अधिकांश लोग परमेश्वर के कार्य को नहीं समझते हैं और इस पहलू को समझना आसान नहीं है। सबसे पहली चीज जो आपको अवश्य पता होनी चाहिए वह यह है कि परमेश्वर के समस्त कार्य के लिए समय निर्दिष्ट है और यह उस तरह का तो बिल्कुल नहीं है जैसा किलोग कल्पना करते हैं। मनुष्य कभी भी इस बात की थाह नहीं ले सकता है कि परमेश्वर कौन सा कार्य करेंगे या वे उस कार्य को कब करेंगे। वे उस कार्य को अभी करते हैं जिसे अभी किया जाना चाहिए और यह कुछ ऐसी चीज है जिसे कोई नष्ट नहीं कर सकता है; वे उस कार्य को तब करते हैं जब उसे तभी किया जाना चाहिए, उसमें एक सेकेंड की भी देरी नहीं करते हैं, और उसे भी कोई नष्ट नहीं कर सकता है। उनके कार्य का सिद्धांत यह है कि इसे उनकी योजनाओं के अनुसार किया जाता है, साथ ही साथ उनकी इच्छा के अनुसार भी किया जाता है। यह कुछ ऐसा है जिसे बदलने में कोई भी सक्षम नहीं है, और आप इसके भीतर परमेश्वर का स्वभाव देखेंगे। यदि आपको लगता है कि आप अभी तक उस स्तर पर नहीं पहुँचे हैं, और कि परमेश्वर को आपकी प्रतीक्षा करते रहना चाहिए, तब यह संभव नहीं है। कार्य जिसे किसी ख़ास समय पर किए जाने की आवश्यकता है उसे उसी समय पर अवश्य किया जाना चाहिए। आप लोग देख सकते हैं कि इन अनेक सालों में कार्य को इसी तरह से किया गया है। क्या वचन बोले जाने चाहिए, मनुष्य के लिए व्यवस्था कैसे की जानी चाहिए, कौन सा कार्य किस समय पर किया जाना चाहिए — इनमें से किसी को भी कौन नष्ट कर सकता है? जब सुसमाचार का प्रचार-प्रसार आरंभ हुआ था और हर जगह किताबें प्रदान की गई थीं, ऐसे लोग भी थे जो किताबों को जला दिया करते थे, ऐसे लोग जो दूसरे लोगों को वे किताबें पढ़ने से रोका करते थे, ऐसे लोग जो लांछन लगाया करते थे, ऐसे लोग जो विश्वासियों का पीछा किया करते थे और शत्रुओं को उनके बारे में बताया करते थे और ऐसे लोग भी थे उन्हें खोजा करते थे और उनका दमन किया करते थे। हर जगह भयंकर प्रतिरोध था लेकिन, अंत में, क्या तब भी सुसमाचार के कार्य का भव्य दृश्य दिखाई नहीं दिया था? क्या तब भी हर जगह बहुत सारे लोगों को लाभ नहीं हुआ? परमेश्वर की योजना को संभवतः कौन नष्ट कर सकता है? जिन लोगों को प्राप्त होना चाहिए उन्हें निश्चित रूप से अवश्य प्राप्त होगा, और जिन लोगों को प्राप्त नहीं होना चाहिए लेकिन वे प्रवेश कर गए हैं उन्हें अवश्य बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। यह एक अनश्वर तथ्य है। ठीक जैसे कि यह कहा गया है, “राजा का हृदय नदियों में जल के समान परमेश्वर के हाथ में होता है: वे उसे अच्छी इच्छा के अनुसार कभी भी पलट देते हैं”; तो फिर इन मामूली आदमियों का क्या होगा? कार्य का कौन सा चरण किस समय किया जाना चाहिए यह सब परमेश्वर की योजना में है। यह वैसा नहीं है जैसी लोग कल्पना करते हैं, कि कोई विपरीत परिवेश उत्पन्न हो जाने पर कार्य रोक दिया जाएगा, और यह वैसा नहीं है जैसा वे लोग मानते हैं, कि ऐसा या वैसा करके, मनुष्य परमेश्वर की प्रबंधन योजना को नष्ट कर सकता है। वे बस लोगों की कल्पनाएँ हैं। भले ही आप परमेश्वर के कार्य को नष्ट करने और उसे परेशान करने के लिए कितना भी कठोर प्रयास कर लें, इस का कोई फायदा नहीं है। पवित्र आत्मा का कार्य सब कुछ तय करता है। पवित्र आत्मा के कार्य के बिना, कोई कुछ भी हासिल नहीं कर सकता है। कभी-कभी लोग अनजान होते हैं और वे