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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

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सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

मसीह के कथन "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है"(अंश II)


मसीह के कथन "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है"(अंश II)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "यह वह एकमात्र वज़ह है कि भ्रष्ट मनुष्य की आवश्यकताओं के कारण ही देहधारी परमेश्वर देह में होकर आया है। यह मनुष्य की आवश्यकताओं के कारण है परन्तु परमेश्वर की आवश्यकताओं के कारण नहीं, और उसके समस्त बलिदान एवं कष्ट मानवजाति के लिए हैं, और स्वयं परमेश्वर के लाभ के लिए नहीं हैं।परमेश्वर के लिए कोई पक्ष एवं विपक्ष या प्रतिफल नहीं है; वह भविष्य की कोई फसल नहीं काटेगा, बल्कि वह जो मूल रूप से उसे दिया जाना था। वह सब जिसे वह मानवजाति के लिए करता है और बलिदान करता है यह इसलिए नहीं है ताकि वह बड़ा प्रतिफल अर्जित कर सके, परन्तु यह विशुद्ध रूप से मानवजाति के लिए है। यद्यपि देह में किए गए परमेश्वर के कार्य में अनेक अकल्पनीय मुश्किलें शामिल होती हैं, फिर भी वे प्रभाव जिन्हें वह अंततः हासिल करता है वे उन कार्यों से कहीं बढ़कर होते हैं जिन्हें आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किया जाता है। देह के कार्य में काफी कठिनाईयां साथ में जुड़ी होती हैं, और देह आत्मा के समान वैसी ही बड़ी पहचान को धारण नहीं कर सकता है, और आत्मा के समान उन्हीं अलौकिक कार्यों को क्रियान्वित नहीं कर सकता है, और वह आत्मा के समान उसी अधिकार को तो बिलकुल भी धारण नहीं कर सकता है। फिर भी इस साधारण देह के द्वारा किए गए कार्य का मूल-तत्व आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किए गए कार्य से कहीं अधिक श्रेष्ठ है, और यह देह स्वयं ही मनुष्य की समस्त आवश्यकताओं का उत्तर है। क्योंकि उनके लिए जिन्हें बचाया जाना है, आत्मा की उपयोगिता का मूल्य देह की अपेक्षा कहीं अधिक निम्न है: आत्मा का कार्य समूचे विश्व, सारे पहाड़ों, नदियों, झीलों एवं महासागरों को ढंकने में सक्षम है, फिर भी देह का कार्य और अधिक प्रभावकारी ढंग से प्रत्येक व्यक्ति से सम्बन्ध रखता है जिसके साथ उसका सम्पर्क है। इसके अलावा, मनुष्य के द्वारा परमेश्वर की देह को उसके स्पर्श्गम्य आकार के साथ बेहतर ढंग से समझा जा सकता है और उस पर भरोसा किया जा सकता है, और यह परमेश्वर के विषय में मनुष्य के ज्ञान को और गहरा कर सकता है, और यह मनुष्य पर परमेश्वर के वास्तविक कार्यों का और अधिक गंभीर प्रभाव छोड़ सकता है। आत्मा का कार्य रहस्य से ढका हुआ है, इसकी गहराई को मापना नश्वर प्राणियों के लिए कठिन है, और यहाँ तक कि उनके लिए उन्हें देखना और भी अधिक मुश्किल है, और इस प्रकार वे मात्र खोखली कल्पनाओं पर भरोसा रख सकते हैं। फिर भी, देह का कार्य साधारण है, यह वास्तविकता पर आधारित है, और समृद्ध बुद्धि धारण किए हुए है, और ऐसा तथ्य है जिसे मनुष्य की शारीरिक आँख के द्वारा देखा जा सकता है; मनुष्य परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता का