चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं। हम सभी सत्य-के-साधकों का यहाँ आने और देखने के लिए स्वागत करते हैं।

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की मूलभूत मान्यताएँ

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शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

गंतव्य पर

जब भी गंतव्य की बात आती है, आप उसे पूरी गंभीरता से लेते हैं; आप सभी लोग इस मामले में बहुत ही संवेदनशील हैं। कुछ लोग तो एक अच्छा गंतव्य पाने के लिये परमेश्वर के सामने दंडवत करने से भी नहीं चूकते। मैं आपकी उत्सुकता समझता हूं, उसे शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। आप बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि आपकी देह किसी विपत्ति में फंस जाये, और न ही आप यह चाहेंगे कि भविष्य में आपको कोई दीर्घकालिक दंड भुगतना पड़े। आप केवल सरल और उन्मुक्त जीवन जीना चाहते हैं। इसलिए जब भी गंतव्य की चर्चा आती है, आप एकदम बेचैन हो जाते हैं और डरने लगते हैं कि यदि आप पूरी तरह से सतर्क नहीं रहे तो कहीं परमेश्वर आपसे नाराज न हो जायें और कहीं आपको दंड का भागी न बनना पड़े। अपने गंतव्य की खातिर आप समझौते करने से भी नहीं हिचके, और आप में से बहुत से लोग जो भटकाव और चंचलता में फंसे हुए थे, वे अचानक विनम्र और ईमानदार हो गये; आपकी ईमानदारी तो बल्कि घबराहट पैदा करती है। खैर, आप लोगों के दिल में ईमानदारी है। शुरु से आप लोगों ने मेरे साथ खुलापन रखा है। आपके मन की ऐसी कोई बात नहीं है जो आपने मुझसे छुपाई हो। फिर वह चाहे निंदा हो, कपट हो या समर्पण। यहां तक कि आपने अपने मन के तहखाने में दबी बेहद अहम चीज़ें भी मेरे समक्ष बड़ी स्पष्टता से “स्वीकार” कर ली हैं। यह भी ठीक है कि मैंने भी कभी इन चीज़ों से बचने की कोशिश नहीं की, क्योंकि मेरे लिये ये आम बातें हो गई हैं। आप परमेश्वर का अनुमोदन पाने के लिये सिर का बाल तोड़ने की तो बात ही क्या है, आग के दरिया तक में कूदने को तैयार हो जायेंगे। ऐसा नहीं है कि मैं आपके साथ कुछ ज़्यादा ही हठधर्मी हो रहा हूं; बात यह है कि मैं जो कुछ भी करता हूं, उसका सामना करने के लिये आपके हृदय का भाव अभी अपर्याप्त है। शायद मेरे कहने का तात्पर्य आप समझ न पाएं, तो मैं आपको एक सरल व्याख्या करके बताता हूं: आपको सत्य और जीवन की आवश्यकता नहीं है; यह आपके आचरण के सिद्धांतों की बात नहीं है, और विशेषकर न मेरे श्रमसाध्य कार्य की बात है। आपको आवश्यकता उन चीज़ों की है जो आपकी देह से जुड़ी हैं – सम्पत्ति, हैसियत, परिवार, विवाह आदि। आप मेरे वचनों और कार्य की उपेक्षा करते हैं, तो मैं आपकी निष्ठा को एक शब्द में समेट सकता हूं: अधूरे मन से। जिन चीज़ों के प्रति आप समर्पित हैं, उन्हें हासिल करने के लिये आप किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन मैंने देखा है कि आप परमेश्वर में अपने विश्वास को लेकर हर चीज़ की उपेक्षा दें, ऐसा नहीं है। बल्कि आप सापेक्ष रूप से निष्ठावान हैं, सापेक्ष रूप से गंभीर हैं। इसीलिये मेरा कहना है कि जिनके मन में पूर्ण निष्ठा का अभाव है, वे परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में सफल नहीं हो पाते। ज़रा इस पर गंभीरता से विचार करें – क्या आप लोगों में असफल लोगों की संख्या अधिक है?