सामने चले आते हैं, लेकिन यदि पवित्र आत्मा कार्य नहीं करे, तब उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। इस पहलू के संदर्भ में, लोगों के पास किस प्रकार का तर्क होना चाहिए? जब यह पता चलता है कि पवित्र आत्मा कार्य नहीं कर रही है, तो हाथ में लिए गए कार्य को छोड़ देना चाहिए और उन लोगों को प्रतीक्षा करनी चाहिए और परमेश्वर के इरादों को जानने का प्रयास करना चाहिए—यही एकमात्र बुद्धिमान विकल्प है जो लिया जाना चाहिए। मनुष्य को वही करना चाहिए जो करना उचित हो और मनुष्य को अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास करना चाहिए। आप चीजें गलत करने से डर नहीं सकते और फिर निष्क्रिय होकर प्रतीक्षा नहीं कर सकते, और यह तो बिल्कुल नहीं कह सकते कि, “परमेश्वर ने अभी तक कार्य नहीं किया है। परमेश्वर ने अभी तक मुझे कुछ करने के लिए नहीं कहा है, इसलिए मैंने अभी तक कुछ नहीं किया है।” क्या आप अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हट रहे हैं? यह कुछ ऐसी चीज है जिसे आपको स्पष्ट रूप से देखना चाहिए, क्योंकि यह कोई मामूली मामला नहीं है।
परमेश्वर की प्रबंधन योजना में कार्य के सभी चरण कार्यक्रम के अनुसार और समय पर किए जाते हैं। यह निश्चित रूप से आपकी कल्पना के अनुसार नहीं है: “आह, वह इसे नहीं कर सकता है! वह उसे नहीं कर सकता है! यह सही नहीं है!” परमेश्वर सर्वशक्तिमान है। ऐसा कुछ नहीं जिसे करना परमेश्वर के लिए मुश्किल हो। मनुष्य क्या कर सकता है? मनुष्य न केवल सत्य का अभ्यास नहीं ला सकता है, बल्कि वे अहंकारी और अभिमानी भी होते हैं; वे सोचते हैं कि वे कुछ भी कर सकते हैं, और उनके हृदय निरंकुश मनोकामनाओं से भरे होते हैं। फिर वैसे लोग भी हैं जिनका मानना है कि परमेश्वर का दिन शीघ्र आएगा, कि उन्हें अब और कष्ट सहने की जरूरत नहीं है, कि वे सुखद दिनों का आनंद ले सकते हैं और कि उनकी उम्मीदें अंततः पूरी होंगी। मैं आप लोगों को कहता हूँ: इस प्रकार के लोग बस यूँ ही साथ रहते हैं, इधर-उधर खेल रहे होते हैं और केवल अंत में, कुछ प्राप्त भी किए बिना, दंडित किए जा सकते हैं। आप क्या हासिल कर सकते हैं यदि आपका विश्वास परमेश्वर के दिन के आगमन पर हो या बड़ी आपदा से आपके बचने के लिए हो? जो परमेश्वर के दिन के आगमन पर अधिक विश्वास करते हैं उन्हें वैसे भी बरबाद अवश्य हो जाना चाहिए। जो सत्य के लिए प्रयास करने, अपने स्वभाव को बदलने और बचाए जाने में विश्वास रखते हैं वे बचे रहेंगे — यही सच्चा विश्वास है। भ्रमित विश्वास वाले लोगों को अंत में कुछ भी प्राप्त नहीं होगा बल्कि उन्होंने केवल व्यर्थ प्रयास किए होंगे, और इसके अतिरिक्त उन्हें अधिक कड़ा दंड भी अवश्य भुगतना चाहिए। लोगों में अंतर्दृष्टि की बहुत कमी है। यदि आप परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन उचित कर्तव्यों में शामिल नहीं होते हैं, इसके बजाय हमेशा कुटिल, दुष्ट तरीकों पर विचार करते हैं, तब आप केवल स्वयं को ही नुकसान पहुँचा रहे होते हैं। वे सांसारिक लोग जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं — क्या वे भी परमेश्वर के हाथों में नहीं हैं? परमेश्वर के हाथों से कौन बच सकता है? कोई भी नहीं! जो बचते हैं वे अंत में परमेश्वर के सामने दंड भुगतने के लिए अवश्य लौटते हैं। यह स्पष्ट है; क्या लोग फिर भी इसे नहीं देख सकते हैं?