व्यक्तिगत रूप से अनुभव कर सकता है, और उसे अपनी ढेर सारी कल्पना को काम में लगाने की आवश्यकता नहीं है। यह देह में परमेश्वर के कार्य की सटीकता एवं उसका वास्तविक मूल्य है। आत्मा केवल उन कार्यों को कर सकता है जो मनुष्य के लिए अदृश्य हैं और उसके लिए कल्पना करने हेतु कठिन हैं, उदाहरण के लिए आत्मा की प्रबुद्धता, आत्मा द्वारा हृदय स्पर्श करना, और आत्मा का मार्गदर्शन, परन्तु मनुष्य के लिए जिसके पास एक मस्तिष्क है, ये कोई स्पष्ट अर्थ प्रदान नहीं करते हैं। वे केवल हृदय स्पर्शी, या एक विस्तृत अर्थ प्रदान करते हैं, और वचनों से कोई निर्देश नहीं दे सकते हैं। फिर भी, देह में परमेश्वर का कार्य बहुत ही अलग होता है: उसमें वचनों का सटीक मार्गदर्शन होता है, उसमें स्पष्ट इच्छा होती है, और उसमें स्पष्ट अपेक्षित उद्देश्य होते हैं। और इस प्रकार मनुष्य को अंधेरे में यहाँ वहाँ टटोलने, या अपनी कल्पना को काम में लगाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है, और अंदाज़ा लगाने की तो बिलकुल भी आवश्यकता नहीं होती है। यह देह में किए गए कार्य की स्पष्टता है, और आत्मा के कार्य से बिलकुल अलग है। आत्मा का कार्य केवल एक सीमित दायरे तक उपयुक्त होता है, और देह के कार्य का स्थान नहीं ले सकता है। देह का कार्य मनुष्य को आत्मा के कार्य की अपेक्षा कहीं अधिक सटीक एवं आवश्यक लक्ष्य और कहीं अधिक वास्तविक, एवं मूल्यवान ज्ञान प्रदान करता है। वह कार्य जो भ्रष्ट मनुष्य के लिए सबसे अधिक मूल्य रखता है वह ऐसा कार्य है जो सटीक वचनों, एवं अनुसरण करने के लिए स्पष्ट लक्ष्यों को प्रदान करता है, और जिसे देखा एवं स्पर्श किया जा सकता है। केवल वास्तविकता से सम्बन्धित कार्य एवं समयानुसार मार्गदर्शन ही मनुष्य की अभिरुचियों के लिए उपयुक्त होते हैं, और केवल वास्तविक कार्य ही मनुष्य को उसके भ्रष्ट एवं दूषित स्वभाव से बचा सकता है। इसे केवल देहधारी परमेश्वर के द्वारा ही हासिल किया जा सकता है; केवल देहधारी परमेश्वर ही मनुष्य को उसके पूर्व के भ्रष्ट एवं दूषित स्वभाव से बचा सकता है। यद्यपि आत्मा परमेश्वर का अंतर्निहित मूल-तत्व है, फिर भी ऐसे कार्य को केवल उसके देह के द्वारा ही किया जा सकता है। यदि आत्मा अकेले ही कार्य करता, तब उसके कार्य का प्रभावशाली होना संभव नहीं होता—यह एक स्पष्ट सच्चाई है। यद्यपि अधिकांश लोग इस देह के कारण परमेश्वर के शत्रु बन गए हैं, फिर भी जब वह अपने कार्य को पूरा करता है, तो ऐसे लोग जो उसके विरोधी हैं वे न केवल आगे से उसके शत्रु नहीं रहेंगे, बल्कि इसके विपरीत वे उसके गवाह बन जाएंगे। वे ऐसे गवाह बन जाएंगे जिन्हें उसके द्वारा जीत लिया गया है, ऐसे गवाह जो उसके अनुकूल हैं और उससे अविभाज्य हैं। वह मनुष्य को प्रेरित करेगा कि मानव के प्रति देह में किए गए उसके कार्य के महत्व को जाने, और मनुष्य मानव के अस्तित्व के अर्थ के लिए इस देह के महत्व को जानेगा, मानव के जीवन की प्रगति के लिए उसके वास्तविक मूल्य को जानेगा, और, इसके अतिरिक्त, यह जानेगा कि यह देह जीवन का एक जीवन्त सोता बन जाएगा जिससे अलग होने की बात को मानव सहन नहीं कर सकता है।" — "वचन देह में प्रकट होता है" से उद्धृत

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