आपको ज्ञात होना चाहिये कि सफलता लोगों को उनके अपने कार्यों से मिलती है; जब लोग असफल हो जाते हैं, तो वह भी उनके अपने कार्यों के कारण ही होता है, किन्हीं अन्य वजहों से नहीं। मुझे लगता है कि परमेश्वर में विश्वास करने की अपेक्षा, जो काम अधिक मुश्किल हैं और जिनमें अधिक कष्ट हैं, उन्हें करने के लिये आप कुछ भी कर सकते हैं, और उसे आप बड़ी गंभीरता से लेते हैं। उन कार्यों में आप कोई गलती करना भी पसंद नहीं करते; आप सभी ने अपना पूरा जीवन इसी प्रकार के निरंतर प्रयासों में लगा दिया है। आप स्थिति विशेष में मेरे देह को तो धोखा दे सकते हैं, लेकिन आप अपने परिजनों को धोखा नहीं दे सकते। यही आपका व्यवहार बन चुका है और इसी सिद्धांत को आप अपने जीवन में अपनाते हैं। क्या आप अपने गंतव्य की खातिर, सुंदर और सुखद गंतव्य हेतु मुझे धोखा देने के लिये एक मिथ्या छवि का निर्माण नहीं कर रहे हैं? मुझे ज्ञात है कि भक्ति और ईमानदारी मात्र अस्थायी है; आपकी आकांक्षाएं और जो कीमत आप चुकाते हैं, क्या वे तब की अपेक्षा अब के लिये नहीं हैं? एक खूबसूरत गंतव्य को सुरक्षित कर लेने के लिये आप केवल अंतिम प्रयास करना चाहते हैं। आपका उद्देश्य महज़ सौदेबाज़ी है; इसलिये नहीं कि आप सत्य के प्रति कृतज्ञ नहीं हैं, और विशेषकर यह उस कीमत को चुकाने के लिये नहीं है जो मैंने अदा की है। संक्षेप में यह कि आप अपनी चतुराई का प्रयोग करने के इच्छुक हैं, लेकिन आप इसके लिये संघर्ष करने को तैयार नहीं हैं। क्या यही आपकी दिली ख्वाहिश नहीं है? आप अपने को छिपाने का प्रयास न करें, और न ही इस हद तक अपने गंतव्य को लेकर माथापच्ची करें कि न तो आप खा सकें, न सो सकें। क्या यह सच नहीं है कि अंत में आपका गंतव्य निर्धारित हो चुका होता? आपको अपना दायित्व पूरी क्षमता से और खुले तथा निर्मल हृदय से पूरा करना चाहिये, एवं हर स्थिति में पूर्ण करना चाहिये। जैसा कि आपने कहा है, जब दिन आयेगा, तो जिसने भी परमेश्वर के लिये कष्ट उठाए हैं, परमेश्वर उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा। इस प्रकार का दृढ़निश्चय बनाये रखना चाहिये और इसे कभी भूलना नहीं चाहिये। केवल इसी प्रकार से मैं आप लोगों के बारे में निश्चिंत हो सकता हूं। वरना मैं कभी भी आप लोगों के विषय में बेफिक्र नहीं हो पाऊंगा, और आप सदैव मेरी घृणा के पात्र रहेंगे। यदि आप सभी अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सकें और अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर सकें, मेरे कार्य के लिये कोई कोर-कसर न छोड़ें, और मेरे धार्मिक कार्य के लिये अपने आजीवन किये गये प्रयास अर्पित कर सकें, तो क्या फिर मेरा हृदय आपके लिये हर्षित नहीं होगा? क्या मैं आपकी ओर से पूर्णत: निश्चिंत नहीं हो जाऊंगा? यह अत्यंत ही लज्जा का विषय है कि आप जो कर सकते हैं, वह मेरी अपेक्षाओं का बहुत ही दयनीय और तुच्छ भाग है; ऐसे में, आप मुझसे अपनी आशाएं पूर्ण कराने की जुर्रत कैसे कर सकते हो?
आपका गंतव्य और आपकी नियति बहुत अहम हैं – वे बेहद गंभीर विषय हैं। आप मानते हैं कि यदि कार्यों को अत्यंत सावधानी से नहीं करते हैं, तो यह गंतव्य न होने के समान है, और आपकी नियति का विनाश है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यदि कोई प्रयास करता है तो वे मात्र उनके गंतव्य के लिये हैं, वे मात्र निष्फल परिश्रम हैं? ऐसे प्रयास सच्चे नहीं हैं – वे कपटपूर्ण और मिथ्या हैं। यदि ऐसा है, तो जो अपने गंतव्य के लिये कार्य कर रहे हैं, उनकी अंतत: पराजय होगी, क्योंकि परमेश्वर में विश्वास की विफलता का कारण धोखा है। मैं पहले कह चुका हूं कि मुझे चाटुकारिता या खुशामद या उत्साह से पेश आना पसंद नहीं है। मुझे ऐसे ईमानदार लोग पसंद हैं जो मेरे सत्य और अपेक्षाओं के समक्ष टिक सकें। और तो और, जब लोग मेरे हृदय के प्रति चिंता या आदर का भाव दिखाते हैं तो मुझे अच्छा लगता है, और तब मुझे और भी अच्छा लगता है जब लोग मेरी खातिर सब कुछ छोड़ सकें। केवल इसी तरह से मेरे हृदय को सुखद अनुभूति हो सकती है। इस समय, आपके विषय में ऐसी कितनी चीज़ें हैं जो मुझे अप्रिय हैं? आपके विषय में ऐसी कितनी चीज़ें हैं जो मुझे प्रिय हैं? क्या आपमें से किसी को भी उस कुरूपता का अहसास नहीं है जो आपने गंतव्य की खातिर प्रदर्शित की है?