कुछ लोग ऐसे हैं, यद्यपि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, जिनकी परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता के बारे में बिल्कुल समझ नहीं है। वे लगातार नुकसान में रहते हैं, सोचते रहते हैं कि: “परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं, उनके पास अधिकार है और वे सभी पर हावी हो सकते हैं, तो फिर भी उन्होंने शैतान को क्यों बनाया और क्यों उसे छह हजार सालों से मनुष्य को भ्रष्ट करने देता है? उसे दुनिया को अराजकता और भ्रम के अस्वासकर वातावरण में क्यों बदलने देता है? उसे नष्ट क्यों नहीं कर देता है? यदि शैतान खत्म कर दिए जाएँ तो क्या मानवजाति ठीक नहीं हो जाएगी?” क्या आप लोग अभी इस प्रश्न को समझा सकते हैं? इसमें दूरदर्शिता शामिल है। कई लोगों ने इस प्रश्न पर विचार किया है, परंतु अब आप लोगों ने थोड़ा सा जमीनी कार्य किया है और इसलिए इस मामले के कारण परमेश्वर के बारे में कोई भी संदेह आप लोगों में उत्पन्न नहीं हो सकता है। लेकिन आप लोगों को इस समस्या के भीतर की सिलवटों को हटाना होगा—ऐसा नहीं करना कोई विकल्प नहीं है। फिर ऐसे कुछ लोग हैं जो पूछते हैं: “परमेश्वर शैतान को अपने खिलाफ विद्रोह करने क्यों देते हैं? एक प्रधान दूत का परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कर पाना—क्या परमेश्वर को नहीं पता था? क्या परमेश्वर उसे नियंत्रित करने में विफल रहे या कि परमेश्वर ने यह होने दिया, या परमेश्वर का कोई दूसरा प्रयोजन था?” लोगों के लिए यह प्रश्न करना सामान्य है, और उन्हें पता होना चाहिए कि इस प्रश्न में परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना शामिल है। परमेश्वर ने वहाँ के लिए एक प्रधान दूत की व्यवस्था की और परमेश्वर के खिलाफ इस प्रधान दूत का विद्रोह परमेश्वर द्वारा स्वीकृत और व्यवस्थित दोनों था—यह निश्चित रूप से परमेश्वर की प्रबंधन योजना की सीमा में आता है। जब मानवजाति ने परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह किया तो परमेश्वर ने प्रधान दूत को उसे भ्रष्ट करने की अनुमति दी, जिसे उन्होंने स्वयं बनाया था। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर शैतान को नियंत्रित करने में विफल रहे, जिसके वजह से मानवजाति को साँप ने बहका दिया और शैतान ने भ्रष्ट कर दिया, बल्कि यह परमेश्वर थे जिन्होंने शैतान को ऐसा करने की अनुमति दी। ऐसा होने देने के लिए अपनी अनुमति प्रदान करने के बाद ही परमेश्वर ने अपनी प्रबंधन योजना और अपना कार्य आरंभ किया। क्या मनुष्य इस रहस्य की थाह पा सकता है? शैतान द्वारा मानवजाति को भ्रष्ट कर दिए जाने पर, परमेश्वर ने मानवजाति के प्रबंधन का अपना कार्य आरंभ किया। पहले, उन्होंने इज़राइल में व्यवस्था के युग का काम किया। दो हजार साल बीत जाने के बाद, उन्होंने अनुग्रह के युग में क्रूस पर चढ़ने के छुटकारे का कार्य किया, और सारी मानवजाति को छुटकारा मिल गया। अंत के दिनों के दौरान, उसने देह धारण किया और अंत