध करने के लिए दृढ़ संकल्पित दानवों की एक मंडली है। ये कितने दुष्‍ट क्रांतिकारी हैं! मुझे फिर अपने दिल में एक अकथनीय दर्द महसूस होने लगा था, और मैं केवल परमेश्वर के लिए गवाह बनकर खड़ी होकर उनके दिल को सुख देना चाहती थी। जब पुलिस ने देखा कि मैं तब भी कुछ नहीं बोलूंगी, तो उन्होंने मेरे विरुद्ध मनोवैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने चाइना मोबाइल के माध्यम से मेरे पति को खोज निकाला और मुझे समझाने बुझाने के लिए उन्‍हें और मेरे बच्चे को ले आए। मेरे पति को शुरू में परमेश्वर में मेरे विश्वास को लेकर कोई समस्‍या नहीं थी, लेकिन पुलिस द्वारा बहकाए जाने के बाद, वे मुझे बार—बार कहने लगे: "मैं तुमसे भीख मांगता हूं कि अपनी निष्ठा को त्याग दो। अगर मेरा न सही तो कम से कम हमारे बच्चे के बारे में सोचो। मां के जेल में होने का उस पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा। ..." मैं जानती थी कि मेरे पति यह सब अज्ञानता के कारण कह रहे थे, तो मैंने उनकी बात काट दी और कहा: "तुम अब भी मुझे नहीं समझते हो? हमें एक साथ रहते हुए इतने साल हो गए हैं, क्या तुमने कभी भी मुझे कुछ बुरा करते हुए देखा था? अगर तुम कोई बात नहीं समझते हो तो फिर बस यूं ही कुछ भी मत बको।" जब मेरे पति ने देखा कि उनकी बातों से मेरे मन में कोई बदलाव नहीं आ रहा, तो उन्‍होंने कड़वी बातें कहना शुरू कर दी: "तुम कितनी ज़िद्दी हो और बिल्कुल भी नहीं सुनती हो, तो फिर मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा।" इस शब्द "तलाक" ने मेरे दिल को भीतर तक चीर दिया। इससे मैं सीसीपी सरकार से और भी ज्यादा गहराई से घृणा करने लगी। यह उसकी बदनामी और विरोध का बीजारोपण था जिस वजह से मेरे पति इस तरह से परमेश्वर के कार्य से घृणा करने लगे थे और मुझसे ऐसी अप्रिय बातें कहने लगे थे। सीसीपी सरकार वाकई में दोषी है जो आम लोगों से स्वर्ग का अपमान करने के लिए कहती है! यह पति और पत्नी के तौर पर हमारी भावनाओं का अवमूल्यन करने की भी दोषी है! यह विचार आने पर, मैं अपने पति से और कुछ भी नहीं कहना चाहती थी। मैंने शांतचित्त से कहा: "तो ज़ल्‍दी करो और हमारे बच्चे को घर ले जाओ।" जब पुलिस ने देखा कि इस चाल ने भी काम नहीं किया था, तो वे इतना गुस्सा हो गए कि अपनी मेज के सामने इधर—उधर टहलने लगे और फिर मुझ पर चिल्लाने लगे: "हमने इतनी कड़ी मेहनत की है और अब तक तुमसे एक भी जवाब नहीं मिला है! अगर तुमने अब भी बोलने से मना किया, तो एक राजनैतिक कैदी के रूप में हम तुम पर इस क्षेत्र की मुखिया होने का आरोप लगा देंगे! अगर तुमने आज अपना मुंह नहीं खोला, तो फिर तुम्हें मौका नहीं मिलेगा।" लेकिन वे चाहे जो भी अनापशनाप बकते रहे, मैं बस अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करती रही और उनसे मेरी निष्ठा को बल देने के लिए कहती रही।