अपने मन में, मैं ऐसे किसी के भी मन के प्रति हानि पहुंचाने का भाव नहीं रखता हूं जो सकारात्मक और प्रेरित है, और जो पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहा है, मुझे उसकी ऊर्जा को कम करने की कोई चाह नहीं है; उसके बावजूद, मैं आप सभी को यह ज़रूर याद दिलाऊंगा कि आपके अंतर्मन में कमियां और मलिन आत्मा है। ऐसा करने का उद्देश्य है कि मैं चाहता हूं कि आप लोग मेरे वचनों का सामना अपने सच्चे हृदय से करें, क्योंकि मुझे अपने प्रति लोगों के कपटपूर्ण रवैये से घृणा है। मुझे आशा है कि मेरे कार्य के अंतिम चरण में, आपकी कार्यशीलता उल्लेखनीय हो, आप पूर्ण समर्पित हों, और अधूरे मन से कार्य न करें। मैं यह भी आशा करता हूं कि आप सभी को अच्छा गंतव्य प्राप्त हो। उसके बावजूद, अभी भी मेरी अपनी आवश्यकताएं हैं, और वो ये कि आपको तय करना है कि आप अपनी एकमात्र और अंतिम भक्ति मुझे प्रदान करें। यदि किसी की एकनिष्ठ भक्ति नहीं है, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से शैतान की पूंजी बन जायेगा, और मैं उसका इस्तेमाल करना जारी नहीं रखूंगा। मैं उसे उसके माता-पिता के पास देखभाल के लिये भेज दूंगा। मेरा कार्य आपके लिये बहुत मददगार रहा है; मैं आपसे केवल एक ईमानदार और सकारात्मक हृदय की आशा करता हूं, लेकिन मेरे हाथ अभी भी खाली हैं। इस विषय में सोचिये: जब किसी दिन मेरे अंदर इसी प्रकार की बेपनाह कटुता भरी होगी, तो आपके प्रति मेरा रवैया क्या होगा? क्या मेरा व्यवहार मैत्रीपूर्ण होगा? क्या मेरा हृदय शांत होगा? क्या आप उस व्यक्ति की भावना समझ सकते हैं जिसने बड़े कष्टों से खेती की हो और उसे फसल कटाई में अन्न का एक दाना भी नसीब न हुआ हो? क्या आप उस व्यक्ति के गंभीर घावों का अहसास कर सकते हैं जिस पर प्रहार हुए हों? क्या आप आशान्वित व्यक्ति की कड़ुवाहट का अनुमान कर सकते हैं जिसे किसी से बुरी परिस्थिति में अलग होना पड़ा हो? क्या आपने उस व्यक्ति का क्रोध देखा है जिसे उत्तेजित किया गया हो? क्या आप उस व्यक्ति के प्रतिशोध के लिये तड़पती भावनाओं को जान सकते हैं जिसके साथ विद्वेष और कपटपूर्ण व्यवहार किया गया हो? यदि आप इन लोगों की मानसिकता समझ सकते हैं, तो आपके लिये यह समझना कठिन नहीं होना चाहिये कि अपने दंड के समय परमेश्वर का रवैया क्या होगा! अंत में, मुझे उम्मीद है कि आप अपने गंतव्य के लिये गंभीर प्रयास करेंगे; उसके बावजूद, आप अपने प्रयासों के लिये कपटपूर्ण साधन न अपनायें, अन्यथा मेरा मन आपके प्रति मायूसी से भर जायेगा। इस मायूसी का नतीजा क्या होगा? क्या आप स्वयं को ही बेवकूफ नहीं बना रहे हैं? जो अपने गंतव्य के विषय में सोचते हैं, मगर फिर भी उसे बर्बाद कर देते हैं, उन्हें बचा पाना बेहद कठिन होगा। यदि ऐसे लोग उत्तेजित भी हो जायें तो उनके साथ कौन हमदर्दी दिखायेगा? कुल मिलाकर, मैं अभी भी इच्छुक हूं और चाहता हूं कि सभी को उपयुक्त और अच्छा गंतव्य मिले। बल्कि मैं तो चाहता हूं कि आपमें से कोई भी विपत्ति में न फंसे।
“वचन देह में प्रकट होता है” से

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