के दिनों में लोगों के इस समूह को जीता और बचाया। अंत के दिनों में जन्म लेने वाले लोग किस प्रकार के थे? ये वो लोग हैं जो हजारों सालों से शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए थे, वे इतनी गहराई तक भ्रष्ट किए गए थे कि वे कहीं से भी मानव नहीं लगते थे, जिन्होंने अंततः न्याय, ताड़न और परमेश्वर के वचन के प्रकटीकरण को देखा है, जिन्हें जीत लिया गया है और तब जिन्होंने परमेश्वर के वचनों में से सत्य को प्राप्त कर लिया है; ये वो लोग हैं जो परमेश्वर द्वारा ईमानदारी से भरोसा दिलाए गए हैं, जिन्हें परमेश्वर की समझ आ गई है, जो परमेश्वर की आज्ञा का पालन पूरी तरह से कर सकते हैं और उनकी इच्छा को संतुष्ट कर सकते हैं। परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति इस तरह के लोगों के समूह को प्राप्त करना है। आप मुझे बताएँ, क्या ये वे लोग हैं जो शैतान के भ्रष्टाचार से नहीं गुजरे हैं जो परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति कर सकते हैं? या क्या ये वे लोग हैं जिन्हें अंत में बचाया जाएगा जो परमेश्वर की इच्छा पूर्ति कर सकते हैं? मनावजाति के वे लोग जो संपूर्ण प्रबंधन योजना के द्वारा प्राप्त किए जाएँगे, वे ऐसा समूह हैं जो परमेश्वर की इच्छा को समझ सकते हैं, जो परमेश्वर से सत्य प्राप्त करते हैं, जो जीवन और मानवीय समरूपता से युक्त होते हैं जिसकी परमेश्वर अपेक्षा करते हैं। सबसे पहले जब मनुष्य का निर्माण हुआ, वे सिर्फ इंसान दिखते थे और उनमें जीवन था। परंतु उनके भीतर मानवीय स्वरूपता नहीं थी जिसकी परमेश्वर को अपेक्षा थी या आशा थी कि वे लोग प्राप्त कर पाएँगे। लोगों का समूह जिन्हें अंततः यह प्राप्त होगा, वे लोग होंगे जो अंत में रहेंगे, और वह समूह भी वे होंगे जिसकी परमेश्वर को आवश्यकता है, जिसे परमेश्वर प्रेम करते हैं और जिससे परमेश्वर प्रसन्न रहते हैं। कई हजार वर्षों की प्रबंधन योजना के अंतर्गत, इन लोगों ने अधिक प्राप्त किया है, जो परमेश्वर द्वारा सींचे जाने से आया है और परमेश्वर के शैतान के साथ युद्ध के माध्यम से मनुष्य के लिए उपलब्ध कराया गया है। इस समूह के लोग उनके मुकाबले बेहतर हैं जिन्हें परमेश्वर ने आरंभ में बनाया था; भले ही वे भ्रष्टाचार से गुजरे हों, यह तो अपरिहार्य है, और यह ऐसा मामला है जो परमेश्वर की प्रबंधन योजना के अंतर्गत आता है जो उनकी सर्वशक्तिमत्ता और ज्ञान को विपुलता से प्रकट करता है, यह भी प्रकट करता है कि परमेश्वर ने जो भी व्यवस्थित, नियोजित और उपलब्ध किया है वह महानतम है। यदि आपसे बाद में दोबारा पूछा जाता है: “यदि परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं, तब भी प्रधान दूत उनके खिलाफ विद्रोह कैसे कर सकता है? तब परमेश्वर ने उसे धरती पर फेंक दिया जहाँ उसने मानवजाति को भ्रष्ट कर दिया। इसका महत्व क्या है?” आप यह कह सकते हैं: “यह मामला परमेश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित क्षेत्र के भीतर आता है और यह सबसे महत्वपूर्ण