मेरी पूछताछ के दौरान, परमेश्वर के वचन का एक भजन था, जो अंदर से लगातार मेरा मार्गदर्शन करता रहा: "अंत के दिनों के कार्य में, हम से उत्कृष्ट आस्था और उत्कृष्ट प्रेम की आशा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है। परमेश्वर मानव जाति की आस्था को परिपूर्ण कर रहा है—इसे कोई देख या छू नहीं सकता। इस चरण में परमेश्वर शब्दों को आस्था, प्रेम और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार परिष्करण का सामना कर चुके हों और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हों। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहन करने की आवश्यकता है। जब वे मृत्यु तक आज्ञाकारी रहते हैं, और परमेश्वर पर अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है। परमेश्वर का कार्य उतना सरल नहीं है जितना तुम सब सोचते हो। लोगों की धारणाओं के साथ जितना कम यह मेल खाता है इसका महत्व उतना ही गहरा होता है, और लोगों की धारणाओं के साथ जितना अधिक यह मेल खाता है, यह उतना ही कम मूल्यवान होता है और बिना किसी वास्तविक महत्व के है। इन शब्दों पर ध्यान से विचार करो" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "जो परमेश्‍वर पूर्ण करते हैं वह आस्‍था है")। परमेश्वर के वचनों से मुझे जो निष्ठा और ताकत मिली थी उसकी वजह से, जब मुझसे पूछताछ की जा रही थी, तब मैं बिल्कुल निष्‍ठावान बनी रही। लेकिन जब मैं अपनी कोठरी में वापस आई, तो मैं खुद को थोड़ा कमजोर और आहत होने से नहीं रोक पाई। ऐसा लग रहा था कि मेरे पति वाकई मुझे तलाक देने वाले थे और अब मेरे पास कोई घर भी नहीं रह जाता। मैं यह भी नहीं जानती थी कि मेरी सज़ा कितनी लंबी होगी। इस दर्द के बीच में, मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया: "तुम्हें पतरस की उस समय की मनोदशा का अनुभव करना चाहिएः वह दुख से व्यथित था; उसने किसी भविष्य या किसी आशीष के लिए अब और नहीं कहा था। उसने संसारी लाभ, प्रसन्नता, प्रसिद्धि या धन-दौलत की कामना नहीं की, और केवल एक अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहा, जो कि परमेश्वर के प्रेम को चुकाने और परमेश्वर के प्रति अपने सबसे बहुमूल्य को समर्पित करने के लिए था। तब वह अपने हृदय में संतुष्ट हो होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "पतरस ने यीशु को कैसे जाना")। मैं पतरस के कर्मों से अंदर तक द्रवित हो गई थी, और इसने परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सब कुछ त्याग देने की मेरी इच्छा को और भी प्रेरित कर दिया था। यह सत्य था। जब पतरस दु:खों से पूरी तरह टूट चुकने की स्थिति में पहुंच गया था, तब भी वह उसका सामना करके परमेश्‍वर को संतुष्‍ट कर सका। यह उसकी खुद की अपेक्षाओं या भाग्य के लिए, या उसके खुद के लाभ के लिए नहीं था, और अंत में जब उसे सलीब पर उल्टा लटकाया गया तो उसने परमेश्वर के लिए एक अच्छे गवाह के रूप में काम किया। लेकिन फिर मेरे पास देहधारी परमेश्वर का अनुसरण करने, मेरी ज़िंदगी में परमेश्वर के अनंत प्रावधान के साथ ही उनके अनुग्रह व आशीर्वाद का आनंद उठाने का सौभाग्य था, परंतु मैंने कभी भी परमेश्वर के लिए कोई असली कीमत नहीं चुकाई थी। और फिर जब उन्‍हें मेरी जरूरत थी कि मैं उनके लिए गवाही दूं, तो मैं एक बार भी उन्‍हें संतुष्ट नहीं कर पाई? क्या इस मौके को खो देना ऐसा कुछ होगा जिस पर मुझे पूरी ज़िंदगी पछतावा होगा? जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मैंने परमेश्वर के समक्ष अपनी इच्छा को दृढ़संकल्पित किया: हे परमेश्वर, मैं पतरस के उदाहरण का अनुसरण करने के लिए तैयार हूं। मेरा अंज़ाम चाहे जो हो, भले