है। मनुष्य पूरी तरह से इसकी थाह नहीं ले सकता है, लेकिन उस स्तर से जिस तक मनुष्य समझ और पहुँच सकता है, यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर बहुत ऊँचे अर्थ वाले स्तर पर काम करते हैं।” इसका अर्थ निश्चित रूप से यह नहीं है कि परमेश्वर की यह अस्थायी चूक है, या उन्होंने नियंत्रण खो दिया है और उनके पास चीजों को प्रबंधित करने का कोई उपाय नहीं है, और फिर वे शैतान की चालबाजियों को इसके खिलाफ कर देते हैं; ऐसा नहीं है कि उनको लगता है कि प्रधान दूत ने वैसे भी विद्रोह कर ही दिया है इसलिए वे भी उसे सब कुछ करने दें, और फिर वे शैतान को सभी को भ्रष्ट बनाने देकर मानवजाति को बचाने की योजना बनाते हैं। मामला बिल्कुल ऐसा नहीं है। लोगों को कम से कम इतना पता तो होना ही चाहिए कि यह मामला परमेश्वर की प्रबंधन योजना की सीमा में आता है। कौन सी योजना? पहले चरण में, एक प्रधान दूत था; दूसरे चरण में, प्रधान दूत ने विद्रोह किया; तीसरे चरण में, प्रधान दूत के विद्रोह करने के बाद, वह मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए उनके बीच आया, और फिर परमेश्वर ने मानवजाति के प्रबंधन का काम आरंभ किया। जब लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं तो उन्हें परमेश्वर की प्रबंधन योजना की दूरदर्शिता को अवश्य समझना चाहिए। कुछ लोग सत्य के इस पहलू को कभी नहीं समझते हैं, हमेशा महसूस करते हैं कि न सुलझ सकने लायक बहुत से विरोधाभास हैं। बिना किसी समझ के वे अनिश्चित महसूस करते हैं और, अनिश्चित महसूस करते हुए, वे आगे नहीं बढ़ सकते हैं। लोगों से निपटना निश्चित रूप से बहुत कठिन है। चूँकि अब हमने सहभागिता कर ली है, अब आप इसे समझते हैं, है कि नहीं? सबसे पहले एक प्रधान दूत था, फिर परमेश्वर के पास अपनी योजना थी, जिसमें स्पष्ट था कि कब वह उनके खिलाफ विद्रोह करना आरंभ करेगा और किन घटनाओं के माध्यम से यह धीरे-धीरे विद्रोह में बदल जाएगा—यह सब एक प्रकिया थी। निस्संदेह यह इतना आसान नहीं हो सकता है जितना यह पृष्ठ पर लिखा दिखाई देता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे जब यहूदा ने यीशू को बेचा, उसके लिए यह सब अचानक कर देना संभव नहीं था। यीशू का लंबे समय तक अनुसरण में, उसने निश्चित रूप से एक ख़ास तरह से व्यवहार अवश्य किया होगा। फिर शैतान अपने विचारों को प्रसारित करने के काम में लग जाता है, फिर यहूदा कुछ अन्य चीज़ें करता है, और वह धीरे-धीरे बुरा बन गया। अपने परिवेश के माध्यम से — और समय आने पर — उसने यीशू को बेचना आरंभ कर दिया। बुरा बनने वाला मनुष्य भी एक सामान्य प्रक्रिया से गुजरता है और एक सामान्य नियम का पालन करता है; यह इतना सरल नहीं हो सकता है जैसी लोग कल्पना करते हैं। आप केवल इस स्तर तक ही परमेश्वर की प्रबंधन योजना के मामलों को समझ सकते हैं। जब आप अधिक ऊँची महत्ता पा लेंगे, तब आप इसके गहरे अर्थ को समझ पाएँगे।
“मसीह की बातचीतों के अभिलेख” से
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