ही मुझे तलाक लेना पड़े या जेल में अपना समय बिताना पड़े, मैं आपको धोखा नहीं दूंगी! प्रार्थना करने के बाद, मैंने अपने अंदर शक्ति की एक लहर को महसूस किया। मैंने अब यह सोचना छोड़ दिया था कि मुझे सज़ा होगी या नहीं या यह सज़ा कितनी लंबी होगी, और मैं यह भी नहीं सोचा करती थी कि मैं वापस घर लौटकर अपने परिवार से फिर मिल पाउंगी भी या नहीं। मैं सिर्फ यह सोचा करती थी कि दानव की गुफा में एक और दिन का मतलब है परमेश्वर की गवाही में खड़े रहने का एक और दिन, और भले ही मुझे अंत तक भी यहां समय बिताना पड़े, लेकिन मैं तब भी शैतान के आगे नहीं झुकूंगी। जब मैंने खुद का समर्पण कर दिया, तो मैंने सच में परमेश्वर के प्रेम व अनुराग को अनुभव किया। कुछ दिनों के बाद, एक दोपहर को, एक पहरेदार ने आकर अचानक मुझसे कहा: "अपनी चीज़ों को समेट लो, तुम घर जा सकती हो।" मुझे अपने कानों पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था! मुझे छोड़ने से पहले पुलिस ने एक दस्तावेज़ पर मुझसे हस्ताक्षर करवाए। मैंने साफ तौर पर उस पर लिखी बातों को पढ़ा: "पर्याप्त सबूत न मिल पाने की वजह से दोषी नहीं, छोड़ दिया जाए।" यह देखकर, मैं अकथनीय रूप से उत्साहित हो गई। मैंने एक बार फिर से परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्‍ता और विश्‍वसनीयता देखी, कि "जो खुद का त्याग करने को तैयार रहते हैं वे बिना किसी फ़िक्र के उसे पार कर सकते हैं।" आध्यात्मिक युद्ध में यह जंग शैतान हार गया था और अंत में परमेश्वर की महिमा हुई!
चीनी पुलिस द्वारा 36 दिनों की कैद और उत्पीड़न को सहने के बाद, मैं सच में सीसीपी सरकार के क्रूर अत्याचार, और उनके विद्रोही और प्रतिक्रियावादी सार को समझ गई थी। तब से मैं उससे गहराई से घृणा करने लगी थी। मैं जानती हूं कि उन कठिनाइयों के दौरान, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ थे, मुझे प्रबुद्ध कर रहे थे, मेरा मार्गदर्शन कर रहे थे, और इस मार्ग के प्रत्येक चरण पर मुझे शैतान की क्रूरता पर और शैतान की परीक्षा पर विजयी होने दे रहे थे। इसने मुझे इस तथ्य का सच्चा अनुभव कराया कि परमेश्वर के वचन यथार्थ में मानवता का जीवन और हमारी ताकत हैं। मैं सच में यह जान गई कि परमेश्वर ही हमारे अधिपति हैं और वे सब चीजों पर शासन करते हैं, और शैतान के पास चाहे जितनी भी चालें हों, वह हमेशा ही परमेश्वर के हाथों हारेगा। उसने परमेश्वर को धोखा देने, उसे छोड़ देने के लिए मुझ पर जोर देने हेतु मेरी देह को यातनाएं देने का प्रयास किया, लेकिन उसकी क्रूर यातनाएं मुझे तोड़ नहीं पाई, बल्कि इसने मेरे संकल्प को और भी मजबूत कर दिया और उसके दुष्‍ट रूप को देखने और परमेश्वर के प्रेम व उद्धार को पहचानने की अनुमति दी। परमेश्वर को मेरे लिए सभी चीजों की व्यवस्था करने के लिए, और अपनी ज़िंदगी की सबसे बहुमूल्य संपत्ति प्राप्त करने की अनुमति देने के लिए, मैं अपने दिल की गहराई से परमेश्वर का धन्यवाद करती हूं! आगे के मार्ग पर चाहे जितने भी दमन या कठिनाईयां हों, मैं दृढ़ संकल्‍प के साथ परमेश्वर के महान प्रेम को सार्थक करने के लिए उनका अनुसरण करने और पहले की ही तरह सुसमाचार का प्रचार करना जारी रखने के लिए तैयार हूं!

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